उधार और लोन लेकर चार साल पहले शुरू किया बिजनेस, आज कई महिलाओं को दे रहीं रोजगार

Neetu SinghNeetu Singh   23 Aug 2019 11:59 AM GMT

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लातेहार (झारखंड)। रोजमर्रा के खर्चों के लिए आज से चार साल पहले चिंता देवी ने उधार और लोन लेकर एक छोटा सा बिजनेस शुरू किया था। अपनी मेहनत और लगन से आज ये एक कम्पनी की मालकिन हैं और रोजाना आठ लोगों को रोजगार देती हैं। इनकी सालाना बचत अभी चार लाख रुपए है।

डिस्टिल्ड वाटर से शुरू हुआ इनका बिजनेस आज कपड़े धुलने के पाउडर की एक फैक्ट्री तक पहुंच गया है। चिंता देवी (40) अपने प्रोडक्ट का ट्रेडमार्क भी ले चुकी हैं। अपने क्षेत्र में सफल उद्यमी के रूप में पहचान रखने वाली चिंता देवी चार साल पहले तक एक गृहणी मात्र थीं। चिंता देवी बताती हैं, "मांग के हिसाब से हम मजदूरों की संख्या घटाते-बढ़ाते रहते हैं। वैसे आठ मजदूर रोज काम करते हैं पर जब स्टॉक ज्यादा हो जाता है तो मजदूरी की संख्या कम कर देते हैं। जो काम महिलाएं कर सकती हैं उसे उन्‍हीं से ही करवाते हैं जिससे उनकी भी आमदनी बढ़ सके।"

चिंता देवी 2015 में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत बनने वाले स्वयं सहायता समूह (सखी मंडल) से जुड़ीं। ये परिवार के भरण-पोषण के लिए हमेशा से कुछ करना चाहती थीं लेकिन पैसों के आभाव में इनके लिए कुछ भी करना सम्भव नहीं था। इन विषम हालातों से उबरने के लिए इन्होंने समूह से 40,000 रुपए का लोन लिया। बाकी पैसे उधार लेकर एक लाख रुपए से डिस्टिल्ड वाटर बनाने का काम चार साल पहले शुरू किया। ये एक ऐसा बिजनेस था जिसकी आसपास खूब मांग थी जिसका इन्हें भरपूर लाभ भी मिला। जैसे-जैसे इनका काम चल पड़ा ये अपने बिजनेस को और बढ़ाने लगीं।

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पति के साथ काम करती चिंता देवी


चिंता देवी डिस्टिल्ड वाटर बनाने की पूरी प्रक्रिया खुद जानती हैं। उन्होंने बताया, "हमारा पूरा परिवार मिलकर इस काम में सहयोग करता है। डिस्टिल्ड वाटर बनाना और उसकी पैकिंग हम करते हैं बाकी का काम हमारा बेटा और पति देखते हैं। अब हमारे दुकानदार फिक्स हो गये हैं और लोगों को हमारे प्रोडक्ट पर भरोसा भी हो गया है जिससे बेचने में ज्यादा दिक्कत नहीं आती है।"

झारखंड में ग्रामीण विकास विभाग, झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के द्वारा सखी मंडल से जुड़ी महिलाओं को केवल बचत करना ही नहीं सिखाया जाता बल्कि ये खुद का काम शुरू करें इस पर भी जोर दिया जाता है। चिंता देवी की तरह झारखंड में सफल उद्यमी बनने वाली महिलाओं की संख्या हजारों में है। पर इन सभी की राह इतनी आसान नहीं थी।

बीते दिनों को याद करते हुए चिंता देवी बताती हैं, "हमारे पापा राजमिस्त्री हैं, मां कब गुजर गईं हमें याद नहीं है। गरीबी की वजह से 15 साल की उम्र में शादी हो गयी थी मेरी। ससुराल में खेती-बाड़ी करके घर का खर्चा चलता था। समय के साथ पांच बच्चों का खर्चा चलाना अब इस खेती से मुश्किल हो रहा था। पति स्कूल में कुक का काम करते हैं पर उतने से परिवार का खर्च नहीं चल रहा था।"

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अपनी मेह‍नत से चिन्‍ता देवी ने खोली कंपनी



चिंता देवी बताती हैं, "हम समूह से अभी तक दो लाख रुपए लोन ले चुके हैं। जैसे पैसा आता है चुका देते हैं अभी लोन पर ही एक पिकअप ली है जिसकी किस्ते हर महीने जा रही हैं। जब पैसा आने लगा तो मई 2019 में कपड़े धुलने का पाउडर बनाने वाली मशीन खरीद ली। धूल नाम से ट्रेडमार्क भी ले लिया है।"

लातेहार जिला मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूर कूरा गांव में इनके घर पर ही पूरा बिजनेस चलता है। दीप आजीविका स्वयं सहायता समूह से जुड़ी चिंता देवी की तरक्की की चर्चाएं आसपास खूब होती हैं। शुरुआती के एक साल तो इन्हें बिजनेस को सैटल करने में लग गया लेकिन दूसरी साल जब इन्हें चार पांच लाख रुपए की बचत हुई तो उनका हौसला बढ़ गया।

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आज चिंता देवी कई महिलाओं को दे रहीं रोजगार


चिंता देवी बताती हैं, "बिजनेस में रजिस्ट्रेशन और ट्रेडमार्क भी जरूरी होता है ये हमें पता नहीं था। जब हमारा काम बढ़ा तो हमारे पति ने ये सब काम भी पूरा करा लिया। मार्केटिंग का पूरा काम मेरा बेटा आकाश ही सम्भालता हैं क्योंकि अब बिजनेस बहुत बढ़ गया है इसलिए पूरे परिवार के सहयोग की जरूरत पड़ती है।"

चिंता देवी के इस कारोबार को देखकर आसपास की महिलाओं का हौसला बढ़ रहा है। ये अपनी लगन से चार साल में न केवल खुद सफल उद्यमी बनी बल्कि कई महिलाओं को रोजगार भी दिया। वह आत्मविश्वास के साथ कहती हैं, "कुछ भी करना असम्भव नहीं है। शुरुआत में दिक्कतें हो सकती हैं लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो जाता है। बस कुछ भी करने की लगन होनी चाहिए।"

   

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