'हमें माध्‍यमिक नहीं प्राथमिक विद्यालय चाहिए, हमारे बच्‍चे पढ़ नहीं पा रहे'

अमेठी के शाहपुर शमसुल हक गांव के रहने वाले चाहते हैं कि गांव में बने माध्‍यमिक विद्यालय को प्राथमिक विद्यालय कर दिया जाए, जिससे उनके बच्‍चे गांव में ही पढ़ सकें।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   14 Feb 2019 7:01 AM GMT

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लखनऊ। खुशनुमा एक 13 साल की बच्‍ची है। गांव के एक माध्‍यमिक स्‍कूल की कक्षा छह में दरी पर बैठकर हाथों में कलम और कॉपी लिए वो कुछ लिख और रट रही है। पास जाने पर उस कॉपी में उसका नाम, उसके पिता का नाम और माता का नाम लिखा है। खुशनुमा इसी नाम को लिखने का बार-बार प्रयास कर रही है। यह पूछने पर कि क्‍या कर रही हो? वो शर्माते हुए कहती है- ''नकल कर रही हूं।'' खुशनुमा का मतलब है वो देखकर लिख रही है।

स्‍कूल की छठवीं क्‍लास में बैठे खुशनुमा, फराज, यासमिन और मुस्‍कान। यह सभी अपना नाम लिखना सीख रहे हैं।

खुशनुमा की तरह ही अमेठी के शाहपुर शमसुल हक गांव के माध्‍यमिक विद्यालय में तीन बच्‍चे और हैं। यह सब अपना नाम और परिवार वालों का नाम लिखना सीख रहे हैं। सभी छठवीं कक्षा में हैं, लेकिन इन चारों बच्‍चों (खुशनुमा, मो. जफर, यासमीन, मुस्‍कान) में से किसी ने भी पांचवीं की परीक्षा नहीं दी है। साथ ही गांव के इस माध्‍यमिक विद्यालय में दूसरी कोई क्‍लास नहीं चलती। सातवीं क्‍लास में ताला लटका है तो आठवीं का भी यही हाल है।

शाहपुर शमसुल हक गांव के रहने वाले सरफराज।

गांव के रहने वाले सरफराज बताते हैं, ''यह माध्‍यमिक विद्यालय बस नाम के लिए चल रहा है। यहां एक भी बच्‍चा नहीं पढ़ता। मास्‍टर साहब आते हैं और चले जाते हैं।'' सरफराज इसकी वजह बताते हुए कहते हैं, ''माध्‍यमिक विद्यालय में छठवीं से लेकर आठवीं तक की पढ़ाई होगी, लेकिन जब हम बच्‍चों को पहली से लेकर पांचवीं तक बाहर ही पढ़ा लेंगे तो फिर लौटकर गांव के विद्यालय में दाखिला क्‍यों कराएंगे? इस गांव को प्राइमरी स्‍कूल की जरूरत है, लेकिन मिला है माध्‍यमिक स्‍कूल। ऐसे में इसमें बच्‍चे नहीं जाते। जो चार बच्‍चे दिख भी रहे हैं, इन्‍हें दो महीने पहले ही दाखिला दिलाया गया है।'' सरफराज की बात को स्‍कूल में मिले चारों बच्‍चे सही ठहराते हैं। जब उनसे पूछा गया कि कब से स्‍कूल आ रहे हो? इसके जवाब में वो भी दो महीने की बात कहते हैं।


अमेठी का शाहपुर शमसुल हक गांव शुक्‍ल बाजार थाने की सीमा में पड़ता है। लखनऊ से 90 किमी की दूरी पर बसा यह गांव मुसलमान बहुल है। गांव में 32 घर हैं, जिनमें करीब 300 लोग रहते हैं। गांव में ऐसे बच्‍चे बहुतायत में हैं जिनकी उम्र क्‍लास एक से लेकर पांचवीं तक पढ़ने की है। ऐसे में गांव वाले चाहते हैं कि गांव में बने माध्‍यमिक विद्यालय को प्राथमिक विद्यालय कर दिया जाए, जिससे उनके बच्‍चे गांव में ही पढ़ सकें।

शाहपुर शमसुल हक गांव के रहने वाले नुरुल हसन।

गांव के रहने वाले नुरुल हसन कहते हैं, ''अगर गांव के स्‍कूल में एक से लेकर पांचवीं तक की पढ़ाई होने लगे तो अच्‍छा होगा। अभी बच्‍चे स्‍कूल नहीं जा पाते, दिन भर गांव में खेलते रहते हैं। इसकी वजह से पढ़ाई का भी नुकसान हो रहा है।'' नुरुल बताते हैं, ''गांव में जिनके पास पैसा है वो अपने बच्‍चों को 5 किलोमीटर दूर जैनबगढ़ में पढ़ने भेज देते हैं, लेकिन हमारे पास तो न पैसा है और न साधन। छोटे बच्‍चों को जंगल-झाड़ी के रास्‍ते अकेले भेजने में भी डर लगता है, ऐसे में यह घर ही रहते हैं।''

टीचर ओमकार कोरी

गांव के माध्‍यमिक विद्यालय में टीचर ओमकार कोरी भी मिले। ओमकार ने ब्‍लैक बोर्ड पर नाम, पिता का नाम, माता का नाम और पता लिख रख था। खुशनुमा और क्‍लास में बैठे अन्‍य तीन बच्‍चे इसे अपनी कॉपी में लिख रहे थे। ओमकार बताते हैं, ''मुझे यहां दो दिन पहले ही अटैच किया गया है। मैं ज्‍यादा तो नहीं जानता, लेकिन बच्‍चे बहुत कम हैं। क्‍लास छह में सात बच्‍चे हैं, इनमें से चार आए हैं।'' बातचीत के बीच ओमकार कई बार किसी से फोन पर बात करने क्‍लास से बाहर गए। फोन पर बात करने के बाद वो तमाम तरह के सवाल पूछते, जैसे- क्‍या आप जांच करने आए हैं? कहां से आए हैं? बच्‍चों से सवाल क्‍यों कर रहे हैं?

छठवीं क्‍लास के में बच्‍चों को उनका नाम लिखना सिखाया जा रहा है।

यह पता चलने पर कि हम खबर करने आए हैं, ओमकार कुछ धीरज दिखाते हैं। ओमकार से जब पूछा गया कि आप तो अटैच किए गए हैं, लेकिन यहां पढ़ाता कौन है? इसपर ओमकार पहले कहते हैं, ''मुझे पता नहीं'', फिर फोन पर बात करने के बाद टीचर का नाम योगेंद्र जी बताते हैं।'' ओमकार बताते हैं, ''योगेंद्र जी की तबीयत खराब है, इसलिए मुझे भेजा गया है।'' जब उनसे पूछा गया कि स्‍कूल में सातवीं और आठवीं की क्‍लास नहीं चलती क्‍या? इसपर वो साफ-साफ कुछ बता नहीं पाते। जब उनसे बच्‍चों की उपस्‍थ‍िति रजिस्‍टर के बारे में पूछा गया तो वो कहते हैं, ''वो सब योगेंद्र जी की अलमारी में बंद है।''

माध्‍यमिक विद्यालय में रसोइया गीता देवी। यह भी कहती हैं कि स्‍कूल में बच्‍चे नहीं आते।

स्‍कूल में मिड डे मील बनाने वाली गीता देवी बताती हैं, ''स्‍कूल में सात-आठ बच्‍चे हैं। मैं रोज खाना बनाती हूं। कभी दो बच्‍चे, कभी चार बच्‍चे खाना खाते हैं।'' गीता देवी भी शाहपुर शमसुल हक गांव की रहने वाली हैं। वो कहती हैं, ''गांव में छोटे बच्‍चों के पढ़ने की दिक्‍कत तो है ही। प्राइमरी स्‍कूल न होने की वजह से बच्‍चे शाहपुर से बाहर जाते हैं। जो बच्‍चे शाहपुर छोड़कर बाहर जाएंगे वो बच्‍चे वापस यहां नहीं आएंगे, वो आगे ही बढ़ेंगे। अब यहां का माहौल ऐसा है कि मास्‍टर साहब बच्‍चों को बुलाने जाते हैं, तब बच्‍चे आते हैं। वो भी खाने पीने के लालच में बच्‍चे आ जाते हैं, वरना वो भी न आएं।''

ग्राम प्रधान के प्रतिनिधि अबरार अहमद।

ग्राम प्रधान के प्रतिनिधि अबरार अहमद कहते हैं, ''इसको लेकर कई बार हमने बीएसए साहब को चिट्ठी लिखी है, डीएम साहब को चिट्ठी लिखी है। उनसे बताया है कि स्‍कूल गलत बन गया है। वहां प्राइमरी स्‍कूल ही बनना चाहिए था। अभी तो वहां बच्‍चे भी नहीं हैं। छोटे बच्‍चों को गांव में ही पढ़ना चाहिए, लेकिन स्‍कूल के गलत बनने की वजह से उन्‍हें नाला पार करके किश्‍नी बाजार और जैनबगढ़ जाना पड़ता है।''

गांव के छोटे बच्‍चे। स्‍कूल पास न होने की वजह से यह गांव में ही रहते हैं।

अबरार जिस नाले का जिक्र कर रहे हैं, वो भी गांव वालों के लिए समस्‍या का कारण बना हुआ है। गांव वालों को बाजार तक जाने के लिए इस नाले को पार करना होता है। इसपर गांव के नजदीक कोई पुल नहीं बना, ऐसे में एक यह भी वजह है कि गांव वाले अपने छोटे बच्‍चों को स्‍कूल नहीं भेजते। ऐसे में बच्‍चे दिन भर गांव में ही खेलते हैं और पढ़ाई नहीं कर पाते। जब इस मामले पर हमने अमेठी के मुख्‍य विकास अधिकारी से बात करने की कोशिश की तो उनका मोबाइल लगातार स्‍वीच ऑफ जा रहा था, जैसे ही उनसे बात होगी उनका पक्ष भी यहां दर्ज किया जाएगा।


   

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