धान के अच्छे उत्पादन के लिए रखें इन बातों का ध्यान

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धान के अच्छे उत्पादन के लिए रखें इन बातों का ध्यानgaonconnection

लखनऊ। धान की बुवाई हाे चुकी है और ये समय फसल के सही प्रबंधन का है। धान हमारे देश की प्रमुख खाद्यान्न फ़सल है। इसकी खेती विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में लगभग 4.22 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है।

इसके प्रमुख कारण है-कीट और व्याधियां, बीज की गुणवत्ता और खरपतवार। धान की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए सुधरी खेती की सभी प्रायोगिक विधियों को अपनाना आवश्यक है, हमारे देश में धान की खेती मुख्यतया दो परिस्थितियों में की जाती है- वर्षा आधारित और सिंचित ऊंची भूमि में वर्षा आधारित खेती में नींदा नियन्त्रण एक बड़ी समस्या है ,यदि इसका समय से नियन्त्रण न किया जाए तो फ़सल पूरी तरह नष्ट हो जाती है। जहां पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है वहां पर रोपाई या बुवाई से पहले मचाई करने से नींदा पर काफ़ी नियन्त्रण पाया जा सकता है

धान की फसल के प्रमुख खरपतवार तीन प्रकार के पाए जाते हैं -

1. चौड़ी पत्ती वाले

2. संकरी पत्ती वाले

3. मोथा कुल

खरपतवारों से हानियां

खरपतवार प्रायः फ़सल से नमी,पोषक तत्व, सूर्य का प्रकाश और स्थान के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं जिससे मुख्य फ़सल के उत्पादन में कमी आ जाती है। सीधे बोए गए धान में रोपाई किए गए धान की तुलना में अधिक नुकसान होता है ।

पैदावार में कमी के साथ-साथ खरपतवार धान में लगने वाले रोगों के जीवाणुओं और कीट व्याधियों को भी आश्रय देते हैं। कुछ खरपतवार के बीज धान के बीज के साथ मिलकर उसकी गुणवत्ता को खराब कर देते हैं।

इसके अतिरिक्त खरपतवार सीधे बोए गए धान में 20-40 किग्रा नाइट्रोजन ,5-15 किग्रा स्फुर,15-50 किग्रा पोटाश और रोपाई वाले धान में 4-12 किग्रा नाइट्रोजन 1.13 किग्रा स्फुर,7-14 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से शोषित कर लेते हैं और धान की फ़सल को पोषक तत्वों से वंचित कर देते हैं।

खरपतवारों की रोकथाम

बुवाई से पूर्व खरपतवारों को नष्ट करके (स्टेल सीड बैड)

खरीफ़ की पहली बारिश के बाद जब खरपतवार 2-3 पत्ती के हो जाएं तो इनको शाकनाशी (ग्लाइफ़ोसेट या पैराक्वेट ) द्वारा या यांत्रिक विधि (जुताई करके) से नष्ट किया जा सकता है जिससे मुख्य फ़सल में खरपतवारों के प्रकोप में काफ़ी कमी आ जाती है ।

गहरी जुताई से

रबी की फ़सल की कटाई के तुरन्त बाद या गर्मी के मौसम में एक बार गहरी जुताई कर देने से खरपतवारों के बीज व कन्द ऊपर आ जाते हैं और तेज धूप में जलकर अपनी अंकुरण क्षमता खो देते हैं। इस विधि से कीटों और बीमारियों का प्रकोप भी कम हो जाता है।

रोपाई वाले खेतों में मचाई (पडलिंग) करके खरपतवारों की समस्या को कम किया जा सकता है। पडलिंग और हैरो करने के बाद खेत में पाटा लगाकर खेत को समतल करके और खेत में पानी भरकर लम्बे समय तक रोककर खरपतवारों की रोकथाम आसानी से की जा सकती है।

 

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