कीटनाशक दवाओं से भी हो सकता है बच्चों में इन्सेफलाइटिस जैसा भयंकर रोग
गाँव कनेक्शन 5 Jun 2017 4:54 PM GMT
लखनऊ। "रसायन प्रदूषण के संदर्भ में एक सर्वेक्षण का अनुमान है कि कीटनाशक दवाओं के प्रयोग से फसल को तो फायदा होता है परन्तु उससे बच्चों में ‘इन्सेफलाइटिस’ जैसे भयंकर रोग भी हो सकता है" यह बात केन्द्रीय होम्योपैथी परिषद के सदस्य डा0 अनुरूद्ध वर्मा ने विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर आज लखनऊ में कहीं। उन्होंने कहा कि अधिक बच्चों में पेटदर्द, मिचली की शिकायतें इसी कारण रहती हैं और विषक्तता के कारण गुर्दे एवं स्नायु तंत्र को भी नुकसान पहुंचता है।
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प्रकृति ने मनुष्य की सुख सुविधा के लिए समस्त वस्तुएं उपलब्ध कराईं हैं परन्तु अधिकाधिक ऐशो-आराम की तृष्णा में मनुष्य प्रकृति को नष्ट करने पर उतर आया है और इस कारण आज जिंदगी जीने के लिए स्वच्छ हवा एवं पानी भी मिलना दूभर हो गया है। पर्यावरण प्रदूषण ने हमारे शरीर को तो बीमार किया ही है, मन को भी बीमार कर दिया है।
अब प्रश्न उठता है कि धरती के वातावरण को इस हद तक प्रदूषित करने के लिए जिम्मेदार कौन है? कारण ढूंढने पर पता चलता है कि हमारे सिवा और कोई नहीं। सुख सुविधाओं की अदम्य इच्छा ने हमें इस स्थिति तक पहुंचा दिया है।
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मोटर वाहनों के धुयें में हमारे तन-मन को नुकसान पहुंचाने वाले कई तत्व मौजूद रहते हैं जिससे कई तरह के हाईड्रोकार्बन, कार्बन मोनोआक्साइड गैस, नाइट्रोजन के आक्साइड एवं सीसा आदि शामिल है। हाइड्रोकार्बन चमड़ी का कैन्सर पैदा कर सकता है इसकी वजह से आंखों में जलन और सांस की तकलीफें भी पैदा हो सकती हैं।
यहां तक इससे दमा भी हो सकता है। कार्बन मोनोआक्साइड से सिर में दर्द होने लगता है, हृदय पर दबाव पड़ता है। गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। धुंए में मौजूद सीसा कैंसर के अलावा यकृत एवं गुर्दे सम्बन्धी रोग भी उत्पन्न करता है, इसका सबसे खतरनाक प्रभाव मानसिक विकास को रोकना है।
वातावरण में बढ़ता हुआ शोर भी मानव के शरीर में अनेक प्रकार की बीमारियां उत्पन्न करता है यह शोर मशीनों, लाउडस्पीकरों, वाहनों से लगातार होता है जिसके कारण स्थायी श्रवणदोष उत्पन्न हो जाता है और उच्च रक्तचाप, श्वास गति, नाड़ी की गति तथा रक्त संचालन पर बुरा असर पड़ता है। शोर के कारण मानसिक तनाव बढ़ता है उससे विभिन्न प्रकार के मानसिक रोग जन्म लेते हैं। शोर के कारण ही अनिद्रा रोग भी उत्पन्न हो सकता है।
कारखानों द्वारा वातावरण में फैलाये जा रहे पारे के कारण शरीर में अनेक प्रकार की बीमारियां उत्पन्न हो सकती है। इसमें प्रारम्भ में शरीर के अंग तथा ओंठ सुन्न हो जाते हैं और कुछ समय बाद स्पर्श बोध व सुनने की शक्ति कम होने लगती है। रोगी आंखों की ज्योति भी खो बैठता है।
जल हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अवयव है आज पानी भी बहुत ज्यादा प्रदूषित हो गया है। नदियों में कारखानों का कचरा, शहरों का कचरा एवं अन्य दूषित पदार्थ बहाये जाते हैं। परिणाम होता है कि यही प्रदूषित पानी जब पीने के लिए प्रयोग में लाया जाता है तो इससे अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो सकते हैं।
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जल प्रदूषण से उत्पन्न होने वाले रोगों में गेस्ट्रोइन्ट्राइटिस, कोलाइटिस, कालरा, दस्त तथा अनेक प्रकार के चर्म रोग प्रमुख है। पर्यावरण प्रदूषण से वातावरण में बहुत तेजी से परिवर्तन आ रहा है। असमय मौसम में बदलाव भी मनुष्य के शरीर पर अनेक प्रकार के अस्वभाविक परिवर्तन उत्पन्न करते है।
एक तरफ विश्व स्वास्थ्य संगठन सबको स्वस्थ बनाने का नारा दे रहा है वहीं दूसरी ओर पर्यावरण प्रदूषण सबको रोगों की ओर ढकेल रहा है, ऐसे में विश्व स्वास्थ्य संगठन का संकल्प कैसे पूरा होगा? रास्ता एक ही है हम अपनी सुख सुविधाओं की अदम्य इच्छा को कम करें। प्रकृति को बिना नुकसान पहुचाये उसका एक सीमा तक दोहन करें।
आइए पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए जन चेतना जागृत करें तभी प्रदूषण का ताण्डव रुक सकेगा अन्यथा हम बीमारियों के ऐसे दुष्चक्र में फंस जायेंगे जिससे निकलना आसान नहीं होगा। आइये हम पर्यावरण संरक्षण के लिए एक कदम आगे चलने का संकल्प लें और स्वस्थ समाज के निर्माण में सहयोग करें।
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