ये है भारत की दुग्ध क्रांति के पीछे की कड़वी हकीकत
Diti Bajpai 1 Jun 2017 7:44 PM GMT

लखनऊ। महाराष्ट्र में हजारों लीटर दूध सुबह सड़कों पर बहा दिया गया। तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं तो लोगों को पता चला आज वर्ल्ड मिल्क डे है। वैसे तो भारत को सदियों से दूध-दही देश कहा जाता रहा है और आंकड़ों में भी पिछले 15 वर्षों देश में दुग्ध उत्पादन में अव्वल रहा है। लेकिन इस सफेद क्रांति के पीछे एक स्याह कड़वी हकीकत भी है।
केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने वर्ल्ड मिल्क डे पर ट्वीट किया हैं, "पिछले 15 वर्षों में भारत दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में नंबर वन है। यह सफलता हमारे छोटे दुग्ध उत्पादकों, प्रसंस्करणकर्ताओं, नियोजकों, संस्थानों तथा अन्य सभी हितधारकों के कारण ही है। यह अंतराष्ट्रीय दुग्ध दिवस उन सभी डेयरी किसानों को समर्पित है, तो इस सफल इतिहास के भागीदारी है।"
एक जून को दुनिया भर में वर्ल्ड मिल्क डे मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र के फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन (एफएओ) ने वैश्विक खाद्य के रूप में दूध की अहमियत को पहचानते हुए इसकी शुरुआत 2001 से की थी।
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भारत में अभी सालाना 16 करोड़ (वर्ष 2015-16) लीटर दूध का उत्पादन हो रहा है। इसमें 51 प्रतिशत उत्पादन भैंसों से 20 प्रतिशत देशी प्रजाति की गायों से और 25 प्रतिशत विदेशी प्रजाति की गायों से आता है। शेष हिस्सा बकरी जैसे छोटे दुधारू पशुओं से आता है। देश के इस डेयरी व्यवसाय से छह करोड़ किसान अपनी जीविका कमाते हैं। खेती के अलावा पशुपालन ही वो रोजगार है, जिस पर ग्रामीण रोजगार टिका है। लेकिन जिन घरों से ये दूध आता है, वहां दूध की खपत सबसे कम है। यही नहीं उत्तर प्रदेश में प्रति कैपिटा कंमज्पशन यानि खपत बहुत कम है।
यूपी के शाहजहांपुर जिले से करीब 20 किमीमीटर दूर पैना बुजुर्ग गाँव के राजपाल शर्मा (30 वर्ष) के परिवार में 10 लोग हैं और उनके पास 3 गाय हैं। जिनसे रोजाना 15-16 लीटर दूध भी होता है लेकिन घर में सिर्फ पूरे दिन की चाय के लिए दूध बचाते हैं। वो बताते हैं, “घर चलाने के लिए यही (दूध) जरिया है, अगर बेचेंगे नहीं तो खाना-पीना कैसे चलेगा। गाय का दूध महंगा भी बिकता है। घर के लिए यही कोई दो सवा दो लीटर दूध बचा लेते होंगे।”
। दुनिया के अन्य देशों न्यूजीलैंड में प्रति व्यक्ति दूध उपलब्धता 9,773 ग्राम, आयरलैंड में 3,260 ग्राम और डेनमार्क में 2,411 ग्राम है। 250 ग्राम यानि हमारे देश में एक आदमी को औसतन पव्वा भर ही दूध मिल पाता है।
राजपाल ही नहीं उत्तर प्रदेश में ज्यादातर गांवों की यही हालत है। एसोचैम द्वारा ‘भारतीय डेयरी उद्योग की विकास संभावना’ पर किए गए अध्ययन में कहा गया है, दुनिया में विशालतम दूध उत्पादक होने के बावजूद भारत में प्रति व्यक्ति दूध उपलब्धता 252 ग्राम प्रतिदिन है जो कि दुनियाभर औसत प्रति व्यक्ति 279 ग्राम प्रतिदिन से कम है। दुनिया के अन्य देशों न्यूजीलैंड में प्रति व्यक्ति दूध उपलब्धता 9,773 ग्राम, आयरलैंड में 3,260 ग्राम और डेनमार्क में 2,411 ग्राम है। 250 ग्राम यानि हमारे देश में एक आदमी को औसतन पव्वा भर ही दूध मिल पाता है। जबकि सामान्य परिस्थितियों में एक बच्चों को दस साल तक की उम्र तक कम से कम एक लीटर दूध पीना चाहिए।
ये आंकड़ा इसलिए भी गौर करने वाला है, क्योंकि कुपोषण के शिकार देशों में भारत दुनिया के खस्ताहाल देशों में शामिल हैं। भारत में 5 साल से कम उम्र के करीब 10 लाख बच्चे हर साल कुपोषण के कारण मर जाते हैं। इतना ही नहीं कुपोषण के मामले में भारत दक्षिण एशिया में सबसे आगे है, जहां कुपोषण के मामले सबसे अधिक पाए जाते हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) की तीसरी रिपोर्ट के अनुसार, 40 प्रतिशत बच्चे ग्रोथ की समस्या के शिकार हैं, 60 फीसदी बच्चे कम वजन का शिकार हैं।
दूध पौष्टिकता के लिहाज दूध में लगभग हर तत्व पाया जाता है। लखनऊ के डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर संयुक्त जिला अस्पताल की डाईटीशियन डॉ अर्चना सिंह बताती हैं, “ग्रामीण क्षेत्रों में ही सबसे ज्यादा पशुपालन होता है और वहां के बच्चों को ही एक गिलास दूध नसीब नहीं होता है। बच्चों को कुपोषण जैसी बीमारियों को झेलना पड़ता है। बच्चों को अगर सही मात्र में दूध मिले तो उन्हें सूखा रोग से बचाया जा सकता है। 10 साल तक के बच्चे प्रतिदिन एक लीटर दूध जरुर पीना चाहिए।”
हालांकि पश्चिमी यूपी के हालात थोड़े बेहतर हैं लेकिन वहां दूध कारोबार का बड़ा जरिया बनता जा रहा है। शामली जिले में हांथी करौदा गांव में पेशे से शिक्षक अजेंद्र मलिक के परिवार में 4 लोग हैं और उनके पास तीन भैंसे हैं। कुछ साल पहले भैंसों की संख्या ज्यादा हुआ करती थी। वो बताते हैं, 10-12 लीटर दूध होता है लेकिन एक आदमी चाय को छोड़कर मुश्किल से एक गिलास या कटोरा (350 से 400 मिली) पी पाता होगा। क्या करे आदमी भूसा चारा इतना महंगा है बेचेगा नहीं तो आदमी जानवर पाल नहीं पाएगा।” वो आगे बताते हैं, हालांकि कुछ साल पहले तक लोगों दूध बेचने में कम यकीन करते थे। अब दिल्ली एनसीआर का दूध पश्चिमी यूपी और हरियाणा से पहुंचता है। पहलवानों के प्रदेश हरियाणा में तो कहावत थी, दूध दही का खाना, देश मेरा हरियाणा। लेकिन अब वहां भी बेचने की प्रवृत्ति बढ़ी है।
2020 में भारत में हो सकती है दूध की कमी
मौसम के तापमान में हो रही बढ़ोत्तरी देश के दुग्ध उत्पादन में खासा प्रभाव डालने वाला है। अधिकारियों की माने तो दुनिया के सबसे बड़े दुग्ध उत्पादक देश भारत में 2020 तक सालाना दूध उत्पादन में 30 लाख टन की कमी होने की आशंका है। नेशनल डेयरी डेवलेपमेंट बोर्ड’ (एनडीडीबी) के ‘राष्ट्रीय डेयरी प्लान’ में बताए गए अनुमानों के हिसाब से वर्ष 2020 तक देश को 20 करोड़ लीटर दूध की आवश्यकता पड़ सकती है।
ऑपरेशन फ्लड ने बदली थी सूरत
एक समय ऐसा भी था जब हमारे देश में दूध की भारी किल्लत थी और दूध का प्रसंस्करण और लंबे समय तक रखरखाव एक चुनौती था। वर्गीज़ कुरियन जिन्हें भारत में श्वेत क्रांति का जनक कहा जाता है, उन्होनें गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन और नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड की स्थापना और सफल संचालन कर देश के डेयरी क्षेत्र में कई कीर्तिमान रच डाले। दूध के प्रसंस्करण की सफल तकनीक तैयार कर देश भर में सन 1970 में "ऑपरेशन फ्लड" संचालित किया गया ताकि दूध और दूध के सह उत्पादों की सेल्फ लाइफ बेहतर कर उत्पादों को आम लोगों तक पहुंचाया जाए और इसी ऑपरेशन की वजह से भारत दुनिया में सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश भी बना। कुरियन के प्रयासों से ही "अमूल" जैसा अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड भारत में तैयार हुआ।
कुरियन ने सहकारिता का पाठ पठाते हुए गुजरात के किसानों के बीच दूध क्रांति ले आयी और देखते ही देखते सारे राज्य में सहकारिता ने एक आंदोलन का स्वरूप ले लिया। अमूल के अलावा दूधसागर, बनास, पंचामृत, सुमूल और वसुधारा जैसी को-ऑपरेटिव डेयरीज़ ने गुजरात के किसानों की दशा ही बदलकर रख दी। अमूल आज भारत का सबसे बड़ा खाद्य उत्पाद विपणन संगठन बन चुका है। अमूल का सालाना कारोबार 11,668 करोड़ रुपए का है, ये तकरीबन 16 हज़ार से ज्यादा गांवों की सहकारी समितियों से रोज 1.3 करोड़ लीटर दूध एकत्र करता है। दूध और दूध से बने उत्पादों के विक्रय के लिए अमूल के पास 7000 से ज्यादा वितरक और 10 लाख से ज्यादा रिटेल आउटलेट हैं।
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