कानपुर में जीका वायरस के मामले बढ़कर 105 हुए, प्रशासन हाई अलर्ट पर, सीएम बोले-चिंता की बात नहीं

उत्तर प्रदेश के कानपुर में 22 अक्टूबर को पहला जीका वायरस मामला दर्ज किया गया था। तब से लेकर जीका के मामले बढ़कर अब 105 हो गए हैं। जिले में जीका वायरस टेस्टिंग की सुविधा नहीं है। प्रशासन ने मरीजों की पहचान के लिए डोर-टू-डोर सर्वे और स्वच्छता अभियान शुरू किया है।

Mohit ShuklaMohit Shukla   10 Nov 2021 12:51 PM GMT

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उत्तर प्रदेश के कानपुर में जीका वायरस संक्रमण के मामलों की संख्या बढ़कर 105 हो गई है। यह पहली बार है, जब भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य में मच्छर जनित जीका वायरस के मामले सामने आए हैं। वायरस को फैलने से रोकने के लिए प्रशासन की तरफ से सभी जरुरी प्रयास किए जा रहे हैं। कानपुर दौरे पर पहुंचे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने समीक्षा बैठक के बाद कहा कि चिंता की बात नहीं है। स्वास्थ्य टीमों की संख्या बढ़ाई गई है।

कानपुर में एक के बाद एक केस मिलने के बाद लोग सहमे हुए हैं। अभी हाल ही में कन्नौज जिले से भी जीका वायरस (Zika virus) का एक मामला सामने आया है। कन्नौज के सीएमओ विनोद कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया कि जिस व्यक्ति में जीकावायरस की पुष्टि हुई है, वह कुछ दिनों पहले ही कानपुर से लौट कर आया था।

कानपुर के जिला मजिस्ट्रेट विशाक जी अय्यर ने गांव कनेक्शन को बताया, "विशेषज्ञों की एक टीम वायरस के फैलने के कारणों का पता लगाने के लिए काम कर रही है।" वह आगे कहते हैं,

"एंटमलाजिकल (कीट वैज्ञानिक) अध्ययन कर रहे हैं और जीका वायरस के फैलने के कारणों का पता लगाने के लिए मच्छरों के नमूने लेकर उनकी जांच की जा रही है। अभी तक एक नमूने में जीका वायरस पाया गया है।"



राज्य की राजधानी लखनऊ से करीब 90 किलोमीटर दूर कानपुर में पिछले महीने 22 अक्टूबर को जीका वायरस का पहला मामला सामने आया था। दो सप्ताह के भीतर, 7 नवंबर तक संख्या बढ़कर 89 हो गई। 9 नवंबर को 472 नमूनों की जांच की गई जिसमें से 16 और लोगों में जीका वायरस संक्रमण की पुष्टि की गई। कुल मरीजों की संख्या 9 नवंबर तक 105 हो गई है। अब तक इस वायरस से कोई मौत नहीं हुई है।

कानपुर में जीकावायरस संक्रमण फैलने के कारणों का पता नहीं चल पाया है। मलेरिया, डेंगू, एन्सेफलाइटिस और चिकनगुनिया जैसी बीमारियां मच्छरों के काटने से फैलती हैं। इसके उलट जीका वायरस संक्रमण यौन संबंधों से भी हो सकता है।

जिला मजिस्ट्रेट अय्यर ने बताया, "हमारे लिए ये बता पाना बड़ा मुश्किल है कि वायरस (कानपुर में जीका वायरस) कैसे और कहां से फैलना शुरु हुआ है। हमने शुरुआती मामलों की ट्रेसिंग की और हाल ही के दिनों में की गई उनकी यात्रा के बारे में जानने की कोशिश की। संक्रमित लोगों ने हाल-फिलहाल में न तो कोई यात्रा की थी और न ही वे किसी संदिग्ध मामले के संपर्क में आए थे। "

सीएम बोले चिंता की बात नहीं

उधर, कानपुर में जीका को लेकर हालातों का जायजा लेने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को कहा कि घबराने की जरुरत नहीं है। हमने स्वास्थ्य टीमों की संख्या बढ़ दी। कानपुर में पिछले एक महीने में 105 केस सामने आए हैं जिनमें से 17 पूरी तरह ठीक हो चुके हैं। जिला प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग, नगर निकाय सभी मिलकर निगरानी, स्वच्छता और जांच कर रहे हैं।

उत्तर प्रदेश का पहला जीका केस

भारतीय वायु सेना में मास्टर वारंट ऑफिसर, मुश्ताक अली (57 वर्ष) उत्तर प्रदेश में जीका वायरस के पहले मरीज थे। पिछले महीने 22 अक्टूबर को अली ने कानपुर में अपनी जांच कराई। उनकी रिपोर्ट पॉजेटिव थी।

गांव कनेक्शन ने कानपुर जाकर अली से बातचीत की। उन्होंने बताया कि 13 अक्टूबर को उनके गले में भारीपन होने लगा और आंखें लाल हो गई। उन्होंने स्टेशन पर चिकित्सा कर्मचारियों को सूचित किया जिसके बाद जांच के लिए उनके खून और मूत्र के नमूने लिए गए। कई तरह के संक्रमणों के लिए उनका टेस्ट किया गया था। आखिरकार 22 अक्टूबर को अली में जीका वायरस की पुष्टि की गई। कानपुर और उत्तर प्रदेश में जीकावायरस का यह पहला मामला था।

अली ने गांव कनेक्शन को बताया कि वह पिछले डेढ़ साल से कानपुर से बाहर नहीं गए थे।

अली ने कहा,"मुझे जनवरी,2020 में यहां कानपुर में तैनात किया गया था। तब से, मैं किसी दूसरी जगह पर नहीं गया हूं। लेकिन वायु सेना स्टेशन पर तैनात मेरे कुछ सहयोगियों ने केरल की यात्रा जरूर की थी। वे अपने परिवारवालों से मिलकर आए थे।"

3 नवंबर को अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद से अली, भारतीय वायु सेना स्टेशन से एक महीने की छुट्टी पर हैं।

कानपुर में 105 मरीज मिलने के बाद आसपास के जिलों में भी हड़कंप है। कन्नौज में एक मरीज की पुष्टि भी हो चुकी है। कानपुर में इलाज कराते मरीज। फोटो मोहित शुक्ला

विश्व स्वास्थ्य संगठन ( WHO) के अनुसार, इस साल 8 जुलाई को केरल राज्य में रहने वाले एक व्यक्ति में जीकावायरस (ZIKV) संक्रमण की पुष्टि हुई थी। त्रिवेंद्रम जिले की रहने वाली 24 साल की एक गर्भवती महिला के खून के नमूने लिए गए थे। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी ( NIV) पुणे में आरटी-पीसीआर परीक्षण के माध्यम से उसमें ZIKV वायरल RNA का पता लगाया गया।

8 जुलाई से 26 जुलाई के बीच केरल राज्य में एक्टिव केस फाइंडिंग और पैसिव सर्विलांस के जरिए 590 लोगों के खून की जांच की गई। उनमें से 70 (11.9 प्रतिशत) लोगों की ZIKV रिपोर्ट पॉजेटिव थी।

इस बीच, 31 जुलाई को, महाराष्ट्र राज्य ने पुणे जिले के पुरंदर तालुका के एक गांव बेलसर से अपने पहले जीका मामले की सूचना दी है। इस गांव में तकरीबन 3,500 लोग रहते हैं।

अब तक, भारत में केरल, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्यों से जीका के मामले सामने आए हैं। इनमें से, WHO ने केरल और महाराष्ट्र को मध्यम जोखिम वाले राज्यों के रूप में वर्गीकृत किया है जबकि अन्य तीन राज्यों के लिए जोखिम को कम माना है।

कानपुर में जांच में देरी की शिकायतें

कानपुर के गणेश शंकर विद्यार्थी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रोफेसर विकास मिश्रा ने गांव कनेक्शन को बताया कि जिले में जीका वायरस जांच की कोई सुविधा नहीं है। जिस वजह से नमूने जांच के लिए राज्य की राजधानी लखनऊ भेजे जा रहे हैं।

प्रोफेसर ने कहा, "हमारे पास नमूनों की जांच के लिए लैब और मशीनें तो हैं। हमें सिर्फ टेस्टिंग किट की जरूरत है। कानपुर में ही जांच की सुविधा उपलब्ध कराने के प्रयास किए जा रहे हैं। " वह आगे बताते हैं, "चूंकि यह एक असाधारण बीमारी है, इसलिए प्राइवेट लैब में भी जांच की सुविधा उपलब्ध नहीं है।"

कानपुर के जिला जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ राधेश्याम यादव ने गांव कनेक्शन को बताया कि जीका वायरस से संक्रमित मरीजों की जांच में अक्सर देरी हो जाती है।

गांव कनेक्शन ने उन मरीजों से भी बात की जिन्होंने जांच में देरी की शिकायत की थी।

पोखरपुर में रहने वाले 21 साल के अर्पित सिंह ने गांव को कनेक्शन बताया, "31 अक्टूबर को जीका वायरस के लिए मेरा टेस्ट किया गया था। 4 नवंबर को एक सरकारी अधिकारी ने फोन करके बताया कि मेरी रिपोर्ट पोजेटिव है।"

कन्नौज में डेंगू के हड़कंप और अब जीका वायरस का भी एक केस मिल चुका है। बावजूद गंदगी को लेकर जिला प्रशासन और निकाय उदासीन नजर आते हैं। फोटो- अजय मिश्रा

जीका वायरस: कानपुर में साफ-सफाई बड़ा मुद्दा

वायु सेना में अफसर, अली ने अपने इलाके में स्वच्छता की कमी की ओर इशारा किया। वह कानपुर के जाजमऊ, पोखरपुर इलाके में रहते हैं। जीका वायरस एक वेक्टर जनित रोग है और यह मच्छरों से फैलता है।

वह कहते हैं, "हमारे मोहल्ले में कूड़े के ढेर लगा था। इलाके में सुअर घूमते रहते और कई जगहों पर तो पानी भरा पड़ा था। फिलहाल तो जीका के मामले आने के बाद से सफाई कर्मियों ने इस जगह को साफ कर दिया है।"

कानपुर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) नेपाल सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया कि अली की जीका वायरस संक्रमण की रिपोर्ट पॉजेटिव आने के बाद से पूरे इलाके की साफ-सफाई कर दी गई है।

सिंह ने कहा, " कानपुर में जिन जगहों पर बीमारी फैलने का खतरा ज्यादा है, वहां संदिग्ध मामलों की पहचान करने के लिए हम स्वास्थ्य दल भेज रहे हैं। साथ ही हाल-फिलहाल में अगर उन्होंने कोई यात्रा की है तो उसके बारे में भी जानकारी ली जाएगी।"

कानपुर जिला प्रशासन ने भी संदिग्ध मामलों की पहचान करने और उनकी जांच करने के लिए घर-घर जाकर सर्वे करवाना शुरू कर दिया है।

कानपुर के जिला मजिस्ट्रेट बताते हैं, "आशा, एएनएम और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर सर्वे करना शुरु कर दिया है। ये टीम गर्भवती महिलाओं की पहचान करती हैं और उनमें किसी भी तरह के संदिग्ध लक्षण नजर आने पर उनकी जांच करती हैं। "

अब तक एक गर्भवती महिला जीकावायरस से संक्रमित पाई गई है।

कानपुर में सीएमओ नेपाल सिंह ने जीका से प्रभावित इलाकों का दौरा किया और लोगों से बातचीत की।

जीका वायरस: लक्षण, बचाव और इलाज

जीका वायरस संक्रमण के लक्षणों में बुखार, सिर में दर्द या भारीपन और पूरे शरीर पर चकते हो जाना शामिल हैं। मच्छर जनित बीमारियों से बचने के लिए आमतौर पर जो सावधानियां बरती जाती हैं, जीका वायरस से बचने के लिए भी बस उन्हीं का पालन करना होता है।

संक्रमण का इलाज लक्षणों को आधार पर किया जाता है। प्लेटलेट्स काउंट की बार-बार जांच की जानी चाहिए।

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, 80 प्रतिशत संक्रमित व्यक्तियों में कोई लक्षण नहीं दिखते या फिर हल्के लक्षण होते हैं। लेकिन इससे गर्भवती महिलाओं और पेट में पल रहे उनके बच्चे को खतरा हो सकता है।

WHO ने 14 अक्टूबर, 2021 को कहा था, "Zika वायरस माइक्रोसेफली, जन्मजात जीका सिंड्रोम (CZS) और GBS (गुइलेन-बैरे सिंड्रोम) का कारण बन सकता है।"

माइक्रोसेफली होने पर एक नवजात शिशु का सिर अपेक्षा से काफी छोटा रह जाता है। सामान्य रूप से दीमागी विकास न हो पाने और गुइलेन-बैरे सिंड्रोम की वजह से बच्चा में विकलांगता आ जाती है। गुइलेन-बैरे सिंड्रोमएक ऑटो-इस्युन बीमारी है। गर्भावस्था के दौरान मां को जीका संक्रमण होने पर शिशु में इस बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है।

कन्नौज में अजय मिश्रा के इनपुट्स के साथ

लेखन और संपादनः-प्रत्यक्ष श्रीवास्तव



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