गोबर से गणेश की मूर्तियां बना रहीं गांवों की महिलाएं

गणेश चतुर्थी के मौके पर मध्य प्रदेश के सतना जिले में समूह की महिलाएं गोबर से मूर्तियाँ तैयार कर रही हैं। दस महिलाओं का यह समूह इन मूर्तियों की वजह से काफी चर्चा बटोर रहा है।

Sachin Tulsa tripathiSachin Tulsa tripathi   21 Aug 2020 6:08 AM GMT

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सतना (मध्य प्रदेश)। इस बार गणेश चतुर्थी के मौके पर आपको दुकानों में गोबर से बनी भगवान गणेश की मूर्तियाँ नजर आ सकती हैं। मध्य प्रदेश में गांवों की महिलाएं साथ मिलकर इन मूर्तियों को तैयार कर रही हैं।

ये महिलाएं न सिर्फ ये ख़ास मूर्तियाँ तैयार करती हैं बल्कि मांग के अनुसार बाजारों में भी उपलब्ध करा रही हैं। मध्य प्रदेश के सतना जिले में बाँधी मौहार गाँव की ये महिलाएं मछुआ स्व-सहायता समूह से जुड़ीं हुईं हैं। गोबर से मूर्तियां बनाने की वजह से इन दिनों इन महिलाओं का समूह सुर्ख़ियों में आया है।

गणेश चतुर्थी के मौके पर ये महिलाएं गणपति की मूर्तियाँ बनाने के साथ-साथ दीपावली के लिए देवी लक्ष्मी की मूर्तियाँ, दिये, शुभ-लाभ जैसी कई सामग्रियाँ गोबर से ही बना रही हैं।

"देवी-देवताओं की मूर्तियों के साथ दिए, शुभ-लाभ, यहाँ तक कि गमले भी गोबर से हम सब महिलाएं मिल कर तैयार कर रहीं हैं। करीब 15 दिनों से काम चल रहा है," सोमवती विश्वकर्मा 'गाँव कनेक्शन' से बताती हैं।

ये मूर्तियाँ कैसे बना रही हैं, के सवाल पर मछुआ स्व-सहायता समूह की विमला दाहिया बताती हैं, "गोबर से पहले कंडे बनाते हैं, फिर उन्हें सुखाकर कूटते हैं, फिर चक्की में पीसते हैं। पीस कर आटा जैसा बनाते हैं। फिर पानी मिला कर माड़ते हैं। थोड़ा पाउडर भी मिलाया जाता है और अंत में सांचे में डाल कर मूर्तियाँ तैयार करते हैं।"

गोबर से बनाये जा रहे दिए और ॐ । फोटो : गाँव कनेक्शन

वहीं एक और महिला राजरानी बताती हैं, "सतना में एक आजीविका स्टोर खोला गया है जिसमें पांच-पांच रुपये में शुभ-लाभ, ओम और दीया, और 250 रुपये में गणेश मूर्तियां और 100 रुपये में गमले बेचे जा रहे हैं।"

गोबर से मूर्तियाँ तैयार करने की ट्रेनिंग इन महिला स्व-सहायता समूह की महिलाओं को दीन दयाल अंत्योदय योजना - नेशनल रूरल हाउसहोल्ड्स मिशन (डीएवाई- एनआरएलएम) के तहत दी गई है। समूह से जुड़ी इन महिलाओं के पास न खेती-बाड़ी है और न ही परिवार चलाने के लिए आजीविका का कोई श्रोत था। मगर समूह से जुड़ने के बाद ये महिलाएं अच्छा पैसा भी कमा पा रही हैं।

एनआरएलएम के आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश के 52 जिलों के 313 ब्लॉक के 22,998 ग्राम पंचायतों को इस योजना में शामिल किया गया है। केवल सतना जिले की ही बात करें तो यहाँ 706 ग्राम पंचायतों के 1961 गांव में स्व-सहायता समूह गठित किये गए हैं और इनमें 58,012 महिलाएं जुड़ी हुईं हैं। इससे इन ग्रामीण महिलाओं को आजीविका का श्रोत मिल सका है।

प्रदेश के ऊँचेहरा जिले में आने वाले गांव बांधी मौहार में मछुआ स्व-सहायता समूह से जुड़ीं कौशल्या केवट बताती हैं, "हमारे गाँव में 10 साल से स्व-सहायता समूह संचालित है। एक साल पहले गौशाला भी बनाई गई। अभी हमारे समूह में 10 महिलायें हैं और अभी सभी को मूर्ति बनाए की ट्रेनिंग दी गई है।"

एनआरएलएम के जिला कार्यक्रम अधिकारी प्रमोद शुक्ला 'गांव कनेक्शन' से बताते हैं, "प्रशिक्षण मिलने के बाद समूह की ये महिलाएं गोबर से मूर्तियाँ बना रही हैं। इन महिलाओं के हुनर की सराहना ज़िला पंचायत की मुख्य कार्यपालन अधिकारी ऋजु बाफना ने भी की। उनके ही आदेश पर आजीविका स्टोर खोले गए हैं जहाँ ये महिलाएं मूर्तियाँ भी ले जाती हैं।"

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