भारत में ज्यादा बारिश के बाद भी क्यों सूख रहे हैं तालाब?
'कंपोसिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स' की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत अपने इतिहास में सबसे खराब जल संकट का सामना कर रहा है। यहां का भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है।
Ranvijay Singh 10 Oct 2019 11:07 AM GMT
''इस बार कर्नाटक के तटीय इलाके में अच्छी बारिश हुई है। यहां के तालाबों में पानी भरा हुआ है, लेकिन इसका स्तर तेजी से गिर रहा है। इस हिसाब से अक्टूबर के आखिर या मध्य नवंबर तक बहुत से तालाब सूख जाएंगे।'' यह बात कर्नाटक के चित्रदुर्गा जिले के रहने वाले एनजे देवराज रेड्डी कहते हैं। देवराज रेड्डी जिओ रेन वॉटर बोर्ड के वर्षा जल संचयन विशेषज्ञ हैं।
कर्नाटक में तालाबों का सूखना हर साल की कहानी है, क्योंकि कर्नाटक पिछले कुछ वर्षों से भयंकर सूखे से जूझ रहा है। हर साल अक्टूबर आते-आते यहां के तालाब सूख जाया करते हैं। लेकिन अब कर्नाटक सी कहानी देश के कई हिस्सों में देखने को मिल रही है। यह हाल तब है जब देश में इस बार सामान्य से 10 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है। ऐसे में भारत के कई हिस्सों में बारिश के बाद तालाब भर तो गए हैं, लेकिन उतनी ही तेजी से सूख भी रहे हैं।
अच्छी बारिश के बाद भी तालाबों के सूखने की इन घटनाओं के पीछे विशेषज्ञों का अपना मत है। वे देश में गिरते भूजल के स्तर को इसके पीछे का एक कारण मानते हैं। 14 जून, 2018 को जारी 'कंपोसिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स' (सीडब्ल्यूएमआई) की रिपोर्ट के मुताबिक, 'भारत अपने इतिहास में सबसे खराब जल संकट का सामना कर रहा है। यहां का भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है।'
बात करें भारत के भूजल उपयोग करने की तो भारत दुनिया का सबसे बड़ा भूजल उपयोगकर्ता है। यहां सिंचाई के लिए ही 230 अरब घन मीटर भूजल हर साल दोहन किया जाता है। ऐसे में बहुत अधिक दोहन की वजह से यहां भूजल की स्थिति गंभीर हो गई है। जैसे-जैसे सिंचित भूमि का क्षेत्रफल बढ़ता गया वैसे-वैसे भूगर्भ के जल के स्तर में गिरावट आई है। इस गिरावट की वजह से अब कुएं और तालाब गर्मियों से पहले ही सूख जाते हैं और नलकूप बेकार हो जाते हैं।
केरल के वायनाड में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। वायनाड के थ्रिस्सिलेरी गांव के रहने वाले राजेश कृष्णन (40 साल) बताते हैं, ''मेरे गांव में बारिश से तालाब भरे तो हैं, लेकिन उसका स्तर नीचे गिर रहा है। आज की बात करूं तो तालाब में उस हिसाब का पानी नहीं है।'' राजेश बताते हैं, ''पिछले साल तो केरल में बाढ़ आई थी, उसके तुरंत बाद नदियां और कुएं भी सूख गए थे। यह तो फिर भी तालाब है।''
राजेश पिछले साल आई जिस बाढ़ की बात कर रहे हैं, उसे केरल में आई 100 साल की सबसे भीषण बाढ़ के तौर जाना जाता है। पिछले साल अगस्त में केरल में तेज बारिश के कारण उसकी लगभग सभी नदियां उफान पर थीं। इन नदियों में केरल की पेरियार, भारतपुझा, पंपा, और कबानी नदी शामिल थी। लेकिन बाढ़ का पानी उतरते ही इन नदियों का जलस्तर भी तेजी से गिर गया। हाल यह था कि नदियां बाढ़ के 15 दिन बाद ही गर्मियों की तरह सूख गईं थीं।
बारिश के तुरंत बाद तालाबों के स्तर में गिरावट की बात पर वरिष्ठ भू-जलविद कृष्ण गोपाल व्यास केरल की इसी बाढ़ को याद करते हैं। वो कहते हैं, ''केरल में आई बाढ़ के बाद जितनी तेजी से नदियों में पानी का स्तर गिरा था, यह घटना पर्यावरण की हमें चेतावनी थी। इसका अध्ययन किया जाना चाहिए था। उस वक्त केरल के मुख्यमंत्री ने राज्य विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद को नदियों के जलस्तर गिरने और कुओं के सूखने के कारणों का अध्ययन करने का निर्देश भी दिया था। हालांकि इस अध्ययन का क्या हुआ किसी को पता नहीं नहीं है। अब तालाबों का भी जल स्तर अगर गिर रहा है तो यह बड़ी चेतावनी है।''
ऐसा नहीं है कि तालाबों के जल स्तर में गिरावट सिर्फ दक्षिण भारत में देखने को मिल रही है। भारत का उत्तरी क्षेत्र भी कुछ ऐसी ही घटनाओं से दो चार हो रहा है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 30 किमी दूर पड़ता है शाहपुर गांव। इस गांव के रहने वाले 58 साल के रामचंद्र बाजपेई भी तालाबों के गिरते जल स्तर और उनके सूखने से चिंतित हैं।
रामचंद्र बाजपेई बताते हैं, ''हमारे गांव में 5 तालाब हैं। पहले गर्मियों में भी उनमें पानी रहता था। एक तालाब तो ऐसा था जिसमें दिन में सिंचाई होती और रात में वो भर जाता था। यह इसलिए कि उस वक्त वॉटर टेबल भी ऊपर था। बाद के वर्षों में धीरे-धीरे वॉटर लेवल गिरता गया और अब तो बरसात में भी इन तालाबों में बहुत कम पानी है। इतना कम पानी तो दिसंबर के आखिर तक सूख भी जाएगा।''
शाहपुर गांव की ही रहने वाली 54 साल की शमीम बानो अपने घर के पास के तालाब को दिखाते हुए कहती हैं, ''यह तालाब पहले साल भर भरा रहता था। इस बार अच्छी बारिश हुई थी तो इसमें पानी ऊपर तक आया था, लेकिन 5-6 दिनों में ही पानी बिल्कुल कम हो गया है। पिछले साल भी ऐसा ही हुआ था और दिसबंर के अंत तक यह तालाब सूख गया था। इस तालाब के सूखने से जानवरों के लिए बहुत दिक्कत हो जाती है, क्योंकि उन्हें पानी मिल ही नहीं पाता।''
कुछ ऐसी ही कहानी उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के लटेहरा गांव की भी है। यहां के तालाब भी बरसात के बाद भरे लेकिन उतनी तेजी से सूखने की कगार पर आ गए हैं। लटेहरा के रहने वाले 34 साल नीरज पाल बताते हैं, ''बरसात के एक-दो दिन तक तक तो तालाब में पानी था, लेकिन अब इतना पानी है कि मैं उसमें से चलकर निकल जाऊंगा। यह हाल पिछले साल से भी खराब है। पिछले साल तो अक्टूबर में हमारे यहां तालाब में अच्छा पानी था, जोकि जनवरी की शुरुआत तक खत्म हुआ था। लेकिन इस बार तो तेजी से पानी का स्तर गिरा है।''
तालाबों के गिरते जल स्तर पर लखनऊ के रहने वाले वॉटर रिसोर्स मैनेजमेंट के विशेषज्ञ डॉ. वेंकटेश दत्ता बताते हैं, जो सबसे टॉप का ग्राउंड वॉटर होता है उसे शैलो वॉटर टेबल कहते हैं। यह अगर खाली हो गया है तो तालाब में जब पानी भरेगा तो सबसे पहले इसी वॉटर टेबल को तालाब रिचार्ज करेगा। ऐसे में वो लूजिंग तालाब बन जाता है। हमें यह समझना होगा कि अगर तालाब को साल भर भरा रखना है तो वॉटर टेबल को भी ऊपर लाना होगा। ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ तालाब तक सीमित है। कई नदियां भी इसकी वजह से सूख रही हैं।
डॉ. वेंकटेश दत्ता आगे कहते हैं, ''एक बात यह भी है कि तालाबों का पानी वाष्प बनकर भी उड़ता था। इसी लिए चंदेल वंश के शासन के दौरान बुंदेलखंड में सूर्य भेदी तालाब बनाए जाते थे। इसमें तालाब के उस कोने पर पेड़ लगाए जाते थे, जहां सूर्य की रोशनी ज्यादा पड़ती थी। ऐसे में तालाब से पानी वाष्प बनकर कम उड़ता था।''
वहीं, साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पिपुल (SANDRP) के कॉर्डिनेटर हिमांशु ठक्कर का कहना है, ''तालाबों में पानी का स्तर गिरने के अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग कारण हो सकते हैं। अगर ग्राउंड वॉटर टेबल नीचे है तो छोटे तालाब जल्दी सूख सकते हैं। पहले ग्राउंड वॉटर का लेवल ऊपर था तो तालाब रिचार्ज होते थे, उनमें पानी रहता था। अब हर जगह ग्राउंड वॉटर का स्तर नीचे गया है, ऐसे में तालाब रिचार्ज की जगह डिस्चार्ज हो रहे हैं।''
हिमांशु ठक्कर इस स्थिति से बचने के उपाय बताते हुए कहते हैं, ''इसके लिए कई चीजें करनी होगी। सबसे पहले तो ग्राउंड वॉटर के रिचार्जिंग मैकेनिज्म को समझना होगा, इसे प्रोटेक्ट करना होगा। इसके बाद रिचार्ज बढ़ाना होगा और कहीं पर आर्टिफिशियल रिचार्ज भी करना होगा। इन सबसे महत्वपूर्ण बात है कि ग्राउंड वॉटर के इस्तेमाल को रेगुलेट करना होगा। तब कहीं जाकर ग्राउंड वॉटर का लेवल ऊपर आएगा और तालाबों को बचाया जा सकेगा।
असल में यह काफी टेढ़ी खीर है, ''क्योंकि जो रिचार्जिंग मैकेनिज्म है वो हर जगह से नष्ट हो रही है। सबसे बड़ी बात है कि ग्राउंड वॉटर हमारे देश के पानी की जीवन रेखा है और सरकारें यह मानने को तैयार नहीं हैं। सरकारें अगर एक बार यह स्वीकार करें कि भूजल हमारे पानी की जीवन रेखा है तो उनकी प्राथमिकता होगी कि इस जीवन रेखा को कैसे बचाएं, लेकिन वो स्वीकार ही नहीं कर रहे हैं। ऐसे में भूजल को बचाने के लिए हम कुछ खास नहीं कर रहे हैं। इस तरह यह स्थिति और विकराल होगी।''
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