वाराणसी: देश की एकलौती कछुआ सेंचुरी को क्यों किया जा रहा खत्म?
Ranvijay Singh 21 Feb 2020 8:49 AM GMT
''मैंने आपको पूरी कहानी बता दी है, लेकिन आप मुझे कोट मत कीजिए, यह बहुत विवादित है।''
रिपोर्टर- विवादित क्यों?
''अरे पूरे देश में फ्रेशवॉटर टर्टल की यह एकलौती सेंचुरी है, इसे डीनोटिफाई करना विवादित तो है ही।'' कछुओं के लिए काम करने वाली एक संस्था से जुड़े एक सदस्य ने यह बात कही। ये जिस सेंचुरी की बात कर रहे हैं वह वाराणसी में गंगा के सात किलोमिटर के इलाके में स्थित है। साफ पानी के कछुओं की यह देश की एकलौती सेंचुरी है, जिसे 'कछुआ वन्यजीव अभयारण्य' (TWS) के तौर पर जाना जाता है। अब इस सेंचुरी को डीनोटिफाई करके दूसरी जगह बनाने की तैयारी चल रही है।
वाराणसी के रामनगर से लेकर मालवीय नगर पुल के बीच यह सेंचुरी गंगा एक्शन प्लान के तहत 1987 में चिन्हित (नोटिफाई) की गई थी। इस सेंचुरी को अब डीनोटिफाई करने को लेकर वन्य जीव कानपुर (पश्चिमी) के मुख्य वन संरक्षक सुनील कुमार चौधरी कहते हैं, ''हमने कछुआ सेंचुरी को हटाने के लिए राज्य सरकार को फाइनल प्रपोजल भेज दिया है। इसे यहां से हटाकर गंगा के इलाहाबाद-मिर्जापुर के इलाके में नोटिफाई किया जाएगा, जहां फिर से कछुओं को छोड़ा जाएगा।''
इस सवाल पर कि क्या इस सेंचुरी से कछुओं को ले जाया जाएगा? उन्होंने कहा- ''नहीं, नई सेंचुरी में नए कछुए होंगे। इस सेंचुरी के कछुओं के साथ छेड़छाड़ नहीं होगी।'' जब उनसे पूछा गया कि आखिर इसकी जरूरत क्यों पड़ी। इस पर सुनील कुमार ने कहा, ''मैं अभी बहुत व्यस्त हूं, एक मीटिंग में हूं। आपको फोन उठा लिया, इसपर आगे बात आमने-सामने होगी।''
सेंचुरी को हटाने के सवाल पर मुख्य वन संरक्षक के इस तरह के जवाब से संशय पैदा होता है। आखिर सेंचुरी को यहां से हटाया क्यों जा रहा है? कई लोग नाम न लिखने की शर्त पर इसके पीछे की वजह बताते हैं। उनका कहना है कि केंद्र सरकार की 1620 किमी की वॉटरवेज योजना का रूट वाराणसी के कछुआ सेंचुरी से होकर गुजरता है। ऐसे में अगर कछुआ सेंचुरी यहां रहती है तो इसके इलाके से वॉटरवेज की इजाजत नहीं मिलेगी। यही वजह है कि इसे डीनोटिफाई करके इलाहाबाद-मिर्जापुर के इलाके में बनाने की तैयारी है।
गंगा एक्शन प्लान के तहत सात किलोमिटर की यह सेंचुरी बनाने की पीछे यह सोच थी कि कछुए ऑर्गेनिक तौर पर गंगा नदी को साफ करेंगे। यह कछुए मांसाहारी थे जो नदी में दाह संस्कार के बाद बहाए गए मांस को भी खाते थे। यानी नदी को साफ करने के लिए इस सेंचुरी को यहां बनाया गया था।
फिलहाल इस सेंचुरी को डीनोटिफाई करने की कवायद चल रही है। इस कवायद की शुरुआत तब हुई जब दो साल पहले पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर कहा कि सेंचुरी के कछुए घाट को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इसके बाद जुलाई 2018 में वाइल्ड लाइफ इस्टिट्युट ऑफ इंडिया (WII) की एक रिपोर्ट सामने आई। इस रिपोर्ट में बताया गया कि सेंचुरी को लोगों के बढ़ते दखल की वजह से खतरा है। साथ ही यह भी बताया गया कि सेंचुरी में छोड़े गए कछुओं की 13 प्रजातियों में से केवल पांच प्रजातियां पाई गईं। ऐसे में राज्य सरकार इस सेंचुरी को डीनोटिफाई करने के लिए इसी रिपोर्ट को आधार बना रही है।
कहां गए 41 हजार कछुए?
WII की रिपोर्ट बता रही है कि सेंचुरी में कछुए कम हो गए हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि 1987 से लेकर 2018 तक करीब 41 हजार कछुए सेंचुरी में छोड़े गए, इन कछुओं का क्या हुआ? यह कछुए कहां गए? इस सवाल का किसी के पास ठीक-ठीक जवाब नहीं है। काशी के डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (DFO) महावीर कौजल बताते हैं, ''सेंचुरी में कछुए सारनाथ ब्रीडिंग सेंटर से लाकर छोड़ गए थे। इन कछुओं को सेंचुरी में तभी छोड़ा जाता है जब यह अच्छी तरह से जीने लायक होते हैं।'' जब उनसे पूछा गया कि यहां 41 हजार कछुए छोड़े गए थे, क्या वो अभी भी यहां हैं? इसपर DFO कहते हैं, ''मेरे पास इसका आंकड़ा नहीं है कि कितने कछुए हैं।''
एक सवाल और है कि कछुआ सेंचुरी को इलाहाबाद-मिर्जापुर के जिस इलाके में नोटिफाई करने की योजना बन रही है वहां खनन खूब होता है। क्योंकि कछुए अपना अंडा किनारे आकर देते हैं, ऐसे में खनन से सीधा उन्हें नुकसान होगा। इस सवाल का जवाब देते हुए DFO महावीर कौजल कहते हैं, ''वन विभाग जिस भी इलाके को सेंचुरी घोषित करेगा वहां खनन बैन होगा। ऐसे में यह सवाल नहीं उठता कि खनन से कछुओं को दिक्कत होगी।'' इन सब बातों के इतर इलाहाबाद-मिर्जापुर का बेल्ट अवैध बालू खनन के लिए भी जाना जाता है। इस अवैध बालू खनन के कारोबार में बड़े बड़े माफिया लगे हुए हैं। ऐसे में प्रशासन के आगे यह चुनौती होगी कि सेंचुरी को इन खनन माफियाओं से बचाया जा सके।
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