World Milk Day: लॉकडाउन में आधी कीमतों में बिक रहा दूध, डेयरी व्यवसाय के लिए संकट का समय

कोरोना वायरस को लेकर सरकार ने द्वारा लॉकडाउन के चलते इसका असर दूध व्यापार पर भी दिखाई दिया। ढाबे, मिष्ठान भण्डार, मावा फैक्ट्रियां बंद होने से दूध कारोबार लगभग ठप सा हो गया।

Divendra SinghDivendra Singh   1 Jun 2020 4:56 AM GMT

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World Milk Day: लॉकडाउन में आधी कीमतों में बिक रहा दूध, डेयरी व्यवसाय के लिए संकट का समय

कोरोना संक्रमण को रोकने लिए देश में लगे लॉकडाउन ने पशु पालकों की हालत खराब कर दी है। 30-35 रुपए प्रति लीटर बिकने वाले दूध की कीमत 15-16 रुपए लीटर पहुंच गई। मजबूरी में पशुपालकों को आधे से भी कम दाम में दूध बेचना पड़ा।

मध्य प्रदेश के भोपाल के रहने वाले पशुपालक नेमीचंद हर दिन अपनी डेयरी के दूध के साथ ही गांव के दूसरे कई पशुपालकों का भी दूध इकट्ठा कर के शहर लेकर जाते थे, लेकिन लॉकडाउन के बाद से उनके सामने समस्या है कि अब इतने दूध का क्या करें। नेमीचंद मध्य प्रदेश के भोपाल ज़िले के चन्देरी गांव में 50 गाय-भैंसों की डेयरी चलाते हैं और दिन भोपाल में हलवाईयों के साथ दूसरी दुकानों पर भी दूध सप्लाई करते हैं। वो बताते हैं, "हमारे ज्यादातर ग्राहक होटल और चाय की दुकान वाले ही हैं, लेकिन अब सब बंद हो गए हैं, एक तो पशुओं के चारे की कमी से पहले से ही परेशान हैं और महंगे दाम में पशु आहार मिल रहा है और दूध भी नहीं बिक रहा।"

लॉकडाउन की वजह से देश के दूध उत्पादक किसानों का काफी नुकसान हुआ है। एक तो उन्हें दूध की सही कीमत नहीं मिल रही, दूसरे लागत बढ़ती जा रही और जो दूध हो भी रहा उसे खरीदने वाला कोई नहीं। ढाबे, मिष्ठान भण्डार, मावा फैक्ट्रियां बंद होने से दूध कारोबार लगभग ठप सा हो गया है।

महाराष्ट्र, नासिक के तपवन के किसान संदीप सोनेने के पास 60 देसी गाय है। लॉकडाउन से पहले वे खुद शहरों में जाकर दूध की सप्लाई करते थे, लेकिन उन्हें अब वे रोज 50 लीटर दूध फ्री में दे रहे है और जो कीमत मिल भी रही है वह बहुत कम है।

वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "मैं ए-2 मिल्क दूध का काम करता हूं। कॉलोनियों और घरों में सप्लाई करता था, लेकिन लॉकडाउन के बाद कॉलोनियों में जाने ही नहीं देते। जो दूध पहले 85-95 रुपए प्रति लीटर बेचता था वही अब 25-30 रुपए में बेचना पड़ रहा है, वह भी पूरा बिक नहीं पा रहा। प्रतिदिन कम से कम 50 लीटर दूध फ्री में लोगों को देना पड़ रहा है। जो आमदनी थी वह तो एक दम बंद हो गई, लेकिन खर्च तो नहीं रुकता ना।"


संदीप चारे की बढ़ती कीमत को लेकर भी परेशान हैं। वे कहते हैं, "250 रुपए वाली कुट्टी 500 में मिल रही है। 50 किलो दाने का रेट 1,500-1,800 रुपए था वह अब 3,000 रुपए बोरी है। चोकर, चूनी खली सब 30 से 40 फीसदी महंगा हो गया है। एक तो दूध खरीदने वाला कोई नहीं, कीमत नहीं मिल रही, खर्च बढ़ रहा ऊपर से।"

दुग्ध उत्पादन में लगभग 75% हिस्सेदारी लघु, सीमांत और भूमिहीन किसानों की है। ऐसे में उनके लिए खुद दूध बेच पाना मुश्किल होता है। लगभग 10 करोड़ डेयरी किसान हैं यानी लगभग 50 करोड़ लोग दुग्ध उत्पादन से होने वाली आमदनी पर निर्भर हैं। हमारे देश में लगभग 28 लाख करोड़ रुपए मूल्य का कृषि उत्पादन होता है। इसमें 25% हिस्सा यानी लगभग 7 लाख करोड़ रुपए मूल्य का दूध का उत्पादन होता है।

लॉकडाउन की वजह से सबसे ज्यादा नुकसान छोटे दूध उत्पादक किसानों को हो रहा है। बड़े दूध उत्पादक तो अपना दूध कॉपरेटिव, सोसायटी में दे रहे हैं, उनके लिए गाड़ियां आ रही हैं, लेकिन होटल, चाय की दुकान और घरों में दूध देने वाले किसानों को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ रहा है।

लगभग 18 करोड़ टन दूध उत्पादन के साथ भारत विश्व के 20% दूध का उत्पादन करता है और पिछले दो दशकों से प्रथम स्थान पर बना हुआ है।


20वीं पशुगणना के अनुसार देश में 14.51 करोड़ गाय और 10.98 करोड़ भैंसें हैं, जबकि गोधन (गाय-बैल) की आबादी 18.25 करोड़ है। साथ ही दुधारू पशुओं (गाय-भैंस) की संख्या 12.53 करोड़ है।

दूध की खपत कम होने से सरकारी समितियों ने पशुपालकों से खरीदे जाने वाले दूध का दाम भी घटा दिया है।

मेरठ के सबसे बड़े पशु पालक मनीष भारती ने गाँव कनेक्शन को बताया हमारे पास 80 गाय हैं जिसमें 300 से 350 लीटर दूध का उत्पादन प्रतिदिन होता है लेकिन हमारे सामने आज सबसे बड़ा संकट खड़ा है पशुओं के चारा महंगा आ रहा है और दूध सस्ता बिक रहा है और खपत भी नहीं है ऐसे में हमें दूध पराग जैसी बड़ी डेयरी ओ को देना पड़ रहा है जो पूरी तरह कौड़ियों के भाव बिक रहा है बड़ा संकट है।

कोरोना वायरस के चलते लागू लॉकडाउन के चलते पंजाब के दुग्ध उत्पादन पर कहर बनकर टूटा है। सूबे में दुग्ध उत्पादन का धंधा, कृषि क्षेत्र की कुल घरेलू पैदावार का एक तिहाई हिस्सा है। ग्रामीण-पंजाब के 34 लाख परिवारों में से कम से कम 60 फ़ीसदी परिवार इस धंधे से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। इसके अतिरिक्त जम्मू-कश्मीर के लगभग 20 हजार प्रवासी गुर्जर परिवार भी पंजाब में दूध का कारोबार करते हैं और वे इत्तर कारणों से दिक्कतों में हैं।


राज्य में सहकारी और बड़ी कंपनियों को छोड़कर दुग्ध उत्पादन की खपत असंगठित क्षेत्रों में होती है। कोरोना वायरस के संकट के बाद कर्फ्यू और लॉकडाउन लागू हुआ तो बाकी सब के साथ-साथ होटल, रेस्टोरेंट, मैरिज पैलेस, कैटरिंग, हलवाई, दही और पनीर की बिक्री भी ठप्प हो गई। 23 मार्च से पहले प्रतिदिन तकरीबन 45 लाख लीटर दूध की खपत होती थी। अब यह 20 लाख तक सीमित है। ज्यादातर दूध बेकार हो रहा है और डेयरी मालिक इसे नदियों-नालों में बहाने को मजबूर हैं। खपत में कमी आने के बाद राज्य भर के शहरों, कस्बों और गांवों में दूध के खुले लंगर भी लगाए गए। सख्त कर्फ्यू और लॉकडाउन के चलते दूध के इन लंगरों को बंद करना पड़ा। आलम यह हो गया कि दूध की कीमत में 10 से 15 रुपए की गिरावट आ गई है।

पंजाब डेयरी एसोसिएशन के प्रधान हरनेक सिंह के मुताबिक कई दुग्ध उत्पादक अब इस धंधे से किनारा कर रहे हैं लेकिन फिलहाल सबसे बड़ी समस्या यह है कि पशु मंडियां एकदम बंद है और वे अपने पशु कहां और किसे बेचें? मौजूदा हालात में दुग्ध उत्पादक पशुओं के लालन-पालन अथवा रखरखाव का खर्चा भी नहीं निकाल पा रहे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार के 20 लाख करोड़ रुपए के घोषित पैकेज की बाबत दावा किया गया है कि इसमें से 8 लाख करोड़ रुपए डेयरी के बुनियादी ढांचे को दिए जाएंगे। विशेषज्ञों के अनुसार यह दो साल पहले की गई घोषणा का दोहराव है। पंजाब प्रोग्रेसिव डेयरी फार्मर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष दलजीत सिंह कहते हैं, "डेयरी उत्पादन के लिए केंद्रीय पैकेज में जो घोषणाएं की गई हैं, वे खोखली हैं। दुग्ध उत्पाद को और संबंधित सहकारी समितियों को सीधे तौर पर सहायता दी जानी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया।" राज्य पशुपालन विभाग के निदेशक डॉ इंद्रजीत सिंह के अनुसार दुग्ध उत्पादकों के विशेष पैकेज के लिए केंद्र को लिखा गया है। इस संकट में निहायत जरूरी है कि केंद्र पंजाब के दुग्ध उत्पादकों के लिए विशेष राहत पैकेज दे।

उत्तर प्रदेश के लखनऊ के पशुपालक जमील कहते हैं, "पानी के भाव बिक रहा है, वो भी कोई जल्दी लेने को तैयार नहीं होता। अभी लोगों का पेट भरना मुश्किल हो रहा है कोई दूध क्यों खरीदेगा? कोई 10-15 रूपये लीटर भी लेता है तो हम दे देते हैं, कम से कम जानवरों के चोकर का पैसा तो निकले। गाय को दाना खली नहीं मिल पा रहा तभी सूखकर इतनी कमजोर हो गयी हैं।"


जमील के पास 12 गाय और दो भैंसे हैं, ये कई साल से दूध का ही धंधा करते हैं, इनके पास अपनी खुद की जमीन नहीं है, आमदनी का दूध ही मुख्य रोजगार है जो अभी बंद पड़ा है। जमील ने अपने बगल में रहने वाले वाजिद अली की तरफ इशारा करते हुए कहा, "ये तो खोया का धंधा करते हैं, मेहनत भी निकल पा रही।

कई सालों से खोया का कारोबार करने वाले वाजिद अली (65 वर्ष) इस बात से परेशान थे कि 350-400 रूपये किलो बिकने वाला खोया अब गाँव में 100-120 रूपये में भी लोग बहुत कहने पर खरीद रहे हैं। इस लॉकडाउन में जानवरों की स्थिति भी बद्दतर हो गयी है। लोग अपना पेट भरने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं ऐसे में जानवरों की पर्याप्त देखरेख नहीं हो पा रही है।

"खोया किसी भाव नहीं बिक रहा। चोकर 1400-1500 रुपए में हो गया है। आमदनी हो नहीं रही, इतना महंगा चोकर जानवरों को नहीं खिला पा रहे हैं। जानवरों ने दूध आधा कर दिया है। अब खर्चों की तबाही है आपको क्या-क्या बताएं? यह सहालग का समय होता है जब खोया का अच्छा भाव मिलता है। खबरें देखकर तो ऐसा लग रहा है कि अब कई महीने ऐसा ही चलेगा, इतने दिनों में जानवर तो कमजोर हो जाएंगे जब उन्हें भरपेट भूसा चोकर नहीं मिलेगा।"

सरकार के हवाले से एक रिपोर्ट यह भी कहती है कि भारतीय डेयरी सेक्टर पिछले चार सालों से 6.4 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। लेकिन इसकी एक सच्चाई यह भी है कि दूध कारोबार से जुड़े किसानों को लिए यह सेक्टर घाटे का सौदा बनता जा रहा है। निजी कंपनियां तो मुनाफा कमा रही हैं लेकिन किसानों की पहुंच से यह अभी भी दूर है।

किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष पुष्पेंद्र सिंह चौधरी कहते हैं, "देश की अर्थव्यवस्था के लिए दुग्ध किसान बहुत जरूरी हैं। ऐसे में सरकार को इनके लिए जल्द ये जल्द कोई न कोई तरकीब निकालनी चाहिए। दूध की कीमत 30 फीसदी तक हुई तो वहीं लागत भी इतनी ही बढ़ गई है। ऐसे में उन किसानों को इसका बहुत नुकसान हो रहा है जो रोज दूध बेचकर घरों का खर्च चलाते हैं। हमारे यहां तो 70 फीसदी लघु और छोटे किसान हैं जो दूध बेचकर थोड़ा बहुत मुनाफा कमा लेते थे। उनका काम पूरी तरह बंद हो गया है।"

    

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