विश्व मानवाधिकार दिवस: बारीकी से जानें अपने अधिकार 

Astha SinghAstha Singh   10 Dec 2018 6:15 AM GMT

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विश्व मानवाधिकार दिवस: बारीकी से जानें अपने अधिकार विश्व मानवाधिकार दिवस 

एक देश में महेश नाम के एक फिल्म स्टार को कोर्ट चार लोगों को शराब पीकर कुचलने के बावजूद मामूली जुर्माना लगा कर छोड़ देती है। इस फिल्म स्टार की शख्सियत और पहुंच बहुत ऊंची होती है इसलिए कानून उसकी पूरी मदद करता है। चार मासूम लोगों की जिंदगी को तबाह करने के बाद भी वह समाज में आजाद घूमता है।

वहीं दूसरी तरफ एक शख्स है राकेश जो गरीब है और सब्जी बेचकर अपना घर चलाता है। एक दिन कुछ पुलिस वाले उसे बाजार में खड़ी गाड़ी से पैसे चोरी करने के जुर्म में अंदर कर देते हैं और कानूनी प्रक्रिया की सुस्ती की वजह से उसकी चोरी का केस एक साल तक खिंच जाता है। उस कार से चोरी हुई रकम थी मात्र कुछ हजार रूपए और उस चोरी को अंजाम भी राकेश ने नहीं दिया था , लेकिन इस कुछ हजार रूपए के लिए राकेश को अपनी जिंदगी का एक अहम साल जेल में गुजारना पड़ा । मानवाधिकार संस्थानों के हस्तक्षेप के बाद उसे जेल से रिहाई मिली लेकिन एक साल में उसकी जिंदगी बदल गई थी । उसके पिता का निधन हो गया था और घर में छोटे भाई-बहन बाल मजदूरी करने को विवश हो गए थे ।

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यह कहानी बेशक ज्यादा मार्मिक ना हो लेकिन यह हालात जिस पर बीतते हैं उसकी जिंदगी तबाह हो जाती है । उसका शासन और न्याय से विश्वास उठ जाता है । उन्हें तरह तरह की यातनाओं से गुजरना पड़ता है , कितनी जिल्लत झेलनी पड़ती है ।यह सब सिर्फ इसलिए है क्यूंकि लोगों को अपने मानवाधिकारों के बारे में पता ही नहीं होता और सरकार खुद इस विषय पर जनता को गुमराह करती है ।

मानवाधिकारों की घोषणा और इसकी रूपरेखा तो तैयार कर दी गई लेकिन इसके पालन के लिए कोई विशेष व्यवस्था नहीं की गई। नतीजन आज विश्व की एक बड़ी आबादी सामाजिक असंतुलन और विभाजन के कोप से गुजर रही है । अमीर और अमीर और गरीब और गरीब होता जा रहा है ।

क्या है मानवाधिकार दिवस

मानवाधिकार मतलब किसी भी इंसान की जिंदगी, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार। आज 10 दिसम्बर को पूरा विश्व मानवाधिकार दिवस के रूप में मना रहा है। मानवाधिकार एक ऐसा विषय है जिस पर हमेशा से ही बहस होती रही है।

कब हुई थी शुरुआत

मानवाधिकार दिवस की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1948 में की थी। उसने 1948 में सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा स्वीकार की थी और 1950 से महासभा ने सभी देशों को इसकी शुरुआत के लिए आमंत्रित किया था। संयुक्त राष्ट्र ने इस दिन को मानवाधिकारों की रक्षा और उसे बढ़ावा देने के लिए तय किया। लेकिन हमारे देश में मानवाधिकार कानून को अमल में लाने के लिए काफी लंबा समय लग गया। भारत में 26 सितंबर 1993 से मानव अधिकार कानून अमल में लाया गया।

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जानें अपने अधिकार

सब लोग गरिमा और अधिकार के मामले में स्वतंत्र और बराबर हैं यानि सभी मनुष्यों को गौरव और अधिकारों के मामले में जन्मजात स्वतंत्रता और समानता प्राप्त है। उन्हें बुद्धि और अंतरात्मा की देन प्राप्त है और परस्पर उन्हें भाईचारे के भाव से बर्ताव करना चाहिए।

प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के सभी प्रकार के अधिकार और स्वतंत्रता दी गई है। नस्ल, रंग, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीतिक या अन्य विचार, राष्ट्रीयता या समाजिक उत्पत्ति, संपत्ति, जन्म आदि जैसी बातों पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। चाहे कोई देश या प्रदेश स्वतंत्र हो, संरक्षित हो, या स्वशासन रहित हो, या परिमित प्रभुसत्ता वाला हो, उस देश या प्रदेश की राजनैतिक क्षेत्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्थिति के आधार पर वहां के निवासियों के प्रति कोई फर्क नहीं रखा जाएगा।

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  • प्रत्येक व्यक्ति को जीवन, आजादी और सुरक्षा का अधिकार है।
  • गुलामी या दासता से आजादी का अधिकार, अर्थात किसी भी व्यक्ति को गुलामी या दासता की हालत में नहीं रखा जा सकता, गुलामी-प्रथा और व्यापार पूरी तरह से निषिद्ध होगा।
  • यातना, प्रताड़ना या क्रूरता से आजादी का अधिकार अर्थात किसी को भी शारीरिक यातना नहीं दी जा सकती और न किसी के भी प्रति निर्दय, अमानवीय या अपमानजनक किया जा सकता है।
  • कानून के सामने समानता का अधिकार अर्थात हर किसी को, हर जगह कानून की निगाह में व्यक्ति के रूप में स्वीकृति-प्राप्ति का अधिकार है।
  • कानून के सामने सभी को समान संरक्षण का अधिकार अर्थात कानून की निगाह में सभी समान हैं और सभी बिना भेदभाव के समान कानूनी सुरक्षा के अधिकारी हैं।
  • अपने बचाव में इंसाफ के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने का अधिकार, अर्थात सभी को संविधान या कानून द्वारा प्राप्त बुनियादी अधिकारों पर किसी के द्वारा अतिक्रमण कि‍ए जाने पर समुचित राष्ट्रीय अदालतों की सहायता पाने का अधि‍कार है।
  • मनमाने ढंग से की गई गिरफ्तारी, हिरासत में रखने या निर्वासन से आजादी का अधिकार, अर्थात किसी को भी मनमाने ढंग से गिरफ्तार, नजरबंद, या देश-निष्कासित नहीं किया जा सकता।

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  • किसी स्वतंत्र आदालत के जरिए निष्पक्ष सार्वजनिक सुनवाई का अधिकार अर्थात सभी को समान रूप से यह अधिकार है कि उनके अधिकारों और कर्तव्यों के मामले में और फौजदारी के किसी मामले में उनकी सुनवाई अदालत द्वारा न्यायोचित और सार्वजनिक रूप से निरपेक्ष एवं निष्पक्ष हो।
  • जब तक अदालत दोषी करार नहीं दे देती उस वक्त तक निर्दोष होने का अधिकार, अर्थात प्रत्येक व्यक्ति, जिस पर दंडनीय अपरोध का आरोप किया गया हो, तब तक निरपराध माना जाएगा, जब तक उसे ऐसी खुली अदालत में कानून के अनुसार अपराधी न सिद्ध कर दिया जाए, जहां उसे अपनी सफाई की सभी आवश्यक सुविधाएं प्राप्त हों।
  • घर, परिवार और पत्राचार में निजता का अधिकार, अर्थात किसी व्यक्ति की एकांतता, परिवार, घर, या पत्र व्यवहार के प्रति कोई मनमाना हस्तक्षेप न किया जाए, न ही किसी के सम्मान और ख्याति पर कोई आक्षेप हो। ऐसे हस्तक्षेप या आक्षेपों के विरुद्ध प्रत्येक को कनूनी रक्षा का अधिकार प्राप्त है।
  • अपने देश में भ्रमण और किसी दूसरे देश में आने-जाने का अधिकार, अर्थात प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक देश की सीमाओं के अंदर स्वतंत्रतापूर्वक आने, जाने और बसने एवं अपने या पराए किसी भी देश को छोड़ने और अपने देश वापस आने का अधिकार है।
  • किसी दूसरे देश में राजनितिक शरण मांगने का अधिकार अर्थात कि‍सी व्यक्ति के सताए जाने पर उसे
  • दूसरे देशों में शरण लेने और रहने का अधिकार है। परंतु इस अधिकार का लाभ ऐसे मामलों में नहीं मिलेगा जो वास्तव में गैर-राजनीतिक अपराधों से संबंधित हैं, या संयुक्त राष्ट्रों के उद्देश्यों और सिद्धांतों के विरुद्ध है।

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  • राष्ट्रीयता का अधिकार अर्थात प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्र-विशेष की नागरिकता का अधिकार है। किसी को भी मनमाने ढंग से अपने राष्ट्र की नागरिकता से वंचित नहीं किया जा सकता या नागरिकता का परिवर्तन करने से मना नहीं किया जा सकता।
  • शादी करने और परिवार बढ़ाने का अधिकार और शादी के बाद पुरुष और महिला का समानता का अधिकार अर्थात बालिग स्त्री-पुरुषों को बिना किसी जाति, राष्ट्रीयता या दर्म की रुकावटों के आपस में विवाह करने और परिवार स्थापन करने का अधिकार है। उन्हें विवाह के विषय में वैवाहिक जीवन में, तथा विवाह विच्छेद के बारे में समान अधिकार है।
  • संपत्ति का अधिकार अर्थात प्रत्येक व्यक्ति को अकेले और दूसरों के साथ मिलकर संपत्ति रखने का अधिकार है। एवं किसी को भी मनमाने ढंग से अपनी संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता।
  • विचार, विवेक और किसी भी धर्म को अपनाने की स्वतंत्रता का अधिकार अर्थात प्रत्येक व्यक्ति को विचार, अंतरात्मा और धर्म की आजादी का अधिकार है।अपना धर्म या विश्वास बदलने और अकेले या दूसरों के साथ मिलकर तथा सार्वजनिक रूप में अथवा निजी तौर पर अपने धर्म या विश्वास को शिक्षा, क्रिया, उपासना, तथा व्यवहार के द्वारा प्रकट करने की स्वतंत्रता है।
  • विचारों की अभिव्यक्ति और जानकारी हासिल करने का अधिकार अर्थात प्रत्येक व्यक्ति को विचार और उसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। इसके बिना हस्तक्षेप राय रखना और किसी भी माध्यम के जरिए से तथा सीमाओं की परवाह न करके किसी की सूचना और धारणा का अन्वेषण, ग्रहण तथा प्रदान इसमें सम्मिलित है।
  • संगठन बनाने और सभा करने का अधिकार अर्थात प्रत्येक व्यक्ति को शांति पूर्ण सभा करने या समिति बनाने की स्वतंत्रता का अधिकार है। किसी को भी किसी संस्था का सदस्य बनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
  • सरकार बनाने की गतिविधियों में हिस्सा लेने और सरकार चुनने का अधिकार अर्थात प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश के शासन में प्रत्यक्ष रूप से या स्वतंत्र रूप से चुने गए प्रतिनिधियों के जरिए हिस्सा लेने, सरकारी नौकरियों को प्राप्त करने का समान अधिकार है।
  • सामाजिक सुरक्षा का अधिकार और आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की प्राप्ति का अधिकार अर्थात समाज के एक सदस्य के रूप में प्रत्येक व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा का अधिकार है और प्रत्येक व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व के उस स्वतंत्र विकास तथा गौरव के लिए - जो राष्ट्रीय प्रयत्न या अंतर्राष्ट्रीय सहयोग तथा प्रत्येक राज्य के संगठन एवं साधनों के अनुकूल हो - अनिवार्यतः आवश्यक आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की प्राप्ति का हक है।
  • काम करने का अधिकार, समान काम पर समान भुगतान का अधिकार और ट्रेड यूनियन में शामिल होने और बनाने का अधिकार अर्थात इच्छानुसार रोजगार के चुनाव, काम की उचित और सुविधाजनक परिस्थितियों को प्राप्त करने, समान कार्य के लिए बिना किसी भेदभव के समान मजदूरी पाने एवं श्रमजीवी संघ बनाने और उनमें भाग लेने का अधिकार है।
  • काम करने की मुनासिब अवधि और सवैतिनक छुट्टियों का अधिकार अर्थात प्रत्येक व्यक्ति को विश्राम और अवकाश का अधिकार है। इसके अंतर्गत काम के घंटों की उचित हदबंदी और समय-समय पर मजदूरी सहित छुट्टियां सम्मिलित है।

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  • भोजन, आवास, कपड़े, चिकित्सीय देखभाल और सामाजिक सुरक्षा सहित अच्छे जीवन स्तर के साथ स्वयं और परिवार के जीने का अधिकार।
  • शिक्षा का अधिकार अर्थात प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा का अधिकार है,जिसमें प्राथमिक शि‍क्षा अनिवार्य एवं निशुल्क होगी। शिक्षा द्वारा राष्ट्रों, जातियों, अथवा धार्मिक समूहों के बीच आपसी सद्भावना, सहिष्णुता और मैत्री का विकास होगा और शांति बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्रों के प्रयत्नों को आगे बढ़ाया जाएगा।
  • सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शामिल होने और बौद्धिक संपदा के संरक्षण का अधिकार अर्थात प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्रता-पूर्वक समाज के सांस्कृतिक जीवन में हिस्सा लेने, कलाओं का आनंद लेने, तथा वैज्ञानिक उन्नति और उसकी सुविशाओं में भाग लेने का अधिकार है। इसके अलावा प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी ऐसी वैज्ञानिक साहित्यिक या कलात्मक कृति से उत्पन्न नैतिक और आर्थिक हितों की रक्षा का अधिकार है जिसका रचयिता वह स्वयं है।
  • प्रत्येक व्यक्ति को ऐसी सामाजिक और अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की प्राप्ति का अधिकार है जिसमें उस घोषणा में उल्लिखित अधिकारों और स्वतंत्रताओं का पूर्णतः प्राप्त किया जा सके।
  • प्रत्येक व्यक्ति का उसी समाज प्रति कर्तव्य है जिसमें रहकर उसके व्यक्तित्व का स्वतंत्र और पूर्ण विकास संभव हो। अपने अधिकारों और स्वतंत्रताओं का उपयोग करते हुए प्रत्येक व्यक्ति कानून द्वारा निश्चित की गई सीमाओं द्वारा बंध होगा,जिनका एकमात्र उद्देश्य दूसरों के अधिकारों और स्वतंत्रताओं के लिए आदर और समुचित स्वीकृति की प्राप्ति है। इन अधिकारों और स्वतंत्रताओं का उपयोग किसी प्रकार से भी संयुक्त राष्ट्रों के सिद्धांतों और उद्देश्यों के विरुद्ध नहीं किया जाएगा।
  • इस घोषणापत्र में शामिल किसी भी बात की ऐसी व्याख्या न हो जिससे यह आभास मिले कि कोई राष्ट्र, व्यक्ति या गुट किसी ऐसी गतिविधि में शामिल हो सकता है जिससे किसी की स्वतंत्रता या अधिकारों का हनन हो।

भारत में क्या है स्थिति

अगर भारत में मानवाधिकारों की बात की जाए तो यह साफ है कि यहां आज भी एक खास तबके के लोगों को मानवाधिकार पैसों की हैसियत देखकर ही मिलती है। यूपी, मध्यप्रदेश,राजस्थान जैसे राज्यों में जहां साक्षरता का स्तर थोड़ा कम है वहां मानवाधिकारों का हनन आम बात है। इन इलाकों में तो कई बार बेकसूरों को पुलिस और प्रशासन के लोग सिर्फ अपना गुस्सा शांत करने के लिए बेरहमी से मार देते हैं और फिर झूठा केस लगा उन्हें फंसा देते हैं। लेकिन इसके विपरीत शहरों में जहां लोग साक्षर हैं वहां लोग इसका गलत इस्तेमाल भी करते हैं।

मानव अधिकारों के मोर्चे पर लड़ाई अभी लम्बी है, जिसके जल्द ख़त्म होने के आसार नज़र नहीं आते। ह्यूमन राइट्स डे के मौके पर देखिये ये वीडियो और जानिये क्या है इसका इतिहास-

        

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