सोलह साल मुकदमा लड़ने के बाद भी नहीं मिला एक बिसवा जमीन पर हक

Ashwani Kumar DwivediAshwani Kumar Dwivedi   16 May 2018 10:18 AM GMT

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सोलह साल मुकदमा लड़ने के बाद भी नहीं मिला एक बिसवा जमीन पर हक

लखनऊ। "एक बिसवा जमीन की नापजोख का मुकदमा लड़ते-लड़ते बप्पा (पिताजी) मर गए, 16 साल से तहसील के चक्कर काट रहा हूं, पिता जी के बाद केस मैं लड़ रहा हूं, हो सकता है मेरे बच्चे भी लड़े क्योंकि मुझे नहीं लगता हम जैसे गरीब को न्याय मिलेगा। " इतना बताते बताते बुजुर्ग तरनीसेन गुस्से से भर जाते हैं।

उत्तर प्रदेश में लखनऊ जिले में लखनऊ तहसील के गौरभीट गांव निवासी तरनीसेन (55 वर्ष) के पास 8 बिसवा जमीन है। जिसमें से एक बिसवा पर एक प्रॉपटी डीलर ने कब्जा कर लिया। करीब 16 साल पहले तरनीसेन के पिता भगवानदीन ने इस संबंध में तहसील में हदबरारी (जमीन की सीमा की पैमाइश) का मुकदमा दायर किया। उपजिलाधिकारी कार्यालय में तारीख पर तारीख पड़ती रही, इसी बीच भगवानदीन की मौत हो गई। कुछ दिनों बाद प्रॉपर्टी डीलर ने जिसे जमीन बेची उसने पक्का निर्माण करा लिया तो तरनीसेन ने दीवानी से स्टे (स्थगन आदेश) ले लिया। जिसके बाद हदबरारी का मुकदमा खारिज हो गया, एक बिसवे की लड़ाई लड़ते लड़ते बाकी की ७ बिसवा जमीन भी उनके काम नहीं आ रही।

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ये इकलौता मामला नहीं है जैसे -जैसे गांवों का शहरीकरण होता गया दबंग और प्रभावशाली प्रापर्टी डीलरों की नजर गरीब किसानों की जमीन पर पड़ गयी, पावर आफ अटार्नी ,थोड़े बहुत पैसे किसानों को देखकर लिखित या मौखिक अनुबंध कराकर और किसान से ही रजिस्ट्री करा देना,बैनामा किसी और नम्बर का कब्ज़ा किसी और की जमीन पर जैसे कई हथकंडे प्रापर्टी डीलरों ने अपनाये और राजस्व विभाग के कर्मियों ने भी प्रापर्टी डीलरो की मिलीभगत में खूब मलाई काटी।

दिवानी मामलों के अधिवक्ता भास्कर दत्त मिक्षा बताते हैं, ''किसानों पर ये खतरा अभी टला नहीं है ,तेजी से बढ़ते शहर की चपेट में जो गाँव आने को तैयार है वहां के किसान अगर प्रापर्टी डीलरों से सतर्क नहीं रहें तो आने वाले समय में उनकी हालत भी शहर के बीच में फसें किसानो की तरह हो सकती हैं।'' मामला ये है कि लखनऊ तहसील के गौरभीठ निवासी स्व. भगवानदीन की गाँव में आठ विसवा जमीन है इस जमीन के बगल में स्थित दूसरे किसान से प्रापर्टी डीलरो ने जमीन का अग्रीमेंट करा लिया और उक्त जमीन में प्लाट काटकर बेच दिया और प्लाट की रजिस्ट्री भी प्रापर्टी डीलरों ने किसान से ही करायी और प्लाट के खरीदारों में से कुछ को भगवानदीन की जमीन को अपना बताते हुए कब्ज़ा दे दिया जब भगवानदीन ने इसका विरोध किया तो प्लाट के खरीददारों और भगवानदीन के बीच मारपीट हो गयी और भगवानदीन ने अपनी जमींन बचाने के लिए साल 2002 में हदबरारी का मुकदमा लखनऊ तहसील में दाखिल कर दिया।

देश में जो करोड़ों केस लंबित हैं, उनमें सबसे ज्यादा मामले ऐसी ही जमीन-जायजाद से जुड़े हैं। राजस्व विभाग के आंकड़ों के अनुसार 15 सितम्बर 2017 को यूपी में हदबरारी के 28000 मुकदमे लंबित थे, विभाग के मुताबिक उनमें से अब तक लगभग 16000 मुकदमों का निस्तारण करवाया जा चुका है।

उपभूमि व्यवस्था आयुक्त राजस्व परिषद् उतर प्रदेश भीष्म लाल वर्मा का कहना है, राजस्व के मुकदमों में पारदर्शिता के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने राजस्व न्यायालय कम्प्यूटरीकृत प्रणाली शुरू की गयी है,हदबरारी और पैमायश व् राजस्व सम्बन्धी मुकदमों को सरकार द्वारा निर्धारित अवधि में निस्तारित करने के आदेश सभी जिलाधिकारियों को दिए गये हैं किसी किसान की हद बरारी अगर 16 साल में भी नहीं हो पायी तो ये सही नहीं हैं लेकिन ऐसा क्यों हुआ इसके लिए केस की फ़ाइल देखनी पड़ेगी ।

मृतक भगवानदीन के बेटे तरनीसेन 50 वर्ष ने बताया," हदबरारी मुकदमा 14 साल तक चलता रहा लेकिन हदबरारी नहीं हो पायी जब 2016 में विपक्षी हमारी जमींन पर जबरदस्ती पक्का निर्माण करने लगें तो इस मामले में मैंने दीवानी से स्टे ले लिया और काम रुकवा दिया दीवानी में चल रहे मुकदमे के आधार पर लखनऊ तहसील में मेरा 16 साल से चल रहा मुकदमा यह कहते हुए रोक दिया गया कि अब इसका फैसला दीवानी के मुकदमे के बाद होगा।
वो मायूसी के साथ आगे बताते हैं, "सदर तहसील में एक कानून-गो थे,जो प्रापर्टी डीलरों की मदद कर रहे थे वो बहुत लम्बे समय तक रहे और उन्होंने हद बरारी होने नहीं दी,दूसरे तहसील के कामों में हर कदम पर पैसा आगे चलता हैं और इतना पैसा हम लोगो के पास था नहीं जो खर्च कर पाते।"




आगे तरनीसेन बताते कि हैं, एक टुकड़ा जमीन और यही गाँव में थी, उसे भी प्रापर्टी डीलरो ने ऐसे ही उलझा दिया उस पर कलक्टर लखनऊ साहब के यहाँ मुकदमा चल रहा हैं उसकी कल पेशी है जो दूसरा भाई देखता है हम भाइयों ने आपस में मुकदमे का बटवारा कर लिया है।
भगवानदीन की हदबरारी का मुकदमा देख रहे अधिवक्ता करुणेश तिवारी ने बताया कि ये काफी गरीब किसान परिवार है,इनके मुकदमे एक राजस्वकर्मी विपक्षियों का सहयोग करा रहा था और मुकदमे में विपरीत रिपोर्ट लगवा दी, जिसे फिर से रिकाल कराया लेकिन राजस्व कर्मियों की मिलीभगत के चलते तकीनीकी समस्या बढती रहीं और हदबरारी नहीं हो पायी।" वो आगे बताते हैं," जबतक तहसील कैसरबाग में रही इनकी माली हालत देखते हुए जो मदद हो सकी की गयी अब तहसील देवा रोड पर शिफ्ट हो गयी है तबसे इनका मुकदमा मेरी देख -रेख में नहीं है।"
जमीनी मामलों के जानकार अधिवक्ता अनुज शुक्ला से जब इस विषय पर बात की गयी, उन्होंने बताया की अगर जमीन का मुकदमा दीवानी चला भी गया तो राजस्व के मामले में तहसील द्वारा उसे ख़ारिज नहीं किया जाना चाहिए ,हद बरारी होनी चाहिए थी।"
लखनऊ तहसील के उपजिलाधिकारी अभिनव रंजन श्रीवास्तव ने इस विषय पर बात करने पर बताया की अगर दीवानी में मुकदमा चला गया है तो हदबरारी ख़ारिज की जा सकती हैं, अब ये देखने पड़ेगा की मुकदमे का ग्राउंड क्या था आप मुझे डिटेल नोट करवा दें।

    

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