दक्षिणी-पूर्वी प्रान्तों से भारतीय जनता पार्टी को चुनावी सन्देश
डॉ. शिव बालक मिश्र 20 May 2016 5:30 AM GMT

दक्षिण से केरल, पुन्डूचेरी और तमिलनाडु तथा पूर्व में पश्चिम बंगाल और असम से चुनाव परिणाम आए हैं। इनमें अधिकांश प्रदेश ऐसे हैं जहां भारतीय जनसंघ या भारतीय जनता पार्टी का खाता नहीं खुलता था। अब असम में भारतीय जनता पार्टी की पहली बार अपनी सरकार बनेगी। अन्तर यह आया है कि नरेन्द्र मोदी ने कड़े शब्दों में कहा था कि गैर कानूनी घुसपैठियों को वापस खदेड़ दिया जाएगा और असम की बाढ़ सहित सभी समस्याओं पर समग्र चिन्तन होगा। जीत के कारण और भी होंगे लेकिन मोदी की बात असमिया लोगों को पसन्द आई।
देखना यह होगा कि केन्द्र के गृह मंत्रालय में रिजीजू और असम में बनने जा रहे मुख्यमंत्री सर्वानन्द सोनोवाल मोदी की बातों पर कितना अमल करवा पाते हैं। असम की जनता ने जुआं खेला है क्योंकि वहां भाजपा में कोई लोकप्रिय नेता नहीं था। असम की जनता ने एक बार असम गण परिषद के छात्र नेताओं के हाथ में सत्ता सौंप दी थी। भाजपा को अपने वादों पर खरा उतरना होगा क्योंकि समस्याएं कम नहीं हैं।
पश्चिम बंगाल में भाजपा अपनी जड़ें आज तक नहीं जमा पाई यह आश्चर्य की बात है। केरल में तो हिम्मत करके भारतीय जनसंघ ने शायद 1967 में अपना राष्ट्रीय अधिवेशन रखा था और दीनदयाल उपाध्याय ने मुख्यमंत्री नम्बूदरीपाद से कुछ बसें रिजर्व करने को कहा था तो उनका उत्तर था साधारण बसों से आ जाना कितने लोग होंगे। भीड़ अच्छी हो गई थी और नारे लगाते जा रही थी ‘‘वड़क्कम वड़क्कम नम्बूरी” यानी गिन लो गिन लो नम्बूदरी पाद। लम्बी यात्रा रही है तब से अब तक। वहां पर कांग्रेस और कम्युनिस्टों की बारी-बारी से सरकारें बनती रही हैं।
बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक श्यामाप्रसाद मुखर्जी और हिन्दू महासभा के अध्यक्ष एनसी चटर्जी यहीं से थे। एनसी चटर्जी संसद के स्पीकर रह चुके सोमनाथ चटर्जी के पिता थे लेकिन सोमनाथ जी कम्युनिस्ट बने। स्वामी विवेकानन्द की जन्म भूमि और अरविन्द घोष की कर्मभूमि भी बंगाल ही रही थी। फिर भी यहां हिन्दू चेतना के बजाय क्रान्तिकारी और कम्युनिस्ट सोच विकसित हुई। भाजपा के लिए सन्तोष की बात है कि उनका वोट प्रतिशत लगातार बढ़ा है केरल और तमिलनाडु में भी। यहां पार्टी का खाता खुलना भी उपलब्धि है।
पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी और जयललिता ने अटल जी के समय में भाजपा सरकार को सहयोग दिया था लेकिन वह सहयोग दिल्ली दरबार तक सीमित था। भाजपा अपने लिए इन प्रदेशों में जमीन तैयार नहीं कर सकी थी। केरल में 1957 में कम्युनिस्टों की चुनी हुई सरकार को जवाहर लाल नेहरू ने धारा 356 का प्रयोग करके बर्खास्त कर दिया था लेकिन पार्टी का आधार मजबूत बना रहा क्योंकि वहां सशक्त स्थानीय नेता बने रहे।
भाजपा की परेशानी यह रही है कि इसके पास केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में स्थानीय नेता रहे ही नहीं। जो नेता रहे भी वह संघ या विद्यार्थी परिषद की देन रहे हैं। चूंकि असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ़ आन्दोलन चलते रहे इसलिए कुछ स्थानीय नेता खड़े हुए और उसका लाभ मिला भाजपा को।
इसके पहले जब बिहार में पराजय हुई तो कारण स्पष्ट थे कि बहुत से अति उत्साही तथाकथित हिन्दूवादी नेता अनर्गल बातें करते रहे थे और आरक्षण को लेकर भी असामयिक बातें आ गई थीं। इस बार लगता है मोदी का नियंत्रण रहा है। आशा है राजनैतिक संयम और नियंत्रण का सिलसिला चलता रहेगा। वातावरण विषाक्त नहीं होगा।
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