...जब पूर्व प्रधानमंत्री ने मांगी 'अग्निपरीक्षा'

पैतालिस साल से राजनीति में सक्रिय और वर्तमान में राज्यसभा सांसद अशोक बाजपेयी से लोकसभा चुनाव और बदलते राजनीतिक परिदृश्य पर "गांव कनेक्शन " की विशेष बातचीत

Ashwani Kumar DwivediAshwani Kumar Dwivedi   28 March 2019 8:58 AM GMT

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लखनऊ । साल 1973 कलकत्ता में विद्यार्थियों का एक हुजूम देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई से मिलने कलकत्ता पहुंचा। सभी मोरारजी देसाई का ऑटोग्राफ चाहते थे। उन दिनों मोरारजी देसाई खादी को प्रमोट कर रहे थे और सिर्फ उसी को ऑटोग्राफ देते थे जिसने खादी के कपड़े पहने हों।

"लगभग सभी विद्यार्थी खादी का कुर्ता और पायजामा पहने हुए थे। चलते समय जब आटोग्राफ देने की बारी आयी तो मोरारजी देसाई ने ऑटोग्राफ देने से पहले कहा की कुर्ता उठा कर बनियान चेक कराओ," पिछले पैंतालीस साल से राजनीति में सक्रिय और बीजेपी से राज्यसभा सांसद अशोक बाजपेई ने किस्सा सुनाया।

"संयोग से मेरी बनियान भी खादी की थी, मैंने कुर्ता उठाकर बनियान दिखाई और मोरारजी देसाई ने मुझे ऑटोग्राफ दे दिया। फिर सभी छात्रों के कुर्ते उठाकर चेक करने के बाद खादी की बनियान पहने छात्रों को आटोग्राफ दिया," पुराने दिनों की याद करते हुए सांसद अशोक बाजपेई ने गाँव कनेक्शन को बताया।

अशोक बाजपेयी पिछले 45 वर्षों से राजनीति में सक्रिय हैं और समाजवादी विचारधारा के समर्थक हैं।

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आज राजनैतिक मूल्यों में आई गिरावट की चर्चा करते हुए सांसद अशोक बाजपेई ने कहा, "बीते दशकों में तमाम नए-नए दल नई विचार धाराओं के साथ खड़े हुए और राजनीति में व्यक्ति के योग्यता का आंकलन का आधार पैसा और ताकत बनता गया इसके परिणाम स्वरूप योग्य जनप्रतिनिधि हाशिये पर चले गए।"

"पहले के नेताओं के साथ जनता का ज़ुडाव होता था, लोग अपने नेता को देखने-सुनने को लालायित रहते थे, उनकी समस्याओं को समझते थे लेकिन बड़ी थैली देकर टिकट खरीदकर सत्ता में आने वाले नेताओं व पैसा लेकर टिकट देने वाली पार्टियों ने राजनीति को पूरी तरह से दूषित करने का काम किया है, चुनाव के दौरान टिकट हासिल करने के लिए पैराशूट से आए लोग टिकट के लिए हर हथकंडा अपनाते हैं, उन्हें जनता से कोई मतलब नहीं। कोई भी राजनीतिक चरित्र का व्यक्ति कभी पैसे देकर टिकट नहीं खरीदता और न ही उसे इसकी जरुरत पड़ती है।

राजनीति में उम्मीदवारों को टिकट देने के अलग-अलग मापदंडों के बारे में सांसद अशोक बाजपेई कहते हैं, "कई दलों में टिकट देने के अलग-अलग मापदंड निर्धारित हैं। टिकट की बोली लगती है और ये किसी से छिपा नहीं है, ऐसे नेता देशहित में क्या करेंगे यह विचारणीय है?

देश में बहुत से क्षेत्रीय दल और गठबंधन उदय हुए और विलीन हो गए

क्षेत्रीय दलों की राजनीति और गठबंधन के भविष्य पर सांसद बाजपेयी ने कहा, "देश के विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ कुछ क्षेत्रीय दल राज्य और केंद्र की सत्ता तक भी पहुंचे लेकिन समय के अंतराल में बहुत से दल और गठबंधन ख़त्म हो गए।"

वह आगे कहते है "असल में स्थानीय या क्षेत्रीय दलों का किसी न किसी घटना के आधार पर उभार होता और एक सीमित आयु के बाद स्वतः ही ये खत्म या कमजोर होने की प्रक्रिया में आ जाते हैं। तमाम क्षेत्रीय दल देश के अलग-अलग राज्यों में जिनका गठन हुआ, आज अगर दस-पंद्रह साल बाद आप चर्चा करें तो बहुत सारे दलों का नाम भी लोगों को याद नहीं होगा। ज्यादातर पार्टी के प्रमुख नेता जिन्होंने किसी वजह से पार्टी छोड़ी और कुछ नए मुद्दों के आधार पर या अपने व्यक्तित्व के आधार पर पार्टी बनायी, तो जब उस व्यक्ति का प्रभाव है तब तक पार्टी चलती रहती है ऐसी पार्टियां मूलतः व्यक्ति या जातीय आधार, क्षेत्रीय आधार पर आधारित होती हैं, और ऐसे दल जिनके कोई निश्चित सिद्धांत नहीं होते कुछ समय बाद अपने लक्ष्य और अवधारणा से भटक जाते हैं और इसी के चलते इनका पतन होता है।

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जातियों का नेता होना आसान, लेकिन समाज, देश का नेता बनना कठिन

भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में जातिगत समीकरण के आधार पर वोट निर्धारण के प्रश्न पर अशोक बाजपेयी ने कहा, "जाति का नेता होना आसान है, लेकिन देश और समाज का नेता होना कठिन। राजनीति में जातिगत समीकरण का चलन पिछले बीस-बाइस साल में बढ़ा है, इससे पहले देश की राजनीति में जातिगत समीकरणों का कोई महत्व नहीं था, और नई पीढ़ी शिक्षित है जातिगत समीकरण का अस्तित्व भविष्य की राजनीति में बहुत ज्यादा नहीं है।"

अशोक बाजपेई मुस्कुराते हुए बताते हैं, " ये जो जातियों के ठेकदार नेता हैं इन्हें जातियों ने नेता नहीं बनाया, बल्कि ये स्वयंभू जातियों के नेता बने हुए हैं। परिणाम ये है कि बहुजन समाज पार्टी दलितों के हितैषी होने का दावा करके लम्बे समय से राजनितिक फायदा उठा रही हैं। दलित वोटों कि जिम्मेदारी लेकर हर बार टिकट करोड़ों रूपये में बेचे जा रहे हैं, और भी ऐसी बहुत सी पार्टियां हैं, लेकिन इन पार्टियों ने सिर्फ खुद का भला किया, इनके पास उपलब्धियों के नाम पर इनके द्वारा अर्जित की गई सम्पत्तियां ही हैं, इसलिए आम जानमानस जैसे-जैसे इनकी मंशा को समझ रहा है, वैसे ही इन्हें नकार रहा है।

आडवाणी बड़े नेता, भाजपा के लिए वो आदरणीय थे, हैं और रहेंगे

भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को भाजपा द्वारा साइड लाइन करने के प्रश्न पर अशोक बाजपेयी कहते हैं, "आडवाणी जी की गिनती देश के बड़े नेताओं में होती है, भाजपा को शिखर तक पहुंचाने में उनकी अहम भूमिका है, वो आज भी भाजपा के मार्गदर्शक हैं, और पूरी पार्टी आज भी उनके मार्गदर्शन में काम कर रही है और उनका सम्मान करती है।

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यूपी में गठबंधन का खास प्रभाव नहीं

सपा-बसपा गठबंधन का लोकसभा चुनाव पर असर के बारे में पूछने पर अशोक बाजपेयी ने कहा, "गठबंधन का कोई खास असर भाजपा पर नहीं पड़ेगा कारण यह हैं की जमीनी स्तर पर सपा-बसपा के कार्यकर्ताओं में छत्तीस का आकड़ा है, एक तरफ जहां बसपा की सरकार में सपा के कार्यकर्ताओं पर झूठे मुकदमे लिखवाए, वहीं सपा सरकार में बसपा वाले परेशान किये गए। जमीनी स्तर पर तगड़ी पार्टीबंदी होती है। गठबंधन में पार्टियों के बड़े नेता तो स्वार्थवश एक- दूसरे को गले लगा लेते हैं पर जमींन पर ये बहुत मुश्किल है।"

आगे कहा, "दूसरी वजह ये भी है, आप चाहें तो पड़ताल कर सकते हैं कि सीटों के बटवारे में दोनों पार्टियों का संगठन अपने प्रत्याशियों पर ज्यादा ध्यान देंगे बाकि औपचारिकता रहेगी, भाजपा पर इस गठबंधन का कोई खास असर नहीं है हम पिछली बार से अधिक सीट इस बार जीतने जा रहे हैं।

















       

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