उत्तर प्रदेश: गन्ना किसानों का 12,000 करोड़ रुपए बकाया, सरकार पैसे की जगह चीनी देने की योजना ले आई

Mithilesh DharMithilesh Dhar   23 April 2020 6:45 AM GMT

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लखनऊ। उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर बकाया बढ़कर 12,000 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। इधर उत्तर प्रदेश सरकार किसानों को पैसों के बदले एक कुंतल चीनी देने की योजना ले आई है। लॉकडाउन में पैसों के लिए परेशान किसानों का कहना है कि हम इतनी चीनी लेकर क्या करेंगे, हमें तो पैसे चाहिए।

लखीमपुर खीरी के शेरपुर सिमरिया के रहने वाले गन्ना किसान अंजनी दीक्षित ने 15 एकड़ का गन्ना नवंबर में गोला चीनी मिल को बेचा था, लेकिन इसका भुगतान अभी तक नहीं हुआ। वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "लगभग 7-8 लाख रुपए बकाया है। अभी तक मात्र एक पर्ची का ही भुगतान हुआ। अब चीनी मिल के मैनेजर कह रहे हैं कि आकर 100 किलो चीनी ले जाओ। अब इतनी चीनी हम क्या करेंगे। हमें तो पैसे चाहिए। गन्ना कटाई की मजदूरी अभी तक नहीं दे पाया। ऐसे में जब हम लॉकडाउन की वजह से वैसे ही नुकसान झेल रहे है, तब हमें पैसों की ज्यादा जरूरत है। चीनी तो हम बेच भी नहीं पाएंगे।"

चीनी उत्पादन के मामले में उत्तर प्रदेश देश में सबसे आगे है। प्रदेश में 50 लाख से अधिक किसान परिवार गन्ने की खेती से जुड़े हुए हैं। वर्ष 2019-20 में 26.79 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में गन्ने की खेती हुई और वर्तमान पेराई सत्र में 117 चीनी मिल संचालित हैं। प्रदेश में चीनी का उद्योग करीब 40 हजार करोड़ रुपयों का है।


उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने वर्ष 2019-20 सीजन के बकाया पैसों के बदले गन्ना किसानों को चीनी देने का फैसला किया है। यूपी गन्ना आयुक्त कायार्लय द्वारा जारी एक विज्ञप्ति में कहा जा रहा है कि गन्ना किसानों की मांग पर यह निर्णय लिया गया है।

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विज्ञप्ति के अनुसान किसान अपना गन्ना चीनी मिल में छोड़ने के बाद वहां से एक कुंतल (50 किलो के 2 बैग) चीनी ले सकता है। इस दौरान उसे सोशल डिस्टेंसिंग के नियम का पालन करना होगा। चीनी मिलों द्वारा इच्छुक गन्ना किसानों को उपलब्ध कराई गई चीनी का मूल्य उनके 2019-20 के बकाया गन्ना राशि से में समायोजित की जायेगी।

हर महीने एक कुंतल चीनी उस दिन के न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) या पिछले दिन के न्यूनतम बिक्री मूल्य के हिसाब से दिया जायेगा। योजना अप्रैल से जून, 2020 लागू रहेगी। चीनी मिलें केवल उन्हीं किसानों को चीनी देंगी जो लेना चाहेंगे। चीनी का वितरण यह भारत सरकार द्वारा संबंधित मिल को महीने के लिए आवंटित बिक्री कोटा के तहत होगा। किसानों को चीनी अपने साधन से लाना होगा और इस जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) भी किसानों को ही देना होगा।

सरकार ने अपनी विज्ञप्ति में दावा किया है कि इससे किसानों को 1,300 से 1,400 रुपए प्रति कुंतल ज्यादा फायदा मिलेगा। यह भी कहा जा रहा कि इस योजना से प्रदेश के लगभग 50 लाख किसानों को फायदा होगा।


लेकिन किसान नेता और लंबे समय से गन्ना किसानों की लड़ाई लड़ रहे राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक सरदार वीएम सिंह का मानना है कि इससे किसानों को फायदा नहीं बल्कि नुकसान होने वाला है।

वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "किसानों को पैसा तो आज चाहिए ना। उन्हें घर संभालना है। एक बोरे चीनी से क्या होगा। इतने में तो ट्रैक्टर की टंकी भी फुल नहीं हो पायेगी। सरकार ने तीन साल तक गन्ने का रेट नहीं बढ़ाया। इसे समझिये। 315 रुपए प्रति कुंतल के हिसाब से जब किसान चीनी बेचेगा और इसके बदले वह इतने का चीनी खरीदेगा तो कम से कम 157 रुपए तो उसका जीएसटी ही कट जायेगा। इसे हिसाब देखेंगे तो एक किसान को एक कुंतल गन्ने के बदले मिलेगा मात्र 299 रुपए।"

"गन्ना आयुक्त कहते हैं किसानों को 1,300, 1,400 रुपए का फायदा होगा, यह हो ही नहीं सकता। यह फायदा किसानों को नहीं चाहिए। सरकार बस यह कर दे कि किसानों का जो पैसा बकाया है उसका ब्याज दे दे, उन्हें उसी से फायदा हो जायेगा। कोर्ट के आदेशानुसार ब्याज मिलना चाहिए।"

प्रदेश के गन्ना मंत्री सुरेश राणा सरकार के इस फैसले की तारीफ करते हैं। वे फोन पर गांव कनेक्शन से कहते हैं, "हमने ये फैसला किसानों के कहने पर ही लिया है। कई सारे किसानों ने फोन करके कहा कि लॉकडाउन की वजह से उन्हें काफी परेशानी हो रही है, ऐसे में अगर मिलों से चीनी मिलेगी तो उन्हें बाजार में खरीदना नहीं पड़ेगा। इससे किसानों को फायदा भी होगा और यह किसानों की इच्छा पर है, जब वे चाहेंगे तभी उन्हें चीनी दिया जायेगा।"

विज्ञप्ति में लिखा है कि किसानों को प्रति कुंतल 1,300 से 1,400 रुपए का फायदा भी होगा, यह कैसे होगा, इसके जवाब में सुरेशा राणा कहते हैं, "किसान को मिल ने जो चीनी मिलेगी वह 3,000 रुपए प्रति कुंतल के आसपास होगी, किसान यही चीनी बाजार में 4,200 से 4,300 रुपए कुंतल में बेच सकता है।"

गन्ना बेल्ट जिला बिजनौर के ब्लॉक नजीबाबाद के गांव तिसोतरा के रहने वाले गन्ना किसान अचल कहते हैं कि वे इतनी चीनी का करेंगे क्या। वे कहते हैं, "मेरे घर में कुल 10 लोग हैं और महीनेभर लगभग 30 किलो चीनी की खपत है। अब हम अगर एक कुंतल चीनी लेंगे तो उसका करेंगे क्या ? लॉकडाउन की वजह से उसे बाहर भी तो नहीं बेच सकते।"

अचल का बिजनौर के उत्तम चीनी मिल पर इस सीजन का अभी दो लाख रुपए से ज्यादा का बकाया है। वे आगे कहते हैं, "मुझे अगली फसल के लिए पैसों की जरूरत है। मिल वाले पैसे दे नहीं रहे हैं और सरकार पैसे दिलाने के बदले चीनी दिला रही है। इससे हमारी परेशानी और बढ़ेगी।"

बकाया 12,000 करोड़ रुपए पहुंचा

लॉकडाउन के समय में जब किसान सरकार से मदद की ज्यादा उम्मीद लगाये बैठे हैं तो इधर प्रदेश में गन्ना किसानों का मिलों पर बकाया बढ़ता जा रहा है।

उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर किसानों का बकाया बढ़कर 12,000 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है जबकि फरवरी तक यही बकाया लगभग 7,000 करोड़ रुपए था। उत्तर प्रदेश शुगर मिल एसोसिएशन के अनुसार 14 अप्रैल 2020 तक प्राइवेट चीनी मिलों पर बकाया सबसे ज्यादा है। सरकारी चीनी मिलों की बात करें तो बजाज ग्रुप के चीनी पर किसानों को सबसे ज्यादा बकाया है।

जबकि नियम तो यह कहता है कि किसानों को 14 दिनों के अंदर पैसे मिल जाने चाहिए। गन्ना नियंत्रण आदेश 1966 के तहत चीनी मिलों को किसानों को गन्ने की आपूर्ति के 14 दिन के भीतर गन्ने का भुगतान करना होता है। और अगर मिलें ऐसा करने में विफल रहती हैं तो उन्हें विलंब से भुगतान पर 15 फीसदी सालाना ब्याज भी देना पड़ता है।


बकाये के भुगतान को लेकर उत्तर प्रदेश के गन्ना मंत्री सुरेश राणा गांव कनेक्शन को बताते हैं, "17,000 करोड़ रुपए का हम भुगतान कर चुके हैं। मिलों में रोज का रोज भुगतान हो रहा है। और इस समय किसान तो भुगतान की बात ही नहीं कर रहे हैं, वे तो सोच रहे हैं कि किसी तरह से पेराई हो जाये। अधिकतर प्रदेशों में चीनी मिलें बंद हैं, बस हमारे यहां चल रही हैं। अभी तो मिलें चल रही हैं, इसलिए भुगतान या बकाये को लेकर अभी बात ही नहीं होनी चाहिए।"

बजाज हिंदुस्तान सुगर लिमिटेड लखीमपुर खीरी के यूनिट हेड ओमपाल सिंह कहते हैं, "जैसे-जैसे चीनी की सेल हो रही है वैसे-वैसे हम भुगतान कर रहे हैं। चीनी के कुल सेल का 85 फीसदी हम किसानों को भुगतान करते हैं। अब जैसे ही बिक्री बढ़ेगी हम किसानों का भुगतान भी वैसे ही करेंगे।"

  

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