बकाए भुगतान का इंतजार कर रहे रोजगार सेवकों की अनुपूरक बजट में पूरी होंगी उम्मीदें

पढ़िए अपर आयुक्त मंरेगा,ग्राम्य विकास योगेश कुमार से रोजगार सेवकों के मुद्दे पर गाँव कनेक्शन की खास बातचीत

Ashwani Kumar DwivediAshwani Kumar Dwivedi   1 Sep 2018 12:40 PM GMT

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बकाए भुगतान का इंतजार कर रहे रोजगार सेवकों की अनुपूरक बजट में पूरी होंगी उम्मीदें

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में मानदेय को लेकर संघर्ष कर रहे ग्राम सेवकों के बकाए के बड़े हिस्से का जल्द भुगतान हो सकता है। प्रदेश सरकार के अनुपूरक बजट में करीब १०० करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। उत्तर प्रदेश के अपर आयुक्त मनरेगा योगेश कुमार ने बताया कि बजट मिलने के बाद भुगतान की प्रक्रिया जारी है। रोजगार सेवकों के लिए करीब 56 सांसदों और जिलाध्यक्षों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को खत लिखा था। वहीं भारतीय जनता पार्टी की में मलिहाबाद विधानसभा की विधायक जय देवी कौशल ने भी इस मुद्दे को विधान सभा सत्र में उठाते हुए रोजगार सेवकों सहित सभी संविदाकर्मियो को उनका हक देने की बात कही थी। गांव कनेक्शन ने इस बारे में अपर आयुक्त मनरेगा योगेश कुमार से खास बात की।

प्रश्न : रोजगार सेवकों का कितना मानदेय अभी बाकी है और भुगतान की क्या प्रगति ?

योगेश कुमार: साल 2016-17 और 2017-18 का कुल बकाया जो 225 करोड़ रुपए था, उसमें 51 प्रतिशत 2016-17 में भुगतान किया जा चुका हैं। शेष 49 प्रतिशत जो बचा था, वो राशि 96 करोड़ हैं जो की 2016-17 की था। रोजगार सेवकों का कुल बकाया 221 करोड़ का है, शेष 4 करोड़ में वो तकनीकी सहायक,लेखा अफसर आदि का मानदेय बकाया हैं। अनुपूरक बजट में 100 करोड़ मानदेय की मद में मिला हैं। इसमें जो 2016-17 का 96 करोड़ शेष है, वो हम इन्हें भुगतान कर रहे हैं। शेष जो 125 करोड़ मानदेय 2017-18 बकाया है,उसमे भी मेरी जानकारी में ये आया है कि कुछ प्रतिशत भुगतान किया जा चुका हैं। अगले अनुपूरक बजट में शेष राशि मिलने की उम्मीद है, जो पैसा भारत सरकार से मिलता जा रहा है उसका हम बराबर भुगतान कर रहे हैं।

प्रश्न: रोजगार सेवकों के भुगतान में क्या दिक्कते रही है?

योगेश कुमार: अभी तक ये होता था की जिस खाते से रोजगार सेवकों का भुगतान होता होता था, उसमें अन्य मदों में भी पैसा जैसे- ठेकेदार ,निर्माण सामग्री का भी भुगतान किया जाता था,और कुछ खण्ड विकास अधिकारी द्वारा रोजगार सेवकों के भुगतान को प्राथमिकता नहीं दी जाती थी। रोजगार सेवकों के भुगतान को अनदेखा करके बाकी मदों का भुगतान पहले कर दिया जाता था। लेकिन अब पहले रोजगार सेवकों और अन्य संविकार्मियों का पहले किया जाएगा, प्रदेश के सभी ७५ जिलों में बाकी मदों का भुगतान इनके भुगतान होने के बाद किया जाएगा.

प्रश्न: रोजगार सेवक मानदेय बढ़ाने की मांग कर रहे थे, क्या शासन स्तर पर बना है?

योगेश कुमार: मानदेय बढ़ोत्तरी का मामला ग्राम पंचायत पर आधारित हैं। राज्य सरकार अभी रोजगार सेवकों की नियोक्ता नहीं है। ये ग्राम पंचायत स्तर से संविदा पर नियुक्त किये गए हैं। ऐसे में जो मानदेय निर्धारण है ये ग्राम पंचायत स्तर पर तय किया जाना उचित है। अगर ग्राम पंचायत स्तर पर सृजित मानव दिवस की संख्या में वृद्दि की जाए और अन्य सरकारी विभाग अकुशल कार्यों में मनरेगा मजदूरों से काम ले तो सृजित मानव दिवस की संख्या बढ़ेगी और रोजगार सेवकों का मानदेय भी अधिक हो जायेगा।

प्रश्न: जो गाँव शहरी क्षेत्रों में आ गए हैं, वहां के रोजगार सेवक दूसरी जगहों पर समायोजन की मांग कर रहे हैं?

योगेश कुमार: रोजगार सेवकों का जो समायोजन अधिनियम है, मनरेगा अधिनियम वो ये कहता हैं कि रोजगार सेवक का उसी गाँव का होना अपेक्षित है, जहाँ उसका समायोजन किया जा रहा है। ग्राम रोजगार सेवकों को ब्लाक में कहीं भी नियम के अनुसार तैनात नहीं किया जा सकता और रोजगार सेवकों का ट्रान्सफर भी नहीं कर सकते। जो ग्राम पंचायते शहरी क्षेत्रों में जा रही है, ये बहुत बड़ी संख्या नहीं हैं रोजगार सेवकों की संख्या ही 36340 के ऊपर है। शहरी क्षेत्रों में जो संख्या जा रही है, उसमे इसका बहुत कम प्रतिशत हैं। कुछ जगहों से मांगे आए हैं लेकिन ये मामला ग्राम पंचायत स्तर का हैं, अगर ग्राम पंचायत में कम से कम 3 हजार मानव दिवस सृजित हो रहे हैं, तो उस ग्राम पंचायत में ग्राम रोजगार सेवकों का समायोजन कराया जाना उचित है। यदि इससे कम मानव दिवस सृजित हो रहे हैं, तो उस गाँव में रोजगार सेवक न रखे जाने का कोई औचित्य नहीं हैं।

प्रश्न: आप द्वारा क्या प्रस्ताव या सुझाव शासन को भेजे गये हैं?

योगेश कुमार: अगर जिला स्तर पर मानव दिवस सृजन करने की प्रक्रिया में सुधार आ जाए तो मानव दिवस की संख्या बढती है ,तो ग्राम रोजगार सेवकों को 6 हजार या उससे अधिक का भुगतान किया जा सकता है, जैसे पश्चिम बंगाल में है वो मुश्किल से 21 या 22 जिलों का प्रदेश हैं, लेकिन वो उत्तर प्रदेश से ढेढ़ गुना ज्यादा मानव दिवस सृजित करता हैं।

जबकि उत्तर प्रदेश उससे तीन गुना से ज्यादा बड़ा हैं, फिर भी यहां सृजित मानव दिवस की संख्या कम हैं, हमने पिछले वर्ष में 18 करोड़ 18 लाख मानव दिवस सृजित किए। वहीं पश्चिम बंगाल इसे 32 करोड़ तक ले गया। लेकिन वहां हर एक विभाग जैसे पंचायती राज, सिचाई विभाग और अन्य विभाग का जितना भी अकुशल मजदूरों का कार्य का,वो मनरेगा से कराता हैं। हमारे यहाँ सरकारी विभाग जैसे पंचायती राज और अन्य विभाग लगभग शून्य कार्य करवाते हैं।

रोजगार सेवकों की सामाजिक सुरक्षा के लिए क्या योजनाएं हैं?

योगेश कुमार: मैंने रोजगार सेवकों की 8 मांगों का विधिवत अध्ययन करने के बाद बिन्दुवार सुझाव भेजे हैं। उनमे से एक प्रस्ताव श्रम विभाग को भी भेजा है ताकि रोजगार सेवकों को सामाजिक सुरक्षा जो उनका हक़ है वो मिल सके पर कोई इसे टेकअप नहीं करना चाहता ।

श्रम विभाग में 40 ऐसे व्यवसाय हैं,जैसे पत्थर तोड़ने वाले लोग हैं, सड़क निर्माण में काम करने वाले लोग, निर्माण संबंधी कार्य करने वाले- जिसमे मेट ,निर्माण कार्य का लेखा जोखा रखने वाले लेखाकार, वेल्डर, बिजली मिस्त्री, लिफ्ट बनाने वाले अदि 40 तरह के लोग आते है, श्रम विभाग के नियमावली में ये प्रावधान है की जो लोग किसी निर्माण अधिष्ठान की सुरक्षा करेंगे वे भी पंजीकृत श्रमिक कहलायेंगे ऐसे लोग जो उस निर्माण अधिष्ठान में काम कर रहे लोगों का लेखा-जोखा रखेंगे उनकी हाजिरी लगायेंगे,उन्हें छुट्टी देंगे उनकी मैंन पॉवर मैनेजमेंट देखेंगे, लेखा का कार्य करेंगे, वे भी पंजीकृत श्रमिक होंगे। उनको भी श्रमिकों की श्रेणी में माना जायेगा।

हमारा ग्राम रोजगार सेवक और सहायक लेखाकार दोनों राज्य सरकार के कर्मचारी नहीं है, संविदा कर्मचारी हैं। अगर किसी कम्पनी की मल्टी स्टोरी भवन बन रहा हैं, वहां पर उनके लेखाकार होते हैं, उनका कोई मेट होता है इत्यादि। ऐसे सभी लोग श्रम विभाग में बतौर श्रमिक पंजीकृत होने के लिए अधिकृत हैं। हमने ये प्रस्ताव बनाकर भेजा है कि रोजगार सेवक संविदा कर्मचारी है, पूरे साल सेवाए देते हैं, मेहनत करते हैं। इनका श्रम विभाग में पंजीकरण होना चाहिए और श्रम विभाग की जो 16 योजनाएं हैं जिनमे आवास,बच्चो की पढ़ाई के पैसे, बेटी की शादी के लिए अनुदान इत्यादि मिलता हैं उसका लाभ रोजगार सेवकों को मिलना चाहिए।

हमने वो प्रस्ताव बनाकर भेजा लेकिन वो ग्राह्य नहीं है। जबकि रोजगार सेवक इन योजनओं का लाभ लेने के लिये पात्र हैं और उनके वेतन भी बहुत सीमित है और कई विभागों के लिए कार्य कर रहे हैं। रोजगार सेवकों की मांग के 8 बिंदु है जिसमे मैंने बिन्दुवार सुझाव भेजे थे कि कैसे इनके वेतन बढ़े,कैसे जब ये पंचायत सचिव बने तो इन्हें प्राथमिकता मिले, इस पर मैंने प्रस्ताव भेजा था।

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