यूपी: राशन के लिए चार-पांच दिन चक्कर लगा रहे लोग, ई-पॉश मशीन हो रही फेल
Ranvijay Singh 17 Jan 2020 6:09 AM GMT
''अरे राशन का मत पूछो, बहुत परेशानी है! जब से अंगूठा लगाकर राशन मिलने लगा है, हमें राशन के लिए कई चक्कर लगाने पड़ते हैं। कई बार तो राशन लेने के चक्कर में भूखे तक रहना होता है। अब दिन में मजदूरी पर भी नहीं गए और न ही राशन मिल पाया, तो चूल्हा कैसे जलेगा?'' यह सवाल करते हुए 35 साल की अनीता की आंखों में बेबसी साफ नजर आती है।
अनीता उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के गांव छेदा की रहने वाली हैं। उनके परिवार में पांच लोग हैं, छोटे-छोटे तीन बच्चे, वो और उनके पति। अपना और अपने बच्चों का पेट पालने के लिए अनीता अपने पति के साथ मजदूरी करती हैं, लेकिन इन दिनों वो अपनी रसोई को लेकर खासी परेशान हैं।
अनीता के रसोई का एक बड़ा आधार कोटे से मिलने वाला राशन है, जो आज कल लेतलतीफ मिल रहा है। इस लेटलतीफी के पीछे की वजह ई-पॉश मशीन है, जो कभी नेटवर्क की वजह से तो कभी सर्वर की वजह से काम नहीं करती और इस हाल में अनीता को राशन लने के लिए कोटे की दुकान के कई चक्कर लगाने होते हैं।
खाद्य एवं रसद विभाग उत्तर प्रदेश की वेबसाइट पर दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, प्रदेश में करीब तीन करोड़ राशन कार्ड धारक हैं। इन राशन कार्डों का लाभ करीब 13.36 करोड़ लोगों को मिल रहा है। वर्तमान समय में करीब अस्सी हजार से ज्यादा ई-पॉश मशीनों के जरिये राज्य भर में अनाज का वितरण हो रहा है। इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में 68,848 और शहरी क्षेत्रों में 11,649 ई-पॉश मशीनें लगाई गई हैं, लेकिन अब इन ई-पॉश मशीनों की वजह से राशन कार्ड धारक परेशान हो रहे हैं।
ऐसा नहीं कि ई-पॉश मशीनों में आने वाली दिक्कतों की जानकारी खाद्य एवं रसद विभाग को नहीं है। इस बारे में एडिशनल फूड कमिश्नर सुनील कुमार वर्मा बताते हैं, ''महीने की पांच तारीख से राशन वितरण शुरू होता है। ऐसे में 5 से लेकर 10 तारीख तक लोड ज्यादा होता है और हर दिन 10 से 12 बजे के बीच यह लोड ज्यादा ही बढ़ जाता है। ऐसे में कई बार सर्वर बैठ जाता था। हमने हाल ही में सर्वर की क्षमता बढ़ाई है। हम इसे बेहतर करने में लगे हैं। इसके अलावा कोटदार भी सारा ट्रांजेक्शन एक बार में ही करने की प्रयास में न रहें तो बेहतर होगा। 5 से लेकर 25 तारीख तक राशन बांटा जा सकता है तो कोटेदार इन तारीखों के बीच कभी भी राशन वितरण कर सकते हैं।''
अनीता बताती हैं, ''जब महीने में राशन मिलना शुरू होता है तो मैं कोटे की दुकान पर जाती हूं, लेकिन एक बार में राशन मिल नहीं पाता। ऐसे में चार से पांच चक्कर लगाने होते हैं। इन चार-पांच दिनों तक मैं मजदूरी पर भी नहीं जा पाती। मुझे मजदूरी के तौर पर एक दिन के 150 रुपए मिलते हैं, लेकिन जब राशन की दुकान के चक्कर लगाने में दिन गुजरेगा तो मजदूरी कहां से हो पाएगी। कई बार तो हम परिवार के साथ भूखे ही रह जाते हैं, क्योंकि न मजदूरी मिली है और न ही राशन मिला है।''
''कोटे से मिलने वाला अनाज 15 दिन चलता है। इस राशन को पाने के लिए ही चार से पांच दिन भागते हैं। जब यह खत्म हो जाता है तो दिन में एक वक्त खाकर रह जाते हैं। बच्चों को खेलने भेज दो तो वो खाना नहीं मांगते और थककर सो जाते हैं। जब घर में अनाज का एक दाना न हो तो यही करना पड़ता है।'' इतना कहते हुए अनीता का गला भर आता है। अनीता से जब पूछा गया कि राशन कितना जरूरी है आपके लिए। इसके जवाब में वो कहती हैं, इसी से घर चल रहा है और हम जिंदा हैं
एक ओर जहां ई-पॉश मशीनों की गड़बड़ी का असर सीधे बाराबंकी की रहने वाली अनीता की रसोई पर हो रहा है, वहीं सीतापुर के पिसावां विकास खण्ड के नेरी गांव की रहने वाली अनीता भी इससे अछूती नहीं हैं। सीतापुर की अनीता भी राशन वितरण प्रणाली की उन्हीं दिक्कतों से जूझ रही हैं जो बाराबंकी की अनीता के साथ हो रहा है।
सीतापुर की अनीता बताती हैं, ''मशीन में अंगूठा लगता ही नहीं है। कोटेदार हमेशा चार-पांच दिन भगाता है। इससे पहले राशन के लिए कभी इतना परेशान नहीं हुए हैं। मुझे तो लगता है कोटेदार राशन खा जा रहा है। इसलिए यह सब किया जा रहा है।''
राशन वितरण में धांधली से संबंधित खबरें अक्सर सामने आती रहती हैं। ऐसे में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को पारदर्शी बनाने की नियत से प्रदेश में कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था लागू की गई है। इसी के तहत राशन देने के लिए कोटेदारों की ओर से ई-पॉश मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है। हालांकि इस नई व्यवस्था से कोटेदार ज्यादा खुश नजर नहीं आते हैं।
बाराबंकी के गौरा सैलक ब्लाक के कोटेदार रामदीन राजपूत बताते हैं, ''ई-पॉश मशीन से सिर्फ राशनकार्ड धारकों को ही नुकसान नहीं है। हम भी इसी में उलझे रहते हैं। पहले एक ही दिन में सब बांट कर खत्म हो जाता था, लेकिन अब पूरे महीने इसे से जूझ रहे हैं। कभी नेटवर्क नहीं रहता है तो कभी लाभार्थी का अंगूठा शो नहीं करता। ऐसे में राशन लेने वाले हमें ही दोषी मानते हैं, उनको लगता है हम ही राशन नहीं देना चाहते। इस तरह हमारा व्यवहार भी खराब हो रहा है।''
रिपोर्टिंग सहयोग - विरेंद्र सिंह/मोहित शुक्ला
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