जानिए क्‍यों असफल हो रहे किसान आंदोलन

देश में बीते दो साल में एक के बाद एक बड़े किसान आंदोलन देखने को मिले हैं। चाहे 2017 में मध्‍यप्रदेश के मंदसौर में हुआ किसान आंदोलन हो या फिर इसी साल हुए महाराष्ट्र के किसानों का बड़ा प्रदर्शन।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   8 Nov 2018 5:47 PM GMT

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जानिए क्‍यों असफल हो रहे किसान आंदोलन

लखनऊ। ''किसान बस मुद्दा बन कर रह गया है। असल में कोई चाहता ही नहीं कि इनकी समस्‍याएं दूर हों।'' बेनतीजा खत्‍म होते किसान आंदोलनों से खफा नितिन शिरोही ये बात कहते हैं। नितिन बिजनौर के चंदूपुरा गांव के किसान हैं। पिछले महीने हुई भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) की किसान यात्रा में भी वो शामिल हुए थे। नितिन ये सवाल भी करते हैं कि ''आखिर किसान आंदोलन असफल क्‍यों हो रहे हैं?''

देश में बीते दो साल में एक के बाद एक बड़े किसान आंदोलन देखने को मिले हैं। चाहे 2017 में मध्‍यप्रदेश के मंदसौर में हुआ किसान आंदोलन हो या फिर इसी साल हुए महाराष्ट्र के किसानों का बड़ा प्रदर्शन। इन आंदोलनों से किसान सत्‍ता के गलियारे में अपनी धमक देते रहे हैं। लेकिन लगातार असफल हो रहे आंदोलन और दिन पर दिन खराब होती किसानों की स्‍थ‍िति से अब किसान भी मायूस नजर आते हैं।

मध्‍य प्रदेश में भी किसान आंदोलनों का बहुत जोर रहा। राज्‍य के सिवनी जिले के केवलारी गांव के किसान शिवम बघेल कहते हैं, ''आंदोलनों से बस इतना हुआ कि विधानसभा चुनाव में किसानों की समस्‍याओं को मुद्दा बनाया गया है। इस वजह से सरकार पर दबाव भी दिख रहा है।'' शिवम मानते हैं कि किसान आंदोलनों से किसानों की समस्‍याएं हल नहीं हो रही। शिवम कहते हैं, ''सरकार पर बड़ी कंपनियों का दबाव है। इस लिए सरकार किसानों के लिए सोच नहीं पा रही।'' शिवम उदाहरण देते हैं कि ''शिवराज सरकार में फैसला आया था कि मक्‍के की बोली 1200 रुपए प्रति कुंटल से शुरू होगी, लेकिन कंपनियों के दबाव में इस फैसले को वापस ले लिया गया। इस वजह से मक्‍के की फसल की बोली 900 और 1000 से शुरू हुई।''

वहीं, मध्‍य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के पिपरिया रांकई गांव के किसान जोगेंद्र द्विवेदी कहते हैं, ''वर्तमान में जो भी आंदोलन हो रहे हैं बड़े किसान कर रहे हैं। गांव के बड़े लोगों ने कहा तो छोटा किसान ट्रैक्‍टर पर बैठकर जाता है, जब किसान खुद की बैलगाड़ी पर बैठ कर जाएगा तो आंदोलन सफल होंगे।''

''जब छोटा किसान आंदोलन करेगा, वो जान हथेली पर लेकर करेगा। अभी तो आंदोलन का फायदा बड़े किसानों को ही होता है। छोटा किसान तो सिर्फ उसमें शामिल होता है।''- किसान जोगेंद्र द्विवेदी

मध्‍य प्रदेश में किसान आंदोलनों से जुड़े रहे और कृषि मामलों के जानकार केदार शिरोही भी शिवम बघेल की बात का समर्थन करते हैं। केदार कहते हैं, ''किसान आंदोलन इस लिए असफल हैं कि सरकार में इच्‍छा शक्‍ति की कमी है। सरकार चाह दे तो किसानों की समस्‍याओं का हल हो सकता है, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा और किसानों की मांगे जस की तस बनी हुई है।'' केदार शिरोही किसानों के एकजुट न होने की बात पर जोर देते हुए कहते हैं, ''किसान आंदोलन इस लिए भी असफल हैं कि हम 1 हजार की सेना को मारने के लिए 500-500 की टुकड़ियों में आ रहे हैं। हम इकट्ठा नहीं आ रहे हैं।''

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अपनी समस्‍याओं को लेकर किसान आंदोलन की राह पर हैैं।

केदार कहते हैं, ''सरकार इस लिए भी किसान की सुध नहीं लेती क्‍योंकि उसका वोट बैंक फिक्‍स हो गया है। सरकार ने अर्बन (शहरी) तबके के लोगों को अपने साथ कर लिया है। रूरल (ग्रामीण) इलाके के गरीब तबके को अपने साथ कर लिया है। ऐसे में किसान की उसे जरूरत ही नहीं। सरकार इसी लिए किसान की आय भी नहीं बढ़ाना चाहती, क्‍योंकि अगर किसान की आय बढ़ेगी तो शहरों में महंगाई बढ़ेगी और सरकार अपने वोट बैंक को नाराज नहीं करना चाहती।''

केदार शिरोही कहते हैं, ''एक समस्‍या ये भी है कि किसान नेता खुद को गैर राजनीतिक बताना चाहते हैं। उन्‍हें समझना होगा कि सरकार वोट बैंक पर ध्‍यान देती है। ऐसे में उन्‍हें खुलकर कहना होगा कि अगर हमारी समस्‍या हल नहीं हुई तो हम वोट नहीं देंगे। जिस दिन किसान नेता ये कह गया कि वोट नहीं दूंगा आंदोलन आश्‍वासन पर खत्‍म नहीं होंगे, वो समाधान पर खत्‍म होंगे।''

मध्‍य प्रदेश में फिलहाल विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेज है। ऐसे में किसान संगठन भी इसे लेकर योजना बना रहे हैं। आम किसान यूनियन के सदस्‍य और किसान नेता राम इनानिया कहते हैं, ''आंदोलन को फ्लॉप शो नहीं कहा जा सकता। इससे किसान जागरूक हुए हैं। हम अपनी मांग उठा सकते हैं, बाकी काम सरकार को ही करना है। राजस्‍थान, छत्‍तीसगढ़ और मध्‍य प्रदेश के विधानसभा चुनाव को लेकर किसान तैयार है। किसान संगठनों ने तय किया है कि हम अब पार्टी को वोट नहीं देंगे, प्रत्‍याशी को वोट देंगे। जो भी प्रत्‍याशी किसानों के मुद्दे को समझते होंगे, उनके लिए काम करेंगे किसान उसे ही वोट देगा।'' राम इनानिया बताते हैं, ''राष्ट्रीय किसान संघ, आम किसान यूनियन, भाकियू जैसे कई संगठनों ने इस तरह का फैसला लिया है।'' बता दें, मंदसौर कांड के बाद अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति बनी थी। इससे 193 किसान संगठन जुड़े हुए हैं।

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किसान आंदोलनों के बेनतीजा खत्‍म होने पर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के कृषि अर्थशास्त्र विभाग से रिटायर प्रोफेसर चंद्रसेन कहते हैं, ''किसान आंदोलन के असफल होने की पीछे सबसे बड़ी वजह उनकी मांगे हैं। सभी किसान आंदोलनों में कर्ज माफी की मांग प्रमुख्‍ता से उठाई जाती है, लेकिन ये सही नहीं है। कर्ज माफी खतरनाक चीज है, किसी भी सरकार को इसे नहीं करना चाहिए।''

''कर्ज माफी किसी भी देश के लिए सही नहीं है। अगर किसान को ये लत लगी तो वो लोन लेगा लेकिन लौटाएगा नहीं।''- प्रोफेसर चंद्रसेन

प्रोफेसर चंद्रसेन किसानों की फसालों के दाम बढ़ाने की मांग को लेकर भी सवाल उठाते हैं। चंद्रसेन कहते हैं, ''अगर फसलों की कीमत बढ़ा दी गई तो गरीब क्‍या खाएगा। इस लिए इसे महंगा नहीं कर सकते। अगर इसकी कीमत ज्‍यादा बढ़ा दी गई तो गरीब तबके के लोग खरीद ही नहीं पाएंगे। मान लीजिए गेहूं 1700 रुपए कुंटल है और उसे 10 हजार कर जाए तो गरीब क्‍या खाएगा। इस लिए इसे नहीं बढ़ा सकते।''

जानकारों का मानना है कि आंदोलनों से आम किसान का बस इतना भला हुआ कि उनकी समस्‍याओं की बात अब बड़े पटल पर हो रही है। हालांकि स्‍थिति अभी भी जस की तह बन हुई है। गौरतलब है कि हमारे देश में सिंचाई की सुविधा बहुत कम किसानों को उपलब्ध है। ज्यादातर किसान खेती के लिए बारिश पर निर्भर रहते हैं। अब ऐसे में यदि मानसून ठीक से न बरसे तो फसल पूरी तरह बर्बाद होने का खतरा रहता है। मानसून की विफलता, सूखा, बढ़ती लागत, कम कीमत, कर्ज का अत्यधिक बोझ जैसी समस्‍याएं किसानों के साथ लगी ही रहती हैं। ऐसे में किसान अब खेतों को छोड़कर सड़कों का रुख करने लगा है। हालांकि यहां से भी सही उपाय न मिलने से वो मायूस ही नजर आता है।

बड़े किसान आंदोलन

1. मंदसौर में किसान आंदोलन (जून 2017)

2. नासिक से मुंबई किसान पद यात्रा (मार्च 2018)

3. 'गाँव बंद' आंदोलन (1 से 10 जून 2018)

4. मज़दूर-किसान संघर्ष रैली (सितंबर 2018)

5. किसान क्रांति यात्रा हरिद्वार से दिल्‍ली (अक्‍टूबर 2018)

किसानों की व्यथा आंकड़ों में


- 34 किसान और खेतिहर मजदूर औसतन रोजाना करते हैं आत्महत्या (एनसीआरबी रिपोर्ट-2015)

- 12,000 किसान सालभर में करते हैं आत्महत्या (2017 में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया)

- 6426 रुपए किसान की मासिक आय है, देश में एनएसओ की 2012-13 की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2002-03 में ये थी 2115 रुपए 14.72 करोड़ हैं देश में किसानों की संख्या, खेतिहर मजदूर मिलाकर ये आंकड़ा 26 करोड़ के पार

- 50 हजार रुपए का औसतन कर्ज हैं देश के हर एक किसान पर

- 17 करोड़ 14 लाख मत मिले थे भाजपा को 2014 के आम चुनाव में

- 20000 रुपए से कम है मध्यम वर्ग के किसान की सालाना आमदनी, औसतन 20 हजार रुपए प्रतिमाह है देश में एक सरकारी चपरासी की तनख्वाह

- 1.9 प्रतिशत कृषि विकास दर दर्ज की गई वर्ष 2014-2018 के दौरान, जो वर्ष 2005-2014 के दौरान 3.7 प्रतिशत थी

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