क्यों बढ़ रही हैं मंकीपॉक्स, बर्ड फ़्लू व कोविड जैसी ज़ूूनोटिक बीमारियां?

साल 2020 में कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया, करोड़ों लोग इस बीमारी से संक्रमित हुए और लाखों लोगों की मौत भी हो गई। लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ था, जब ज़ूनोटिक बीमारियों से इंसान प्रभावित हुए हों।

Divendra SinghDivendra Singh   6 July 2022 3:41 AM GMT

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क्यों बढ़ रही हैं मंकीपॉक्स, बर्ड फ़्लू व कोविड जैसी ज़ूूनोटिक बीमारियां?

साल 2020 में जनवरी महीने में ही कोरोना का सबसे पहला मामला सामने आया था, पिछले कुछ वर्षों से देश के अलग-अलग राज्यों में बर्ड फ्लू संक्रमण के मामले भी देखे जा रहे हैं। लेकिन बर्ड फ़्लू या फिर कोरोना पहली बीमारियाँ नहीं हैं, जो पशु-पक्षियों से इंसानों में फैलती हैं, ऐसी बहुत सी बीमारियां हैं, जिन्हें जूनोटिक बीमारियां कहते हैं।

साल 2020 में कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया, करोड़ों लोग इस बीमारी से संक्रमित हुए और लाखों लोगों की मौत भी हो गई। लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ था, जब जूनोटिक बीमारियों से इंसान प्रभावित हुए हों। जंगली जानवरों या पक्षियों से इंसानों में बैक्टीरिया या वायरस के संचरण को ज़ूनोटिक स्पिलओवर भी कहा जाता है।

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी की माइक्रोबायोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ. अमिता जैन ने गाँव कनेक्शन को बताया, "जो बीमारियाँ किसी जानवर से इंसानों में फैलती हैं, वो ज़ूनोटिक बीमारियाँ कहलाती हैं। जैसे कि बर्ड फ़्लू, इसमें वायरस पक्षियों से इंसानों को संक्रमित करता है। बर्ड फ़्लू एक उदाहरण है, ऐसी बहुत सी बीमारियाँ हैं जो जुनोटिक बीमारियों में आती हैं।"


"कोविड वायरस एनिमल्स के जरिए इंसानों तक पहुँचा, लेकिन एक इंसान से दूसरे इंसान में प्रसारित होता गया। जैसे कि रेबीज भी ज़ूनोटिक बीमारियों में ही आता है। इसी तरह जापानी इन्सेफेलाइटिस, चिकनगुनिया जैसी बीमारियाँ वेक्टर बॉर्न डिज़ीज़ कहलाती हैं, "डॉ. अनीता ने बताया।

खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार इंसानों में कई तरह की जुनोटिक बीमारियाँ होती हैं। माँस की खपत दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। एएफओ के एक सर्वे के अनुसार, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया के 39% लोगों के खाने में जंगली जानवरों के मांस की खपत बढ़ी है। जोकि जुनोटिक बीमारियों के प्रमुख वाहक होते हैं।

पूरे विश्व की तरह ही भारत में भी ज़ूनोटिक बीमारियों के संक्रमण की घटनाएँ बढ़ रहीं हैं। लगभग 816 ऐसी जूनोटिक बीमारियां हैं, जो इंसानों को प्रभावित करती हैं। ये बीमारियाँ पशु-पक्षियों से इंसानों में आसानी से प्रसारित हो जाती हैं। इनमें से 538 बीमारियाँ बैक्टीरिया से, 317 कवक से, 208 वायरस से, 287 हेल्मिन्थस से और 57 प्रोटोजोआ के जरिए पशुओं-पक्षियों से इंसानों में फैलती हैं। इनमें से कई लंबी दूरी तय करने और दुनिया को प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं। इनमें रेबीज, ब्रूसेलोसिस, टॉक्सोप्लाज़मोसिज़, जापानी एन्सेफलाइटिस (जेई), प्लेग, निपाह, जैसी कई बीमारियाँ हैं।

राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) की रिपोर्ट के अनुसार, प्लेग से देश के अलग-अलग हिस्सों में लगभग 12 लाख लोगों की मौत हुई है। हर साल लगभग 18 लाख लोगों को एंटी रेबीज का इंजेक्शन लगता है और लगभग 20 हजार लोगों की मौत रेबीज से हो जाती है। इसी तरह ब्रूसीलोसिस से भी लोग प्रभावित होते हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश के कई जिलों में जापानी एन्सेफलाइटिस से लोग प्रभावित होते हैं।

ज़ूनोटिक रोग के उभरने में अनुमानित जोखिम का वैश्विक हॉटस्पॉट मानचित्र।

इंटरनेशनल लाइव स्टॉक रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के अनुसार, तेरह तरह की ज़ूनोटिक बीमारियों की वजह से भारत में लगभग 24 लाख लोग बीमार होते हैं, जिसमें से हर साल 22 लाख लोगों की मौत हो जाती है। जलवायू परिवर्तन भी जुनोटिक बीमारियों के बढ़ने का एक कारक है।

भारतीय पशु-चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ. राजकुमार सिंह भी जुनोटिक बीमारियों के बढ़ने के पीछे जलवायु परिवर्तन को एक कारक मानते हैं। डॉ. राजकुमार सिंह गाँव कनेक्शन को बताते हैं, "पिछले कुछ साल में जितनी भी जुनोटिक बीमारियाँ इंसानों तक पहुंची हैं, वो किसी तरह जंगली जानवरों से इंसानों में पहुंची हैं। इंसानों का दखल जंगलों में बढ़ा है। पिछले कुछ साल में कितने जंगल कट गए, अब जंगल कटेंगे तो जंगली जानवर इंसानों के ज्यादा करीब आएंगे, जिससे बीमारियाँ भी उन तक पहुंचेंगी।"

"जंगल का कटना, शहरी करण का बढ़ना भी बीमारियों के बढ़ने के कारण हैं। जंगल के आसपास विकास, सामाजिक-जनसांख्यिकीय परिवर्तन और पलायन, इन क्षेत्रों में नई आबादी की संख्या बढ़ा देता है। ऐसे में नए वातावरण में बीमारियाँ बढ़ने का जोखिम भी बढ़ जाता है। इसके साथ ही फूड चेन में भी बहुत बदलाव आया है, उसका ख़ामियाज़ा भी तो लोगों को उठाना पड़ेगा, "डॉ. राजकुमार ने आगे कहा।

पिछले 50 साल में दुनिया भर में माँस की खपत भी बढ़ी है, इसलिए मांस उत्पादन भी बढ़ा है। एफएओ ने भी चेतावनी दी है कि माँस उपभोक्ताओं की बढ़ती संख्या नई महामारियों के जोखिम को बढ़ाएगी। विशेष रूप से, जंगलों के करीब बढ़ते पशुधन, खेती और जंगली जानवरों की परस्पर क्रिया मनुष्य के लिए रोगजनकों के प्रसार के महत्वपूर्ण कारण हैं। ये सभी कारक पर्यावरणीय अस्थिरता से संबंधित हैं जो हम इंसानों ने बनाए हैं। प्राकृतिक आवास का नुकसान और खाने में जंगली प्रजातियों को शामिल करने के कारण, जंगली जानवरों और उनके शरीर के वेक्टर जीवों का प्रसार बढ़ गया है।

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