धूम मचाने वाला ओलंपियन रिक्शा चलाने को मजबूर
गाँव कनेक्शन 3 Aug 2016 5:30 AM GMT

लाहौर (एएफपी)। दशकों पहले साइकिल चलाकर दर्जनों चमचमाती ट्राफियां और शोहरत बंटोरने वाले पूर्व ओलंपियन मोहम्मद आशिक अब दो जून की रोटी कमाने के लिए लाहौर की तंग गलियों में साइकिल रिक्शा चलाने को मजबूर हैं।
81 बरस के इस पूर्व ओलंपियन की आंखें अपनी मुफलिसी की दास्तां सुनाते हुए भर आईं। उन्होंने कहा, ‘‘मैंने पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्रियों, राष्ट्रपतियों, मुख्य कार्यकारियों से हाथ मिलाया है। वे सब मुझे भूल गए, आखिर क्यों? यकीन ही नहीं होता।'' 1960 और 1964 के ओलंपिक खेल चुके आशिक अब लाहौर में रिक्शा चलाते हैं।
साइकिलिंग में करियर खत्म होने के बाद तकदीर भी आशिक से रूठ गई। उन्होंने पीआर की नौकरी की लेकिन 1977 में सेहत दुरुस्त नहीं होने के कारण छोड़नी पड़ी। इसके बाद टैक्सी और वैन चलाई लेकिन माली हालात इतने बिगड़ गए कि आखिर में लाहौर की तंग गलियों में रिक्शा चलाकर बसर करना पड़ रहा है। अपने परिवार के साथ 45 गज के मकान में रहने वाले आशिक किसी तरह अपना खर्च चला रहे हैं। उनकी पत्नी का इंतकाल हो चुका है और चारों बच्चे उनसे अलग रहते हैं। पहले वह अपने पदक रिक्शा पर टांगते थे लेकिन अब नहीं।
गरीबों को कभी खेल में भाग नहीं लेना चाहिए
उन्होंने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति केल्विन कूलिज का एक मशहूर बयान अपने लफ्जों में लिख रखा है, जिसमें कहा गया है, ‘‘अपने नायकों को भुला देने वाले मुल्क कभी तरक्की नहीं करते।'' जब मुसाफिर उनसे इसके बारे में पूछते हैं तो वह अपनी कहानी सुनाते हैं। उनका दर्द अल्फाज में छलक आता है जब वह कहते हैं कि गरीबों को कभी खेल में भाग नहीं लेना चाहिए।
रोज मरने की दुआ करता हूं
उन्होंने कहा, ‘‘एक बार मेरी बीबी रोने लगी तो मैंने कारण पूछा। वह मेरी सेहत को लेकर फिक्रमंद थी। उसने कहा कि खुश रहो और जो हमें भूल गए, उन्हें भूल जाओ। मैंने कहा ठीक है और वह कुछ देर के लिए खुश हो गई। थोड़े समय बाद उसकी मौत हो गई।'' उन्होंने कहा, ‘‘मैं रोज मौत की दुआ करता हूं ताकि जन्नत में अपनी पत्नी से मिल सकूं। इस तरह के हालात में जीने से तो मौत अच्छी है।''
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