UPSSF: बिना वारंट तलाशी और गिरफ्तारी के अधिकार पर विवाद, क्या पहली बार किसी सुरक्षा बल को ये अधिकार मिले हैं?

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने प्रदेश में विशेष सुरक्षा बल यूपीएसएसएफ के गठन का फैसला लिया है। इस बल को बिना वारंट के तलाशी लेने और गिरफ्तार करने के अधिकार दिये गये हैं। इन्हीं अधिकारों पर विवाद हो रहा है, लेकिन इसमें नया क्या है?

Mithilesh DharMithilesh Dhar   15 Sep 2020 11:15 AM GMT

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UPSSF, cm yogi, uttar pradeshउत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव अवनीश कुमार अवस्थी ने कहा कि इस बल का गठन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ड्रीम प्रोजेक्ट है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने रविवार 13 सितंबर को उत्तर प्रदेश विशेष सुरक्षा बल अधिनियम 2020 को लागू कर दिया। इसके तहत उत्तर प्रदेश में उच्च न्यायालय, जिला न्यायालय, प्रशासनिक कार्यालय, तीर्थ स्थल, मेट्रो रेल, हवाई अड्डा बैंक, शैक्षिक व औद्योगिक संस्थानों की सुरक्षा के लिए उत्तर प्रदेश विशेष सुरक्षा बल (यूपीएसएसएफ) का गठन किया गया है। इस विशेष बल को बिना वारंट के तलाशी लेने और गिरफ्तारी के अधिकार भी दिये गये हैं, जिसे लेकर सरकार पर सवाल उठ रहे हैं।

विपक्ष इस नये कानून को लेकर सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है तो सोशल मीडिया पर लोग इसकी तुलना अंग्रेजों के रॉलेट एक्ट कानून से कर रहे हैं जिसमें पुलिस को किसी को भी गिरफ्तार करने के अधिकार प्राप्त थे।

उत्तर प्रदेश विशेष सुरक्षा बल को जो अधिकार दिये गये हैं क्या वे देश के दूसरी सुरक्षा बलों के पास नहीं हैं? इसे हम कुछ उदाहरण और विशेषज्ञों से समझने का प्रयास करेंगे।

इस मामले को समझने के लिए हमने उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी ऐके जैन से बात की। उन्होंने गांव कनेक्शन को फोन पर बताया, "पता नहीं क्यों लोग बिना वारंट के तलाशी लेने और गिरफ्तारी के अधिकार पर विवाद कर रहे हैं। जब फायरिंग होती है या पुलिस को जब कोई अपराधी समझ आता है तो क्या वह पहले वारंट लेने जाती है? पुलिस तो पहले से ही लोगों को बिना वारंट के गिरफ्तार करती आई है। उसे अधिकार मिले हुए हैं।"

"और पुलिस ही क्यों, ये अधिकार तो आम लोगों के पास भी हैं। आपको अगर कोई चोर चोरी करता दिख जाता है उसे आप भी पकड़ सकते हैं। हां पकड़ने के बाद उसे आपको पुलिस के हवाले करना होगा। यही अधिकार नयी सुरक्षा बल को भी दिये जा रहे हैं। कई बार अपराधी इसी चक्कर में बच निकलते हैं। और आपको यह भी ध्यान रखना होगा कि जो नई फोर्स बनने जा रही है उसके जिम्मे न्यायालय और तीर्थ स्थल जैसी जगहें होंगी, ऐसे में उसके पास ये अधिकार तो होने ही चाहिए।" एके जैन आगे कहते हैं।

सोशल मीडिया पर लोग यूपीएसएसएफ को मिले अधिकारों का विरोध कर रहे हैं।

हालांकि उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू कहते हैं कि सरकार इस कानून का दुरुपयोग करेगी। वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "प्रदेश सरकार प्रदेश में हो रहे विरोध प्रदर्शनों से घबरा गई है। विपक्ष की आवाज की आवाज को उठाने के लिए प्रदेश सरकार यह नया कानून लेकर आई है। हम इस दमनकारी कानून का विरोध करते हैं। अभी जो महोबा में हुआ हम देख ही रहे हैं कि कैसे पुलिस अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर रही है। हम इस नये कानून के विरोध में सड़कों पर उतरेंगे।"

उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी ने एक अखबार की कटिंग को ट्वीट करते हुए लिखा है, "SSF नहीं ये धोखा है। सत्ता की ताकत से संवैधानिक अधिकारों के दमन की साज़िश है। यूपी में ठोक दो संस्कृति के तहत अब जिसे चाहे, जब चाहे उठा लो। ना वारंट, ना बेल, ना सबूत, ना सुनवाई। जिस पर सीएम की निगाह टेढ़ी हुई, उसकी शामत आई। मानवाधिकार और संवैधानिक अधिकारों का हनन है ये काला कानून।"

पहले यूपीएसएसएफ को मिले अधिकारों को समझते हैं

सरकारी गजट के अनुसार उत्तर प्रदेश विशेष सुरक्षा बल अधिनियम 2020 को प्रदेश में 6 अगस्त को लागू किया गया है। विधेयक विधान मंडल में पारित हुआ और राज्यपाल से इसे मंजूरी भी मिल गई। गजट के पेज नंबर 4 पर बिना वारंट के गिरफ्तार करने की शक्ति का विवरण दिया गया है।

यूपीएसएसएफ को बिना वारंट गिरफ्तार करने के अधिकार

इसमें लिखा गया है कि बल का कोई भी सदस्य, किसी मजिस्ट्रेट के किसी आदेश के बिना तथा किसी वारंट के बिना ऐसे किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है जो बल के किसी सदस्य को उसके कर्तव्य का निर्वहन करने से रोके, धमकी दे, हमला करे, संबंधित प्रतिष्ठानों की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करे, प्रतिष्ठान परिसर में कोई अपराध करने की कोशिश करे। अगर सुरक्षा कल को लगता है कि व्यक्ति संज्ञेय अपराध कर सकता है या करने का प्रयास करता है तो उसे भी गिरफ्तार किया जा सकता है।

यूपीएसएसएफ को बिना वारंट तलाशी लेने के मिले अधिकार

गजट के पेज नंबर 5 पर वारंट के बिना तलाशी लेने की शक्ति का उल्लेख है। इसमें लिखा है कि अगर अपराधी के भाग निकलने या अपराध के अपराधी द्वारा साक्ष्य को मिटाने की कोशिश की जा रही है तो बिना वारंट उसके घर में घुसकर तलाशी ली जा सकती है। यदि उचित हुआ तो उसे गिरफ्तार भी किया जा सकता है।

गजट में यह भी लिखा है कि गिरफ्तार करने वाले बल के किसी सदस्य को बिना देरी किये गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को पुलिस अधिकारी को सौंपना होगा।

ये अधिकार दूसरी सुरक्षा बलों से अलग हैं क्या?

केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल अधिनियम 1968 के तहत केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) को भी ये अधिकार दिये गये हैं है कि अगर कोई व्यक्ति प्रतिष्ठान की संपत्ति को नुकसान पहुंचाता है, अतिक्रमण करता है या उस क्षेत्र में संज्ञेय अपराध करता है तो बिना वारंट उसकी तलाशी ली जा सकती है और उसे गिरफ्तार भी किया जा सकता है। तलाशी या गिरफ्तारी की कार्यवाही दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (1974 की संख्यांक 2) के तहत होगी।

महाराष्ट्र और ओडिशा में केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल अधिनियम 1968 के नियम

यूपीएसएसएफ को भी इसी दंड प्रक्रिया संहिता के तहत कार्यवाही करनी होगी। सीआईएसएफ को गिरफ्तार व्यक्ति को पुलिस अधिकारियों को सौंपने होते हैं। मतलब यूपीएसएसएफ को जो शक्तियां दी जा रही हैं वह सीआईएसएफ के पास पहले से ही हैं। ओडिशा और महाराष्ट्र में ये नियम लागू हैं।

गिरफ्तारी तो एक सामान्य व्यक्ति भी कर सकता है

उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी एके जैन भी यही बात दुहरा रहे हैं कि आम नागिरक भी किसी अपराधी को गिरफ्तार कर सकता है। दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में केवल मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी को ही नहीं सामान्य व्यक्ति को भी गिरफ्तार करने की शक्ति दी गई है। इसे प्राइवेट व्यक्ति द्वारा गिरफ्तारी कहा जाता है जिसका जिक्र दंड संहिता धारा 43 में है।

इसके तहत कोई भी सामान्य व्यक्ति किसी भी संज्ञेय या गैरजमानती अपराध करने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है। गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को पुलिस को सौंपना होता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 के तहत पुलिस को भी ये अधिकार दिये गये हैं कि वह कुछ शर्तों के साथ मजिस्ट्रेट के आदेश या वारंट के बिना संज्ञेय अपराध करने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है।

इसके तहत पुलिस संदेह के आधार पर भी गिरफ्तारी कर सकती है। या पुलिस को लगे कि गिरफ्तारी नहीं हुई तो यह व्यक्ति साक्ष्य मिटा सकता है तो उसे भी गिरफ्तार किया जा सकता है। जिस अपराध में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 के तहत पुलिस को भी गिरफ्तार करने की शक्तियां दी गई हैं।

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हत्या, बलात्कार, दहेज हत्या, अपहरण, दंगा, चोरी करना आदि को संज्ञेय अपराध की सूची में रखा गया है। संज्ञेय अपराध में 3 साल या 3 साल से अधिक कारावास का प्रावधान है। असंज्ञेय अपराध जैसे धार्मिक भावना को कुछ शब्दों से भड़काना, झूठे साक्ष्य प्रस्तुत करना, धोखाधड़ी आदि असंज्ञेय अपराध हैं और भारतीय दंड संहिता की धारा 298 यह कहती है कि इस अपराध में पुलिस बिना किसी वारंट के गिरफ्तारी नहीं कर सकेगी।

संविधान विशेषज्ञ और 14वीं व 15वीं लोकसभा के महासचिव रहे पीडीटी आचार्य भी कहते हैं कि यूपीएसएसएफ के जिन शक्तियों की बात हो रही है, वह तो हमारे यहां की पुलिस को पहले से ही मिले हैं। वे कहते हैं, "बिना वारंट के गिरफ्तार करने का अधिकार तो पुलिस के पास पहले से ही हैं। गिरफ्तारी के बाद अपराधी को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है। संविधान में ऐसी शक्तियां तो पुलिस को पहले से ही दी गई हैं।"

"पुलिस के पास भी शक्तियां इसलिए दी गई हैं क्योंकि कई मामलों में समय मैटर करता है। पुलिस हर मामले में तलाशी या गिरफ्तारी के लिए वारंट नहीं ला सकता, लेकिन यह भी सच है कि पुलिस हर मामले में किसी भी गिरफ्तार भी नहीं कर सकती। पुलिस को जब भी लगता है कि वारंट की प्रक्रिया में देरी होगी तो सीधे गिरफ्तार कर लेती है। नई फोर्स को भी ऐसी ही शक्तियां देने की बात हो रही है। इसमें कुछ भी नया नहीं है।" पीडीटी आचार्य कहते हैं।

इलाहाबाद सुप्रीम कोर्ट में वकील सौरभ तिवारी भी कहते हैं कि बिना वारंट के तलाशी लेना और गिरफ्तारी का अधिकार नया कानून नहीं है। पुलिस के पास ये अधिकार पहले से ही हैं। वे बताते हैं, "दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 47 के तहत अगर पुलिस को लगता है कि घर में जरूरी साक्ष्य या संज्ञेय अपराधी छिपा है तो पुलिस बिना वारंट उसकी तलाशी ले सकता है।"

  

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