आखिर अपने देश में मजबूरी में क्यों काम कर रहे हैं बुजुर्ग?

Kushal MishraKushal Mishra   29 Dec 2017 5:10 PM GMT

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आखिर अपने देश में मजबूरी में क्यों काम कर रहे हैं बुजुर्ग?फोटो साभार: इंटरनेट

नई दिल्ली। कहीं न कहीं हम अक्सर सुनते आते हैं कि उनके बेटे या बेटियों ने अपने माता-पिता को छोड़ दिया है। हालात यह हैं कि सामाजिक तानाबानों के बीच ऐसे बुजुर्गों की संख्या भारत में बढ़ रही है। ऐसे बुजुर्गों के लिए आसरा या तो वृद्धाश्रम बनता है या फिर कहीं और रहकर किसी तरह कोई काम कर अपना गुजर बसर करते हैं। हैरान करने वाले आंकड़े यह बताते हैं कि भारत में 42 प्रतिशत बुजुर्ग (60 साल से ऊपर) आज भी अपना भरण पोषण करने के लिए काम कर रहे हैं और इनमें 5 प्रतिशत ऐसे बुजुर्ग हैं, जिनको आय देश की औसत आय के आधी से भी कम है।

यह तस्वीर बहुत बड़ी है

जहां इस उम्र में आकर रोजगार के सीमित अवसरों के कारण बुजुर्ग आर्थिक रूप से अपनों पर निर्भर हो जाते हैं, वहीं भारत में बुजुर्गों के बीच काम कर रही संस्था ऐजवेल फाउंडेशन की ओर से हाल में कराए गए सर्वे में जो तथ्य सामने आए है, वे हैरान करने वाले हैं। सर्वे में सामने आया कि 59 प्रतिशत बुजुर्ग अपने जरूरत के खर्चों को पूरा करने के लिए काम करना चाहते हैं। बड़ी बात यह भी है कि कमाई का जरिया ढूंढ रहे इन बुजुर्गों की संख्या शहर की बजाए ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा है। इस सर्वे को 15,000 पुरुष और महिला बुजुर्गों से बातचीत कर पूरा किया गया। सर्वे में तीन चौथाई बुजुर्गों का यह भी कहना था कि अपने खर्चों को पूरा करने के लिए उन्हें ज्यादा पैसे की जरूरत है। बता दें कि भारत में 60 साल रिटायरमेंट की उम्र है।

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कहां से होगी कमाई

दूसरे देशों की तुलना में बुजुर्गों की सामाजिक सुरक्षा भारत में स्थिति काफी चिंताजनक है। न्यूजफिल्क्स वेबसाइट के अनुसार, अपने देश में 76 प्रतिशत लोगों को रिटायरमेंट के बाद पेंशन और ग्रेच्यूटी लाभ नहीं मिलता है। वहीं दूसरी तस्वीर यह है कि अपने देश में 83 प्रतिशत बुजुर्ग महिलाएं आर्थिक रूप से दूसरों पर निर्भर होती हैं। ऐजवेल फाउंडेशन के सर्वे में सामने आया है कि 40 प्रतिशत बुजुर्गों को सरकार की ओर से चलाई जा रही वित्तीय योजनाओं की जानकारी नहीं है।

बहू ने परेशान किया तो घर छोड़ दिया

“घर में मुझे बहू ने परेशान करना शुरू कर दिया। कई बार मैंने बेटे से भी शिकायत की, मगर कोई असर नहीं हुआ। अपने ही घर में बेइज्जती महसूस होने लगी तो घर छोड़ दिया और आज मैं वृद्ध आश्रम में रहता हूं। तीन साल में मेरा बेटा एक बार भी मिलने नहीं आया। जिस बेटे को पढ़ा-लिखा कर संपन्न बनाया, आज उसी ने मुझे घर से बेदखल कर दिया।“ यह कहना है उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कैंट क्षेत्र स्थित जीवन संध्या वृद्ध आश्रम में रहने वाले 72 वर्षीय बसंत अग्रवाल का। बसंत की तरह हमारे देश में यह तस्वीर है ऐसे बुजुर्गों की, जो आज न सिर्फ अपना भरण पोषण करने के लिए जूझ रहे हैं, बल्कि काम की तलाश में भी हैं।

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दादा, दादी को हमारी जरुरत है

जनगणना 2011 के अनुसार, भारत की आबादी में बुजुर्गों की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ रही है। भारत में 8.6 प्रतिशत यानि लगभग 10.4 करोड़ की उम्र 60 साल से ज्यादा है। वहीं जनगणना के आंकड़ों पर गौर करें तो बीते एक दशक के दौरान बुजुर्गों की बढ़ती दर, कुल आबादी दर से कहीं ज्यादा है। साल 1991-01 में जहां कुल आबादी 21.5 प्रतिशत थी, तो इनमें बुजुर्गों की आबादी 25.2 प्रतिशत रहीं। इसके अलावा 2001-11 में जहां कुल आबादी 17.7 प्रतिशत थी, इनमें बुजुर्गोँ की आबादी बढ़ी और यह 35.5 प्रतिशत तक पहुंची। ऐसी स्थिति में हमारे देश में बुजुर्गों की हिस्सेदारी बढ़ रही है और हमारे बुजुर्गों को हमारी जरुरत है।

आंकड़ों में देखिए बढ़ते उम्रदराज

साल कुल आबादी बुजुर्गों की आबादी

  • 1951-61 21.6 प्रतिशत 23.9 प्रतिशत
  • 1961-71 24.8 प्रतिशत 33.7 प्रतिशत
  • 1971-81 24.7 प्रतिशत 33 प्रतिशत
  • 1981-91 23.9 प्रतिशत 29.7 प्रतिशत
  • 1991-01 21.5 प्रतिशत 25.2 प्रतिशत
  • 2001-11 17.7 प्रतिशत 35.5 प्रतिशत

(बीते एक दशक के दौरान बुजुर्गों की बढ़ती दर, कुल आबादी दर से कहीं ज्यादा है।)

देखभाल की स्थिति अच्छी नहीं

देश में बुजुर्गों की देखभाल की स्थिति अच्छी नहीं है। आलम यह है कि 1.1 लाख बुजुर्ग अकेले रहते हैं, जबकि 29 प्रतिशत बुजुर्ग बीमार हैं और 9 प्रतिशत बुजुर्गों को शारीरिक असक्षमता का सामना करना पड़ रहा है। आलम यह है कि बुजुर्गों की देखभाल और सुरक्षा को मानक मानकर वर्ष 2015 में तैयार की गई ग्लोबल ऐज वॉच की 96 देशों की सूची में भारत का 71वां स्थान है।

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