अमेठी: यहां बाजार-स्‍कूल जाने के लिए नाले को करना पड़ता है पार, एक पुल की है दरकार

गांव के लोगों को अपनी जरूरत का सामान लेने के लिए पास के बाजार किश्‍नी तक जाना होता है। गांव के पास से ही एक नाला गुजरता है जो कि पास से ही गुजरने वाली गोमती नदी में जाकर मिल जाता है।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   16 Feb 2019 11:06 AM GMT

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अमेठी: यहां बाजार-स्‍कूल जाने के लिए नाले को करना पड़ता है पार, एक पुल की है दरकार

लखनऊ। ''हमें छोटी-छोटी जरूरतों के लिए नाला पार करके बाजार जाना पड़ता है। बरसात में तो हालात और खराब हो जाते हैं, हमारा गांव पूरी तरह से कट जाता है।'' सरफराज (40 साल) यह बात गांव के बाहर नाले पर ग्रामीणों द्वारा बनाए गए अस्‍थायी पुल को दिखाते हुए कहते हैं।

अमेठी का शाहपुर शमसुल हक गांव शुक्‍ल बाजार थाने की सीमा में पड़ता है। उत्‍तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सिर्फ 90 किमी की दूरी पर बसे इस गांव को देखकर लगता है जैसे यहां विकास पहुंचा ही न हो। इस बात को ऐसे समझ सकते हैं कि ग्रामीणों को बाजार जाने के लिए एक नाले को पार करना होता है, जिसपर गांव वालों ने खुद से एक अस्‍थायी पुल बना रखा है।

सरफराज बताते हैं, ''हम लोग लगातार नाले पर पुल बनाने की मांग करते रहे हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। हाल ये है कि गांव वालों को बाजार जाना हो या फिर बच्‍चों को स्‍कूल, इस नाले को पार करके ही जाना होता है।'' गांव के ही रहने वाले कुतुबुद्दीन याद करते हुए कहते हैं, ''करीब 15-16 साल पहले यहां पुल बनाने के लिए शिलान्‍यास हुआ था। एक पत्‍थर लगा था, लेकिन समय के साथ वो भी गायब हो गया। हालात तब भी ऐसे ही थे, आज भी ऐसे ही हैं। हां, गांव वालों ने बिजली के खंभों की मदद से एक पुल बना लिया है, जिससे लोग पैदल नाले को पार कर जाते हैं, लेकिन गाड़ी तो नाले से ही गुजारनी होती है।''

नाले पर गांव के लोगों द्वारा बनाया गया अस्‍थायी पुुुल।

शाहपुर शमसुल हक गांव मुसलमान बहुल गांव है। गांव में 32 घर हैं, जिनमें करीब 300 लोग रहते हैं। गांव के लोगों को अपनी जरूरत का सामान लेने के लिए पास के बाजार किश्‍नी तक जाना होता है। गांव के पास से ही एक नाला गुजरता है जो कि पास से ही गुजरने वाली गोमती नदी में जाकर मिल जाता है।

''हमारा गांव एक नाला और पास से ही गुजरने वाली गोमती नदी से घि‍रा हुआ है। बरसात में नाला भर जाता है, जिस वजह से गांव पूरी तरह से कट जाता है।'' - गांव के रहने वाले अब्‍दुल अजीज कहते हैं

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अब्‍दुल अजीज आगे कहते हैं, ''नाले पर एक पुल बना है लेकिन उससे होकर गुजरने के लिए करीब पांच किमी जाना होता है। जबकि पास के रास्‍ते से यह दूरी सिर्फ दो से तीन किलोमीटर होती है। अगर यहां पुल जाए तो हमें आराम हो जाएगा।'' गांव के ही मोहम्‍मद जलील कहते बताते हैं, ''इस नाले में डूबकर एक आदमी भी मर गया। हम कई बार पुल बनाने की मांग कर चुके हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं है। जो पुल बना भी है वो दूर है और बरसात में तो उसके ऊपर से पानी बहता है। जो खंभे रखे हैं वो भी बह जाएंगे। हर बार बरसात के बाद हम मेहनत करते हैं और इसी तरह से पुल बनाते हैं, ताकि हम बाजार जा सकें, बच्‍चे स्‍कूल जा सकें।''

नाले पर बना छोटा पुल। इस पुल से गुजरने पर गांव के लोगों के लिए बाजार की दूरी बढ़ जाती है और बरसात में इस पुल के ऊपर से पानी बहता है।

ग्राम प्रधान के प्रतिनिधि अबरार अहमद का कहना है, ''नाले पर एक पुल बना है लेकिन बरसात में वो डूब जाता है। विधायक निधि से वो पुल बना था। असल में दो पुल बनने चाहिए थे, पहला जहां यह छोटा पुल बना है वहां बड़ा पुल बनता और दूसरा जहां से गांव वाले बाजार जाते हैं वहां छोटा पुल, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।'' अहमद बताते हैं, पुल बनाने का काम पिछले ग्राम प्रधान के वक्‍त हुआ था। उस वक्‍त इस बात का ध्‍यान रखना चाहिए था।

इस मामले पर हमने जब अमेठी के मुख्‍य विकास अधिकारी से बात करने की कोशिश की तो उनका मोबाइल नंबर लगातार स्‍विच ऑफ जा रहा था, जैसे ही उनसे बात होगी उनका पक्ष भी यहां दर्ज किया जाएगा।


  

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