मोदी सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब में पेश हुए तीन बिलों में आगे क्या होगा ? कानून बनने की राह में कहां-कहां हैं रोड़े?
केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब विधानसभा में 20 अक्टूबर को कैप्टन अमरिंदर सरकार द्वारा पेश बिलों के हिसाब से अगर किसी व्यापारी ने न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे किसान की फसल खरीदी तो उसे तीन साल की कैद होगी।
Kushal Mishra 20 Oct 2020 10:18 AM GMT
एमएसपी (MSP) से कम कीमत में खरीद पर तीन साल की सजा और कृषि उपज की जमाखोरी को रोकने के प्रावधानों के साथ पंजाब सरकार के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने आज विधानसभा में केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ तीन संशोधन बिल पेश किये।
पंजाब में आए इन बिलों में से एक में मंडियों के बाहर किसानों से उपज खरीद में कोई टैक्स न वसूले जाने के प्रावधान को निष्प्रभावी बनाने के लिए पंजाब सरकार ने अपने बिल में कहा है कि राज्य में कोई भी व्यापारी और कंपनी किसानों से एमएसपी से कम कीमत पर धान और गेहूं नहीं खरीदेगा और उल्लंघन करने पर तीन साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ विधानसभा में बिल पेश करने वाला पंजाब पहला राज्य है। ऐसे में सवाल यह है कि मोदी सरकार के कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब में पेश हुए इन तीन बिलों में आगे क्या होगा और कानून बनने की राह में कहां-कहां रोड़े आयेंगे?
केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब सरकार ने जो तीन बिल विधानसभा में पेश किये हैं, उनमें मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा (विशेष प्रावधान और पंजाब संशोधन) विधेयक, 2020, किसानों का उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (पदोन्नति और सुविधा) (विशेष प्रावधान और पंजाब संशोधन) विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु (विशेष प्रावधान और पंजाब संशोधन) विधेयक, 2020 शामिल हैं।
Protecting the interests of our farmers and the people of Punjab is paramount. It is and must be above everything else. Will not bow to any injustice to Punjab, even if it means having to quit. pic.twitter.com/NLfiYgbGAC
— Capt.Amarinder Singh (@capt_amarinder) October 20, 2020
विधानसभा में यह बिल पेश करते हुए मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा, "हमारे किसानों और पंजाब के लोगों के हितों की रक्षा करना सर्वोपरि है। यह बाकी सब से ऊपर होना चाहिए। पंजाब किसानों के साथ किसी भी अन्याय के लिए नहीं झुकेगा, भले ही मुझे पद छोड़ना पड़े।"
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा, "मैं इस्तीफा देने से नहीं डरता। मुझे अपनी सरकार के बर्खास्त होने का डर नहीं है। लेकिन मैं किसानों को बर्बाद नहीं होने दूंगा, हम आपके (किसानों के) साथ खड़े हैं, अब हमारे साथ खड़े होने की आपकी बारी है। जब तक कैप्टेन अमरिंदर सिंह की सरकार है, केंद्रीय किसान बिल पंजाब में लागू नहीं होंगे।"
दूसरी और संविधान से जुड़े विशेषज्ञों के मुताबिक, पंजाब विधानसभा से बिल पास होने के बाद हर बिल में राज्यपाल के हस्ताक्षर होने जरूरी हैं। ऐसे में अगर वो बिल पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे, तो मामला सुप्रीम कोर्ट जा सकता है। केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब में सबसे ज्यादा विरोध है। पंजाब की मुख्य पार्टी और केंद्र की एनडीए सरकार में शामिल रही शिरोमणी अकाली दल की हरशिमरत कौर ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। पंजाब में कांग्रेस के अलावा दूसरे दल भी केंद्र सरकार के खिलाफ आवाज़ बुलंद किए हैं। पंजाब 30 से ज्यादा किसान संगठन और विपक्ष कैप्टन अमरिंदर सरकार से सदन का विशेष सदन बुलाने की मांग कर रहा था, जिसके बाद 19 और 20 अक्टूबर को दो दिवसीय सत्र का आयोजन किया गया था।
[Live] From Vidhan Sabha for an important Session to protect the farmers of Punjab from Anti-Farmer laws of the Central Government.
— Capt.Amarinder Singh (@capt_amarinder) October 20, 2020
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पंजाब विधानसभा में आज राज्य सरकार द्वारा पेश बिलों के हिसाब से अगर किसी व्यापारी ने न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे किसान की फसल खरीदी तो उसे तीन साल की कैद होगी, और अगर किसी व्यापारी/कंपनी ने न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का कॉन्ट्रैक्ट किया तो उसे भी तीन साल की कैद होगी। मतलब, एमएसपी एक कानूनी प्रावधान होगा।
इसके अलावा एपीएमसी को लेकर बने कृषि कानून के विरोध में पंजाब का एपीएमसी एक्ट पूरे राज्य में लागू होगा। राज्य सरकार मंडियों के बाहर होने वाले व्यापार या ई-ट्रेडिंग पर शुल्क लगा सकती है। विवाद की स्थिति में किसानों को कोर्ट जाने का अधिकार होगा। केंद्र के कानून में किसानों को सिर्फ एसडीएम या कलेक्टर के पास जाने का प्रावधान है। साथ ही आवश्यक वस्तु के कानून में संशोधन के साथ जमाखोरी और कालाबाजारी पर अंकुश लगाने के लिए राज्य सरकार को स्टॉक लिमिट लगाने का अधिकार होगा।
इसके अलावा पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बदल ने भी विधानसभा सत्र के दौरान सिविल प्रक्रिया सहिंता, 1908 में संशोधन के लिए एक विधेयक पेश किया। चौथा विधेयक किसानों को उनकी 2.5 एकड़ से अधिक भूमि की कुर्की से राहत प्रदान करता है। पंजाब सरकार इस विधेयक के माध्यम से छोटे किसानों को भूमि की डिक्री से पूरी छूट देने की मांग कर रही है।
भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) के प्रमुख बलबीर सिंह राजेवाल 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "आज पंजाब विधानसभा में जो सभी पार्टियों ने मिलकर किया है, किसानों के मुद्दे पर बिल पास किए हैं, उससे किसान आंदोलन को बल मिलेगा। गेंद अब केंद्र के पाले में है। खेती राज्य का विषय है और राज्य ने अपना काम किया। लेकिन पंजाब विधानसभा में जो बिल पास हुए, उस पर विस्तृत कमेंट मैं उसे पढ़ने के बाद कर पाऊंगा क्योंकि इसमें कई फैक्टर काम करते हैं।"
The three bills introduced in the Punjab Vidhan Sabha namely Farmers Produce Trade & Commerce Promotion & Facilitation Bill, Essential Commodities Bill & Farmers Agreement on Price Assurance & Farm Services Bill aim to protect the farmers of Punjab. #KisaniDaRakha
— Government of Punjab (@PunjabGovtIndia) October 20, 2020
देश के वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह कहते हैं, पंजाब विधानसभा में जो हुआ उसमे आगे क्या होगा कहना जल्दबाजी होगी लेकिन पंजाब को जो संदेश देना था वो चला गया है। आगे दूसरे राज्य भी ऐसा कर सकते हैं, उन पर दबाव बनेगा।"
केंद्रीय कृषि कानूनों को लेकर गाँव कनेक्शन के रूरल इनसाइट विंग ने 16 राज्यों में 5,022 किसानों से आमने-सामने बातचीत कर 3 से 9 अक्टूबर के बीच रैपिड सर्वे किया। इस सर्वे में 72 फीसदी लघु और सीमांत किसान शामिल रहे, जबकि 28 फीसदी मध्यम और बड़े किसान रहे। गाँव कनेक्शन सर्वे में सामने आया कि केंद्र सरकार के इन कृषि कानूनों को लेकर अन्य राज्यों की अपेक्षा पंजाब और हरियाणा के किसान कहीं ज्यादा डरे हुए हैं।
इस सर्वे में जब किसानों से सवाल पूछा गया कि क्या आप तीनों पारित हुए केंद्रीय किसान कानून बिलों का समर्थन करते हैं? इसमें उत्तर पश्चिम से जुड़े राज्य (पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश) के किसानों ने इन बिलों का सबसे ज्यादा विरोध किया। सर्वे में इन राज्यों से सामने आया कि 77 % किसान इन केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में थे, जबकि मात्र 23 फीसदी किसानों ने समर्थन किया। सर्वे से संबंधित विस्तृत रिपोर्ट The Rural Report-2: THE INDIAN FARMER'S PERCEPTION OF THE NEW AGRI BILLS गांव कनेक्शन की इनसाइट वेबसाइट www.ruraldata.in पर पढ़ सकेंगे।
दूसरी ओर सर्वे में जब किसानों से पूछा गया कि क्या आपको लगता है कि नए कृषि बिलों के कारण देश में मंडी प्रणाली/एपीएमसी ध्वस्त हो जायेगी? इस पर भी उत्तर पश्चिम राज्यों के किसान ही सबसे ज्यादा विरोध करते नजर आये। जवाब में पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के 71.5 फीसदी किसानों ने कहा 'हाँ', मंडी प्रणाली/एपीएमसी ध्वस्त हो जायेगी, जबकि 13.2 फीसदी किसान इन बिलों का समर्थन करते नजर आये। दूसरी ओर 15.3 फीसदी ऐसे किसान थे जो न पक्ष में थे, न विपक्ष में।
पंजाब के पटियाला जिले के बेहरू गांव के 80 वर्षीय संतराम सिंह अखिल भारतीय किसान संघ के सदस्य हैं और देश में तीन नए कृषि कानूनों के लागू होने के कारण केंद्र सरकार द्वारा ठगा हुआ महसूस करते हैं।
संतराम 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "हमारे गाँव का हर व्यक्ति तीनों कानूनों का विरोध करता है। हम चाहते हैं कि सरकार या तो उन कानूनों को वापस ले या उन कानूनों में न्यूनतम समर्थन मूल्य और मंडियों की रक्षा के लिए प्रावधान करे। जब तक ऐसा नहीं किया जाता है, हम विरोध प्रदर्शन बंद नहीं करेंगे।"
पंजाब एक कृषि प्रधान राज्य है और यहाँ विकास का कोई अन्य स्रोत नहीं है, हमारे पास ओडिशा और झारखंड जैसे प्रमुख खनन क्षेत्र नहीं हैं, न ही हम उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और केरल जैसे राज्यों की तरह पर्यटन को आकर्षित करते हैं। पंजाब में हम पूरी तरह से खेती पर निर्भर हैं।
संतराम सिंह, सदस्य, अखिल भारतीय किसान संघ
"पंजाब एक कृषि प्रधान राज्य है और यहाँ विकास का कोई अन्य स्रोत नहीं है, हमारे पास ओडिशा और झारखंड जैसे प्रमुख खनन क्षेत्र नहीं हैं, न ही हम उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और केरल जैसे राज्यों की तरह पर्यटन को आकर्षित करते हैं। पंजाब में हम पूरी तरह से खेती पर निर्भर हैं, " सिंह ने कहा।
फिलहाल पंजाब विधानसभा में पेश हुए इन बिलों को कानूनी रूप देने में कहाँ-कहाँ कहाँ-कहाँ मुश्किलें आ सकती हैं, इस बारे में हैदराबाद में नालसार कानून विश्वविद्यालय के कुलपति फैजान मुस्तफा से 'गाँव कनेक्शन' ने बातचीत की।
फैजान मुस्तफा बताते हैं, "कृषि हमेशा से राज्य का विषय रहा है और पंजाब की विधानसभा को भी यह अधिकार है। बेहतर यह होता कि केंद्र सरकार कानून बनाने से पहले संशोधन करती, जैसा कि स्वामीनाथन कमीशन में भी सिफारिश की गयी है और फिर कानून बनाया जाता, नतीजा यह हुआ कि केंद्र के कानून की संवैधानिकता को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी है।"
"अब राज्य स्तर पर केंद्र के कानून के खिलाफ राज्यपाल अगर हस्ताक्षर नहीं करते हैं, तो पंजाब में कानून बनने की दिशा में यह मामला अंत में सुप्रीम कोर्ट जाएगा और फिर सुप्रीम कोर्ट ही तय करेगी कि केंद्र का कानून पंजाब के किसानों के लिए सही है या नहीं," फैजान मुस्तफा बताते हैं।
दूसरी ओर राजनीतिक विश्लेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार प्रेम कान्त तिवारी 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "केंद्र के कानून के खिलाफ अगर कोई राज्य सरकार जाती है तो विवादास्पद स्थिति होनी स्वाभाविक है। ऐसे में अगर राज्यपाल बिल पर हस्ताक्षर नहीं करते हैं तो राज्य में संवैधानिक संकट की स्थिति भी पैदा हो सकती है।"
"ऐसी स्थिति में राज्यपाल के प्रयासों से यह संभव है कि मुख्यमंत्री और केंद्र का मंत्रिमंडल बैठकर इस पर बातचीत करें और कोई हल निकालें, दूसरा रास्ता यह है कि पंजाब सरकार सुप्रीम कोर्ट जा सकती है। हालाँकि कानून बनने की सम्भावना कम है क्योंकिं केंद्रीय कानूनों के उल्लंघन में राज्य कोई नया कानून बनाये, यह विवादस्पद है, इसलिए कोई बीच का रास्ता ही निकाला जा सकता है," प्रेम शंकर तिवारी बताते हैं।
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