"यहां इंजीनियर का वेतन सरकारी चपरासी से भी कम है"

संविदा प्रथा,आउट सोर्सिंग ,ठेका प्रथा देश की युवा पीढ़ी के लिए कैंसर की तरह है देश के डेढ़ करोड़ संविदाकर्मी शोषण का शिकार हैं। आने वाली पीढ़ी भी इसका शिकार होगी : ए पी सिंह

Ashwani Kumar DwivediAshwani Kumar Dwivedi   4 April 2019 1:15 PM GMT

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यहां इंजीनियर का वेतन सरकारी चपरासी से भी कम है

लखनऊ। "देश में लोकसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है। कांग्रेस अपना चुनावी मेनिफिस्टों ला चुकी है और अभी भाजपा का आना बाकी है। देश भर में एक करोड़ से अधिक संविदाकर्मियों की देश के दोनों बड़े राजनीतिक दलों से काफी अपेक्षाए हैं और ये अपेक्षाएं स्वयं इन दलों ने बढाई है। कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका वाड्रा गाँधी ने उत्तर प्रदेश के रोजगार सेवक, आशाकर्मी, शिक्षामित्र, अनुदेशक आदि संगठनों की संविदा की समस्याएं कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र में शामिल करने की बात कही थी और यूपी के लिए विशेष घोषणा-पत्र बनवाने का आश्वासन दिया था। फ़िलहाल अभी कांग्रेस के मूल घोषणा पत्र में संविदाकर्मियों को कोई राहत मिलती नही दिख रही हैं।" ये कहना है अखिल भारतीय संविदा कर्मचारी संगठन के राष्ट्रीय प्रवक्ता इंजीनियर एपी सिंह का।

कौन हैं ये संविदाकर्मी

आप आये दिन टीवी और समाचार पत्रों में संविदाकर्मियों द्वारा किये जा रहे धरना, प्रदर्शन और संघर्ष की खबरें देखते सुनते हैं। पर क्या आप जानते हैं कि ये संविदाकर्मी हैं कौन ? गांव कनेक्शन के दफ्तर आये इंजीनियर एपी सिंह ने बताया कि वर्ष 1975 में कांग्रेस सरकार में संविदा पर भर्ती का कांसेप्ट लाया गया और बाद में उसे भाजपा सरकार में लागू किया गया। उत्तर प्रदेश में शिक्षामित्र, अनुदेशक, रोजगार सेवक, मनरेगा इंजीनियर्स, मनरेगा अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी, कॉलेज और विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वाले अतिथि शिक्षक, कस्तूरबा गाँधी विद्यालयों का पूरा स्टाफ, ग्राम्य विकास में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, कम्प्यूटर ऑपरेटर, रेलवे, लोक निर्माण विभाग, पोस्ट ऑफिस, बैंक, स्वास्थ्य, एनएचएम्, एनआरएलएम सहित देश के सभी सरकारी विभागों में आज 70 फीसदी लोग संविदा पर काम कर रहे हैं।

जानिए क्या है संविदाकर्मियों की समस्याए

अखिल भारतीय संविदा कर्मचारी संगठन के राष्ट्रीय प्रवक्ता इंजीनियर एपी सिंह

एपी सिंह बताते हैं कि संविदा पर सरकार जरूरत के मुताबिक सरकारी विभागों में एक तय समय के लिए नियुक्ति करती है, उसमें सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी है कि संविदाकर्मी को "समान काम, समान वेतन" दिया जाए लेकिन ऐसा होता नही है अगर कोई संविदा कर्मी 10 वर्ष 20 वर्ष की लंबी अवधि तक काम करता है तो उसका नियमतिकरण किया जाए जैसे पहले देश में किया भी गया है। साथ ही संविदा कर्मचारियों को बीमा, स्वास्थ्य बीमा, यात्रा भत्ता, छुट्टी जैसी सुविधाएं भी नहीं दी जाती हैं। शायद ही दुनिया में कोई ऐसा देश हो जहाँ बीटेक,एमटेक किये हुए इंजीनियर का वेतन सरकारी चपरासी से भी कम हो। मनरेगा इंजीनियर का वेतन आज भी सिर्फ 11 हजार मासिक है।

एपी सिंह आगे बताते हैं कि "हर विभाग में संविदा कर्मचारियों का शोषण होता है। रीन्यूअल के नाम पर भी संविदा कर्मचारियों का शोषण होता है। कार्य करने का समय सरकारी कर्मचारी की तरह निर्धारित नहीं है। रीन्यूअल के समय अधिकारियों की अपेक्षाओं को पूरा न करने पर रीन्यूअल नही होता जैसे अभी छत्तीसगढ़ में 153 मनरेगा कर्मचारियों का रीन्यूअल 11 साल नौकरी करने के बाद नहीं किया गया जिसे लेकर छत्तीसगढ़ का संगठन विरोध कर रहा है। इतने लंबे समय तक सेवाएं देने के बाद कर्मचारी कहाँ जाएं। यहाँ तक की जो संविदाकर्मियों को न्यूनतम मानदेय मिलता है वो भी समय से नहीं मिलता। सरकारी कर्मचारी संविदाकर्मी का शोषण करने में चूकते नही है, संविदाकर्मियों की कोई सुनने वाला नही है।

उत्तर प्रदेश में लंबे समय तक रोजगार सेवकों को न्यूनतम मानदेय पाने के लिए संघर्ष करना पड़ा। शिक्षामित्र की हालत किसी से छिपी नहीं है। 1200 शिक्षामित्र यूपी में व्यवस्था की भेट चढ़ गये। उनके परिवार सड़क पर हैं। हरियाणा में भी समस्याएं हैं। मध्य प्रदेश में भी लंबे समय से संविदाकर्मी अपने हक़ की लड़ाई को लेकर विरोध कर रहें हैं। कौशल विकास योजना पूरे देश में चल रही है। मध्य प्रदेश में जो संविदाकर्मी इसमें काम कर रहे थे उन्हें निकाल दिया गया और कौशल विकास योजना का नाम बदलकर वही योजना मध्य प्रदेश में चल रही हैं और नये संविदाकर्मी उसमे शामिल कर लिए गये।

सरकारी योजनाओं में काम से ज्यादा प्रचार-प्रसार पर खर्च

एपी सिंह बताते हैं कि अगर बात मनरेगा की करें तो इसमें 6 फीसदी कन्टेजेंसी मिलती है। इतने में मनरेगा कर्मचारियों का मानदेय आसानी से दिया जा सकता है लेकिन इसका प्रयोग प्रचार-प्रसार और यात्रा के नाम पर अधिकारी पहले करते हैं और जो रोजगार सेवक और मनरेगा के और कर्मचारी ग्राउंड पर जाकर काम कर रहे हैं उनका वेतन प्राथमिकता पर नही होता।

देश के युवाओ के लिए संविदा, आउटसोर्सिंग ठेका प्रथा कैंसर से ज्यादा खतरनाक

देश के पढ़े लिखे युवा रोजगार की कमी होने के चलते मजबूरी में संविदा पर आधारित नौकरी कर रहे हैं। रोजगार विकल्प न होने के चलते अब आउटसोर्सिंग और ठेका प्रथा पर भर्ती की जा रही है और लोग मजबूरी में इनमें जा रहे हैं और मैं प्रमाण तो नहीं दे सकता पर ये सच है कि इन नौकरी के लिए भी युवाओं को जुगाड़ और पैसे लगाने पड़ते हैं। ठेका प्रथा और आउटसोर्सिंग में बिचौलिए फायदा उठा रहे हैं और जो कर्मचारी काम कर रहे हैं उनकी जवाबदेही न तो सरकारी विभाग की होती है और न ही एजेंसिया इनके प्रति जवाबदेह होती हैं। देश के युवाओं की मजबूरी का फायदा सरकार और एजेंसिया दोनों उठा रही हैं।

भाजपा नेताओं ने दिखाया था संविदा मुक्त भारत का सपना

इंजीनियर एपी सिंह बताते हैं कि 3 अप्रैल 2016 की लखनऊ में हुई रैली में वर्तमान गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने वादा किया था की देश को सविदा मुक्त करेंगे। उत्तर प्रदेश के कर्मचारी संगठनों को मोहनलालगंज के सांसद कौशल किशोर ने लिखित आश्वासन दिया था लेकिन चुनाव होने के बाद बाद बात चुनावी वादे तक सिमट कर रह गयी।

संविदा कर्मचारी और सरकारी कर्मचारी समर्थित प्रत्याशी उतारेंगे

एपी सिंह का कहना है कि किसी भी राजनीतिक दल ने देश के करोड़ों युवाओ की समस्या पर ध्यान नही दिया जबकि इसके लिए सभी दलों से गुजारिश की गयी है ऐसे में लोकसभा चुनाव में संविदा संगठन और सरकारी कर्मचारी संगठन संयुक्त रूप से समर्थित प्रत्याशी लोकसभा चुनाव में उतारेंगे और उत्तर प्रदेश में हमने जतिन चौधरी को प्रत्याशी के रूप में उत्तर भी चुके हैं। और वर्तमान में जो संविदा कर्मचारी देश में संविदा पर काम कर रहे है उनके नियमतिकरण और देश को संविदा, आउट सोर्सिंग, ठेका प्रथा के खिलाफ सगठन काम कर रहा है और हम संगठन को निरंतर मजबूत कर रहे है।

     

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