पश्चिम बंगाल के चाय बागानों में नाराजगी, 176 रुपए मिलने वाली मजदूरी के खिलाफ सड़कों पर उतरेंगे मजदूर

Mithilesh DharMithilesh Dhar   20 Aug 2019 7:30 AM GMT

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पश्चिम बंगाल के चाय बागानों में काम करने वाले मजदूर एक बार फिर 22, 23 और 24 अगस्त को सड़कों पर उतरकर सरकारों के सामने अपनी मांग रखेंगे। न्यूनतम वेतन की मांग को लेकर उन्होंने केंद्र और प्रदेश सरकार को 19 अगस्त तक का समय दिया था लेकिन एक बार फिर उनकी मांगों पर कोई सुनवाई नहीं हुई।

पश्चिम बंगाल के चाय बागानों में लगभग साढ़े चार लाख मजदूर काम करते हैं। बागानों में काम कर रहे मजदूर और मजदूर संगठन लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि उन्हें भी न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 के तहत मजदूरी मिले। इसके लिए लोकसभा चुनावों से पहले भी काम ठप कर चुके हैं।

पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार 2015 चाय बागानों में काम कर रहे मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी सलाहकार कमेटी का गठन किया था। कमेटी में 29 लोगों को शामिल भी किया गया। तब से लेकर पिछले साल तक 10 से ज्यादा बैठके हो चुकी हैं लेकिन मामला जस का तस है।

फिलहाल पश्चिम बंगाल के चाय बागानों में काम करने वाले मजदूरों को राशन के अलावा 176 रुपए प्रतिदिन के हिसाब दिया जा रहा है। इसके बदले उन्हें प्रतिदिन 27 किलो चायपत्ती तोड़नी होती है। टारगेट पूरा न होने पर पैसे भी काट लिए जाते हैं।

मजदूर संगठनों का है आरोप है कि प्रदेश सरकार तय मजदूरी दर में भी धांधली कर रही है।

चाय मजदूरों के लिए काम कर रहे संगठन ज्वाइंट फोरम के संयोजक जेबी तमांग गांव कनेक्शन से कहते हैं, "पहले बागान मालिक राशन उपलब्ध कराते थे, लेकिन अब राज्य सरकार पीडीएस (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) के तहत प्रत्येक परिवार को महीने में 35 किलो चावल दो रुपए किलो की दर से उपलब्ध करा रही है।"

वे आगे कहते हैं, " पिछली बार जो समझौता हुआ था उसके अनुसार न्यूनतम मजदूरी 289 रुपए तय हुई थी। इसमें से 132.50 रुपए का नकद भुगतान होना था। बाकी के 157 रुपए राशन, मेडिकल, जलावनी लकड़ी और अन्य सुविधाओं के बदले में थे। इसमें राशन का हिस्सा 24 रुपए का है। जबकि बागान मालिक नौ रुपए ही दे रहे हैं।"

चाय बागान प्लाटेंशन लेबर एक्ट, 1951 के तहत आते हैं। इस एक्ट के तहत बागान मालिक श्रमिकों के रहने, खाने-पीने और शिक्षा संबंधी जरूरतें पूरी करते हैं। इसीलिए यहां काम करने वाले मजदूरों को अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा नकद भुगतान कम किया जाता है।

दार्जिलिंग का चाय बागान। ये तस्वीर हमें पंकज झा ने भेजी है।

लेकिन समय के साथ-साथ मजदूरों को दी जाने वाली सुविधाएं बंद होती गई। न तो उन्हें ढंग से राशन दिया जा रहा और न ही उनके अस्पतालों की स्थिति ठीक है।

भारतीय ट्रेड यूनियन केन्द्र दार्जिलिंग के जिला सचिव और 29 चाय व्यापार संघ की टीम ज्वाइंट फोरम का नेतृत्व कर रहे समन पाठक गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, " राज्य सरकार द्वारा गठित किए गए न्यूनतम वेतन परामर्श समिति में लोकसभा चुनाव के समय विचार विमर्श किया गया लेकिन अभी तक इस पर कुछ भी तय नहीं हुआ। जबकि परामर्श बोर्ड को चाय बगान के मालिकों और ट्रेड यूनियनों ने अपनी मांगों से जुड़े दस्तावेज सौंप दिये थे। इसके बद मामला प्रदेश सरकार के पाच चला गया। हमने प्रदेश सरकार को 19 अगस्त तक का समय दिया था, लेकिन हमारी कोई बात नहीं मानी गई। ऐसे में हम 22, 23 और 24 अगस्त को एक बार फिर कामकाज बंद करके सड़कों पर उतरेंगे।"

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केंद्रीय श्रम संगठन सीटू के संयोजक जियाउल आलम चाय बागानों में कार कर रहे मजदूरों की आवाज लंबे समय से उठाते रहे हैं। उन्होंने गांव कनेक्शन को फोन पर बताया, "प्रदेश सरकार न्यूनतम वेतन देना ही नहीं चाहती। सरकार ने जबकि इसके लिए वादा किया था। बागानों में काम करने वाले मजदूरों की स्थिति बहुत खराब है। अब न्यूनतम मजदूरी व्यवस्था से कम कुछ भी कबूल नहीं किया जाएगा।"

आलम आगे कहते हैं, " इसका मतलब यह होगा कि त्रिपक्षीय समझौते से मजदूरी तय नहीं होगी। अब हमारी मजदूरी सरकार तय करे और हमें इतना पैसा मिले कि हम अपना जीवन जी सके। जीवनयापन के लिए जरूरी खर्च और वर्तमान बाजार दर पर आधारित हो और उससे कम भुगतान को गैरकानूनी माना जाए।"

भारत में जिलेवार चाय की पैदावार

2014 से पहले तक चाय बागानों के मजदूरों की मजदूरी हर तीन वर्ष में होने वाले समझौते से तय होती थी। 2014 में इसे सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम मजदूरी से तय होना घोषित किया गया। उस समय इस घोषणा से मजदूरी 90 रुपए से बढ़कर 132.50 रुपए प्रतिदिन हो गयी थी।

2015 में राज्य सरकार ने यूनियनों की मांग पर एक न्यूनतम मजदूरी सलाहकार बोर्ड गठित किया। इस बोर्ड को चाय बागान के मजदूरों की मजदूरी तय करनी थी। सरकार इस बोर्ड की रिपोर्ट जारी करने से टालती रही। अंततः 2017 में सरकार ने तात्कालिक तौर पर मजदूरी 132.5 रुपए से बढ़ाकर 150 रुपए करने की घोषणा कर दी।

मार्च 2018 में जब असम के सलाहकार बोर्ड ने वहां के बागान मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी 351 रुपए प्रतिदिन करने की सिफारिश की तो बंगाल के बागानों में भी मजदूरी बढ़ाने की मांग जोर पकड़ने लगी। 2018 में बंगाल में मजदूरी 159 रुपए कर दी गयी बाद में इसे बढ़ाकर 176 रुपए किया गया। हालांकि असम में भी अभी तक सलाहकार की सलाह पर अमल नहीं किया गया है और वहां अभी भी मजदूरी 167 रुपए दी जा रही है।


असम और बंगाल के चाय बागानों में काम करने वाले मजदूरों की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। बावजूद इसके जो नाम मात्र का कुछ हुआ भी है तो उसका श्रेय लेने की भी होड़ लगी है। पिछले साल जुलाई में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सिलीगुड़ी मिनी सचिवालय में चाय व्यापार के मसले पर एक मीटिंग की थी। मीटिंक के बाद उन्होंने कहा, " वाम शासन के समय चाय श्रमिकों की मजूदरी मात्र 67 रुपए थी( लेकिन मां-माटी-मानुष की सरकार में मात्र सात वर्षों में (2011 से अब तक) यह तकरीबन ढाई गुना बढ़कर 159 रुपए हो गई है (अब इसे बढ़ाकर 176 रुपए करने का लक्ष्य है)।"

बात अगर पश्चिम बंगाल की करें तो वहां अभी अकुशल मजदूरों को 244 रुपए डेली का मिलता है। तमिलनाडु के बागानों में काम करने वाले मजदूरों को जहां 303 रुपए प्रतिदिन तो वहीं केरल में एक दिन की मजदूरी 512 रुपए मिल रही है।

वर्ष 2017 में आई एक रिपोर्ट चाय बागानों में काम कर रहे मजदूरों की दुर्दशा की कहानी बयान करती है। रिपोर्ट की मानें तो 2002 से 2014 के बीम अकेले पश्चिम बंगाल के बागानों में कुपोषण और भूख से 1000 से ज्यादा बागान मजदूरों की मौत हो चुकी है। इस दौरान जहां 23 बागान बंद हो गये तो वहीं एक लाख से ज्यादा मजदूर बेरोजगार भी हुए हैं।

 

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