देश में आधे से अधिक डॉक्टर फर्जी

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2016 में अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि भारत में काम करने वाले 57.3 प्रतिशत डॉक्टर झोलाछाप हैं, उनके पास मेडिकल की योग्यता नहीं है, तब तत्कालीन केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने रिपोर्ट को गलत बताया था, लेकिन अब केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय इसी रिपोर्ट को सही मान रहा है

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   16 Aug 2019 1:38 PM GMT

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देश में आधे से अधिक डॉक्टर फर्जी

सड़क के किनारे एक छोटी सी झोपड़ी, एक छोटी सी मेज पर रखी दवाई की शीशियां और टंगा डाक्टर साहब का बैनर। इस तस्वीर से भारत की ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा का अंदाजा लगा सकते हैं। जब डॉक्टर साहब का क्लीनिक ऐसा है तो उनकी डिग्री और अन्य चीजों का अंदाजा लगाया जा सकता है। यही नहीं, सरकार ने भी खुद ही माना है कि देश में 57.3 प्रतिशत एलोपैथिक डाक्टर फर्जी हैं, इनके पास मेडिकल की कोई डिग्री नहीं।

बहराइच के जालिम नगर मोहल्ले में झोपड़ी में खुले एक बंगाली दवाखाना में हर दवाई मिलेगी। यहां के डॉक्टर ने फोन पर गाँव कनेक्शन को बताया, " छोटी-मोटी बीमारियों का इलाज करता हूं। वे दवाएं ही देता हूं जिसे मरीज को कोई नुकसान न पहुंचे। क्लीनिक चलाने के लिए हर महीने स्वास्थ्य विभाग को रुपए देने पड़ते हैं। हमारा महीना बंधा हुआ है," आगे बताया, "लोग हमें झोलाछाप कहते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि अगर देश में झोलाछाप न हों तो हर साल लाखों लोगों की मौत इलाज के अभाव में ही हो जाए। सरकारी अस्पतालों और डॉक्टरों की सच्चाई किसी से छिपी नहीं है।"

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बिना रोक-टोक ग्रामीण क्षेत्रों में झोलाछाप करते हैं इलाज।

देश में खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ते बिना डिग्री धारी झोलाछाप डाक्टरों की आई बाढ़ को ऐसे समझ सकते हैं। एक डॉक्टर ने पहचान छिपाते हुए कहा, " साइंस माध्यम से 12वीं पास हूं। आर्थिक तंगी होने के कारण आगे की पढ़ाई नहीं कर सका। कस्बे में एक मेडिकल स्टोर पर काम करने लगा। धीरे-धीरे दवाइयों की जानकारी हो गई, इंजेक्शन लगाना भी सीख गया। बाद में गाँव में क्लीनिक खोल लिया। हल्की-फुल्की बीमारी में मेरे पास ही आते हैं। कम पैसों में इलाज हो जाता है और मेरी रोजाना करीब चार-पांच सौ की कमाई। समय मिलने पर खेती-बाड़ी भी कर लेता हूं।"

ऐसे झोलाछाप डॉक्टर हर गाँव और कस्बें में मिल जाएंगे। क्यूंकि सरकारी चिकित्सा सेवा का तंत्र चरमराया हुआ है। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के अनुसार यूपी में 5,172 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों (पीएचसी) की ज़रूरत है, जबकि सिर्फ 3692 ही मौजूद हैं। इनकी हालत कैसी है यह बात दसूरी है।

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विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2016 ने रिपोर्ट में बताया था कि भारत में काम करने वाले 57.3 प्रतिशत डॉक्टर झोलाछाप हैं। उनके पास मेडिकल की योग्यता नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार बहुत से डॉक्टर सिर्फ 12वीं पास हैं। तत्कालीन केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने रिपोर्ट को गलत बताया था, लेकिन अब केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय इसी रिपोर्ट को सही मान रहा है।


इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) लखनऊ के प्रेसिडेंट डॉ. जीपी सिंह ने गाँव कनेक्शन से कहा, "नीम-हकीम और झोलाछाप के झांसे में आकर आए दिन कई लोगों की जान चली जाती है। कई बार यह भी देखने में आता है कि मरीज समय और पैसा बचाने के चक्कर में झोलाछाप से इलाज कराना बेहतर समझता है," आगे कहते हैं, "कुछ लोग दो-चार साल किसी डॉक्टर के यहां कंपाउडर का काम करते हैं फिर अपना क्लीनिक खोल लेते हैं। न तो डिग्री होती है और न अनुभव। हकीकत है कि डॉक्टर बना वह व्यक्ति ठीक से इंजेक्शन लगाना भी नहीं जानता। इसके लिए लोग और सरकार की नीतियां दोनों दोषी हैं।"

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इण्डिया स्पेंड की एक रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश में पिछले 15 वर्षों में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की संख्या में आठ फीसदी की गिरावट हुई है। इस अवधि के दौरान राज्य की जनसंख्या में 25 फीसदी की वृद्धि हुई है। पिछले 25 वर्षों से 2015 तक, छोटे उप केन्द्रों, (सार्वजनिक संपर्क का पहला बिंदु) की संख्या में 2 फीसदी से अधिक की वृद्धि नहीं हुई है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार भारत में 123655 स्वास्थ्य उपकेंद्र, 25308 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 5396 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और 779 जिला अस्पताल और 1108 सब डीविजनल अस्पताल हैं।

दिल्ली हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और राइट टू पब्लिक हेल्थ के लिए काम करने वाले अशोक अग्रवाल कहते हैं, "भारत में न तो पर्याप्त संख्या में अस्पताल हैं, और न डॉक्टर। स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता के साथ-साथ उपलब्धता में बहुत बड़ा अंतर है। यह अंतर सिर्फ राज्यों के बीच नहीं, बल्कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में भी है। सरकारी डॉक्टरों की कमी के कारण भी लोग ऐसे फर्जी डॉक्टरों के पास जाने को मजबूर हैं, क्योंकि उनके पास इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है।"

ग्रामीण इलाकों में कुछ इस तरह से बिकती हैं दवाएं।

स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाली गैर सरकारी संस्था जन स्वास्थ्य अभियान की राष्ट्रीय सह समन्वयक सुलक्षणा नंदी ने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया, " हमारे देश में स्वास्थ्य की सार्वजनिक प्रणाली पूरी तरह से चरमरा गई है। देश का प्राथमिक स्वास्थ्य खुद बीमार है,खासकर ग्रामीण क्षेत्र में। कोई एमबीबीएस डॉक्टर गाँव में जाना नहीं जाता। ऐसे में देश की एक बहुत बड़ी आबादी झोलाछाप से इलाज कराने को मजूबर है। कई बार गलत इलाज के कारण लोगों की जान भी चली जाता है, लेकिन उनके पास विकल्प नहीं है। सरकार को सबसे पहले प्राथमिक स्वास्थ्य को दुरुस्त करना होगा।"

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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सेंट्रल ब्यूरो आफ हेल्थ इंटेलिजेंस की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति 11,082 आबादी पर महज एक डॉक्टर है, जबकि तय मानकों के मुताबिक यह अनुपात प्रति एक हजार आबादी पर एक डॉक्टर होना चाहिए। देश में अनुपात तय मानकों के मुकाबले 11 गुना कम है। बिहार में तो तस्वीर और भयावह है। वहां 28,391 लोगों पर महज एक एलोपैथिक डॉक्टर है। उत्तर प्रदेश, झारखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में भी तस्वीर बेहतर नहीं है।

देश में झोलाछाप डॉक्टरों की भरमार है।

कई बार मजबूरी में और सस्ते इलाज के चक्कर में बिना डिग्री के डॉक्टरों से इलाज कराने पर जान पर भी बन आती है। "मुझे पाइल्स (बवासीर) की दिक्कत थी। बहुत परेशान रहता था, कई डॉक्टरों को दिखाया फिर भी राहत नहीं मिली। एक दिन मेरे एक रिश्तेदार ने कस्बे में रहने वाले डॉक्टर के बारे में बताया, जो शर्तिया इलाज के दावे करता था। जब मैं उसके पास पहुंचा तो उसने अपने क्लीनिक के बाहर बड़े-बड़े अक्षरों में अपने दवाखाने का नाम और अपनी डिग्री (एमबीबीएस) लिख रखी थी।" गोरखपुर के रहने वाले मनोज मिश्रा (38वर्ष) ने बताया।

मनोज आगे कहते हैं, "शुरुआती दो महीने उसने कुछ दवाइयां खाने को दीं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। फिर ऑपरेशन करने की बात कही। ऑपरेशन के बाद मेरी समस्या और बढ़ गई। ऑपरेशन की जगह घाव हो गया और लगातार पस निकल रही थी। ज्यादा स्थिति गंभीर होने पर दिल्ली बड़े सरकारी अस्पताल में इलाज कराया। वहां डॉक्टरों ने बताया, ऑपरेशन सही से नहीं किया गया था। घाव के आस-पास संक्रमण फैल गया था। अगर कुछ माह सही से इलाज नहीं होता तो कैंसर होने की संभवना बढ़ जाती।"


वहीं इसके लिए एक झोलाछाप डाक्टर ने सिस्टम को दोषी बताते हुए कहा, "देश में मेडिकल की डिग्री देने वाले सैकड़ों फर्जी संस्थान संचालित हैं, जहां से हर साल हजारों की संख्या में फर्जी डिग्रियां जारी की जाती हैं। कोई मामला आता है तो सरकार हमारे खिलाफ कार्रवाई करती है, अभियान चलाती है, लेकिन उन संस्थानों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती है। फर्जी संस्थानों के खिलाफ कार्रवाईव नहीं करने के उनके खुद के हित हैं।"

वहीं, दिल्ली हाईकोर्ट के एडवोकेट अशोक अग्रवाल कहते हैं, "हमारे यहां झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ सख्त नियम कानून बने हुए हैं। अगर कोई अप्रशिक्षित और अयोग्य व्यक्ति किसी मरीज का इलाज करे तो उसके खिलाफ धोखाधड़ी की धारा 419, 420 के अलावा इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट की धारा 15(3) के तहत कड़े दंड का प्रावधान है। इस एक्ट में दो साल तक की सजा हो सकती है। इसके अलावा यदि उसकी डिग्री फर्जी हैं तो उसके खिलाफ धारा 468, 471 के तहत भी कार्रवाई का प्रावधान है।"

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