क्यों भारत में कम हो रही है गधों की संख्या?

पड़ोसी देश पाकिस्तान के लिए गधे इतने ज्यादा अहम हैं कि गधों की सर्वाधिक आबादी वाला तीसरा देश बन गया है। यहां गधों की आबादी इतनी ज्यादा है कि लाहौर में एक डंकी हॉस्पिटल खोला गया है, जहां गधों का नि:शुल्क इलाज किया जाता है।

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
क्यों भारत में कम हो रही है गधों की संख्या?

जिस तेजी से भारत में गधों की संख्या में कमी आई है, उससे डर है कि आने वाले 20 सालों में शायद हम इस प्रजाति को जू में भी न देख पाएं। सवाल ये है कि भारत से आखिर गधे कहां जा रहे हैं। इसके दो जवाब हैं। पहला, भारतीय बाजारों में गधों की उपयोगिता कम होती जा रही है। दूसरा, गधों की कालाबाजारी।

गधा (इक्वस अफ्रीकैनुस ऐसीनस), घोड़े की प्रजाति की एक उप प्रजाति एसिनस वर्ग का पशु है। गधे को अधिकतर धोबी और कुम्हार वर्ग के लोगों द्वारा पाला जाता है। आजकल इसका प्रयोग ईंट-भट्टों और फौज में मालवाहक के तौर पर होता है। गधे के रख-रखाव और खाने का खर्च बहुत कम है। गधे को घोड़े की तुलना में अधिक बुद्धिमान माना गया है। दिशा और मार्ग के विषय में गधे की स्मरण शक्ति बहुत तेज है। यह अकेला लगभग 10 मील सामान लेकर आ-जा सकता है। इस जीव में गजब की सहनशीलता है। यह पशु अपनी मंद बुद्धि और हठीलेपन के लिए प्रख्यात है। भारत वर्ष में इसका प्राचीनतम उल्लेख वैदिक साहित्य में मिलता है। प्राचीन साहित्य में गधे के बारे में बहुत सी कहावतें प्रचलित हैं। रोम की रानी क्लियोपैट्रा अपनी त्वचा की खूबसूरती के लिए हर रोज गधे के दूध से नहाती थीं।

गधे और घोड़ों के पूर्वज समान

हजारों वर्ष पहले गधे और घोड़ों के पूर्वज समान थे, लेकिन वे बहुत ही अलग प्रजाति के रूप में विकसित हुए हैं। जंगली गधे की दो अलग-अलग प्रजातियां हैं। एशियाई प्रजातियों की शाखा लाल सागर से उत्तरी भारत और तिब्बत तक फैले क्षेत्र से आई है, जहां गधे को विषम जलवायु और ऊंचाई के इलाके पर अपने आप को अनुकूलित करना पड़ा। नतीजा यह हुआ कि आज एक से अधिक प्रकार के एशियाई जंगली गधे पाए जाते हैं। प्रजातियों की अफ्रीकी शाखा उत्तरी तट में भूमध्य सागर और सहारा रेगिस्तान के बीच दक्षिण में लाल सागर तक पाई जाती है। अफ्रीकी गधे की दो अलग-अलग प्रजातियां हैं। न्यूबियन जंगली गधा और सोमाली जंगली गधा।

कब्रिस्तान की खुदाई...मिले कंकाल

मिस्र में एक शाही कब्रिस्तान की खुदाई कर रहे अमेरिकी पुरातत्वविदों के एक दल को गधों के कंकाल मिलने की उम्मीद कतई नहीं थी। इससे पहले मिस्र के किसी कब्रिस्तान में ऐसा कोई जानवर नहीं मिला था। काहिरा से 500 किमी दक्षिण में नील नदी के किनारे प्राचीन अबिदोस शहर के कब्रिस्तान में 10 गधों के कंकाल मिलना विचित्र बात थी। इन कंकालों से पांच हजार साल पहले गधों को पालतू बनाए जाने के प्रमाण मिलते हैं। यह खुदाई वर्ष 2002 में हुई थी। वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर फियोना मार्शल और उनके साथी इस खोज से आश्चर्यचकित रह गए थे।

जर्नल में प्रकाशित की रिपोर्ट

उन्होंने इस बारे में द प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज नामक जर्नल में एक रिपोर्ट भी प्रकाशित की। मार्शल लिखती हैं कि हम हैरान थे कि कब्रों की खुदाई में कोई नर कंकाल नहीं मिला, लेकिन दस गधे मिल गए। इनके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं था। अबिदोस में मिली मुहरों और कब्रिस्तान की वास्तुकला से अनुमान लगाया गया है कि यह कब्रिस्तान ईसा से करीब तीन हजार साल पहले का है। उस समय गधों का डील-डौल जंगली गधों से मिलता-जुलता रहा होगा और उनकी उम्र 8 से 13 साल के बीच होती होगी। खुदाई में मिले गधों की हड्डियों में बारीक फ्रैक्चर पाए गए हैं, जो अत्यधिक बोझ और मोच का संकेत हैं। इनके कंधों और कूल्हों जैसे बड़े जोड़ों की हड्डियां खुरदरी और नरम हड्डियां घिस चुकी थीं।

निश्चित तौर पर कुछ कहना मुश्किल

आनुवांशिक अनुसंधानों में गधे को अफ्रीकी मूल का जानवर माना गया है। मार्शल और उनके साथियों ने अबिदोस में मिले गधों के कंकालों की तुलना आधुनिक काल के 50 से ज्यादा गधों और अफ्रीकी जंगली गधों के कंकालों के साथ की है। इस आधार पर माना जा सकता है कि अबिदोस के गधे सोमाली जंगली गधों के समान दिखते होंगे। अफ्रीकी जंगली गधों की यह प्रजाति आज भी जीवित है। इसका मतलब यह है कि अबिदोस में मिले गधों का वजन करीब 270 किलोग्राम था, जो आजकल के गधों के मुकाबले बहुत अधिक है। ये नतीजे जानवरों को पालतू बनाए जाने की उस परंपरागत अवधारणा से उलट हैं, जिसके अनुसार मानव द्वारा खेती, भोजन और परिवहन के लिए पालतू बनाए जाने की वजह से जंगली जानवरों की शारीरिक बनावट छोटी होती चली गई।

अफ्रीकी मूल का जानवर गधा

आनुवांशिक अनुसंधानों में गधे को अफ्रीकी मूल का जानवर माना गया है, लेकिन इन्हें पालतू बनाए जाने के समय और स्थान के बारे में निश्चित तौर पर कुछ कहना मुश्किल है। वर्ष 2002 में मिस्र में एक शाही कब्रिस्तान की खुदाई कर रहे अमेरिकी पुरातत्वविदों के दल को यकीन था कि वे इतिहास की इस प्राचीनतम पहेली का हल सुलझा देंगे। उन्हें गधों के कंकाल मिलने की उम्मीद कतई नही थीं। इन गधों को ऐसे दफनाया गया था, मानो ये कोई आला अधिकारी हो। इन कंकालों से पांच हजार साल पहले गधों को पालतू बनाए जाने के प्रमाण मिलते हैं। लगभग 2000 साल पहले गधों को प्रशांत महासागर से रेशम को व्यापारिक सामानों के बदले सिल्क रोड के साथ भूमध्य सागर तक ले जाने के लिए इस्तेमाल किए जाता था।

ग्रीस का आदर्श जानवर गधा

ग्रीस में गधों को संकीर्ण पथों के बीच काम करने के लिए एक आदर्श जानवर माना जाता है। इसी कारण अंगूर के बागानों में खेती के लिए उनका उपयोग भूमध्य देशों से स्पेन तक फैल गया, जिसका दक्षिणी सिरा उत्तरी अफ्रीका के तट तक फैला है। संभवत: यह अफ्रीकी जंगली गधे के लिए एक प्रवेश द्वार था। गधे का उपयोग कृषि और भारवाही जानवरों के रूप में किया जाता था। रोमन आक्रमण के साथ गधे इंग्लैंड आए थे। हालांकि 1550 के दशक तक ब्रिटेन में गधे आम नहीं थे और 1650 के दशक तक आयरलैंड में भी दुर्लभ थे।

शक्ति के स्रोत के रूप में अपनाए गए

जब ओलिवर क्रोमवेल ने कृषि भूमि पर काम करने के लिए घोड़ों को हटाने के लिए आयरिश लोगों को मजबूर किया, तब गधे एक शक्ति के स्रोत के रूप में अपनाए गए। यह जानवर चुस्त, कठोर और कड़ी मेहनत का रूप है। 18वीं सदी से पहले और उसके बाद प्रजातियों की समझ में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ। अरस्तू से लेकर कार्ल लीनियस के समय तक प्रजाति एक अपरिवर्तनीय श्रेणी थी। अरस्तू मानते थे कि हर प्रजाति का एक मूल तत्व होता है और संतानोत्पत्ति की क्रिया के जरिए यह मूल तत्व अगली पीढ़ी को सौंपा जाता है।

ये भी पढ़ें: अगली बार जब आपको कोई गधा कहे तो ये स्टोरी दिखा देना

भारत में गधे...प्रजातियां

भारत में बड़े और छोटे आकार के गधे आम हैं। बड़े आकार के गधे रंग में हल्के भूरे रंग के होते हैं। छोटे आकार वाले काले रंग से भूरे रंग के होते हैं। इसके अलवा दो जंगली गधों की प्रजातियां भी पाई जाती हैं। आज अधिकांश जंगली गधे की प्रजातियां या तो विलुप्त हैं या लुप्तप्राय हैं, जिनमें से एक प्रजाति खर है, जो कि विलुप्त होने के कगार पर हैं। वहीं कियांग जंगली गधे की आबादी तिब्बत, चीन, नेपाल और भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में व्यापक रूप से वितरित है। जंगली गधे कियांग की विभिन्न श्रेणियों में तीन उप प्रजातियां हैं। हालांकि इनका वर्गीकरण अभी भी विवादास्पद और अनिश्चित है। गधे के गुण सुधार के लिए वर्ष 1990 में विदेशी गधे पोइतु का फ्रांस से निर्यात किया गया था और 2010 में पोइतु गधे से एआई का मानकीकरण कर लिया गया। इसके अलावा देश में स्वदेशी नस्लों के घोड़े और गधों के लिए अभयारण्य का निर्माण 2010 में किया गया। हरियाणा, उत्तर प्रदेश और भारतीय सेना एक्वाइन प्रजनन फार्म में आज फ्रांस और अन्य यूरोपीय देशों से प्राप्त विदेशी नस्ल की अच्छी गुणवत्ता वाले गधे के स्टैलियन पशुपालन विभाग द्वारा रखे जा रहे हैं।

गधे का पालन...अलग गांव

आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और अन्य राज्यों में गधे के पालन करने वाले लोगों के कुछ अलग गांव हैं। भारतीय मेले का महत्व गधों के बिना अधूरा है। कुछ विशेष मेले तो केवल गधों और घोड़ों के लिए ही आयोजित होते हैं, जैसे कि बाराबंकी मेला या देवा मेला, जो हर वर्ष अक्टूबर में पूर्णिमा से लगभग एक सप्ताह पहले लखनऊ के पास देवा शरीफ शहर में आयोजित होता है। धौलेरा के पास साबरमती और वाटरक नदियों के संयोजन पर वाउथा गांव में पांच दिनों के लिए मवेशी मेला आयोजित होता है, जो भारत का सबसे बड़ा गधा मेला है। इसी प्रकार उज्जैन, सोनपुर, भावगढ़ बंध्या (जयपुर), पुष्कर, नागौर, झालावाड़, गंगापुर (भीलवाड़ा), कोलायत मेला (बीकानेर) और आगरा के पास बटेश्वर मेला। इसके अलावा भारत के अन्य कम ज्ञात मवेशी मेले जैसे कि काराउली पशु मेला, नलवारी पशु मेला, कुंडा मेला, रामदेव मवेशी मेला और कुलकुंडा पशु मेला आदि भी लगते हैं, जहां गधों का विशेष महत्व है।

20वीं पशुगणना...6 लाख की कमी

पशुओं को लेकर जारी हुई 20वीं पशुगणना के मुताबिक भारत में घोड़े, गधे और खच्चरों की संख्या में भारी गिरावट आई है। पिछले सात साल (2012-19) में इनकी संख्या में 6 लाख की कमी दर्ज की गई है। बढ़ते मशीनीकरण, आधुनिक वाहन और ईंट-भट्टों में काम न मिलने की वजह से लोगों ने इन्हें पालना कम कर दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में गधे की संख्या इसलिए घट रही है, क्योंकि चीन में गधों की खाल की मांग तेजी से बढ़ रही है। चीन में पारंपारिक दवा बनाने में इनका प्रयोग किया जाता है। देश में हर छह साल में पशुओं की गणना होती है। पशुगणना 2019 के मुताबिक देश में 5 लाख 40 हजार घोड़े, गधे और खच्चर हैं, जिनकी संख्या पशुगणना 2012 में 11 लाख 40 हजार थी। 20वीं पशुगणना के मुताबिक देश में घोड़े और टट्टू की संख्या 3 लाख 40 हजार है, जो पहले 6 लाख 40 हजार थी। वहीं खच्चरों की संख्या 80 हजार रह गई है, जो पहले 2 लाख थी। गधों की संख्या में भारी कमी आई है। 2019 की पशुगणना के मुताबिक गधों की संख्या एक लाख 20 हजार है, जो पहले 3 लाख 20 हजार थी।

सात प्रजाति के घोड़े, एक का गधा

राष्ट्रीय पशु आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो में पंजीकृत नस्लों के मुताबिक भारत में सात प्रजाति के घोड़े और एक प्रजाति के गधे नस्ल की जानकारी दी गई है। विकासशील देशो में कार्यशील गधों, घोड़ों और खच्चरों की संख्या लगभग 1 करोड़ 12 लाख है। दुनिया के लगभग दो प्रतिशत और एशिया महाद्वीप के लगभग पांच प्रतिशत अश्व जातीय पशु भारत में पाए जाते हैं। वर्तमान में इनकी कुल संख्या 15 लाख है, जिनमें अधिकांश संख्या गधे, खच्चर और टट्टू की है। यह पहाड़ी और शुष्क वातावरण वाले क्षेत्रों में रहने वाली ग्रामीण आबादी को अपनी भारवाही शक्ति द्वारा आजीविका प्रदान करते हैं। इनकी कुछ आबादी सेना, पुलिस, सीमा सुरक्षा बल, और खेल में भी पाई जाती है।

भारत में प्रमुख नस्लों के गधों

भूटियाइस नस्ल के घोड़े हिमालय पर्वत के निचले क्षेत्रों और भूटान में पाए जाते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक संख्या में पाए जाने वाले ये टट्टू प्राय भूरे, बादामी और चितकबरे रंग के होते हैं। काठियावाड़ी नस्ल के घोड़े पूरे भारत में फैले हुए हैं, लेकिन मुख्य रूप से यह गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र में पाए जाते हैं। इनका उपयोग घुड़सवारी, घुड़दौड़, खेलों, सुरक्षा और सफारी में होता है। स्पीतिए घोड़े हिमाचल प्रदेश की स्पीति घाटी में पाए जाते हैं। स्पीति नस्ल के घोड़े ठंडे भागों में रहने और प्रतिकूल परिस्थितियों को भी सहन करने में सक्षम होते हैं। मारवाड़ी घोड़े राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में पाए जाते हैं। जंसकारी नस्ल के घोड़े लेह-लद्दाख क्षेत्र में पाए जाते हैं। मणिपुरी नस्ल के घोड़े मणिपुर एवं असम में पाए जाते हैं। कच्छी-सिंधी घोड़े की नस्ल का मूल गुजरात के कच्छ जिले की भुज तालुका के बन्नी एवं खावड़ा स्थान है, इसीलिए स्थानीय लोग इन्हें कच्छी के नाम से जानते हैं। इसका प्रजनन क्षेत्र पाक के सिंध के नजदीक है।

दुनिया का सबसे बहादुर गधा मर्फी

दुनिया के सबसे बहादुर गधे का रिकॉर्ड ऑस्ट्रेलिया के मर्फी नाम के गधे के नाम है। ऑस्ट्रेलियाई सेना के गधे मर्फी को यह अवॉर्ड 19 मई, 1997 को साल 1915-16 के गैलीपोली अभियान में अपनी भूमिका के लिए मिला था। मर्फी ने अपनी पीठ पर लादकर कई जख्मी लोगों को अस्पताल पहुंचाया था। उसे इस काम की ट्रेनिंग 22 वर्षीय जॉन सिंपसन ने दी थी। ऑस्ट्रेलियन वॉर मेमोरियल में मर्फी और जॉन का पुतला बना हुआ है।

लघु रण जंगली गधा अभ्यारण्य, कच्छ

गुजरात के कच्छ के रण में स्थित जंगली गधा अभ्यारण्य भारत का सबसे बड़ा वन्यजीव अभ्यारण्य है। यह अभ्यारण्य 4954 किमी क्षेत्र में फैला है। इसमें विभिन्न प्रजाति के जंतु और पक्षी पाए जाते हैं, जिनमें जंगली गधे की लुप्तप्राय प्रजाति के साथ-साथ चिंकारा, कैराकल्स और एशिया के विशालतम नीलगाय देखे जा सकते हैं। अभ्यारण्य में इनकी संख्या लगभग 3000 है।

गधों के मामले में तीसरे नंबर पर पाकिस्तान

पड़ोसी देश पाकिस्तान के लिए गधे इतने ज्यादा अहम हैं कि गधों की सर्वाधिक आबादी वाला तीसरा देश बन गया है। यहां गधों की आबादी इतनी ज्यादा है कि लाहौर में एक डंकी हॉस्पिटल खोला गया है, जहां गधों का नि:शुल्क इलाज किया जाता है। इस सूची में दूसरे स्थान पर इथोपिया है और पहले पायदान पर चीन।

ये भी पढ़ें: गधी के दूध से जैविक साबुन बनाने के लिए छोड़ दी सरकारी नौकरी


   

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.