'पद भी खाली हैं और हम भी काबिल हैं, हमें नौकरी दो'
उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (यूपीएसएसएससी) के कुछ अभ्यर्थी आयोग की भर्तियों में वेटिंग लिस्ट का प्रावधान लाने की मांग कर रहे हैं।
Daya Sagar 9 Feb 2019 7:22 AM GMT

लखनऊ। जय प्रकाश (38) लखनऊ में हो रहे यूपीएसएसएससी अभ्यर्थियों के धरने में सबसे उम्रदराज अभ्यर्थी हैं। सर्द रात के काले अंधेरे में उनका चेहरा भी काफी फीका नजर आ रहा है। वह अपने युवा साथियों के साथ नारे तो लगाना चाह रहे हैं लेकिन उनका स्वास्थ्य और उम्र उनका साथ नहीं दे रहा।
दो बच्चों के पिता जय प्रकाश लखनऊ के पिकअप भवन स्थित उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (यूपीएसएसएससी) के कार्यालय पर 2016 की ग्राम विकास अधिकारी (विडीओ) की भर्तियों में वेटिंग लिस्ट लाकर समायोजन की मांग कर रहे हैं। जय प्रकाश के साथ ऐसे लगभग 100 अभ्यर्थी है, जो आधी रात और कड़ाके की ठंड में खुले आसमान के नीचे धरना धरना दे रहे हैं। इन अभ्यर्थियों का कट ऑफ मार्क सफल अभ्यर्थियों के कट ऑफ मार्क के बराबर या उनसे एक अंक कम है, लेकिन सरकारों की अदला-बदली और अस्पष्ट-भ्रामक सरकारी नियमों की वजह से इन अभ्यर्थियों की नियुक्ति नहीं हो पा रही है।
क्या है पूरा मामला?
उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा आयोग ने जनवरी, 2016 में ग्राम विकास अधिकारी (विडीओ) की 3133 पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया था। 5 जून, 2016 को इसकी लिखित परीक्षा हुई और इसके बाद सफल हुए अभ्यर्थियों का शारीरिक परीक्षण भी हुआ।
शारीरिक परीक्षण में इन उम्मीदवारों को दण्ड बैठक के साथ एक मील की दौड़, दो मील की पैदल चाल करनी थी। इसके अलावा उम्मीदवारों को 4 मील साइकिल भी चलाना था। शारीरिक परीक्षा में सफल हुए उम्मीदवारों का इंटरव्यू शुरू हुआ था कि प्रदेश में सरकार बदल गई। नए सरकार में सभी उम्मीदवारों का फिर से नए सिरे से इंटरव्यू हुआ। अन्ततः दो साल बाद 18 जुलाई, 2018 को इस परीक्षा का अंतिम परिणाम आया।
3133 पदों पर जारी भर्ती के लिए कुल 2947 उम्मीदवारों का चयन किया गया। बाकी बचे 186 उम्मीदवारों के दस्तावेजों में कमी या अन्य कारणों की वजह से उनका चयन रोक दिया गया था। धरना दे रहे अभ्यर्थियों का दावा है कि 2947 सफल उम्मीदवारों में से भी कुछ उम्मीदवारों ने नौकरी नहीं ली क्योंकि उनका चयन शिक्षक भर्ती, समीक्षा अधिकारी और अन्य उच्च पदों की नौकरियों में हो गया। अभ्यर्थियों के अनुसार ऐसे लगभग 200 पद रिक्त हैं।
ये अभ्यर्थी इन्हीं रिक्त पदों पर वेटिंग लिस्ट लाकर समायोजन के द्वारा नियुक्ति की मांग कर रहे हैं। इन अभ्यर्थियों की मांग है कि बाकी बचे पदों पर उन अभ्यर्थियों को समायोजित किया जाए जिनके अंक कट ऑफ के बराबर या कट ऑफ के करीब है। ये अभ्यर्थी वीडीओ के अलावा ग्राम पंचायत अधिकारी, गन्ना पर्यवेक्षक और कनिष्ठ सहायक की भर्तियों में भी वेटिंग लिस्ट का प्रावधान लाने की मांग कर रहे थे। अभ्यर्थियों का दावा है कि अगर इन सभी पदों को जोड़ लिया जाए तो हजार से ऊपर युवाओं को रोजगार मिल सकता है।
धरना दे रहे अभ्यर्थी इसके लिए यूपी पंचायत सेवक सेवा नियामक 1978 के नियम 15(4) और उच्च न्यायालय के 1991 व 2018 के आदेशों का हवाला देते हैं, जिसमें कहा गया है कि एकल संवर्गीय भर्तियों (सिंगल काडर रिक्रूटमेंट) में अनुच्छेद 16, अवसरों में समानता के अधिकार के आधार पर वेटिंग लिस्ट जरूर होना चाहिए। इससे रिक्त बचे पदों पर उन उम्मीदवारों का चयन हो सकेगा जो सफल होने के काफी करीब थे।
'यह नौकरी ही आखिरी उम्मीद'
ग्रे कलर की जैकेट और गांधी टोपी पहने जय प्रकाश लगभग रोते हुए कहते हैं, 'अब मेरे पास बताने के लिए कुछ है ही नहीं। उम्र 40 के करीब हो गई है। घर पर बीबी और दो बच्चे हैं। खेत के नाम पर डेढ़ बीघा जमीन है, उसी पर खेती कर के पेट पालते हैं। यह नौकरी ही आखिरी उम्मीद थी। शरीर भी अब साथ नहीं देता कि फिर से भर्ती देखूं, डेढ़ किलोमीटर दौड़ूं और फिर तुरंत साढ़े छः किलोमीटर साइकिल भी चला लूं।'
धरना दे रहे सभी अभ्यर्थियों का कमोबवेश यही हाल है। पूरे दिन नारा लगाते, कैंडल मार्च करते और एक से दूसरे सरकारी ऑफिसों पर दौड़ते-दौड़ते वह थक गए हैं। कुछ अलसाई आंखों ने धूल भरी जमीन पर नींद का दामन भी थाम लिया है। हालांकि कुछ अभ्यर्थी अभी भी पूरे जोश में है और लगातार नारे लगाए जा रहे है। किसी 'मीडियावाले' को आता देश उनका जोश दोगुना हो जाता है।
'या तो जॉब दीजिए या इच्छामृत्यु!'
इन अभ्यर्थियों की अगुवाई कर रहे जीशान सिद्दकी कहते हैं कि पद भी खाली हैं और हम भी काबिल हैं, लेकिन आयोग हमें नौकरी देने में आना-कानी कर रहा है। वह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग, उत्तर प्रदेश पुलिस सहित प्रदेश के लगभग सभी भर्ती बोर्ड वेटिंग लिस्ट जारी करते हैं। यहां तक की केंद्रीय लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) भी अपनी भर्तियों में वेटिंग लिस्ट जारी करता है। लेकिन यूपीएसएसएससी अपनी जिद पर अड़ी है कि वह वेटिंग लिस्ट नहीं जारी करेगी।
जीशान बताते हैं कि वे लोग इससे पहले भी धरना दे चुके हैं लेकिन यूपीएसएसएससी हर बार उचित कार्यवाही करने का आश्वासन देकर हमें लौटा देता है। वह पूर्व में दिए गए ज्ञापन-पत्रों की कॉपी भी हमें दिखाते हैं। जीशान धरने-आश्वासन की इस प्रक्रिया से ऊब चुके हैं और सरकार से इच्छामृत्यु देने की मांग करते हैं।
'हम समाज में व्यंग्य के शिकार हैं'
धरने में कन्नौज से आए हुए अभिषेक प्रताप सिंह की अलग ही कहानी है। उनको इस परीक्षा में 78 नंबर मिला है, जो कि सामान्य वर्ग का कट ऑफ प्वाइंट है। लेकिन उम्र कम होने की वजह से उनका चयन नहीं हो पाया। आयोग का नियम है कि समान अंक होने पर उन अभ्यर्थियों को प्राथमिकता दी जाती है जिनकी उम्र अधिक हो या जिसने लिखित परीक्षा में अधिक नंबर पाया हो।
अभिषेक बताते हैं कि परीक्षा में सफल नहीं होने की वजह से उन्हें आस-पास के लोगों और रिश्तेदारों से ताने मिलने लगे हैं। उनकी महिला मित्र भी नौकरी ना होने की वजह से उन्हें छोड़ चुकी है। यहां तक कि अब उनके माता-पिता का भी उन से विश्वास उठने लगा है। साहित्य में रूचि रखने वाले अभिषेक ने अपनी इस स्थिति पर एक कविता भी लिखी है।
अभिषेक जोर देकर कहते हैं कि यह नौकरी उनका हक है। अगर वह अपने हक के लिए नहीं लड़ेंगे तो भविष्य में खुद से भी आंखें नहीं मिला सकेंगे।
'इस सरकार ने भी किया निराश'
झांसी से आए आदित्य मौर्या कहते हैं, 'राज्य में कोई भी वैकेंसी आती है तो उसमें कुछ ना कुछ झोल हो जाता है। कभी पेपर लीक हो जाता है, तो कभी सरकारें बदल जाने पर नियुक्तियां ही रद्द हो जती हैं। अंत में अगर परिणाम आता भी है तो भी कुछ निश्चित नहीं रहता। कभी मामला न्यायालय में चला जाता है तो कभी कट ऑफ पार करने के बाद भी नौकरी नहीं मिल पाती।'
आदित्य वर्तमान व्यवस्था से एकदम निराश हो चुके हैं। भर्राई हुई आवाज में वह कहते हैं कि हम ने बहुत ही उम्मीद से बीजेपी को वोट दिया था। लेकिन इस सरकार में भी पिछली सरकारों की तरह काम हो रहा है।
'आयोग कर रहा अंग्रेजों की तरह व्यवहार'
धरने में आए 29 साल के अनिरूद्ध पांडेय की राय आदित्य से थोड़ी अलग है। अनिरूद्ध के अनुसार इस धांधली के लिए वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार नहीं बल्कि आयोग (यूपीएसएसएससी) ही जिम्मेदार है।
राजनीतिक विज्ञान से एम.ए. अनिरूद्ध राजनीतिक विज्ञान वाली शब्दावली में कहते हैं कि आयोग अंग्रेजों की तरह व्यवहार कर रही है। योगी सरकार ने आयोग के पुराने भ्रष्टाचार अधिकारियों को बर्खास्त कर आयोग का पुनर्गठन किया लेकिन ये अधिकारी भी पहले की तरह ही व्यवहार कर रहे हैं। वे गरीब, किसान और मजदूर के बेटों पर तानाशाही और क्रूर रवैया अपना रहे हैं जैसे ब्रिटिश सरकार अपनाती थी। अनिरूद्ध इन अधिकारियों को बर्खास्त कर राष्ट्रदोह का मुकदमा दायर करने की भी बात करते हैँ।
अनिरूद्ध पांडेय ने 2016 में यूपीएसएसएससी के तहत कनिष्ठ सहायक (जूनियर असिस्टेंट) की परीक्षा दी थी। उनका भी नंबर सफल अभ्यर्थियों के कट ऑफ नंबर के बराबर था। उन्होंने भी सरकार बदलने की वजह से दोबारा इंटरव्यू दिया था। लेकिन वेटिंग लिस्ट का प्रावधान ना होने की वजह से वह भी नौकरी पाने से चूक गए।
अनिरूद्ध का दावा है कि 2016 के 5000 कनिष्ठ सहायक के पदों पर लगभग 1000 पद खाली हैं लेकिन आयोग उन पदों पर भर्तियां करने को तैयार नहीं है। अनिरूद्ध ने बताया कि वह और उनके साथी 2017 से लगातार इस संबंध में धरना और ज्ञापन दे रहे हैं। बिफरते हुए वह कहते हैं कि हमें समझ नहीं आता कि हम आगे आने वाली परीक्षाओं की तैयारी करें या विभिन्न विभागों में जाकर धरना दें।
अनिरूद्ध पांडेय उन लोगों में से हैं जिन्होंने पूरे राज्य से अभ्यर्थियों को धरने के लिए इकट्ठा किया था। अनिरूद्ध ग्राम विकास अधिकारी के साथ ही कनिष्ठ सहायक, गन्ना पर्यवेक्षक और ग्राम पंचायत अधिकारी की भर्ती परीक्षाओं में भी वेटिंग लिस्ट निकालकर समायोजन की मांग कर रहे थे।
'वेटिंग लिस्ट तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों के लिए एक वरदान'
अनिरूद्ध इस मामले में एक मैकनिज्म भी हमें समझाते हैं। वह कहते हैं कि वेटिंग लिस्ट से अभ्यर्थियों का ना सिर्फ समय बल्कि पैसा भी बचेगा। आयोग बची हुई सीटों पर फिर से वैकेंसी निकालती है जिसकी वजह से अभ्यर्थियों को फिर से परीक्षा शुल्क आदि देना होता है। अनिरूद्ध कहते हैं कि 'वेटिंग लिस्ट' तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों के लिए वरदान है। यह अगर आयोग की परीक्षाओं में लागू हो जाए तो अभ्यर्थियों का ना सिर्फ अमूल्य समय बचेगा बल्कि उनकी फीस भी बचेगी और वे दोबारा परीक्षा देने के मानसिक तनाव से भी बच सकेंगे।
प्रदेश में क्या है वेटिंग लिस्ट का प्रावधान?
उत्तर प्रदेश की भर्ती परीक्षाओं में वेटिंग लिस्ट के प्रावधान में काफी अस्पष्टता है। 1978 के यूपी पंचायत सेवक सेवा नियमावली के नियम 15 के उपनियम 4 के अनुसार चयन समिति साक्षात्कार के अंकों के अनुसार रिक्तियों की संख्या से 25% अधिक व्यक्तियों का चयन करेगी। ताकि यदि चयनित अभ्यर्थियों में से कोई व्यक्ति सेवा से नहीं जुड़ता है तो इन 25% व्यक्तियों से रिक्तियों की पूर्ति की जा सके। हालांकि 1978 के इस नियम में प्रतीक्षा सूची यानी वेटिंग लिस्ट जैसी शब्दावलियों का जिक्र नहीं है। 1978 के नियम में इस 25% की सूची को अतिरिक्त सूची (Additional List) कहा गया है।
वहीं 1999 के एक शासनादेश में वेटिंग लिस्ट का जिक्र है। इस आदेश में कहा गया है कि वेटिंग लिस्ट का नियम एकल संवर्गीय (सिंगल काडर) भर्तियों पर जरूर लागू होनी चाहिए।
उच्च न्यायालय ने भी अगस्त, 2018 में करूणेश कुमार बनाम राज्य के एक मामले में यूपीएसएसएससी को आदेश देते हुए कहा है कि वह ग्राम पंचायत अधिकारी-2015 की भर्तियों में वेटिंग लिस्ट जारी करते हुए वंचित अभ्यर्थियों का चयन करे। धरना दे रहे अभ्यर्थी भी उच्च न्यायालय के इसी आदेश का हवाला दे रहे थे।
2018 के आदेश की कॉपी
नियमों की गुत्थियों में पीस रहे अभ्यर्थी
हालांकि यूपीएसएसएससी ने उपरोक्त मामले में एक पुनर्विचार याचिका दायर कर दी है। यूपीएसएसएससी इसके लिए उत्तर प्रदेश कार्मिक विभाग द्वारा निकाले गए 2002 के समूह 'ग' सामान्य भर्ती प्रक्रिया नियमावली का हवाला दे रही है, जिसमें वेटिंग लिस्ट का प्रावधान नहीं है। हालांकि इस नियमावली में 'वेटिंग लिस्ट ना होने' का भी कोई प्रावधान नहीं है। इसी तर्क के आधार पर यूपीएसएसएससी पिछले साल की रिक्तियों को अगले साल के रिक्तियों में जोड़ देती है, लेकिन वेटिंग लिस्ट नहीं जारी करती।
वहीं धरना दे रहे अभ्यर्थियों का कहना है कि चूंकि यह एक एकल संवर्गीय परीक्षा है इसलिए 1991 का शासनादेश ही चलना चाहिए, जिसमें वेटिंग लिस्ट का प्रावधान है। इन अभ्यर्थियों के पास राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विशेष सचिव द्वारा अग्रसारित पत्र भी है, जिसे प्रमुख सचिव ग्राम्य विकास विभाग को प्रेषित किया गया है।
ग्राम्य विकास विभाग, उत्तर प्रदेश के एक अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि यह पूरी तरह से यूपीएसएसएससी का मामला है। परीक्षाएं यूपीएसएसएससी करवाती है और उम्मीदवारों का चयन उनका काम है। अगर यूपीएसएसएससी चयनित उम्मीदवारों की सूची भेजती है तो हम नियमानुसार उनकी नियुक्तियां करेंगे।
क्या कहते हैं आंकड़ें
अभी हाल ही में 'नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस' (एनएसएसओ) की एक रिपोर्ट लीक हुई थी जिसमें कहा गया कि 2018 में देश में बेरोजगारी दर पिछले 45 साल में सबसे ज्यादा थी। यह रिपोर्ट अंग्रेजी अखबार बिजनेस स्टैंडर्ड के हवाले से लीक हुई थी। एक और सरकारी रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश की बेरोजगारी दर देश के बेरोजगारी दर से भी काफी ऊंची है।
वहीं लेबर ब्यूरो, शिमला की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल धरनों की संख्या में वृद्धि हो रही है। 2016 की तुलना में 2017 में इसकी संख्या में 44 प्रतिशत की वृद्धि हुई जिससे देश की उत्पादकता को 57% का नुकसान हुआ। (2018 के आंकड़े अभी नहीं आए हैं।)
धरने में आए अभ्यर्थियों का भी कुछ यही कहना है। वे कहते हैं कि लगातार ऐसे धरनों में फंसे रहने से सिर्फ हमारा ही नहीं समाज और देश का भी नुकसान है। हमने परीक्षा में कट ऑफ के बराबर अंक पाकर अपनी योग्यता और उपयोगिता साबित कर दी है। अब यह अथॉरिटीज की जिम्मेदारी है कि वे हमारी क्षमता और ऊर्जा का सदुपयोग करें। हम अपनी क्षमताओं को यूं धरनों में बर्बाद नहीं करना चाहते हैं।
बहरहाल, इस बीच अभ्यर्थी फिर सत्ता पक्ष के कुछ नेताओं से मिलते हैं और उन्हें अपनी साल भर पुरानी प्रिंट गई चिट्ठी को सौंपते हैं। नेता भी उन्हें वही पुराने आश्वासन देकर विदा कर देते हैं कि जल्द ही इस मामले में 'उचित कार्यवाही' की जाएगी। अभ्यर्थी फिर से 'तैयारी' करने के लिए अपने-अपने महानगरों की तरफ लौट जाते हैं।
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