उत्तर प्रदेश : एक प्रधान जो बेसहारा गायों के लिए गाँव में हर घर से मांगता है रोटी
आज बमरौली गाँव में बनी इस गोशाला में प्रधान हबीबुल्ला के कामों की सराहना दूसरे गांवों में भी होती है। एक ओर जहाँ गाँव की निराश्रित गायों को एक स्थान पर रखा गया, दूसरी ओर किसानों को छुट्टा गायों के खेतों को नुकसान पहुँचाने का खतरा भी नहीं रहा।
Ramji Mishra 4 Nov 2020 8:19 AM GMT
शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश)। गाँव का प्रधान जो हर दिन गायों के लिए रोटी मांगने के लिए निकलता है, रोज घर-घर जाता है और सभी से एक-एक रोटी इकट्ठा कर गोशाला में जाकर निराश्रित गायों को खिलाता है।
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर की तहसील सदर से करीब 30 किलोमीटर दूर बमरौली गाँव के यह प्रधान हैं हबीबुल्ला। इस गाँव में करीब 70 घर बने हैं। ख़ास बात यह है कि इस गाँव में प्रधान हबीबुल्ला का एकमात्र मुस्लिम परिवार है, बाकि इस गाँव में सभी हिन्दू परिवार रहते हैं।
मगर गाँव में बनी गोशाला में रह रहीं निराश्रित गायों के लिए प्रधान के प्रयासों की सराहना अब दूसरे गांवों में भी होती है। प्रधान न सिर्फ गोशाला में गायों की सेवा करते हैं, बल्कि खुद इन गायों के लिए रोटी की व्यवस्था करने के लिए घर-घर ग्रामीणों से रोटियां इकट्ठा करते हैं।
बमरौली गाँव की फूलमती (40 वर्ष) बताती हैं, "प्रधान जी हर दिन गायों के लिए रोटी मांगने के लिए आते हैं, ऐसा कोई दिन नहीं होता कि हम लोग गायों के लिए रोटी न निकालें, इसलिए गाँव में सभी प्रधान जी के आने का बहुत इंतज़ार करते हैं। हर घर से उन्हें रोटियां मिल जाती हैं।"
दूसरी ओर गाँव के धीरेन्द्र सिंह बताते हैं, "गाँव में जिनके घर गाय हैं, वह अपनी गाय को रोटी खिला देते हैं, इसके अलावा प्रधान जी जब आते हैं तो गोशाला में उनकी गायों के लिए भी लोग रोटियां देते हैं, प्रधान जी के प्रयासों से गोशाला में आज कई गाय हैं।"
प्रधान के मुताबिक, गाँव में सरकारी योजना से गोशाला बनाने के लिए प्रस्ताव आया कि खेतों को नुकसान पहुँचाने वाली निराश्रित गायों को गोशाला बनाकर एक जगह रखा जाए। पहले तिरपाल के जरिये गोशाला को रूप दिया गया मगर बाद में प्रधान ने मनरेगा के जरिये गोशाला का निर्माण कार्य पूरा कराया। यही वजह है कि पिछले साल जनवरी में इस गोशाला में 10 गाय थीं, मगर धीरे-धीरे बढ़कर आज इनकी संख्या 55 हो गयी हैं।
गोशाला में गायों के लिए हरे चारे की व्यवस्था के सवाल पर प्रधान हबीबुल्ला 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "हरे चारे और दाने की व्यवस्था करते हैं, मगर चारा काटने के लिए अभी हमारे पास मशीन नहीं है, तो जो गौपालक हैं वो हाथ से चारा काटते हैं। गायों को अच्छा भोजन मिले इसलिए हम गाँव वालों से रोटी मांगते हैं और चारे में मिलाकर देते हैं ताकि ये गाय भूखी न रहें।"
"गाँव में गोशाला बनने के बाद हमें मौका मिला कि गायों की देखभाल की जा सके, हरे चारे और भूसे की व्यवस्था की, मुझे पता चला कि हिन्दू धर्म में गाय के लिए सबसे पहले रोटी बनाई जाती है, तो मैंने भी थोड़ी कोशिश की और गाँव में हर घर से रोटियां लेनी शुरू की, अब नित-प्रतिदिन समय से मैं गायों के लिए रोटी मांगने जाता हूँ और गाँव वाले ख़ुशी से देते भी हैं," हबीबुल्ला बताते हैं।.
आज बमरौली गाँव में बनी इस गोशाला की चर्चा दूसरे गांवों में भी होती है। एक ओर जहाँ गाँव की निराश्रित गायों को एक स्थान पर रखा गया, दूसरी ओर किसानों को छुट्टा गायों के खेतों को नुकसान पहुँचाने का खतरा नहीं रहा। यही कारण है कि प्रधान हबीबुल्ला के प्रयासों की सराहना सिर्फ ग्रामीण ही नहीं, बल्कि अधिकारी भी करते हैं।
तत्कालीन मुख्य विकास अधिकारी महेंद्र सिंह तंवर बताते हैं, "बमरौली गाँव में प्रधान जी का काम बहुत अच्छा है, प्रधान जी न सिर्फ गायों की सेवा करते हैं, बल्कि गोशाला की भी पूरी तरह से देखरेख करते हैं। यह दूसरे गांवों के लिए उदाहरण हैं कि कैसे निराश्रित गायों की समस्याओं को दूर किया जा सकता है।"
वहीं गाँव के प्रधान हबीबुल्ला कहते हैं, "मेरा प्रयास है कि हर एक घर में गौवंश जरूर हो ताकि लोग केमिकल वाली खेती की परम्परा को समाप्त कर सकें और फिर खेतों में देसी खाद का प्रयोग होगा।"
फिलहाल अब प्रधान हबीबुल्ला गोशाला में गौ मूत्र के माध्यम से बने कीटनाशक के लिए प्रयासरत हैं ताकि खेतों को जहरीले केमिकल से बचाया जा सके।
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