दिसंबर में भी बो सकते हैं चने की पछेती किस्में
गाँव कनेक्शन 9 Dec 2015 5:30 AM GMT

लखनऊ। शीत ऋतु में चना रबी की मुख्य फसलों में से एक है। वैसे तो इसकी खेती सितम्बर से शुरू हो जाती है, पर पछेती किस्मों को दिसम्बर के तीसरे सप्ताह तक लगाया जा सकता है। किसानों अभी भी चने की बुआई कर सकते हैं।
भूमि व किस्में
चने के लिए कवक व क्षार रहित जल निकास वाली उपजाऊ भूमि उपयुक्त रहती है। मिट्टी का पीएच मान 6.7-5 के बीच होना चाहिए। बुवाई के लिए विशेष पछेती किस्में पूसा 544, पूसा 572, पूसा 362, पूसा 372, पूसा 547 किस्में के 70-80 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें।
बीज उपचार
इसके लिए 2.5 ग्राम थायरस या कारबेण्डिज्म 0.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज को उपचारित करें। 100 किलो बीज उपचारित करने के लिए 800 मिली लीटर क्लोरोपायरीफास 20 ईसी का प्रयोग करें।
बुवाई का समय व तरीका
सिंचित क्षेत्र में पछेती किस्में दिसम्बर के तीसरे सप्ताह तक अवश्य लगा लेनी चाहिए। बुवाई के लिए 75-80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज लग जाता है, जबकि मोटे दाने वाली किस्म का 64 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज लगता है।
इसमें कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर रखें और सिंचित क्षेत्र में 5-7 सेंटीमीटर गहरी बुवाई कर सकते हैं।
सिंचाई
चने की खेती असिंचित अवस्था में की जाती है। इस फसल के लिए कम जल की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बोने के 45 दिन बाद, दूसरी सिंचाई दाना भरने की अवस्था पर करनी चाहिए।
ऊर्वरक का प्रयोग
सिंचित फसल के लिए 40 किलो नाइट्रोजन व 20 किलो फास्फोरस सही रहता है। नाइट्रोजन की आधी और फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के समय दे दें। बाकी नाइट्रोजन पहली सिंचाई के साथ दे सकते हैं। असिंचित क्षेत्रों में ऊर्वरकों की आधी मात्रा 20 किलो नाइट्रोजन, दस किलोग्राम फास्फोरस बुवाई के समय दें। दस किलोग्राम सलटोन का उपयोग बुवाई के समय करें।
पाले से बचाव
पाले से बचाव के लिए 0.1 फीसदी गंधक के तेज़ाब को पानी में मिलाकर छिड़काव करें। संभावित पाला पड़ने की अवधि में इस छिड़काव को दस दिन बाद फिर से दोहरा सकते हैं।
फसल संरक्षण
कीटों का प्रभाव दिखाई देते ही शाम के समय 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मिथाइल पैराथियान दो फीसदी मात्रा पाउडर का पौधों पर छिड़काव करें।
झुलसा रोग
झुलसा के लक्षण दिखाई देते ही मेन्कोजेब 0.2 फीसदी या कॉपर ऑक्सीक्लोराइट 0.3 फीसदी या घुलनशील गंधक 0.2 फीसदी के घोल का छिड़काव करें।
स्रोत : भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान।
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