‘मैंने 60 बार सुनाई अपने रेप की दास्तां’

गाँव कनेक्शनगाँव कनेक्शन   15 April 2018 11:51 AM GMT

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‘मैंने 60 बार सुनाई अपने रेप की दास्तां’ashiyana rape case

इधर जब एक के बाद एक बलात्कार और यौन उत्पीड़न की घटनाएं सामने आईं है, उन्हें कड़ोर सजा देने की जोर-शोर से मांग उठ रही है.. ऐसे दो साल पहले का ये केस और पीड़ित की लड़ाई पर नजर डालिए..

लखनऊ। 'चलती कार में गैंगरेप किया और मेरे भाई को भी पीटा। मुझे भी मारा और अश्लील वीडियो दिखाए। सिगरेट से जलाया, जो निशान मेरे शरीर पर अब भी हैं। रेप के बाद कपड़े पहनाकर मुंह में रुमाल बांध कर मेरे हाथों में 20 रुपये थमा दिए, और बोले घर चली जा।' आशियाना रेप कांड की पीड़िता के ये शब्द आज भी रोंगटे खड़े कर देने वाले हैं।

दो मई, 2005 को एक नाबालिग लड़की का चलती कार में गैंगरेप हुआ था। इसमें गौरव शुक्ला समेत छह लोगों को आरोपी बनाया गया था। कोर्ट पांच को तो पहले सजा सुना चुकी है, जबकि छठे आरोपी गौरव शुक्ला को 13 अप्रैल को दोषी करार दिया गया। कोर्ट इसकी सजा का ऐलान 16 अप्रैल को करेगी।

पीड़िता ने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया, 'मैं चाहती हूं कि लोग मुझे मेरे नाम से जानें, पर इन 11 सालों ने मेरी पहचान छीन ली। अक्सर लोग ये पूछते हैं तुम्हारा नाम क्या हैं? तो यही कहती हूं मेरे दो नाम हैं एक माँ-बाप का दिया, दूसरा अखबार वालों ने दिया।' आगे कहा, 'मेरा बचपन छीन लिया, इलाज तक सही से नहीं हुआ।'

घटना के समय नाबालिग रही रेप पीड़िता और उसके परिवार वालों ने सजा दिलाने के लिए 11 साल की लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। 'पिता ने भाई और रिश्ते खोए, मैंने अपनी इज्जत। पिछले 11 वर्षों से मेरे कान सुनना चाहते हैं कि गौरव शुक्ला को उम्र कैद हो। वो मेरी तरह एक कमरे में रहे। उसका परिवार भी मेरी तरह समाज के ताने सुने।' रेप पीड़िता ने कहा, 'यह जीत मेरी जैसी तमाम लड़कियों की है, जो थाने और कोर्ट तक नहीं पहुँच पाईं या फिर वर्षों तक चक्कर लगाती हैं, यह सुनने के लिए कि वो निर्दोष हैं।'

उस दिन की घटना के बारे में पीड़िता ने बताया, 'मैं बेहोशी की हालत में घर पहुंची। मम्मी और भाभी ने कपड़ों पर लगे खून को देख कर पूछा, तो घटना बताई। मम्मी-पापा के साथ रिपोर्ट दर्ज़ कराने गई। थाने से अस्पताल भेज दिया गया। वहां दो दिन इलाज हुआ उसके बाद मेडिकल कॉलेज भेजा गया। जख्म नहीं भरे थे कि बालिका संरक्षण गृह भेज दिया गया।'

आगे बताती है, 'वहां बंद कमरे में रात गुजरती, उसी कमरे में सोच लिया था उसको सजा दिलाना ही मेरी जिन्दगी का मकसद है। संरक्षण गृह में दिनभर काम करती। कई बार समय पर खाना नहीं मिलता। कोई दोस्त नहीं, जिसको दर्द बताते। मम्मी-पापा से मिलने नहीं देते थे। उनसे कह देते की आप की बेटी ठीक है। रात को कमरे में ताला डाल देते। बंद कमरे में उस कार में हुई घटना दिमाग में घूमती रहती। सब लड़कियां खेलती रहती पर मुझसे कोई बात नहीं करता। मेरा बचपन छीन लिया।'

'अपने लिए लड़ाई लड़ते-लड़ते मैं 13 से 24 साल की हो हई। उस दिन कोर्ट में जब जज ने कहा कि गौरव शुक्ला बालिग है, मानों मेरी सांसे थम गईं। मुझे ऐसा लगा की जैसे हमने आधी लड़ाई जीत ली।' पीड़िता ने कहा।

'गरीब समझकर खरीदने की कोशिश'

गरीब समझकर लोग खरीदना चाहते थे। आरोपियों के घरवाले और बड़े भाई खुलेआम पैसे देने की बात करते। जब शिकायत कोर्ट में की तो अदालत ने सुबूत मांगे।

लेकिन मेरे पास तो कहे हुए शब्द थे। मैंने कई बार कहा कि गौरव शुक्ला के साथ कोर्ट आने वाले इस आदमी को हटा दीजिए। यह मेरे घरवालों को पैसे देने की बात करता है, पिता को धमकी देता है। गरीब हूं पर इज्ज़त ही सब कुछ थी, दरिदों ने वो भी ले ली।

मेरे परिवार को खूब सताया। लेकिन परिवार ने हिम्मत नहीं हारी। पिता ने अपने भाइयों से ही संबंध तोड़ लिए, क्योंकि चाचा ताना देते थे। दर्द में साथ देने वालों की संख्या कम और उंगली उठाने वाले ज्यादा थे। लाठी मारने वालों की लाठी रोकी जा सकती है पर मुंह नहीं। गली के हर कोने से अपने बारे में सुनकर तकलीफ होती।

आत्महत्या करने से अपराधियों को ताकत मिलती है: मैं अखबारों में कई बार पढ़ती कि बलात्कर के बाद पीड़िता ने आत्महत्या कर ली। अगर दुर्भाग्यवस किसी के साथ ऐसा हो तो वो आत्महत्या न करे।

ऐसा करने से अपराधियों की ताकत बढ़ जाती है। बल्कि उनको सजा दिलाने में जुट जाएं। मैं जानती हूं कि राह मुश्किल है, लेकिन अगर ठान लिया तो रास्ते बन जाएंगे।

'तेजी से मिले न्याय'

फास्ट ट्रैक कोर्ट की मांग इसलिए की गई थी कि जल्द न्याय मिले, लेकिन बहुत लंबा समय लगा। मैं चाहती हूं कि ऐसे मामलों में समय तय किया जाना चाहिए फैसले का। बहुत सी ऐसी लड़कियां हैं, जिनको समय पर न्याय नहीं मिला और उनकी जिंदगी खराब हो गई। बाराबंकी में 13 साल कि लड़की जो न चाहते हुए माँ बन गई।

'मधु आंटी को थैंक्यू'

मैं एडवा का मधु आंटी को थैंक्यू कहना चाहती हूं क्योंकि उन्होंने बहुत साथ दिया। अगर उन्होंने साथ देने से लेकर मुझे अपने घर में नहीं रखा होता, साथ-साथ कोर्ट नहीं जाती, हर मोड़ पर साथ नहीं देती तो मैं ये लड़ाई कभी नहीं जीतती। इस बीच ही मैने हाईस्कूल की परीक्षा दी, कंप्यूटर कोर्स किया है। अब इंटर (12वीं) का फार्म भरूंगी। मेरे घर वालों के साथ एडवा को भी धमकियां मिली थीं, लेकिन इन लोगों ने मेरा साथ नहीं छोड़ा।

'पापा बोले, कि मरते दम तक लड़ूंगा'

पापा को धमकियां मिल रही थी, अटैची भर-भर के पैसों देने की कोशिश हुई। थाना,पुलिस के चक्कर लगाते-लगाते कई बार हिम्मत जवाब दे दती थी। लेकिन पापा बोले, तुम फिकर न करो, तुम्हारे लिए मरते दम तक लड़ूंगा। घर बेच दूंगा। उनका हौंसला देख मेरी हिम्मत बढ़ती। वो कहते तुम दूसरों के लिए मिसाल बनोगी।

 

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