जब एलआईसी फायदे में हैं, खुद पर निर्भर है तो उसका हिस्सा क्यों बेच रहे हैं ?

Ashwani Kumar DwivediAshwani Kumar Dwivedi   7 Feb 2020 9:00 AM GMT

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जब एलआईसी फायदे में हैं, खुद पर निर्भर है तो उसका हिस्सा क्यों बेच रहे हैं ?

पिछले कुछ दिनों से भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) लगातार चर्चा में है। बजट भाषण के दौरान जबसे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि सरकार एलआईसी का एक हिस्सा बेचेगी, सोशल मीडिया से लेकर चाय की दुकानों तक एलआईसी को लेकर तरह-तरह की बातें हो रही है। एलआईसी से जुड़े कर्मचारियों और बीमा एजेंट की मानें तो वो सवालों से परेशान हैं।

एलआईसी की महत्व की बात करें तो जितने लोग इससे सीधे जुड़े है, उतनी ऑस्ट्रेलिया जैसे देश की आबादी नहीं है। देशभर में एलआईसी के 30 करोड़ से ज्यादा बीमाधारक हैं, और लगभग 20 लाख अभिकर्ताओं को इससे नौकरी मिली है। ऑल इंडिया बीमा कर्मचारी संघ ने भी इसका विरोध करते हुए 4 फरवरी को पूरे देश में एक घंटे का कार्य बहिष्कार किया। ऐसे में अब सवाल यह है कि अगर सरकार एलआईसी का हिस्सा बेचती है तो उससे क्या होगा?

भारतीय जीवन बीमा निगम के लखनऊ के अभिकर्ता रमाकर द्विवेदी बताते हैं, "बजट में सरकार द्वारा एलआईसी का एक बड़ा हिस्सा आईपीओ के माध्यम से बेचने की घोषणा के बाद कई बीमाधारकों के फोन आने शुरू हो गये हैं। बीमाधारक निवेश की सुरक्षा को लेकर प्रश्न कर रहे हैं। इसका बीमाधारकों पर कुछ असर पड़ेगा या नहीं ये तो बाद में ही पता चलेगा।"

यूपी के कानपुर में बैठने वाले एलआईसी के उत्तर-मध्य क्षेत्र के बीमा कर्मचारी फेडरेशन के महामंत्री राजीव निगम बताते हैं, "बुरे वक्त में जैसे कोई रास्ता न बचने पर लोग घर में महिलाओं के गहने बेचने शुरू कर देते हैं अब सरकार वही कर रही है। ताज्जुब की बात ये है कि सरकार इस बात को स्वीकार भी नहीं कर रही।"

"कर्मचारियों पर इसका बहुत ज्यादा सीधा असर नहीं पड़ेगा, लेकिन प्रश्न ये है की सरकार पॉलिसीधारकों का पैसा शेयर मार्केट में लगाएगी और 10 प्रतिशत से शुरुआत करके 50 प्रतिशत या अधिक तक ले जायेगी। ये शेयर बड़े कॉर्पोरेट घरानों के हाथ में जायेंगे और आने वाले समय में कॉर्पोरेट एलआईसी पर हावी हो जाएगा। मालिकाना हक भविष्य में निजी हाथों में जा सकता है। इससे नौकरियों की जो स्थिति निजी क्षेत्र में है वो एलआईसी में हो जायेगी।" वे आगे कहते हैं।

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"फेडरेशन का विरोध इस बात पर है कि सरकार एलआईसी को निजीकरण की तरफ क्यों ले जा रही है जो की स्वयं पर निर्भर है और देश की अर्थव्यवस्था में सहयोग कर रही है। अगर एलआईसी का निजीकरण होता है तो भविष्य में उससे किसका फायदा होगा ये भी सोचने का विषय है।" राजीव निगम कहते हैं।

वर्ष 1956 के दौरान निजी क्षेत्र की 245 बीमा कंपनियां देश में काम कर रही थीं। इन कंपनियों की देनदारी काफी बढ़ गयी और ये बीमाधारकों को भुगतान नहीं कर पा रही थीं। तब देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू थे और वित्त मंत्री सीडी देशमुख ने बीमा व्यवसाय के राष्ट्रीयकरण का निर्णय लिया। एक सितम्बर 1956 को संसद में एक अध्यादेश लाकर जीवन बीमा एक्ट के तहत भारतीय जीवन बीमा निगम का गठन किया गया और भारतीय जीवन बीमा निगम का लक्ष्य "प्यूपिल्स मनी फॉर प्यूपिल्स वेलफेयर " निर्धारित किया गया।

एलआईसी के आर्थिक तंत्र के बारे में एलआईसी के उत्तर -मध्य बीमा कर्मचारी फेडरेशन के पदाधिकारी पुलक रंजन चौधरी कहते हैं, "आर्थिक दृष्टिकोण से तत्कालीन सरकार का ये निर्णय देश की अर्थव्यवस्था के लिए वरदान साबित हुआ और एलआईसी सरकार के लिए कल्पवृक्ष बन गयी। वर्ष 1957 से साल 2002 के मध्य एलआईसी ने भारत सरकार को 3055.32 करोड़ और वर्ष 2003 से लेकर 2019 तक एलआईसी ऑफ इंडिया ने भारत सरकार को लाभांश के रूप में 26005.38 करोड़ रुपए दिये। सरकार द्वारा एलआईसी ऑफ इण्डिया को "सॉवरेन गारंटी " दी गयी जिसका उपयोग एलआईसी ने कभी नहीं किया और विषम स्थितियों में भी बीमाधारकों के हितों की रक्षा करते हुए काम कर रही है।"

सॉवरेन गारंटी का मतलब होता है कि अगर एलआईसी किसी भी वजह से दिवालिया भी हो जाती है तो आपको पॉलिसी की अवधि पूरी होने या क्‍लेम का सारा पैसा भारत सरकार देगी।

"सभी देशी-विदेशी बीमा कंपनियों को भारतीय जीवन बीमा निगम में समाहित कर दिया गया और इन बीमा कंपनियों की समस्त देनदारियां और संपत्तिया भारतीय जीवन बीमा निगम को दे दी गयी। गठन के समय एलआईसी को संपत्तियों की अपेक्षा देनदारियां ज्यादा मिली थी। गठन के समय भारत सरकार ने पांच करोड़ "फेडअप कैपिटल" के रूप में भारतीय जीवन बीमा निगम में दिए गये।" रंजन चौधरी उत्तर प्रदेश के लखनऊ में ट्रांसगोमती दफ्तर में तैनात हैं।

एलआईसी अब तक एफडीआई से भी असरहीन रही है। पुलक रंजन चौधरी आगे कहते हैं, "साल 1999 में केंद्र सरकार ने निजी बीमा कंपनियों के लिए भारतीय बाजार के दरवाजे खोल दिए लेकिन कड़ी प्रतिस्पर्धा के बावजूद एलआईसी ऑफ इंडिया ने बाजार पर अपना दबदबा कायम रखा और आज भी एलआईसी का बीमा बाजार पर 76.28% पर कब्जा बनाये हुए हैं।" पुलक रंजन आगे बताते हैं।

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अगर संपत्ति और दायित्यों के आधार पर देखा जाए तो एलआईसी देश की सबसे बड़ी कंपनी है। एलआईसी के पास 30 करोड़ से ज्यादा बीमाधारक हैं और बीस लाख से ज्यादा अभिकर्ता, ये संख्या ऑस्ट्रेलिया जैसे देश की आबादी से ज्यादा है। देशभर में एलआईसी की 2,048 शाखाएं हैं।

"आईपीओ लाने का एक सीधा सा मतलब होता है कि उक्त कंपनी के पास नकदी की कमी है। आईपीओ के माध्यम से पैसे जुटाने का लक्ष्य होता है, लेकिन एलआईसी के पास नकदी की कोई कमी नहीं है फिर आईपीओ लाने का मकसद क्या है" पुलक रंजन कहते हैं।

पुलक जानकारी साझा करते हुए बताते हैं कि एलआईसी फायदे में है और पारदर्शिता से काम कर रही है। पुलवामा हमले में जब देश के जवान शहीद हुए तो एलआईसी ने अपने नियमों में बदलाव करते हुए दूसरे दिन ही क्लेम दे दिया। केदारनाथ आपदा के समय भी नियम में बदलाव किया और पीड़ित परिवारों को बिना शर्त भुगतान किया। कश्मीर, केरल, चेन्नई में बाढ़ के दौरान भी एलआईसी ने बीमा नियमों में छुट देते हुए पीड़ित परिवारों की मदद की।

अब तक संकटमोचक रही है एलआईसी

एलआईसी ने अब तक इक्कीस 21,4000 हजार करोड़ रुपए सरकारी क्षेत्र में निवेश किया है। पंचवर्षीय योजनाओं में साल 2012 से 2017 के बीच एलआईसी ने 17 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया है और वर्तमान पंचवर्षीय योजना साल 2017 से 2022 के बीच इसमें एलआईसी अब तक 10 लाख करोड़ रुपए दे चुकी है। साल 2022 तक दस लाख करोड़ रुपए और देने का लक्ष्य है। रेलवे को संकट से उबारने के लिए एलआईसी ने एक लाख पचास हजार करोड़ रुपए दिया। आज भी जब कोई सरकारी कंपनी डूबने लगती है तो एलआईसी उसके लिए बेल आउट पैकेज देती है। इस साल भी एलआईसी ने 2,611 करोड़ रुपए, सरकार को लाभांश के रूप में दिए हैं।

"सिर्फ 60 हजार करोड़ रुपए जुटाने के लिए सरकार एलआईसी का विनिवेश करना चाहती है। इससे एलआईसी पर बीमाधारको का भरोसा घटेगा। एलआईसी तो बीमा धारकों के पैसे की कस्टोडियन है। बिना बीमाधारक की अनुमति के उनका पैसा कैसे शेयर मार्केट में लगाया जा सकता है? सरकार को स्पष्ट करना चाहिए की सरकार आखिर एलआईसी से क्या चाहती है?" पुलक रंजन कहते हैं।

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उत्तर-मध्य बीमा कर्मचारी फेडरेशन के महामंत्री राजीव निगम कहते हैं, "सरकार की गलत नीतियों के चलते जो अर्थव्यवस्था का कचूमर निकला है उसकी भरपाई करने के लिए सरकार एलआईसी के पैसे का दोहन कर रही है। सरकार कॉर्पोरेट घराने को बराबर छूट दे रही है। एक लाख पैतालीस हजार करोड़ रुपए सरकार ने कॉर्पोरेट घराने का माफ कर दिया। 1,76000 करोड़ रुपए सरकार ने रिजर्व बैंक से ले लिया। सरकार कहती है की जीएसटी से टैक्स कलेक्शन बढ़ा है। फेडरेशन का जो पहला विरोध है वह इसी बात को लेकर है। सरकार श्वेत पत्र जारी करके बताये कि आखिर ये पैसा कहां चला गये।"

"हमने 4 फरवरी को जो एक घंटे का कार्य बहिष्कार किया वह प्रभावशाली रहा है। अब हम विरोध के लिए जन जागरण अभियान शुरू करेंगे और मानव श्रृंखला का निर्माण करेंगे। हमारी लड़ाई जारी रहेगी।" राजीव निगम कहते हैं।

  

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