देश के शहरी बाजारों में सब्जियां दूने दाम फिर क्यों खाली हाथ किसान ?

कोरोना लॉकडाउन के बाद देश के किसानों के ऐसे हालात बने कि वे अभी तक इससे उबर नहीं पायें हैं। लॉकडाउन के बाद अब जब देश की बाजारों में सब्जियों के दाम लगभग दोगुने हैं तो बारिश और कीटों के प्रकोप की वजह से किसानों की फसलें बर्बाद हो गई हैं।

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(उत्तर प्रदेश से कुशल मिश्र और वीरेंद्र सिंह, मध्य प्रदेश से सचिन तुलसा त्रिपाठी, बिहार से अंकित सिंह और छत्तीसगढ़ से तामेश्वर सिन्हा और जिनेन्द्र पारिख की रिपोर्ट)

पिछले दो महीनों से हरी सब्जियां लगभग दोगुने दामों में बिकने से जहाँ आम लोगों की थाली का स्वाद फीका पड़ गया है, वहीं इन सब्जियों को उगाने वाले देश के किसान कोरोना लॉकडाउन के बाद बारिश और फसलों पर कीटों के प्रकोप से नुकसान झेल रहे हैं।

अप्रैल और मई में लॉकडाउन के दौरान पाबंदियों की वजह से बड़ी संख्या में किसान अपनी सब्जियों की उपज मंडी तक नहीं पहुंचा पाए। ऐसे में इन किसानों को या तो औने-पौने दामों में सब्जियां बेचनी पड़ी या तो उनकी फसलें खेतों में ही सड़ गईं।

रही सही कसर अब बारिश और कीटों के प्रकोप ने पूरी कर दी है। लॉकडाउन में नुकसान उठाने वाले ज्यादातर किसानों की सब्जियों की फसलें बारिश के मौसम में खराब हो गईं। ऐसे में जुलाई के अंत और अगस्त माह में सब्जियों का आयात काफी कम होने से सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं।

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में इन दिनों सब्जियां लगभग दोगुने दामों में बिक रही हैं। राजधानी लखनऊ से सटे राज्य का बाराबंकी जिला सब्जियों का गढ़ कहा जाता है, यहाँ ज्यादातर किसान सब्जियों की खेती करते हैं। मगर फसलें ख़राब होने और सब्जियों के दाम न मिलने से अब कई किसान धान की खेती कर रहे हैं, इनमें एक किसान सुशील मौर्या भी हैं।

बाराबंकी जिले के बेलहरा गाँव के किसान सुशील मौर्या 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "मार्च-अप्रैल में सब्जी की फसल बहुत अच्छी आई थी, मगर कोरोना की वजह से बाहर जा नहीं पायी, अब जब सब्जी का भाव मिल रहा है तो बारिश की वजह से फसल नहीं लग पायी, डेढ़ महीने से लगभग हर दो-तीन दिन में लगातार बारिश हो रही है, तो जो फसल थोड़ी बची भी है जैसे लोबिया जो एक कुंतल निकलती थी तो सिर्फ दस किलो निकल रही है, मैंने खुद बैंगन और करेला की अपनी फसल को खेत में ही जोतवा दिया और अब धान की तैयारी कर रहा हूँ, क्या करें?"

जुलाई के अंत और अगस्त माह में सब्जियों का आयात कम होने से सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं। फोटो : गाँव कनेक्शन

महाराष्ट्र में भारत के सब्जी उत्पादक किसानों का एक संगठन है, वेजीटेबल ग्रोवेर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया। इस संगठन से देश के अलग-अलग राज्यों से 20,000 से ज्यादा सब्जी उगाने वाले किसान जुड़े हुए हैं। इस संगठन के मुताबिक देश में इस साल सब्जियों के कम उत्पादन का कारण सिर्फ बारिश ही नहीं हैं।

अलग-अलग राज्यों में किसानों को नुकसान होने और सब्जियां महंगी बिकने के कारणों पर इस एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री राम गढ़वे 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "बहुत सारे कारण हैं, बारिश का भी असर है, मगर जो सबसे मुख्य है क्लाइमेट चेंज होने से फसलों में अलग-अलग तरह के कीटों के प्रकोप का बढ़ना, जैसे महाराष्ट्र में रेड माईट (लाल कुढ़ी) कीट ने किसानों की बहुत फसलों को नुकसान पहुँचाया, तो ये कीट हर साल एक नई समस्या लेकर आते हैं, जैसे इस साल टिड्डियों का प्रकोप देखा गया तो अगले साल दूसरे कीट किसानों की फसलों के लिए समस्या बनेंगे, ये एक मुख्य कारण है जिससे किसानों की फसलों को नुकसान पहुँचता है।"

"दूसरा मुख्य कारण किसानों के लिए यह है कि लॉकडाउन के दौरान मुख्य रूप से देश के छोटे किसानों को जो नुकसान हुआ, उससे उनके पास अगली फसल के लिए भी पूँजी नहीं बची तो उन्हें कम संसाधनों में फसल की तैयारी करनी पड़ी, और अब भी उनको अपनी उपज में नुकसान उठाना पड़ रहा है, ऐसे में सब्जियों का कम उत्पादन सामने आया और सब्जियां महंगी बिक रही हैं, सही मायनों में किसानों के लिए यह साल बेकार जा रहा है," श्रीराम गढ़वे कहते हैं।

सब्जियों का गढ़ कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के किसान अपनी उपज बेचने के लिए लखनऊ की नवीन गल्ला मंडी या दुब्बगा सब्जी मंडी जाते हैं। मंडी में सब्जियों के भावों की बात करें तो इन दिनों टमाटर 38 से 44 रुपये किलो, लौकी 20 रुपये किलो, गुहियाँ 20 से 25 रुपये किलो, बैंगन 15 से 20 रुपये किलो और तरोई 08 से 14 रुपये किलो के हिसाब से थोक में बिक रही हैं।

नवीन गल्ला मंडी में सब्जियों के थोक व्यापारी जसवंत सिंह 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "इस समय सब्जियों के दाम इसलिए भी बढ़ रहे हैं क्योंकि बारिश और फसलों पर कीटों का प्रकोप ज्यादा रहा है, इसलिए किसानों की फसलों को नुकसान पहुंचा और सब्जियों का कम उत्पादन हुआ है, इसके अलावा इस मौसम में सब्जियां भी जल्दी ख़राब होती हैं, जो सामान्य मौसम में 3 से 4 दिन तक सब्जी रखी जा सकती है वो एक दिन बाद ख़राब हो रही हैं, इसलिए भी सब्जियों के दाम बढ़े हुए हैं।"

कीटों के प्रकोप से बचाने के लिए किसानों को बड़ी मात्रा में कीटनाशकों का उपयोग करना पड़ा। फोटो : गाँव कनेक्शन

उत्तर प्रदेश जैसा हाल इन दिनों मध्य प्रदेश के सब्जी उगाने वाले किसानों का भी है। इस समय मध्य प्रदेश के रीवा स्थित न्यू सब्जी मंडी करहिया में टमाटर के भाव 25 से 30 रुपये प्रति किलो है, जबकि फुटकर में टमाटर के भाव दोगुने से भी ज्यादा हैं।

मध्य प्रदेश के सतना जिले के मझगवा में टेढ़ीहार गाँव के किसान हीरा मणि कुशवाहा टमाटर समेत और सब्जियों की खेती करते हैं। मगर बारिश और कीटों के प्रकोप से उनकी फसल चौपट हो गई और जब टमाटर के भाव मंडियों में ज्यादा हैं तो उनके पास उपज नहीं है।

हीरा मणि बताते हैं, "जो आज 80 रुपये टमाटर बिक रहा है मध्य प्रदेश में, तो इस समय किसान के पास टमाटर है नहीं, वो भी बड़े-बड़े किसानों के पास है, छोटे किसानों के पास कुछ नहीं, भिन्डी, लोबिया, सब सब्जियां माटी मोल बिक रही हैं लॉकडाउन के चक्कर में, किसान करे तो करे क्या?"

कोरोना लॉकडाउन के बाद देश के किसानों के ऐसे हालात बने कि वे अभी तक इससे उबर नहीं पायें हैं। जब कोरोना और लॉकडाउन के समय में किसानों की फसलें तैयार खड़ी थीं, तो वे अपनी फसल बेच नहीं पाए। जो मंडी तक ले भी जा सके तो उन किसानों को औने-पौने दाम मिले। अब जब देश की बाजारों में सब्जियों के दाम लगभग दोगुने हैं तो बारिश और कीटों के प्रकोप की वजह से किसानों की फसलें बर्बाद हो गई हैं।

उत्तर प्रदेश के सीतापुर में कृषि विज्ञान केंद्र कटिया के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ. दया श्रीवास्तव 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "बारिश हर साल होती है और किसानों की फसलें भी ख़राब होती हैं मगर इस साल बारिश के साथ-साथ कीटों का प्रभाव फसलों पर कहीं ज्यादा है, जैसे देश में हाल में टिड्डियों का प्रकोप सभी ने देखा, ये टिड्डियाँ किसानों की फसलें पांच मिनट में चट कर गईं, मगर केवल टिड्डियाँ ही हावी नहीं रहीं, इस मौसम में तमाम अलग-अलग कीटों ने फसलों को काफी नुकसान पहुँचाया, इसलिए भी किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। निश्चित तौर पर हम कह सकते हैं कि किसानों के लिए यह साल बहुत ख़राब रहा है।"

लॉकडाउन में नुकसान उठाने वाले ज्यादातर किसानों की सब्जियों की फसलें बारिश के मौसम में खराब हो गईं। फोटो : गाँव कनेक्शन

बिहार में भी कमोबेश सब्जी उगाने वाले किसानों के साथ ऐसा ही हाल रहा। लॉकडाउन के बाद किसानों को उम्मीद थी कि जैसा नुकसान लॉकडाउन में किसानों को उठाना पड़ा, लॉकडाउन खुलने पर उन्हें अच्छे दाम मिल सकेंगे, मगर ऐसा नहीं हुआ।

बिहार के कैमूर जिले के लबदेही गाँव के किसान मोहन यादव सब्जियों की खेती करते हैं। मोहन बताते हैं, "बहुत ख़राब हुआ खेती-बाड़ी में कोरोना की वजह से, लोबिया पांच-छह रुपये में बिका, बाजार नहीं खुले तो दाम नहीं मिला, अब बारिश की वजह से नुकसान हो रहा, हमने धनिया, लौकी, करेला तीन रुपया, दो रुपया, एक रुपया में बेचा, और अब फुटकर व्यापारी 20-30 रुपया में बेच रहे हैं, बहुत नुकसान हुआ।"

बिहार से करीब 850 किलोमीटर दूर छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के उत्तर बस्तर में गोखरण प्रधान करीब छह एकड़ में सब्जियों की खेती करते हैं। लॉकडाउन के समय उन्हें अपनी लौकी की फसल तोड़ के फेंकनी पड़ी थी।

गोखरण 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "अभी हमने बैंगन, टमाटर और लोबिया की खेती की तो अभी भी हम किसानों को मूल्य नहीं मिल रहा है, मंडी में फिर भी हम किसानों ने लोबिया 18-20 रुपये में बेचे जिसे बाजार में 40 रुपये में बेचा जा रहा है, लगभग दोगुने दामों में, किसानों का तो नुकसान ही हुआ।"

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि इस साल लॉकडाउन, बारिश और बदलते मौसम की वजह से कीटों के प्रकोप ने देश के सब्जी उत्पादक किसानों की कमर तोड़ दी है। लॉकडाउन के बाद अब भी बारिश और कीटों के प्रकोप से किसानों को नुकसान झेलना पड़ रहा है तो दूसरी तरफ सब्जियों के कम उत्पादन से आम नागरिकों पर महंगाई का बोझ बढ़ गया है।

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