ग्राम रोजगार सेवक: व्यवस्था जो जान ले रही, जिम्मेदार जिन्हें सुनाई नहीं पड़ता

उत्‍तर प्रदेश के सैतीस हजार रोजगार सेवकों का 200 करोड़ मानदेय बकाया है। तनाव के चलते कई ग्राम रोजगार सेवक आत्महत्या कर चुके हैं...

Ashwani Kumar DwivediAshwani Kumar Dwivedi   29 Feb 2020 1:48 PM GMT

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ग्राम रोजगार सेवक: व्यवस्था जो जान ले रही, जिम्मेदार जिन्हें सुनाई नहीं पड़तासांकेतिक फोटो

लखनऊ। सुंदर ग्राम रोजगार सेवक थे, कई महीनों से उन्‍हें तनख्वाह नहीं मिली थी। घर का खर्च और बच्‍चों की पढ़ाई के लिए उन्‍हें दिहाड़ी मजदूरी करनी पड़ती। तनख्‍वाह न मिलने और घर का खर्च चलाने के लिए मजूदरी करने की मजबूरी ने सुंदर को तोड़ दिया था। इन हालातों से वो इतना हताश हुआ कि एक रोज आत्‍महत्‍या का रास्‍ता चुन लिया।

यह कहानी सिर्फ सुंदर की नहीं है। सुंदर जैसे कई ग्राम रोजगार सेवक हैं जो पिछले कुछ वर्षों में आत्‍महत्‍या करने को मजबूर हुए हैं। इसके पीछे की जो वजह सामने आती है वो है इन्‍हें करीब तीन साल से तनख्‍वाह नहीं मिल रही।

ग्राम रोजगार सेवक पंचायत स्‍तर पर काम करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा योजना को अच्‍छे से चलाने की जिम्‍मेदारी इन्‍हीं के कंधों पर होती है। अकेले उत्तर प्रदेश में 37 हजार ग्राम रोजगार सेवक काम कर रहे हैं। इन रोजगार सेवकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि इन्‍हें समय से तनख्‍वाह नहीं मिल रही है। ऐसे में ज्‍यादातर ग्राम रोजगार सेवक अपने गुजर बसर के लिए मजूदरी करने तक को मजबूर हैं। सुंदर भी इन्‍हीं में से एक थे।

सुंदर अपने पीछे पांच बच्‍चे, एक विकलांग पत्‍नी और बुजुर्ग मां को छोड़ गए हैं। सुंदर की 70 साल की मां जानश्री बताती हैं, ''रात में बाबू खाना खाकर सोया। कुछ लगा ही नहीं कि ऐसा कदम उठाएगा। सुबह हम सोकर उठे तो देखा की घर के बगल में लगे बिजली के खम्भे से सुंदर की लाश लटक रही है।''

बत्तीस महीनें की बेगारी के बाद दिया सेवा समाप्ति का नोटिस


ग्राम रोजगार सेवक संघ के जिलाध्यक्ष दिनेश कुमार ने फोन पर गाँव कनेक्शन को बताया " संगठन के लोगों से श्याम सुंदर मानदेय और आर्थिक तंगी को लेकर बात करता रहता था सेवा समाप्ति की नोटीस के बाद से वह बहुत ज्यादा तनाव में था। हाथरस जिलें के दो ब्लाक के 5-5 रोजगार सेवकों को बीडीओ की तरफ से कार्य संतोषजनक न होने का कारण देते हुए सेवा समाप्ति का नोटीस दिया गया था जिसमें श्याम सुंदर का भी नाम था। सही मायनों में तो श्याम सुंदर की मौत के जिम्मेदार मुरसान ब्लाक के बीडियो है। श्याम सुंदर की मौत के बाद संगठन के लोग घर गये उसके ये मामला स्थानीय अख़बारों में भी आया और कांग्रेस के विधायक दल की नेता आराधना मिश्र ने इस मामले पर सदन में चर्चा करवाने की मांग भी की। जिस पर सरकार के वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने मामले की जांच करवाने की बात की वही ग्राम्य विकास मंत्री मोती सिंह ने बजट उपलब्ध न होने की वजह को मानदेय में देरी का कारण बताते हुए जल्दी बकाया भुगतान करवाने का आश्वासन दिया। लेकिन अभी पीड़ित परिवार को कोई विशेष मदद नहीं मिली है।

वो आगे बताते है " साल 2017-18, 2018-19, 2019-20 का मानदेय हाथरस जिलें में नहीं मिला है। श्याम सुंदर का परिवार निहायत ही गरीब है 34 महीने का बकाया मानदेय मिलना तो दूर सेवा समाप्ति की नोटिस के बाद उसने ऐसा कदम उठा लिया। जिलें के अधिकांश रोजगार सेवक आर्थिक तंगी की वजह से मानसिक तनाव से गुजर रहे है। बकाया मिलने और कभी नियमित हो जाने की उम्मीद की वजह से प्रदेश के सैतीस हजार रोजगार सेवक अपनी जिन्दगी के 12 से 15 साल तक का समय बर्बाद कर चुके है।"

केन्द्रीय रोजगार गारंटी परिषद् भारत सरकार के पूर्व सदस्य संजय दीक्षित का कहना है " अधिकारी मनरेगा जैसी उत्कृष्ट रोजगार योजना को खत्म करने पर लगे हुए है, केंद्र सरकार मनरेगा के लिए बड़े बजट का प्रावधान करती है। मनरेगा योजनाओं की राष्ट्रीय स्तर पर काफी प्रशंशा भी हुई, इन योजनाओं की जमीनी क्रियान्वयन की जिम्मेदारी ग्राम रोजगार सेवकों की होती है। दुर्भाग्य ये है कि एक तो रोजगार सेवकों को मिलने वाला मानदेय अत्याधिक कम है और वो भी लगभग पूरे प्रदेश में कही 32 महीने कही 34 महीने से मिला नहीं है आखिर ग्राम रोजगार सेवक कब तक बेगारी करें। इन बेगारों के जिन्दगी की कोई कीमत नहीं है। पिछले चार सालों में दो सौ से ज्यादा रोजगार सेवकों की मौत हो चुकी है लेकिन उसकी चर्चा कोई जिम्मेदार करना नहीं चाहता। जमीनी स्तर पर रोजगार सेवकों की जो दयनीय स्थिति व्यवस्था में चूक की वजह से हुई है उसे जानते सब है पर जिम्मेदारी लेने का साहस किसी में नहीं है।"

रोजगार सेवक को कभी समय पर नही मिलता मानदेय...

ग्राम रोजगार सेवक संघ के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश कुमार सिंह ने बताया बीती 28 फरवरी को हमारे एक और रोजगार सेवक साथी जनपद जालौन के नदीगांव ब्लाक के ग्राम पंचायत खुटेला के रोजगार सेवक शम्भू राणा काफी बीमार थे, पिछले 8 महीने से उन्हें मानदेय नहीं मिला था। साथी रोजगार सेवकों ने चंदा लगाकर इलाज कराया पर चंदे का पैसा इलाज के लिए प्रयाप्त नहीं था और कल उनकी मौत हो गयी। उनके परिवार का क्या होगा इसकी फ़िक्र किसी को नही है 15 साल सेवा करने के बाद आखिर क्या मिला ? पूरे प्रदेश में ग्राम रोजगार सेवकों का लगभग 200 करोड़ रूपये बकाया है जो अभी तक नहीं मिला इसके पहले भी यही हालात रहे है।

अपर आयुक्त से लेकर मुख्यमंत्री तक सबसे लगाईं गुहार ...

वो आगे कहते है कि ग्राम्य विकास मंत्री ने मोती सिंह ने एक कमेटी बनाकर रोजगार सेवकों की मानदेय व् अन्य समस्याओं के निराकरण करने का आदेश दिया था लेकिन अभी तक कमेटी की दूसरी बैठक अधिकारियों ने नही की, पूछो तो जवाब मिलता है कि अभी टाइम नहीं है। पत्र के माध्यम से प्रमुख सचिव ग्राम्य विकास को भी मामले से अवगत कराया गया है लेकिन अभी तक कोई कार्यवाही नही हुई है। रोजगार सेवकों की मौत के मामले में सीबीआई जांच के लिए अपर आयुक्त मनरेगा, प्रमुख सचिव ग्राम्य विकास , मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश व् राज्यपाल उत्तर प्रदेश को भी पत्र भेजकर अनुरोध किया गया है लेकिन अभी तक कहीं से भी जवाब नहीं मिला है।

मनरेगा आयुक्त के रविन्द्र नायक से इस संदर्भ में वार्ता करने के लिए कई बार फोन करके संपर्क करने का प्रयास किया गया लेकिन बात नही हो सकी। बात होने पर स्टोरी में उनका बयान जोड़ दिया जायेगा।

    

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