इंटरनेट की मदद से ग्रामीण राजस्थानी महिलाओं ने कशीदाकारी को दी नई पहचान

पश्चिमी राजस्थान की महिलाओं को कशीदा की कला बहुत ही अच्छे से आती है और उन्होंने उसे कमाई का एक अच्छा जरिया बना लिया है। वे बचपन से ही इस कला को सीखती हैं। इससे वो 3००० से 7००० तक कमा लेती हैं।

Jigyasa MishraJigyasa Mishra   19 Jun 2018 12:29 PM GMT

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इंटरनेट की मदद से ग्रामीण राजस्थानी महिलाओं ने कशीदाकारी को दी नई पहचान

बीकानेर (राजस्थान)। वो महिलाएं और लड़कियां जो कभी शहरों में जाकर ईंट-सीमेंट ढोती थीं, दूसरों के खेतों में मजदूरी करती थीं, आज वो अपने हुनर से लोगों को अपना मुरीद बना रही हैं। रेगिस्तान की महिलाओं की कशीदाकारी (कपड़ों पर कढ़ाई) बड़े-बड़े शोरुम में जलवे दिखा रही है। और ये सब हुआ है इंटरनेट के चलते।

"तपती- रेतीली ज़मीन पर रहने के कारण कपड़ों के टुकड़े हमारे खेत हैं और कशीदा हमारी फ़सल। अब हम तकनीकी के माध्यम से कशीदे के नये तरीके सीख रहे हैं", बीकानेर जिले के कोलायत ब्लॉक के भलूरी गांव में रहने वाली, मंगूरी बाई ने गांव कनेक्शन को बताया।

मंगूरी, पश्चिमी राजस्थान की उन महिलाओं में से हैं जो ग्रामीण परिवेश में रहने के बावजूद, अपनी कशीदा (कढ़ाई) करने के हुनर को इंटरनेट की मदद से बेहतर कर रही हैं।

जून की भीषण गर्मी में बीकानेर में घरों से बाहर निकलना भी हिम्मत का काम है। महिलाएं तो दूर पुरुष तक चौखट के बाहर कदम रखने से पहले कई बार सोचते हैं। ऐसे में यहां की महिलाएं घर में रहकर ही कपडों, पर्दों और चादर आदि पर कढ़ाई किया करती थीं, लेकिन इन्हें कभी इनकी मेहनत का न तो मोल मिला न पहचान मिली। यहां के डूंगरगढ़, भलूरी, डंडकलां और गोकुल गांवों की दर्जनों महिलाएं इसका शिकार थीं।



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दोपहर के 2:45 बजे हैं और अपने-अपने घरों के काम निपटा कर महिलाएं डंडकलां गांव के आँगनवाड़ी केंद्र में महिलाएं पहुंचने लगी थीं। जहाँ एक तरफ अलग-अलग उम्र की करीबन 30 महिलाएं अपने घर-परिवार की बातें करते हुए अपनी कढ़ाई एक दूसरे को दिखा रही थी। वहीं सुमन (19 वर्ष) अपनी छोटी बहन और मां के साथ एक हाथ में लैपटॉप और दूसरे में धागों का डिब्बा लिए अंदर आती है।

सुमन अपने गांव की इकलौती महिला हैं, जिन्हें लैपटॉप चलाना आती है। इंटरनेट का प्रयोग करके यूट्यूब पर वीडियो देखकर न सिर्फ उन्होंने खुद कई अलग-अलग तरह की डिजाइन सीखी हैं बल्कि दूसरी कई महिलाओं को सिखा भी रही हैं। सुमन अपने घर में सबसे बड़ी हैं और उन्होंने घर चलाने के लिए अपनी मां को संघर्ष करते हुए देखा है। सुमन के हाथ चूल्हे-चौके से निकलकर लैपटॉप के कीबोर्ड तक कैसे पहुंचे इसकी भी कहानी है। वो बताती हैं, "मैंने अपनी माँ को कढ़ाई और कड़ी मेहनत करके हमें और पशुओं को पालते हुए देखा है। पिताजी की शराब की लत की वजह से वह और पैसे कमाने के लिए भैंस का दूध और घी भी बेचती हैं। मैं उनकी मदद करना चाहती थी, लेकिन इसके लिए मुझे एक लैपटॉप की जरुरत थी, जब उनको ये बोला तो वो हैरान रह गईं।"

लेकिन सुमन की किस्मत अच्छी थी, थोड़ी सी मशक्कत और समझाने के बाद मां मान गईं थीं, उसे एक सेकेंड हैंड लैपटॉप मिल गया था। "मैंने फोन पर यूट्यूब में कई वीडियो देखे थे। लैपटॉप में वहीं मैंने मां को दिखाए और उन्हें वैसा ही बनाने को कहा।' गांव कनेक्शन से बात चीत के दौरान सुमन ने बताया।



पश्चिमी राजस्थान की महिलाओं को कशीदा की कला बहुत ही अच्छे से आती है और उन्होंने उसे कमाई का एक अच्छा जरिया बना लिया है। वे बचपन से ही इस कला को सीखती हैं। इससे वो 3००० से 7००० तक कमा लेती हैं। इंटर्नेट भले ही यहां पहुंच गया है लेकिन विकास की रोशनी रूढीवादिता की दीवारें पूरी तरह लांघ नहीं पाई है। लड़कियों की पढ़ाई पर आज भी जोर नहीं दिया जाता। "इस साल हम दसवीं पास कर लेंगे और फिर आगे नहीं पढ़ेंगे क्योंकि गांव में आगे स्कूल नहीं है और हमें शहर जा कर पढ़ने की मनाही है", मंजू (21 वर्ष) ने बताया।

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रूढ़िवादी संस्कृति, जिसमें औरतों को घर से बाहर निकलने की भी मंज़ूरी न हो वहां ट्रेनिंग के लिए आंगनवाड़ी जाना आसान नहीं था। लेकिन महिलाओं के लिए काम कर रही एक स्थानीय गैर सरकारी संस्था उरमूल ने इन महिलाओं की कला को नई उड़ान दी। उनके लिए मार्केट तलाश किया। आज कल इन महिलाओं के बनाए कपड़े, फैब इंडिया, रंगसूत्रा जैसे बड़े बड़े शोरूम में बिकते हैं।

"मेरे पति और ससुर को जब मैंने बताया कि मैं इंटरनेट पर नयी तरीके की कढ़ाई सीखना चाहती हूँ तो उन्होंने पहले मना कर दिया पर जब दूसरी महिलाओं को ज़्यादामाते देखा तो वे मान गए",संतोषी डाक बताती हैं।

संतोषी की मानें तो वो अब टंका, सूफ, खरक और पक्का जैसी कसीदाकारी में माहिर हो गई हैं।


       

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