टीकाकरण के लिए मीलों की दूरी तय कर रहे उत्तराखंड के युवा, फिर भी कई लौट रहे बैरंग

उत्तराखंड में युवाओं के लिए कोविड का टीका लगवाना टेढ़ीखीर है। वैक्सीनेशन सेंटर गांव से काफी दूर हैं। युवा पहले कई किलोमीटर पहाड़ी रास्तों पर सफर करते हैं फिर किराया खर्च कर पहुंचते हैं। दूरी और किराया दोनों वैक्सीनेशन की राह में अंड़गा साबित हो सकते हैं।
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चमोली जिले में स्थित जोशीमठ विकास खंड के दूरस्थ क्षेत्र डुमक और कलगोठ समेत आसपास के गांवों के क्षेत्र पंचायत सदस्य नरेंद्र सिंह रावत गांव कनेक्शन से कहते है “यहां 18 की उम्र से अधिक आयुवर्ग के युवाओं को वैक्सीनेशन के लिए गाँव से करीब 35 किलोमीटर की गाड़ी व पैदलमार्ग से यात्रा कर जोशीमठ बाज़ार स्थित सामुदायिक केंद्र जाना पड़ रहा है। मोबाइल नेटवर्क कन्नेक्टिविटी भी न होने कारण रजिस्ट्रेशन में भी दिक्कत है।”

कोरोना से बचाव के लिए वैक्सीन जरुरी है। उत्तराखंड में 44 वर्ष से ऊपर के लिए कई इलाकों में वैक्सीन गांव-गांव लगी थी लेकिन लेकिन युवाओं को काफी स्वास्थ्य केंद्र में जाकर कोरोना का टीका लगवाना होता है। 18-44 आयुवर्ग में वैक्सीनेशन शुरु होने के बाद उत्तराखंड के ग्रामीण युवाओं में एक उम्मीद जगी है। लेकिन वैक्सीनेशन सेंटर तक की लंबी और थकाऊ दूरी उन्हें हताश कर रही हैै। नरेंद्र सिंह रावत जिन गांवों की बात कर रहे वहां से युवा पहले 10 किमीमोटर पैदल चलकर उर्गम गांव पहुंचते हैं, जिसके बाद करीब 80 रुपए का किराया देकर 25 किलोमीटर का सफर करते है। वैक्सीन लगवाने के काम में पूरा दिन लगता है।

उत्तराखंड में 10 मई से 18 की उम्र से अधिक आयुवर्ग के युवाओं के वैक्सीनेशन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी हैं। हिमालयी राज्य उत्तराखंड के सीमान्त व जिला मुख्यालय से कई मीलों दूर बसे क्षेत्रों में अब तक रोड़ व नेटवर्क कन्नेक्टिविटी नहीं पहुंच सकी है। जिस कारण कई ग्रामीण युवाओं को वाहनमार्ग के बराबर पैदल मार्ग भी अपनाना पड़ रहा है।

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चमोली जिले के दशोली क्षेत्र के एक स्कूल में बनाए गए केंद्र में वैक्सीन के लिए कतार में युवा।

गांव कनेक्शन ने जब जिला मुख्यालय से मीलों दूर बसे कई सुदूर गाँवों के ग्राम प्रधानों से बात की तो कई चौकाने वाले बातें सामने निकलकर आई, जिसमे कई ग्रामीण युवा वैक्सीनेशन सेंटर की लंबी दूरी को ज़िम्मेदार ठहराकर वैक्सीनेशन के लिए जाने से इंकार कर रहे हैं तो कई लॉकडाउन के दौरान निजी वाहनों पर पाबंदियां व गाइडलाइन्स के तहत सीमित संख्या सीटिंग कैपेसिटी होने के कारण सेंटर तक जाने के लिए वाहन स्वामियों द्वारा दुगुना किराया वसूलने को भी ज़िम्मेवार ठहरा रहे हैं।

वैक्सीनेशन सेंटर और मोबाइल वैक्सीनेशन

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तराखंड की अनुमानित आबादी करीब 1.15 करोड़ है। 18 वर्ष से अधिक आयुवर्ग के लोगों की अनुमानित आबादी करीब 66 लाख है। वही प्रदेश में हर्ड इम्यूनिटी के लिए उत्तराखंड में कुल आबादी के कम से कम 70 प्रतिशत हिस्से (80 लाख से ज्यादा) को वैक्सीन की दोनों डोज दिया जाना आवश्यक है।

प्रदेश सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक राज्य में 21,89,969 सिंगल और 6,82,460 डबल डोज़ दी जा चुकी है.

कोरोना केसेस पर लगातार निगरानी रख रहे एसडीसीए के संस्थापक अनूप नौटियाल राज्य सरकार को भेजे पत्र में वैक्सीनेशन की तेज़ी पर सुझाव देते हुए लिखते है, “उत्तराखंड जैसे छोटे और पर्वतीय राज्य के लिए आवश्यक है कि छोटे लेकिन, संख्या में ज्यादा वैक्सीनेशन सेंटर बनाये जाएं। अब तक हमारे वैक्सीनेशन सेंटर में कम या मध्यम संख्या में लोग टीका लगवाने पहुंचे हैं। ऐसे में हमें बहुत बड़े वैक्सीनेशन कैंप के बजाए छोटे -छोट कैंप लगाने की जरूरत है।”

अनूप नौटियाल के सुझाव पर बारीकी से देखें तो उत्तराखंड की भौगौलिक परिस्थिति को देखते हुए गाँव कनेक्शन ने जब कई गाँवों के ग्राम प्रधानों से बात की तो वैक्सीनेशन सेंटर की लम्बी दूरी को देखते हुए कई ग्राम प्रधानों ने भी गाँव के आसपास ही छोटे वैक्सीनेशन सेंटर बनाने के सुझाव दिए।

2011 जनगणना के मुताबिक जनपद चमोली की आबादी करीब 4 लाख हैं। वही सरकारी वेबसाइट कोविन के मुताबिक इस जिले में प्रशासन ने करीब 41 वैक्सीनेशन सेंटर बनाए है। कलगोठ गाँव के क्षेत्र पंचायत सदस्य नरेंद्र सिंह रावत आगे कहते है “हमारे गाँव की आबादी के लिए उर्गम गाँव के पीएचसी सेंटर में ही वैक्सीनेशन सेंटर होना चाहिए अन्यथा जोशीमठ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तक जाने के लिए युवा 35 किमी की यात्रा करने के लिए परेशान व बाध्य होते रहेंगे। उन्हें एक तरफ का किराया करीब 80 रुपए तक भरना पड़ता है जो कई गरीब परिवारों के लिए ज्यादा है। सफर में संक्रमण का खतरा अलग है।”

उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों में कोरोना संक्रमण का खतरा अब तेज़ी से मंडराने लगा है। बीते 24 घंटो में 13 में से नौ पहाड़ी जनपदों का संक्रमण दर 44 प्रतिशत रहा। वहीं कई गाँवों में बढ़ते बुखार व ग्रामीणों की रिपोर्ट पॉज़िटिव आने के बाद कई सील व कंटेनमेंट जोन घोषित हो चुके है। ऐसे में शासन-प्रशासन के पास एकमात्र हथियार वैक्सीन ही बचा है।

उत्तराखंड स्टेट बुलेटिन के मुताबिक चमोली जिले में 19 कंटेनमेंट जोन बन चुके है। इसके बावजूद जिले के नारायणबगड़ विकासखंड स्थित उत्तरी कड़ाकोट क्षेत्र में बसे सभी नौ गाँवों के युवाओं को नारायणबगड़ सामुदायिक केंद्र में वैक्सीनेशन आने के लिए करीब 54 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ रही हैं।

सुंभी गाँव के पूर्व प्रधान राजेंद्र सिंह नेगी कहते है, “यहां के नौ गाँवों में करीब 1300-1400 के बीच 18 से 44 आयुवर्ग की संख्या है। हालांकि गाँव के बुज़ुर्गो का टीकाकरण गांव में ही हुआ लेकिन युवाओं के लिए यहां नहीं हो रहा और यहां स्थित गुलुकवाड़ी ग्वाड़ व कोट जैसे गाँव भी है जिन्हें दो किमी की पैदल यात्रा सड़क तक आने के लिए भी करनी पड़ती है।”

वो आगे बताते हैं, “लॉकडाउन में निजी वाहन को बुक कर प्रति व्यक्ति 150 रुपए किराया भी एक तरफ का टीकाकरण केंद्र तक जाने के लिए देना पड़ रहा है, जिससे आर्थिकी से जूझ रहे युवा खासकर परेशान हैं।”

वैक्सीन की किल्लत

राज्य में वैक्सीन स्लॉट बुकिंग की समस्या से जूझ रहे युवाओं की आशंका उस वक्त और बढ़ गई जब राजधानी देहरादून में शुक्रवार (28 मई) को 18-44 आयुवर्ग के लिए नियुक्त कई वैक्सीनेशन केंद्र बंद रहे तो वही चमोली जनपद के नारायणबगड़ ब्लॉक में स्थानीय युवकों ने बताया यहां अब केवल गुरुवार और शनिवार को ही इस वर्ग के युवाओं का वैक्सीनेशन होता है। यही हाल बीते चार दिनों से भारतीय सीमान्त क्षेत्र जनपद पिथौरागढ़ के नेपाल बॉर्डर से सटे इलाके धारचूला का भी है जहां विगत मंगलवार यानी 25 मई से युवाओं के वैक्सीनेशन की प्रक्रिया पर्याप्त वैक्सीन न होने के चलते बंद है।

जोशीमठ के एक प्राथमिक स्कूल में जारी टीकाकरण। फोटो- दीपक रावत

धारचुला से स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार नदीम परवेज़ गांव कनेक्शन से कहते हैं “यहां बड़ी जनसंख्या पर एकमात्र वैक्सीनेशन सेंटर बनाया गया है। जहां वैक्सीन लगवाने के लिए सीमावर्ती सुदूर गांवों के युवा रोज़ाना आकर बैरंग वापस लौट रहे हैं क्यूंकि बीते चार दिनों से यहां वैक्सीनेशन की प्रक्रिया बंद है।”

धारचुला मुख्य बाज़ार से करीब 20 किमी स्थित खुमति गाँव निवासी पुष्कर सिंह कहते हैं, “उनका गाँव धारचूला से बहुत दूर है जिसमे उन्हें सड़कमार्ग तक आने के लिए भी करीब सात किमी की पैदल यात्रा करनी पड़ती है। किसी तरह जब हम यहां आए तो बताया गया कि युवाओं के लिए वैक्सीन नहीं लगाई जा रही है।”

खुमति गाँव के आसपास करीबी 6-7 गाँव स्थित हैं, जिनमे करीब दो से ढाई हज़ार की जनसंख्या अनुमानित है। ऐसे में यहां की बुज़ुर्ग आबादी को भी वैक्सीनेशन के लिए 20 किमी की लम्बी दूरी तय करनी पड़ रही है।

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तराखंड में 18 वर्ष से अधिक आयुवर्ग के लोगों की अनुमानित आबादी करीब 66 लाख है। 

गांव-गांव तक वैक्सीन ऑन व्हील्स (मोबाइल वैक्सीन)

सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज़ के संस्थापक अनूप नौटियाल पवर्तीय जिलों में वैक्सीनेशन केन्द्रों की ग्रामीणों के लिए लंबी दूरी पर चिंता जाहिर करते हुए कहते हैं, “जिस तरह प्रशासन ने हरिद्वार जिले में वैक्सीन ऑन व्हील्स की शुरुआत की है, उसी तरह उन्हें पर्वतीय जिलों में डोर-टू-डोर वैक्सीनेशन कैंपेन भी चलाना चाहिए तभी हम प्रदेश की एक बड़ी आबादी को जल्द वैक्सीनेट कर सकेंगे”

वहीं जब यही सवाल गांव कनेक्शन ने राज्य में टीकाकरण की ज़िम्मेवारी संभाल रहे राज्य प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ. कुलदीप मर्तोलिया से पूछा तो उन्होंने कहा, “उनके संज्ञान में ऐसे मामले लगातार आए है जहां कई लोग टीकाकरण केंद्र की दूरी के कारण नहीं पहुंच पा रहे है, जिसके बाद हमने राज्य के सभी जिलों के जिलाधिकारियों के साथ वर्चुअल मीटिंग कर मोबाइल वैक्सीन चलाने के आदेश दे दिए हैं।”

साथ ही उन गाँवों तक वैक्सीन पहुंचाया जाए साथ ही ऐसे लोग जो किसी विकृति से ग्रसित है केंद्र तक आने में असमर्थ है उनतक भी वैक्सीन पहुंचाई जाए।” वो आगे जोड़ते हैं।

कई गाँवों में मोबाइल नेटवर्क कन्नेक्टिविटी न होने से रेजिस्ट्रशन में आ रही दिक्कतों पर भी जवाब देते हुए डॉ मर्तोलिया कहते है “देखिए जहां कन्नेक्टिविटी की समस्या है, वहां हमारे वालंटियर जाकर लोगों का उसी वक़्त रजिस्ट्रेशन करेंगे व वापस आने के बाद अपने सिस्टम में अपडेट कर देंगे।”

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