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बेकार समझी जाने वाली जलकुंभी से बना सकते हैं योगा मैट जैसे कई उत्पाद

हर कोई तालाब, झील, पोखर के पानी पर तैरने वाली जलकुंभी से छुटकारा पाना चाहता है, जितना उसे साफ किया जाता है, उतनी तेजी ये बढ़ी है, लेकिन उसी जलकुंभी से उत्पाद बना कर कमाई की जा सकती है। असम में महिलाएं और लड़कियां इससे योगा मैट समेत कई उत्पाद बना रही हैं।
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तालाब, झील में जलकुंभी का होना एक बड़ी समस्या माना जाता है, क्योंकि ये एक छोटे से पौधे से बढ़कर पूरे तालाब में फैल जाती है, लेकिन यह बेकार समझी जाने वाली जलकुंभी भी काम की साबित हो सकती है। जलकुंभी का नाता अब योग से जुड़ गया है।

दरअसल, असम के गुवाहाटी में दीपोर बील झील में भी जलकुंभी की समस्या से लोग जूझ रहे थे, लेकिन अब उत्तर-पूर्व प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग एवं अभिगमन केंद्र (एनईसीटीएआर) की पहल से यहां की स्थानीय लड़कियां और महिलाएं अब जलकुंभी से योगा मैट बना रही हैं।

एनईसीटीएआर के महानिदेशक डॉ. अरुण कुमार शर्मा बताते हैं, “यहां के स्थानीय लोग पहले से ही जलकुंभी से कुछ छोटे-मोटे हैंडीक्राफ्ट आइटम बना रहे थे। यहां पर जब हमने उन्हें देखा और सोचा कि इन्हें ऐसी ट्रेनिंग दी जाए, जिससे इन्हें बेहतर काम मिल जाए। तब हमने उनसे पूछा कि आप लोग ये कर पाओगे, योगा मैट काफी अच्छा प्रोडक्ट है। फिर हमने उन्हें ट्रेनिंग दी और उससे सफलता भी मिली।”

दीपोर बील झील में समूह से जुड़ी लड़कियां।

जलकुंभी से उत्पाद बनाने की शुरूआत मछुआरा समुदाय की 6 लड़कियों रूमी दास, सीता दास, मामोनी दास, मिताली माइने दास, मिताली दास, और भानिता दास के साथ हुई। इस समय 38 ज्यादा लड़कियां और महिलाएं इससे जुड़ गईं हैं।

डॉ. शर्मा आगे कहते हैं, “ये सभी स्कूल ड्रॉपआउट लड़किया हैं, जिनकी किसी न किसी वजह से पढ़ाई छूट गई थी, लेकिन सभी आगे बढ़ना चाहती थीं। एक महीने से हमने ये काम शुरू किया। मार्च के आखिरी हफ्ते में काम शुरू कर दिया गया था। 31 मई तक 700 योगा मैट बनाने का हमारा टारगेट है।”

जलकुंभी को सुखाने से लेकर योगा मैट बनाने की पूरी प्रक्रिया के बारे में डॉ. शर्मा समझाते हैं, “जलकुंभी को सूरज की रोशनी में भी सुखा सकते है। ऐसे 10 किलो जलकुंभी को सुखाने में आपको 120 घंटे यानी लगभग 3 दिन चाहिए। असम में काफी बारिश होती है, जिससे नुकसान हो सकता है। इसलिए हमने सोलर ड्रायर दिया है, इसमें वही दस किलो जलकुंभी को सुखाने में 24 घंटे लगते हैं, इससे फायदा तो है।”

जलकुंभी को सुखाकर फिर इनसे योगा मैट बनाया जाता है।

शुरू में लड़कियों को थोड़ी परेशानी भी हुई, क्योंकि यह सब उनके लिए बिल्कुल नया था। इसलिए शुरू में छह लड़कियों को पूरी तरह से प्रशिक्षित किया गया। आगे वही लड़कियां दूसरों को सीखा रहीं हैं। इस समय 38 से ज्यादा महिलाएं योगा मैट बनाने का काम कर रही हैं।

अपनी बात को जारी रखते हुए वो कहते हैं, “एक चीज और बताना चाहूंगा, अगर 12 किलो जलकुंभी को सुखाते हैं तो ये सूख कर दो किलो हो जाती है और इस दो किलो सूखी जलकुंभी से डेढ़ योगा मैट बनता है। ये सब कैलकुलेशन उन्हें इतना पता नहीं है। वो अभी ट्रेडिशनल लूम यूज करते हैं। हमारी कोशिश है कि उन्हें सेमी ऑटोमेटिक लूम दें। क्योंकि अगर अभी ये 6 या 7 घंटे बैठकर योगा मैट बना रही हैं तो ऑटोमेटिक लूम से इसे कम समय में बना सकती हैं।”

अभी हफ्ते में 150 योगा मैट तैयार हो रहे हैं। 31 मई तक उन्हें 700 योगा मैट तैयार करना हैं। दीपोर बील झील में आने वाले प्रवासी पक्षी मूर हेन के नाम पर योगा मैट को ‘मूरहेन योगा मैट’ नाम दिया गया है। इस मैट की सिलाई के लिए काले, लाल और हरे रंग के धागों का उपयोग किया जाता है, जो पूरी तरह से प्राकृतिक हैं।

झील से जलकुंभी निकालते हुए महिलाएं।

डॉ शर्मा कहते हैं, “दीपोर बील झील गुवाहाटी के पास ही है। यह झील पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रही है। यहां पर कई तरह के प्रवासी पक्षी आते थे, लेकिन जलकुंभी की वजह से पक्षियों का आना कम हो गया। जब पक्षी आना कम हुए तो टूरिस्ट भी कम आने लगे। इसका असर यहां के स्थानीय लोगों पर पड़ा, जिनकी जीविका टूरिस्ट के सहारे ही चलती है। हमारी कोशिश है कि एक बार फिर यहां के लोगों को रोजगार मिल सके।”

नेक्टर (एनईसीटीएआर) के पास दूसरे राज्यों और विदेशों से भी जलकुंभी से प्रोडक्ट बनाने के लिए लोग संपर्क कर रहे हैं। क्योंकि जलकुंभी एक बड़ी समस्या है। डॉ शर्मा बताते हैं, “मुंबई के पवई लेक में भी जलकुंभी है। मुंबई आईआईटी से मेरे पास ईमेल आया है कि वहां पर भी हम लोगों को इसकी ट्रेनिंग दें। लॉकडाउन और कोविड खत्म हो जाता है तो कई दूसरे राज्य के लोग अगर इसकी ट्रेनिंग लेना चाहते हैं तो हम उन्हें ट्रेनिंग दे सकते हैं, वो भी अपना बिजनेस शुरू कर सकते हैं।”

योगा मैट के लिए विदेशों से भी लोग संपर्क कर रहे हैं। अभी इस मैट का दाम 1200 रुपये भारत और 1500 रुपये देश के बाहर के लिए रखा गया है। डॉ. शर्मा के अनुसार जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ेगा उसका दाम भी कम हो जाएगा और लड़कियां घर बैठे मिनिमम 10-12 हजार रुपये कमा लेंगी।

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