आखिर क्‍यों पीएम मोदी को कहनी पड़ी जनसंख्‍या नियंत्रण की बात

Ranvijay SinghRanvijay Singh   16 Aug 2019 1:42 PM GMT

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आखिर क्‍यों पीएम मोदी को कहनी पड़ी जनसंख्‍या नियंत्रण की बात

"हमारे यहां जो जनसंख्या विस्फोट हो रहा है, ये आने वाली पीढ़ी के लिए अनेक संकट पैदा करता है। लेकिन ये भी मानना होगा कि देश में एक जागरूक वर्ग भी है जो इस बात को अच्छे से समझता है। ये वर्ग इससे होने वाली समस्याओं को समझते हुए अपने परिवार को सीमित रखता है। ये लोग अभिनंदन के पात्र हैं। ये लोग एक तरह से देशभक्ति का ही प्रदर्शन करते हैं।" - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (15 अगस्‍त 2019)

देश की बढ़ती जनसंख्‍या को लेकर पीएम मोदी की इस चिंता से साफ समझा जा सकता है कि यह कितनी बड़ी समस्‍या है। 1.3 बिलियन की जनसंख्या के साथ भारत विश्व का दूसरा सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है। देश की जनसंख्या 1951 में 361 मिलियन से बढ़कर 2011 में 1.2 बिलियन हो गई थी।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) ने 'स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन 2018' की रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2010 से 2019 के बीच दुनिया में जनसंख्या वृद्धि दर औसत 1.1 फीसदी रही। वहीं भारत की जनसंख्या हर साल 1.2 फीसदी की दर से बढ़ी है, जबकि इसी दौरान चीन में सालाना जनसंख्या वृद्धि दर 0.5 फीसदी रही। भारत का जनसंख्या बढ़ने का आंकड़ा चीन से दोगुना से अधिक है।

जिस गति से हमारी जनसंख्‍या बढ़ रही है उसके मुताबिक 2027 तक भारत चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा। वहीं, 2030 तक हमारी जनसंख्या डेढ़ अरब हो जाएगी। मतलब साफ है कि भारत जनसंख्‍या विस्‍फोट से गुजर रहा है।

अनियंत्रित जनसंख्या अपने साथ कई तरह की समस्या लेकर आती है। जैसे- प्राकृतिक संसाधनों की अंधाधुन्ध खपत, खाने पीने की चीजों में कमी, रोजगार के कम अवसर, बेरोजगारी, गरीबी, निम्‍न जीवन स्‍तर और ऐसी ही कई समस्‍याएं। ऐसे में पीएम मोदी की चिंता वाजिब है।

डेमोग्राफी और पॉपुलेशन मैथमेटिक्स पर काम करने वाले बीएचयू के प्रोफेसर कौशलेंद्र कुमार सिंह पीएम मोदी की इस चिंता पर कहते हैं, ''यह बात इस लिए भी आई है कि भारत को जो टोटल फर्टिलिटी रेट (TFR) 2020 तक हासिल करनी थी वो होते दिख नहीं रही। प्‍लान था कि 2020 तक 2.1 फीसदी की दर पानी है। देश को यह दर हासिल हो गई है, हालांकि कई राज्‍य अभी भी इसे हासिल नहीं कर पाए हैं। बहुत से जिले तो ऐसे हैं जहां 3.0 की दर है।''

हालांकि देश के कई राज्यों में प्रजनन दर 2.1 भी है, लेकिन यह राज्‍य का औसत है। राज्‍य के भीतर इस दर में असंतुलन दिखता है। किसी जिले में बहुत ज्‍यादा है, किसी जि‍ले में कम है। बता दें, कुल प्रजनन क्षमता दर (TFR) उसे कहते हैं जिसमें एक महिला कितने बच्‍चों को जन्‍म देती है। फिलहाल भारत 2.1 की दर हासिल करना चाहता है यानि एक महिला 2 बच्‍चों को जन्‍म दे। इसे स्थिरता दर माना जाता है।


आजादी के बाद 1951 में हुई पहली जनगणना में देश की जनसंख्या 36.1 करोड़ थी। देश की आबादी अगले 10 साल में 21.5 प्रतिशत यानी 7.81 करोड़ बढ़ी। 1961 और 1971 के बीच आबादी में 24.8 प्रतिशत की वृद्धि यानी 10.9 करोड़ की बढ़ोतरी दर्ज की गई। इसके बाद के दशक यानी 1971-81 के बीच जनसंख्या 25 प्रतिशत यानी 13.76 करोड़ बढ़ी। साल 1991 में भारत की जनसंख्या 84.63 करोड़ हो गई। 2001 में देश की आबादी 102.70 करोड़ थी। यह पहली बाद था जब भारत ने 100 करोड़ का आंकड़ा पार किया।

देश में जनसंख्‍या नियंत्रण की चर्चाओं के बीच इसी साल जुलाई में भाजपा सांसद राकेश सिन्हा ने राज्‍यसभा में 'जनसंख्या विनियमन विधेयक, 2019' पेश किया है। यह बिल प्राइवेट मेंबर बिल के तौर पर राज्‍यसभा में रखा गया है। हालांकि अभी इस पर कानून नहीं बना है, लेकिन अगर इस बिल को कानूनी मान्‍यता मिलती है तो 'टू चाइल्ड नार्म्स' यानी एक परिवार (पति-पत्‍नी) में सिर्फ दो बच्‍चे होने का नियम लागू हो जाएगा।

इस विधेयक के मुताबिक, जो लोग दो बच्‍चा नीति के तहत अपने परिवार को प्‍लान करेंग उन्‍हें कुछ सुविधाएं दी जाएंगी, जैसे- बैंक लोन कम रेट पर मिले, डिपॉजिट में अधिक ब्याज मिले, रोजगार और शिक्षा में प्राथमिकता मिले। वहीं, जो लोग इस नियम का पालन नहीं करेंगे उन्‍हें कई सुविधाओं से वंचित किया जा सकता है, जैसे- बैंक डिपॉजिट पर कम ब्याज मिले, लोन लेने पर अधिक ब्याज लगे, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) से बाहर कर दिया जाए और किसी भी तरह के चुनाव लड़ने से उनको वंचित कर दिया जाए।

राकेश सिन्‍हा ने इस बिल को लेकर कहना है कि ''इस विधेयक को प्रभावी बनाने के भी प्रावधान किये गये हैं ताकि लोग बढ़ती आबादी के नुकसानों को समझकर इसे अपना सकें।'' जिस वक्‍त यह बिल राज्‍ससभा में पेश होना था उसी बीच बीजेपी के ही एक और सांसद गिरीराज सिंह ने भी ट्वीट कर बढ़ती जनसंख्‍या पर चिंता जाहिर की थी। उन्‍होंने ट्वीट किया था-

''हिंदुस्तान में जनसंख्या विस्फोट अर्थव्यवस्था सामाजिक समरसता और संसाधन का संतुलन बिगाड़ रहा है। जनसंख्या नियंत्रण पर धार्मिक व्यवधान भी एक कारण है। हिंदुस्तान 1947 की तर्ज पर सांस्कृतिक विभाजन की ओर बढ़ रहा है। सभी राजनीतिक दलों को साथ हो जनसंख्या नियंत्रण कानून के लिए आगे आना होगा।''

बता दें, जनसंख्‍या नियंत्रण को लेकर चीन में भी एक बच्‍चा नीति लागू की गई थी। इसके तहत चीन में एक बच्‍चा पैदा करने की ही अनुमति थी। बाद के सालों में इस नीति को हटा लिया गया, जब चीन में इसकी वजह से उम्र के असंतुलन से जूझना पड़ा था। फिलहाल भारत की जनसंख्या का 60 प्रतिशत हिस्सा 40 वर्ष या उससे कम उम्र का है। यह दुनिया की सबसे युवा आबादी है।

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉल्‍युशन साइंसेस में प्रोफेसर एसके सिंह कहते हैं, ''भारत को इस तरीके के कानून (जनसंख्या विनियमन विधेयक, 2019) की जरूरत नहीं है। क्‍योंकि जिन लोगों की कमाई कम है वो अपने यहां ज्‍यादा बच्‍चे पैदा करते हैं, ताकि उन्‍हें काम करने वाले ज्‍यादा हाथ मिल सके और अगर किसी बच्‍चे की मौत हो जाए तो भी उनके पास कोई रहे। वहीं, ज्‍यादा कमाई वाले लोगों के यहां बच्‍चों को लेकर फैमली प्‍लानिंग होती है। ऐसे में साफ है कि समाजिक असामनता को लेकर काम करने की जरूरत है। इस दिशा में काम करें तो बहुत चीजें हल हो सकती हैं।''

प्रोफेसर एसके सिंह बताते हैं, ''आज की तारीख में भारत का पॉपुलेशन ग्रोथ काफी कम हो गया है। जो ग्रोथ 1.6 फीसदी हर साल था वो 1.2 फीसदी हो गया है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) 1 के अुनसार भारत का TFR 3.4 था, जोकि हिंदू औरतों के लिए 3.3 था और मुस्‍लिम औरतों के लिए 4.4 था। यानि 1992-93 में मुस्‍लिम औरतें 1.1 बच्‍चा हिंदू औरतों से ज्‍यादा पैदा करती थीं।''


''हालांकि अब इसमें भी काफी कमी आ गई है। NFHS-2 (1998-99) में देश का TFR 2.9 था। हिंदू औरतों के लिए यह 2.8 और मुस्‍लिम के 3.6 था। तीसरे NFHS में TFR 2.7 था। यह हिंदू औरतों के लिए 2.6 फीसदी था और मुस्‍लिम औरतों के लिए 3.1 था। वहीं, चौथे NFHS (2015-16) में 2.2 टीएफआर था जो कि मुस्‍लिम औरतों के लिए 2.6 था और हिंदू औरतों के 2.1 है। मतलब यह अंतर सिर्फ .5 फीसदी का है।''

एसके सिंह कहते हैं, ''ऐसे में असल फैक्‍टर है गरीबी, कम उम्र में शादी, शिक्षा का अभाव और गर्भ निरोधक का इस्‍तेमाल न करना। गरीब और अमीर परिवारों में टीएफआर देखने से यह साफ पता चलता है। जहां गरीब परिवार की महिलाओं का टीएफआर 3.2 है वहीं अमीर परिवार की महिलाओं का .5 टीएफआर है।''

एसके सिंह कहते हैं, ''एक बात यह भी है कि इस देश में जितनी भी महिलाएं हैं उसमें से 67 प्रतिशत महिलाएं 2 बच्‍चों से ज्‍याद बच्‍चे नहीं चाहती हैं। अगर उनकी दो लड़कियां हैं तो भी वो ऐसा नहीं चाहतीं। ऐसे में कहा जा सकता है कि बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ कामयाब हुआ है। सेक्‍स रेसियो भी बेहतर हो रहा है। तो समझा जा सकता है कि भारत के हालात बदतर नहीं हैं। पापुलेशन मोमेंटम को आप नहीं रोक सकते। जो जनसंख्‍या की स्‍पीड चली आ रही है पीछे से उसे कितना भी आप रोकें तो 2040 तक उस पर काबू पाया जा सकेगा।''

   

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