बिहार के ये पर्यटन स्थल जहां आपको एक बार जरूर जाना चाहिए
Mohit Asthana 6 Jun 2018 6:43 PM GMT
घूमना किसे पसंद नहीं होता है अक्सर हम घूमने का प्लान तो बनाते हैं लेकिन कई बार ये फैसला नहीं ले पाते हैं कि आखिर घूमने कहां जाएं। तो आपको बताते हैं बिहार के ऐसे कुछ पर्यटन स्थलों के बारे में जहां आप इसबार घूमने जा सकते हैं...
गया
गया में बौद्ध धर्म के संस्थापक भागवान बुद्ध को बोधज्ञान प्राप्त हुआ था। ये शहर बिहार के प्रसिद्ध स्थलों में से एक है। गया तीन तरफ से छोटी-छोटी पहाड़ियों मंगला-गौरी, श्रींगा-स्थान, राम-शीला और ब्रह्मायोनि से घिरा हुआ है जिसके पश्चिम की ओर फाल्गु नदी बहती है।
यहां के महाबोधि मंदिर में आप दर्शन कर सकते हैं। गया में विष्णुपद मंदिर भी प्रमुख है दंतकथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के पांव के निशान पर इस मंदिर का निर्माण कराया गया है। यहां का पितृपक्ष का मेला पूरी दुनिया में मशहूर है।
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मुंगेर
मुंगेर में ऐतिहासिक किला है। यहां पर सीताकुंड नामक प्रमुख कुंड है। मुंगेर से 6 किलोमीटर पूर्व में सीता कुंड मुंगेर आनेवाले पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। इस कुंड का नाम पुरूषोत्तम राम की धर्मपत्नी सीता के नाम पर रखा गया है।
कहा जाता है कि जब राम सीता को रावण के चंगुल से छुड़ाकर लाए थे तो उनको अपनी को पवित्रता साबित करने के लिए अग्नि परीक्षा देनी पड़ी थी। धर्मशास्त्रों के अनुसार अग्नि परीक्षा के बाद सीता माता ने जिस कुंड में स्नान किया था यह वही कुंड है।
नालंदा
विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय भारत ही नहीं दुनिया में एक गौरव था इस विश्वविद्यालय की स्थापना 450 ईसवीं में गुप्त शासक कुमारगुप्त ने की थी। नालंदा दुनिया भर में प्राचीन काल में सबसे बड़ा अध्ययन का केंद्र था दुनिया भर के छात्र यहाँ पढ़ाई करने आते थे। चीनी यात्री हेनसांग ने नालंदा विश्वविद्यालय में बौद्ध दर्शन, धर्म और साहित्य का अध्ययन किया था। उसने दस वर्षों तक यहाँ अध्ययन किया।
उसके अनुसार इस विश्वविद्यालय में प्रवेश पाना सरल नहीं था। यहाँ केवल उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र ही प्रवेश पा सकते थे। प्रवेश के लिए पहले छात्र को परीक्षा देनी होती थी। इसमें उत्तीर्ण होने पर ही प्रवेश संभव था। विश्वविद्यालय के छ: द्वार थे। प्रत्येक द्वार पर एक द्वार पण्डित होता था। प्रवेश से पहले वो छात्रों की वहीं परीक्षा लेता था।
इस परीक्षा में 20 से 30 प्रतिशत छात्र ही उत्तीर्ण हो पाते थे। विश्वविद्यालय में प्रवेश के बाद भी छात्रों को कठोर परिश्रम करना पड़ता था तथा अनेक परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना अनिवार्य था। यहाँ से स्नातक करने वाले छात्र का हर जगह सम्मान होता था। लेकिन 12वीं शताब्दी में बख़्तियार ख़िलजी ने आक्रमण करके इस विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया।
पटना
गंगा नदी के किनारे बसा पटना बिहार का सबसे बड़ा शहर है। प्राचीन भारत में इसे पटलिपुत्र के रूप में जाना जाता है यह शहर दुनिया के सबसे पुराने बसे शहरों में से एक माना जाता है। पटना सिख भक्तों के लिए एक प्रमुख तीर्थ है क्योंकि इनके अंतिम सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह का जन्मस्थान माना जाता है।
पटना में पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र बिहार संग्रहालय, गोलघर, बुद्ध स्मृति पार्क, हनुमान मंदिर, बड़ी पटन देवी, छोटी पटन देवी मंदिर, अगम कुआँ, कुम्हरार, क़िला हाउस, शहीद स्मारक आदि प्रमुख है।
वैशाली
वैशाली में ही विश्व का सबसे पहला गणतंत्र यानि "रिपब्लिक" लागू किया गया था। वैशाली जिला भगवान महावीर की जन्म स्थली होने के कारण जैन धर्म के मतावलम्बियों के लिए एक पवित्र नगरी है। वैशाली में अशोक स्तम्भ, बौद्ध स्तूप, विश्व शांति स्तूप जो की जापान के निप्पोणजी समुदाय द्वारा बनवाया गया यही सब चीज़ पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है।
सीतामढ़ी
बिहार चौपाल डॉट काम के मुताबिक सीता के जन्मस्थली से विख्यात सीतामढ़ी को सीता के जन्मस्थान के रूप में माना जाता है सीतामढ़ी के पूनौरा नामक स्थान पर जब राजा जनक ने खेत में हल जोते तो उस समय धरती से सीता का जन्म हुआ था। सीता के जन्म के कारण इस नगर का नाम सीतामढ़ी पड़ा। सीतामढ़ी के प्रमुख पर्यटन स्थल जानकी स्थान मंदिर, उर्बीजा कुंड, हलेश्वर स्थान, पंथ पाकड़, बगही मठ आदि प्रमुख है।
जल मंदिर पावापुरी
जल मंदिर पावापुरी एक महत्वपूर्ण जैन तीर्थ स्थल है। ये जैन धर्म के मतावलंबियों के लिये एक अत्यंत पवित्र शहर है क्यूंकि माना जाता है कि भगवान महावीर को यही मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इस खूबसूरत मंदिर का मुख्य पूजा स्थल भगवान महावीर की एक प्राचीन चरण पादुका है। यह उस स्थान को इंगित करता है जहां भगवान महावीर के पार्थिव अवशेषों को दफ़नाया गया था।
विक्रमशिला विश्वविद्यालय का खंडहर
भागलपुर शहर से करीब 50 किलोमीटर पूरब में कहल गांव के पास अंतीचक गांव स्थित विक्रमशिला विश्वविद्यालय का खंडहर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के राजा धर्मपाल ने आठवीं सदी के अंतिम वर्षों या नौवीं सदी की शुरुआत में की थी। करीब चार सदियों तक वजूद में रहने के बाद तेरहवीं सदी की शुरुआत में यह नष्ट हो गया था।
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