पंजाब-हरियाणा नहीं, MSP का लाभ लेने के मामले में इन प्रदेशों के किसान सबसे आगे
दिल्ली में कृषि कानूनों का विरोध करने वाले किसान सबसे ज्यादा पंजाब और हरियाणा से ही क्यों है? इसके जवाब में तर्क दिया जाता है कि इन राज्यों के किसानों को सबसे ज्यादा एमएसपी का लाभ मिलता है, लेकिन ये पूरा सच नहीं है। विशेष सीरीज 'MSP का मायाजाल' की पहली खबर में जानिये किस राज्य के सबसे ज्यादा किसानों को एमएसपी का लाभ मिलता है।
Mithilesh Dhar 16 Jun 2021 11:30 AM GMT

दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन के बारे में अक्सर एक सवाल पूछा जाता है कि कृषि क़ानूनों का विरोध करने वाले ज़्यादातर किसान पंजाब और हरियाणा के ही क्यों हैं? तो जवाब मिलता है क्योंकि वहां के किसानों को सरकारी ख़रीद यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ सबसे ज्यादा मिलता है, लेकिन यह पूरा सच नहीं है। सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो पंजाब और हरियाणा में धान और गेहूं की ख़रीद एमएसपी पर होती तो सबसे ज्यादा है लेकिन अगर लाभार्थी किसानों की संख्या पर नज़र डालें तो एमएसपी का लाभ पाने वाले किसानों में सबसे ज्यादा तेलंगाना और मध्य प्रदेश के किसान हैं।
न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी वह मूल्य है जिस पर सरकार किसानों से उनकी फसल ख़रीदती है। ये व्यवस्था किसानों को खुले बाज़ार में फ़सलों की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव से बचाने के लिए लागू की गई है। इसे सरल भाषा में ऐसे समझिए कि अगर बाजार में फसलों की कीमत गिर भी जाए तब भी सरकार तय एमएसपी पर ही किसानों से उनकी फसल ख़रीदती है। देशभर में किसी भी फसल की एमएसपी एक ही होती है और भारत सरकार के कृषि मंत्रालय की ओर से कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की अनुशंसाओं के आधार पर एमएसपी तय किया जाता है।
फिलहाल इस व्यवस्था के तहत 23 फसलों की ख़रीद हो रही है, जिनमें गेहूं, धान, ज्वार, कपास, बाजरा, मक्का, मूंग, मूंगफली, सोयाबीन और तिल जैसी फसलें हैं। सबसे ज्यादा ख़रीद धान और गेहूं की होती है। नीति आयोग की जनवरी 2016 की एक रिपोर्ट यह भी कहती है कि महज़ छह फीसदी किसानों को ही एमएसपी का लाभ मिलता है, इन 6 फीसदी किसानों में क्या पंजाब और हरियाणा के किसान ही सबसे ज्यादा हैं?
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पिछले साल 18 सितंबर को राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय में राज्य मंत्री राव साहेब दादाराव दानवे ने बताया कि खरीफ फसली वर्ष 2019-20 में 9 सितंबर 2020 तक देश के 1.21 करोड़ किसानों से एमससपी पर धान की ख़रीद हुई जबकि रबी सीज़न वर्ष 2020-21 में 43.35 लाख किसानों से एमएसपी पर गेहूं की ख़रीद की गई।
अब यह भी देखते हैं कि इस दौरान किन राज्यों के किसानों से सबसे ज्यादा एमएसपी पर धान और गेहूं ख़रीदा गया। उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की इस रिपोर्ट के अनुसार खरीफ सीज़न 2019-20 में सबसे ज्यादा तेलंगाना के 1,988,630 किसानों से एमएसपी पर धान की ख़रीद हुई।
इसके बाद दूसरे नंबर हरियाणा रहा जहां के 1,891,622 किसानों ने सरकारी दर पर अपना धान बेचा। तीसरे नंबर पर छत्तीसगढ़ रहा जहां के 1,838,593 किसानों ने एमएसपी पर धान बेचा, जबकि ओडिशा के 1,161,796 और पंजाब के 1,125,238 किसानों के धान की ख़रीद एमएसपी पर हुई। मतलब अगर संख्या की बात करें तो एमएसपी पर धान बेचने के मामले में पंजाब के किसान पांचवें नंबर पर रहे।
KMS (Kharif Market Season)
अब गेहूं की भी बात कर लेते हैं। रबी सीजन 2020-21 में मध्य प्रदेश के सबसे ज्यादा 1,593,793 किसानों ने अपना गेहूं एमएसपी पर बेचा। पंजाब में ऐसे किसानों की संख्या 1,049,982 और हरियाणा में 780,962 रही। उत्तर प्रदेश के 663,810 और राजस्थान के 219,873 किसानों ने गेहूं सरकारी दर बेचा।
ये तो एक साल के आंकड़े हैं। 2015-16 से 2019-20 के खरीफ सीजन में सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ के 16,862,309 किसानों ने अपना धान एमएसपी पर बेचा। इस मामले में पंजाब (15,851,950) दूसरे, तेलंगाना तीसरे (6,164,444) ओडिशा चौथे (5,150,594) और हरियाणा (4,173,403) पांचवें नंबर पर रहा।
इसी तरह 2016-17 से 2020-21 रबी सीज़न के बीच सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश के 4,785,350 किसानों ने गेहूं सरकारी दर पर बेचा, जबकि पंजाब के 4,456,516 और हरियाणा के 3,730,443 किसानों को गेहूं बेचने पर एमएसपी का लाभ मिला। इस मामले में उत्तर प्रदेश के किसान चौथे (3,450,431) और राजस्थान के किसान (595,123) पांचवें नंबर पर रहे।
RMS (Rabi Market Season)
इन आंकड़ों को देखकर यह तो स्पष्ट है कि एमएसपी का लाभ लेने वाले सबसे ज्यादा किसान पंजाब, हरियाणा को छोड़ दूसरे प्रदेशों के हैं। फिर इस संदर्भ में इन दोनों राज्यों का नाम सबसे आगे क्यों आता है?
आमतौर पर माना जाता है कि सरकारी दर पर धान और गेहूं की सबसे ज्यादा ख़रीद पंजाब और हरियाणा से होती लेकिन धान ख़रीद के मामले में तेलंगाना सबसे आगे है।
वर्ष 2019-20 तेलंगाना में 76.78 लाख टन धान की पैदावार हुई जिसमें से 97.08% (74.54 लाख टन) धान की ख़रीद एमएसपी पर हुई। पंजाब में पैदा हुए 118.23 लाख टन धान में से 91.99% (108.76 लाख टन) और हरियाणा में हुए 48.24 लाख टन धान के उत्पादन में से 89.20% (43.03 लाख टन) की ख़रीद सरकारी दर पर हुई।
कुल उत्पादन के मुकाबले उत्तर प्रदेश में वर्ष 2019-20 में 24.42%, मध्य प्रदेश में 36.20% और पश्चिम बंगाल में 10.59% धान की ख़रीद एमएसपी पर हुई।
2019-20 में धान उत्पादन के मामले में उत्तर प्रदेश, देश में सबसे आगे रहा। इसके बाद पश्चिम बंगाल दूसरे, पंजाब तीसरे, आंध्र प्रदेश चौथे और ओडिशा पांचवें नंबर पर रहा। इस लिस्ट में हरियाणा टॉप-10 में भी नहीं है, लेकिन सरकारी दर पर ख़रीद के मामले में बहुत आगे है।
ये तो रही धान की बात। अब एक नजर गेहूं के उत्पादन और खरीद पर भी डाल लेते हैं। वर्ष 2019-20 में पंजाब में 182.07 लाख टन गेहूं पैदा हुआ जिसमें से 69.83 फ़ीसदी यानी 127.14 लाख टन की ख़रीद एमएसपी पर हुई। मध्य प्रदेश में उत्पादन तो पंजाब से ज्यादा (185.83 लाख टन) था लेकिन ख़रीद हुई 69.91% (129.35 लाख टन) ही हुई। कुल उत्पादन की 61.28% ख़रीद के साथ हरियाणा इस मामले तीसरे नंबर पर, 21.04% ख़रीद के साथ राजस्थान चौथे, 11.15% ख़रीद के साथ उत्तर प्रदेश पांचवें नंबर पर रहा।
इसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि हरियाणा और पंजाब में पैदा होनी वाली उपज की ख़रीद ज्यादा हो रही है। फिर इस मामले में दूसरे प्रदेश पीछे क्यों हैं?
हमने यह देश के प्रख्यात खाद्य एवं निर्यात नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा से समझने की कोशिश की। वे मोहाली में रहते हैं और लंबे समय से पंजाब और हरियाणा के किसानों के बीच रह रहे हैं। वे बताते हैं, "रिपोर्ट कहती है कि देश में 6 फीसदी किसानों को MSP मिलता है 94 फ़ीसदी को नहीं मिलता। इन 6 फीसदी में पंजाब और हरियाणा के किसानों की संख्या ज्यादा है। पंजाब में 97 फीसदी के आसपास धान की सरकारी ख़रीद होती है और 75-80 फीसदी गेहूं की ख़रीद होती है। बिहार या उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में ये बहुत कम है। शरद पवार जब कृषि मंत्री थे उन्होंने सदन में कहा था कि 71 फीसदी लोगों को पता ही नहीं कि एमएसपी क्या है तो, जिन्हें एमएसपी पता ही नहीं, जिन्हें उसका फायदा ही नहीं मिला वो संघर्ष क्यों करेंगे। वे बेचारे खुले बाजार की दया पर आश्रित हैं। अगर सरकारों ने मार्केट का जाल फैलाया होता तो उन्हें भी एमएसपी का फायदा मिलता।"
पंजाब और हरियाणा की फसल की बिक्री एमएसपी पर सबसे ज्यादा इसलिए भी हो पाती है क्योंकि इन राज्यों की मंडी व्यवस्था दुरुस्त है। पंजाब में हर 5-6 किलोमीटर की दूरी पर कोई न कोई मंडी है। इंडियन एक्सप्रेस की इस ख़बर के मुताबिक पंजाब में करीब 1,850 ख़रीद केंद्र, 152 बड़ी मंडियां (अनाज मंडी) और 28,000 के आसपास रजिस्टर्ड आढ़ती हैं।
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इन मंडियों में 2-3 लाख मज़दूर ढुलाई, छनाई, पैकिंग आदि का काम करते हैं। ये सब मिलकर करीब 20 लाख किसानों से ख़रीद करते हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में 2,477 बड़ी एपीएमसी (कृषि उपज एवं बाजार समिति) हैं जबकि 4,843 उप एपीएमसी हैं। कृषि सुधारों के लिए यूपीए सरकार में बनाए गए स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक देश में 42,000 मंडियों की ज़रूरत है। किसान एक बार अपनी उपज (खासकर गेहूं धान) लेकर मंडी पहुंच गया तो उसकी फ़सल का एमएसपी पर बिकना तय है। लेकिन बाकी राज्यों में यह व्यवस्था कमज़ोर है।
यही कारण है कि यूपी-बिहार से सैकड़ों ट्रक धान औने-पौने दाम में ख़रीदकर पंजाब में बेचा जाता है। गांव कनेक्शन ने इस संबंध में विस्तृत रिपोर्ट की थी। बाहर से आने वाले धान को रोकने और हरियाणा के किसानों को लाभ देने के लिए हरियाणा सरकार ने मेरा फसल मेरा ब्योरा साफ्टवेयर लॉन्च किया था, जिसमें ज़मीन की डिटेल (खसरा खतौनी) देना अनिवार्य था। जिससे बाहर के लोग यहां धान न बेच सके, लेकिन पंजाब में ऐसा नहीं है। इसलिए यूपी बिहार से आए सैकड़ों ट्रक पंजाब में पकड़े जा चुके हैं और लोगों पर रिपोर्ट दर्ज की गई है।
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देश कई राज्यों में खरीफ विपणन सीज़न 2020-21 के तहत धान की ख़रीद हो रही है। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों को देखें तो 18 जनवरी 2021 तक 569.76 लाख मीट्रिक टन से अधिक धान की ख़रीद की जा चुकी है। इसमें अभी पंजाब की हिस्सेदारी 35.6%, उत्तर प्रदेश की 10.7%, छत्तीसगढ़ 10.4% और हरियाणा की हिस्सेदारी 9.8 फीसदी है। धान के दूसरे बड़े उत्पादक राज्य पश्चिम बंगाल और बिहार में भी धान की ख़रीद हो रही है लेकिन ये राज्य इस लिस्ट में भी नहीं हैं।
धान का एमएसपी (ग्रेड ए धान का 1,888 रुपए प्रति क्विंटल और अन्य धान के लिए 1,868 रुपए प्रति क्विंटल) आमतौर पर खुले बाजार की कीमत से अधिक होता है। वहीं गेहूं की एमएसपी 1,975 रुपए प्रति क्विंटल है।
इस बारे में ऑल इंडिया किसान सभा के पश्चिम बंगाल के सचिव अमल हालदार गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "यहां ग्रामीण क्षेत्रों के किसान सरकारी तौर पर धान ख़रीद प्रक्रिया के बारे में अवगत नहीं हैं। किसानों से धान खरीदने के प्रति राज्य सरकार सजग नहीं है। सबसे बड़ी वजह है कि बंगाल के अधिकतर क्षेत्रों में दलाल तंत्र हावी है। गांव-गांव और गली-गली में ऐसे बिचौलिए हैं जो किसानों से कम कीमत पर धान खरीदते हैं। इसी वजह से सरकारी तौर पर धान ख़रीद का आंकड़ा बेहद कम है।"
भारतीय जनता किसान मोर्चा की पश्चिम बंगाल की उपाध्यक्ष श्रीरूपा मित्रा भी यही बात कहती हैं, "पश्चिम बंगाल में धान ख़रीद के लिए सरकारी तंत्र से अधिक सिंडिकेट तंत्र सजग है। यह दलालों का एक समूह है जो किसानों को मंडियों तक पहुंचने नहीं देता हैं।"
पश्चिम बंगाल में धान खरीद के लिए कोई एजेंसी नियुक्त नहीं है। राज्य सरकार ने सेंट्रल परचेसिंग सेंटर (सीपीसी) की स्थापना की है जहां खाद्य विभाग के कर्मी प्रत्येक ब्लॉक में ख़रीद प्रक्रिया पूरी कराते हैं।
बिहार भी धान उत्पादन के मामले शीर्ष 10 राज्यों में शामिल है, लेकिन सरकारी दर पर ख़रीद के मामले बहुत पीछे है। बिहार से कुल उत्पादन का बमुश्किल 20% धान ही ख़रीदा जाता है। गया जिले के किसान कुंदन कुमार के पास अभी भी लगभग 100 क्विंटल धान रखा है। वे दो बार मंडी गए लेकिन उन्हें यह कहकर लौटा दिया गया कि अभी धान में नमी ज्यादा है। अंत में उन्होंने 1,250 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से धान बाहर व्यापारियों को बेच दिया।
बिहार सरकार हर वर्ष 30 लाख मीट्रिक टन चावल ख़रीदने का लक्ष्य रखती है उसके बावजूद भी सरकार पिछले पांच साल में एक बार भी इस लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाई है। राज्य में 2014-15 में 19.01 लाख टन, 2015-16 में 18.23 लाख टन 2016-17 में 18.42 लाख टन 2017-18 में 11.84 लाख टन, 2018-19 में 14.16 लाख टन, 2019-20 में 20.01 लाख टन चावल ख़रीद पाई। और इस साल तो राज्य सरकार ने ख़रीद की समय सीमा को भी दो महीने कम कर दिया है जबकि इस साल तय लक्ष्य की अपेक्षा 20-22% ही ख़रीद हो पाई है।
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