विशेष: जब चौधरी चरण सिंह ने एक झटके में 27 हज़ार पटवारियों का इस्तीफा स्वीकार कर लिया था

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विशेष: जब चौधरी चरण सिंह ने एक झटके में 27 हज़ार पटवारियों का इस्तीफा स्वीकार कर लिया थाचौधरी चरण सिंह।

पढ़िए उस नेता की कहानी जिसने कभी कोई चुनाव नहीं हारा, जिन्हें किसानों का मसीहा कहा जाता था...

बात वर्ष 1952 की है, जब 'जमींदारी उन्‍मूलन विधेयक' पारित किया गया, जिसके कारण उत्तर प्रदेश के पटवारी प्रदर्शन कर रहे थे और 27 हज़ार पटवारियों ने एक साथ इस्तीफा दे दिया था। चौधरी चरण सिंह भी ज़िद्दी स्वभाव के थे उन्होंने किसानों के हितों के सामने किसी की नहीं सुनी। किसानों को पटवारी के आतंक से आजाद दिलाने का श्रेय चरण सिंह को ही जाता है। बाद में उन्‍होंने ही खुद नए पटवारी नियुक्‍त किए, जिन्हें अब लेखपाल कहा जाता है। इसमें 18 परसेंट सीट हरिजनों के लिए रिजर्व थी।

1952 में जब डॉक्टर सम्पूर्णानंद मुख्यमंत्री थे, उस समय चरण सिंह को राजस्व तथा कृषि विभाग का दायित्व मिला। इसी समय उन्होंने करीब 27 हज़ार पटवारियों का इस्तीफा स्वीकार कर लिया था।

कभी चुनाव नहीं हारे थे चौधरी चरण सिंह

चरण सिंह को 'किसानों का मसीहा' कहा जाता था। उन्‍होंने पूरे उत्तर प्रदेश के किसानों से मिलकर उनकी हरसंभव मदद का प्रयास किया। किसानों के प्रति प्रेम का ही नतीजा था कि उनको किसी भी चुनाव में हार का मुंह नहीं देखना पड़ा।

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चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर, 1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले के नूरपुर गाँव में एक किसान परिवार में हुआ था। चरण सिंह के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1937 में हुई जब कांग्रेस की तरफ से उन्‍होंने विधानसभा चुनाव लड़ा और जीता भी। उन्होंने छपरौली विधानसभा सीट से 9 साल तक क्षेत्रीय जनता का कुशलतापूर्वक प्रतिनिधित्व किया। चौधरी चरण सिंह का राजनीतिक भविष्य 1951 में बनना आरम्भ हो गया था, जब इन्हें उत्तर प्रदेश में कैबिनेट मंत्री का पद प्राप्त हुआ। उन्होंने न्याय एवं सूचना विभाग सम्भाला। 1960 में चंद्रभानु गुप्ता की सरकार में उन्हें गृह तथा कृषि मंत्रालय दिया गया और वह उत्तर प्रदेश की जनता के मध्य अत्यन्त लोकप्रिय नेता बन गए।

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चरण सिंह ने पंडित जवाहर लाल नेहरू से मनमुटाव के चलते सन 1967 में कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और एक नए राजनैतिक दल 'भारतीय क्रांति दल' की स्थापना की। राज नारायण और राम मनोहर लोहिया जैसे नेताओं की मदद से उन्होंने उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई और 3 अप्रैल 1967 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 17 अप्रैल 1968 को उन्होंने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। मध्यावधि चुनाव में उन्होंने अच्छी सफलता मिली और दोबारा 17 फ़रवरी 1970 के वे मुख्यमंत्री बने। उसके बाद वो केन्द्र सरकार में गृहमंत्री बने तो उन्होंने मंडल और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की। 1979 में वित्त मंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना की। 28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस (यू) के सहयोग से प्रधानमंत्री बने।

चौधरी चरण सिंह एक लेखक

चौधरी चरण सिंह एक राजनेता के साथ ही एक कुशल लेखक भी थे और अंग्रेज़ी भाषा पर अच्छी पकड़़ रखते थे। उन्होंने 'अबॉलिशन ऑफ़ ज़मींदारी', 'लिजेण्ड प्रोपराइटरशिप' और 'इंडियास पॉवर्टी एण्ड इट्स सोल्यूशंस' नामक पुस्तकें भी लिखीं।

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