यूपी: गोशालाओं की देखभाल करने वालों को नहीं मिल रही तनख्वाह

Ranvijay SinghRanvijay Singh   2 Jan 2020 12:47 PM GMT

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रणविजय स‍िंह/द‍िति बाजपेई

''मैं एक साल से गोशाला में काम कर रहा हूं, लेकिन मुझे एक रुपया भी नहीं मिला है। जब भी अध‍िकारियों से पैसे की बात करते हैं तो वो अगले महीने की बात कहकर टाल देते हैं, लेकिन अगले महीने कोई पैसा नहीं आता।'' ये शब्‍द हैं 45 साल के राजेंद्र गौतम के। राजेंद्र लखनऊ से 35 किमी दूर स्‍थ‍ित भटऊ जमालपुर गांव के रहने वाले हैं और गांव में ही बने अस्‍थाई गोवंश आश्रय स्थल में गोसेवक के तौर पर काम कर रहे हैं।

राजेंद्र की तरह ही इस अस्‍थाई गोवंश आश्रय स्थल में 6 गोसेवक तैनात हैं, जिनका काम है यहां रखे गए छुट्टा पशुओं की देखभाल करना। इनके काम की बात करें तो इसमें पशुओं को चारा-पानी देने से लेकर उनकी साफ-सफाई तक शामिल है, लेकिन इन्‍हें अपने काम के लिए पैसा नहीं मिला रहा है। ऐसा नहीं कि यह कहानी सिर्फ भटऊ जमालपुर गांव में बने गोवंश आश्रय स्थल की है। ठीक ऐसी ही कहानी दूसरे आश्रय स्‍थलों में भी देखने को मिल रही है।

उत्‍तर प्रदेश में 4954 अस्‍थाई गोवंश आश्रय स्थल बनाए गए हैं। इनमें 4 लाख 20 हजार 883 छुट्टा पशुओं को रखा गया है। इन गोवंश आश्रय स्‍थलों के संचालन का जिम्‍मा ग्राम प्रधानों को दिया गया है। ऐसे में ग्राम प्रधानों की ओर से पशुओं की संख्‍या के आधार पर आश्रय स्‍थलों में गोसेवक रखे गए हैं, जहां ज्‍यादा पशु हैं वहां गोसेवकों की संख्‍या भी ज्‍यादा है। जैसे भटऊ जमालपुर गांव में बनी गोशाला में 319 पशु हैं तो यहां 6 गोसेवक तैनात हैं, वहीं छोटी गोशालाओं में 2 गोसेवक रखे गए हैं।

लखनऊ के गौस लालपुर की गोशाला।

भटऊ जमालपुर की तरह ही लखनऊ के दसदोई गांव में भी गोवंश आश्रय स्थल बना है। इस आश्रय स्‍थल की देखरेख करने वाले रमेश को भी अब तक कोई पैसा नहीं मिला है। रमेश को तो यह जानकारी भी नहीं कि उन्‍हें एक दिन का कितना रुपया मिलेगा। वे बस इतना कहते हैं ''मैं यहां पांच महीने से काम कर रहा हूं, लेकिन कोई पैसा नहीं मिला है।'' वो यह भी बताते हैं कि प्रधान की ओर से खाने की व्‍यवस्‍था कर दी जाती है। वह इसी भरोसे काम करे हैं कि जल्‍द ही उनकी मेहनत का पैसा मिल जाएगा।

इस मामले पर उत्‍तर प्रदेश के पशुपालन निदेशालय के अपर निदेशक 'गोधन' डॉ. एके सिंह बताते हैं, ''पशुसेवकों को पैसा न मिलने की बात आपसे पता चली है। हम इसे दिखाते हैं। अगर ऐसा है तो उन्‍हें पंचायती राज विभाग के 14वें वित्त से पैसा जारी करने का प्रावधान किया जाएगा।''

जहां एक ओर अपर निदेशक 14वें वित्‍त से पैसा जारी करने की बात कर रहे हैं, वहीं प्रधानों का अपना अलग ही दावा है। भटऊ जमालपुर के प्रधान पति संजय सैनी कहते हैं, ''जब गोशालाएं बनी तो अध‍िकारियों की ओर से हमसे कहा गया कि यहां गोसेवक रखे जाएं। हमने गांव के ही लोगों को यहां रख दिया। जब उनके पेमेंट की बात आई तो बताया गया कि मनरेगा के हिसाब से 181 रुपए प्रति दिन दिया जाएगा। हमसे कहा गया कि मनरेगा के रजिस्‍टर में ही इनका नाम चढ़ा दिया जाए, लेकिन बाद में कहा गया कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि मनरेगा से इनका पैसा दिया जाए। इसके बाद से ही कोई स्‍पष्‍ट आदेश नहीं आया है कि गोसेवकों को कहां से पैसा देना है, इसलिए पैसा नहीं जारी हो पा रहा है।''

गोशालाओं की देखभाल करने का जिम्‍मा गोसेवकों का होता है।

संजय सैनी बताते हैं, ''इस टालमटोल की वजह से अभी मैं अपनी जेब से इन गोसेवकों को पैसे दे रहा हूं। वहीं, मेरे घर से इनका खाना बनकर आ रहा है।'' संजय सैनी का दावा है कि अब तक उन्‍होंने अपनी जेब से एक-एक गोसेवको को 10 से 15 हजार रुपए तक दिए हैं।''

एक बात यह भी है कि पैसा न मिलने की वजह से कई गोसेवक ढंग से काम भी नहीं कर रहे हैं और इस काम को छोड़ने का मन भी बना रहे हैं। ऐसे ही एक गोसेवक हैं बिरबल जो कि लखनऊ के गोस लालपुर गांव में बनी गोशाला में काम करते हैं। बीरबल बताते हैं, ''जब गोशाला खुली तो प्रधान जी ने कहा था कि यहां की साफ-सफाई करना और हर महीने पैसा मिलेगा, लेकिन कोई पैसा नहीं आया। अब काम करने में मन नहीं लगता है। एक दो महीने और देखूंगा नहीं तो काम छोड़ दूंगा।

जहां बीरबल काम छोड़ने की बात कर रहे हैं, वहीं कई गोसेवक ऐसा कर भी चुके हैं। हाल ही में खबर आई थी कि अमेठी के मुसाफिरखाना विकासखण्ड के नेवादा गांव में बने आश्रय स्‍थल में कई गो सेवक काम छोड़ चुके हैं। गांव के प्रधान ने तब बताया था कि गोवंशो की सेवा के लिए 13 गो सेवक रखे गए थे, लेकिन जब तनख्‍वाह नहीं मिली तो नवंबर माह में दो गोसेवकों ने काम छोड़ दिया था।


 

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