दिव्यांग भाइयों ने उत्तीर्ण की आईआईटी प्रवेश परीक्षा

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दिव्यांग भाइयों ने उत्तीर्ण की आईआईटी प्रवेश परीक्षाgaonconnection

कोटा (भाषा)। बिहार के एक गरीब परिवार से संबंध रखने वाले और पोलियो से पीड़ित कृष्ण और उनके छोटे भाई बसंत का आईआईटी प्रवेश परीक्षा पास करना बहुत ही प्रेरणादायक है हालांकि, उनके लिए यहां तक पहुंचने की राह आसान नहीं थी।

कई साल तक, बसंत कुमार पंडित (18 वर्ष) शारीरिक रूप से अशक्त अपने बड़े भाई को अपने कंधों पर बिठाकर पहले स्कूल और फिर कोचिंग संस्थान लेकर जाते रहे। कृष्ण ने हाल ही में घोषित हुए जेईई के परिणाम में ओबीसी, विकलांग कोटा में अखिल भारतीय स्तर पर 38वीं रैंक प्राप्त की है जबकि बसंत ने ओबीसी श्रेणी में 3675 वीं रैंक हासिल की है।

उनके पिता मदन पंडित के पास समस्तीपुर के परोरिया गाँव में पांच ‘बीघा’ जमीन है और उनकी मां गृहिणी हैं। कृष्ण (19 वर्ष) जब छह महीने के थे तब उन्हें पोलियो ने अपनी चपेट में लिया था। बाद में, बसंत ने कृष्ण को अपने कंधों पर बिठाकर स्कूल पहुंचाने की जिम्मेदारी ली।

इंजीनियर बनने की इच्छा से, दोनों भाई तीन वर्ष पहले कोटा पहुंचे और आईआईटी की प्रवेश परीक्षा के लिए एक कोचिंग संस्थान में दाखिला लिया। यहां भी, बसंत अपने भाई को अपने कंधों पर बिठाकर कोचिंग क्लास के लिए ले जाते थे और दोनों साथ मिलकर पढ़ाई करते थे।

कृष्ण ने कहा, ‘‘जब तीन वर्ष पहले मैंने कोचिंग के लिए गाँव छोड़ा था, तब गाँव के लोगों को मेरी क्षमताओं पर संदेह था। उन्हें संदेह था कि क्या हम इस तरह से अपनी पढ़ाई जारी रख पाएंगे।’’  कृष्ण के लिए, उनके ‘पैरों’’ की तुलना में उनका भाई बहुत अधिक महत्व रखता है, वह अपने भाई के बारे में बात करने के दौरान बहुत भावुक हो जाते हैं।

कृष्ण ने कहा, ‘‘बसंत ने मेरे लिए सबकुछ किया है, उसने मुझे कंधों पर बिठाकर घर से हॉस्टल के कमरे से लेकर क्लास तक पहुंचाया।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इंजीनियरिंग कॉलेज में उसके बिना रहने के बारे में सोचकर मैं बहुत उदास हो जाता हूं।’’ बसंत ने कहा कि उसे अपने भाई के लिए इन चीजों को करने की आदत पड़ गई है।

उन्होंने कहा, ‘‘अपने बड़े भाई के बिना रहने के बारे में सोचना बहुत कष्टदायक है, सफलता का स्वाद बहुत मीठा है लेकिन अलग होने का अनुभव बहुत कड़वा।’’ बसंत ने अपने स्कूल के दिनों को याद करते हुए कहा, ‘‘एक बार जब हम पांचवी कक्षा में थे तब मैंने गाँव में शारीरिक रूप से अशक्त लोगों के एक आवासीय शिविर में हिस्सा लिया था क्योंकि मेरा भाई कृष्ण वहां मेरे बिना नहीं रह सकता था।’’ 

पहले प्रयास में आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में असफल होने के बाद उनके पिता ने उन्हें वापस आने के लिए कहा था लेकिन मुंबई के एक गैरेज में काम करने वाले उनके दो बड़े भाइयों ने उन्हें वित्तीय सहायता देने का आश्वासन दिया था। कृष्ण ने कहा, ‘‘इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद बसंत सिविल सेवा में शामिल होना चाहता है जबकि मैं कंम्यूटर इंजीनियर बनना चाहता हूं।’’ 

 

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