चिकनगुनिया : मच्छरों से फैलती एक भयावहता

चिकनगुनिया रोग के बारे में जानकारी, इसके कारकों और बचाव के तरीकों का संपूर्ण प्रचार और प्रसार जितना जरूरी है उतना ही महत्वपूर्ण है आम लोगों में चिकनगुनिया की भयावहता दूर करने को लेकर जागरुकता अभियान।

Deepak AcharyaDeepak Acharya   1 Nov 2019 7:18 AM GMT

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चिकनगुनिया : मच्छरों से फैलती एक भयावहता

विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा रिपोर्ट के अनुसार चिकनगुनिया रोग अब 50 से अधिक देशों में फैलता हुआ विश्वव्यापी समस्या की तरफ अग्रसर हो रहा रोग है।

चिकनगुनिया शब्द स्वाहिली भाषा (एक आफ्रिकन भाषा) से लिया गया है, जिसका हिन्दी अर्थ 'हड्डियों के टूटने जैसा दर्द' है। इस रोग में तेज बुखार के साथ शरीर के जोड़ों में तीव्र वेदना होती है और शरीर इस कदर कमजोर हो जाता है कि इससे प्रभावित व्यक्ति अपने दैनिक कार्यों को करने में भी असमर्थ हो जाता है।

चिकनगुनिया रोग बड़ी तेजी से अपने पैर पसारे जा रहा है, मच्छरों से फैलने वाले इस रोग का विस्तार पिछले पचास सालों में 30 गुना से भी ज्यादा हुआ है और हर एक वर्ष में एक नए देश में इस रोग ने पदार्पण कर सारे विज्ञान को हतप्रद कर रखा है।

गांवों, शहरों, प्रदेशों और अनेक देशों से प्रतिदिन इस रोग की भयावहता की खबरें निकल कर आना आम हो गया है। आखिर क्या बला है चिकनगुनिया और क्यों विज्ञान असमर्थ है इस रोग के संपूर्ण निवारण के लिए और क्या कोई ऐसे पारंपरिक उपाय संभव हैं जिनसे इस रोग के दर्दनाक परिणामों पर काबू पाया जा सके? आइये समझने की कोशिश करेंगे इस लेख के जरिए ...


विश्व में सैकड़ों करोड़ लोग चिकनगुनिया रोगग्रस्त इलाकों में रहते हैं और प्रतिवर्ष 10 करोड़ से ज्यादा लोग इसका शिकार बन जाते है। मच्छरों से फैलने वाला यह रोग दरअसल एक विषाणु/वायरस जनित रोग है। यह एक आरएनए वायरस है जो टोगा विरिडी कुल के एल्फा वायरस का एक प्रकार है।

आज समस्त आधुनिक औषधीय विज्ञान जगत इसकी रोकथाम और उपचार के लिए शोध में लगा हुआ और इसके वैक्सीन बनाने के लिए भी अनेक शोध कार्यक्रम संपादित किये जा रहे हैं, किंतु इस प्रक्रिया में अभी तक कोई खासी उपलब्धि नहीं हो पायी है।

कैसे फैलता है चिकनगुनिया?

इस रोग का वायरस वास्तव में मनुष्यों को एडिस एजिप्टी और एडिस एल्बोपिक्टस प्रजाति के मच्छरों के द्वारा काटे जाने से फैलता है, यह मच्छर ही इस रोगकारक वायरस का वाहक/वेक्टर है। ज्यादातर ठंडे देशों में इसका प्रकोप नहीं होने की वजह भी यही मच्छर है।

वास्तव में यह मच्छर गर्म जलवायु वाले देशों में ही पाया जाता है और मच्छर का आक्रमण भी अपेक्षाकृत गर्म महीनों में ही ज्यादा होता है, जब ज्यादा ठंड पड़ना शुरू हो जाए तो मच्छर का आतंक कम हो जाता है। जिन जगहों पर पानी का जमाव, गंदगी और सड़ी-गली सब्जियों या कचरे का जमाव हो, मच्छर अपनी पैदावार करता है। गंभीर बात ये भी है कि इन मच्छरों के अंडे पानी की कमी होने या पानी के ना होने पर भी कई महीनों तक जीवित रह सकते हैं।

आमतौर पर देखा गया है कि मादा एडिस एजिप्टी मच्छर का सारा जीवनकाल उसी जगह पर होता है जहां इनका जन्म होता है। अर्थात मच्छरों का जमावड़ा जरूर आपके इर्द-गिर्द होगा लेकिन आप ही एक जगह से दूसरे जगह तक भ्रमण करेंगे और जब किसी स्वस्थ पर्यावरण में वायरस को लेकर आप प्रवेश करेंगे, उस क्षेत्र में भी चिकनगुनिया के आक्रमण की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता।

वायरस ग्रस्त मच्छर जब किसी स्वस्थ मनुष्य को काटता है तो यह वायरस वेक्टर (मच्छर) के शरीर से निकलकर मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाता है और फ‍िर शुरू होता है चिकनगुनिया का आतंक। चिकनगुनिया के सटीक उपचार से काफी हद तक इसकी भयावहता से बचा जा सकता है, किंतु बुजुर्गों और बच्चों में इस रोग के होने के बाद होने वाली किसी भी तरह की लापरवाही मरीज के मौत का कारण भी बन सकती है।


इस रोग के तीन मुख्य घटक

आइये, चिकनगुनिया रोग होने के कारण को थोड़ा और करीब से जानने की कोशिश करते हैं। इस रोग के तीन मुख्य घटक हैं, वायरस, वेक्टर और होस्ट। चिकनगुनिया रोगकारक वायरस का सबसे बढ़िया मेजबान (होस्ट) मनुष्य खुद है। जब चिकनगुनिया वायरस लिए मच्छर (वेक्टर) द्वारा स्वस्थ मनुष्यों को काटा जाता है तो यह वायरस मनुष्य रक्त में आ जाता है और एक प्रकार से अपना घर बना लेता है।

जब दूसरा मच्छर इस व्यक्ति को काटता है तो व्यक्ति के रक्त से वायरस पुन: मच्छर तक पहुंच जाता है। यानी आप अगर वायरस ग्रस्त हैं और किसी साफ क्षेत्र में जाते हैं और यदि वहां मच्छर आपको काटेगा तो मान लीजिए उस क्षेत्र में भी चिकनगुनिया के फैलने की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता।

रोचक बात यह भी है कि एडिस एजिप्टी मच्छरों को मानव रक्त से कुछ ज्यादा ही लगाव है। अंडे देने की प्रक्रिया से पहले मादा मच्छर इंसान को कई दफे काटती है और फिर किसी नजदीकी गंदगी वाले हिस्से में अंडे भी दे देती है। और फिर अंडों के परिपक्व होने के बाद पुन:प्रसार शुरू होता है चिकनगुनिया का।

चिकनगुनिया के संभावित लक्षण

चिकनगुनिया रोगग्रस्त व्यक्ति में सामान्यत: तेज बुखार के साथ उल्टी होना, हाथ-पांव और जोड़ों में दर्द और खून की जांच के बाद रक्त में श्वेत रक्त कणिकाओं (डब्ल्यूबीसी) की कमी होना देखा जा सकता है। चिकित्सक इन्हीं लक्षणों को देख चिकनगुनिया का संभावित उपचार प्रारंभ कर देते हैं।

यदि इस दौरान रोगी को ताबड़तोड़ बदनदर्द, लगातार उल्टियां, पेट दर्द, नाक और मल से खून आना, आलस्य और अचानक बेचैनी हो व रक्त परिक्षण से ब्लड प्लेट्लेट्स के आंकड़ों में अचानक गिरावट आना दिखाई दे तो इस रोग के होने की संभावना और पुष्ठ हो जाती है। यही वक्त होता है जबकि रोगी को बेहतर से बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जाए वर्ना चिकनगुनिया का आक्रमण इतना घातक हो जाता है।


रोगी शिथिल हो जाता है, जोड़ दर्द से बदन चकनाचूर होने की कगार पर आ जाता है, अबकी बार सांस लेने में तकलीफ के साथ-साथ शारीरिक शीथिलता भी हो सकती है और रोग प्रभाव के चलते हृदय और अन्य अंगों का संचालन अचानक कभी भी रुक सकता है, रोगी बुजुर्ग हो तो मौत भी हो सकती है।

रोग होने की प्रक्रिया और इससे संबंधित जटिलताओं को ज्यादा गहराई से जानने के बजाए, मैं इसके रोकथाम और संभावित उपचारों पर प्रकाश डालना पसंद करूंगा।

कैसे थमे चिकनगुनिया का प्रकोप?

अस्पताल में दाखिला और रोकथाम- सर्वप्रथम ये आवश्यक है कि रोग ग्रस्त इलाकों और व्यक्तियों की पहचान हो पाए। पहले यह प्रयास किए जाने चाहिए कि चिकनगुनिया से ग्रस्त रोगी की पहचान कर त्वरित तौर पर यह निर्धारित किया जाए कि उसे कितनी जल्दी से जल्दी उत्तम चिकित्सा सुविधाएं प्राप्त हो, साथ ही लोक स्वास्थ्य विभाग की जानकारी में भी यह तथ्य लाया जाए।

द्रवोपचार और अन्य उपचार प्रक्रियाओं दवारा रोगी का इलाज किया जाए और जरूरत पड़ने पर रोगी को किसी उत्तम चिकित्सालय में दाखिल किया जाए ताकि रोग के संचार की तेज प्रक्रिया को रोक लिया जाए। प्रत्येक 30 मिनट में रोगी के रक्तदाब, तापमान और श्वसन क्रिया का माप लिया जाना जरूरी है ताकि रोगी की यथास्थिति पर लगातार नजर बनी रहे।

याद रहे कि चिकनगुनिया के रोगोपचार के लिए कोई निर्धारित दवाई नहीं है, इससे बचाव के लिए रोगी के शारीरिक तापमान, श्वसन क्रिया और रक्त दाब पर नियंत्रण ही इसका सबसे बड़ा इलाज माना जा सकता है और साथ ही इस रोग से बचाव को इलाज का सबसे बड़ा पहलू समझा जाना जरूरी है।


चिकनगुनिया की रोकथाम का सबसे प्रमुख उपाय मच्छरों को पनपने से रोकना और अपने आप को मच्छर के काटे जाने से बचाना है। घरों में, घरों की छतों पर और घरों के आसपास किसी भी तरह के पानी का जमावड़ा नहीं होना चाहिए, यह तय करना जरूरी है कि पानी की सतत निकासी होती रहे, पानी बहता रहे।

घरों में मच्छरों से बचाव के लिए खिड़कियों और दरवाजों पर जालियाँ लगायी जाएं, मच्छरों के काटे जाने से बचने के लिए शरीर पर मोटे कपड़े पहनें और घर में मच्छरों को भगाने वाले प्राकृतिक उत्पादों का उपयोग करें। घर में यदि किसी व्यक्ति को चिकनगुनिया रोग होता है तो बाकी सदस्यों और पड़ौसियों को सावधान होने की जरूरत है।

अस्पताल से रोगी की छुट्टी

रोगी की अस्पताल से छुट्टी से पहले निम्न बिंदुओं का निर्धारण जरूरी है

1. पिछले 24 घंटों में रोगी को किसी तरह का बुखार ना आया हो साथ ही बुखार नियंत्रण की कोई दवाएं नहीं दी गयी हो

2. रोगी को भूख लगना शुरू हो गयी हो

3. रोगी की हालात में काफ़ी सुधार हो चुका हो

4. सही मात्रा में पेशाब जारी हो

5. सांस लेने में किसी प्रकार की तकलीफ़ ना हो

6. ब्लड प्लेट्लेट्स की संख्या 50,000 प्रति मिमी क्युब से ज्यादा पहुँच चुकी हो


मच्छर भगाने या मच्छर-रोधी उत्पादों का उपयोग

एन्वायरनमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी (ईपीए) और यूएसएफडीए अमेरिका द्वारा निर्धारित कुछ प्राकृतिक और कृत्रिम रसायनों जैसे- कैटनिप ऑयल, सिट्रोनेला, लेमन युकेलिप्टस तेल, पिकारिडिन, DEET (N,N-Diethyl-meta-toluamide) और आईआर 353 आदि का उपयोग कर बनाए उत्पादों के लिए मान्यता दी गयी है जिन्हें आप मच्छरों को घर से भगाने के लिए और शरीर पर काटने से बचाने के लिए उपलब्ध बाजारू उत्पादों में देख सकते हैं, इन्हें इस्तेमाल किया जाना चाहिए क्योंकि ये स्वास्थ्य के लिए घातक भी नहीं हैं।

आइये समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर आदिवासी इलाकों में चिकनगुनिया से बचने के कौन-कौन से प्राकृतिक और हर्बल उपाय बतलाए जाते हैं या कौन-कौन सी पारंपरिक जड़ी-बूटियों के सेवन से रोग के असर को कम किया जा सकता है?

क्या कहता है आदिवासियों का हर्बल ज्ञान?

पातालकोट मध्य प्रदेश के आदिवासी हर्बल जानकार अपने घरों के आस-पास सिताब और तुलसी जैसे पौधे के रोपण की सलाह देते हैं, इनका मानना है कि इन पौधों की गंध मात्र से मच्छर दूर भाग जाते हैं। दक्षिण गुजरात में आदिवासी सरसों के तेल में कपूर मिलाकर शरीर पर लगाते हैं, इनका कहना है कि ऐसा करने से मच्छर मनुष्य की त्वचा के नजदीक नहीं आते हैं।

इसी तरह कुछ आदिवासी हलकों में लोग पपीते की पत्तियों के रस के सेवन की सलाह देते हैं, इनके अनुसार पपीते की कच्ची हरी और ताजी पत्तियों को कुचल लिया जाए और सेवन किया जाए।

  

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