1964 में ही जापान में चलने लगी थी बुलेट ट्रेन... पढ़िए रफ्तार और विकास की पूरी कहानी 

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1964 में ही जापान में चलने लगी थी बुलेट ट्रेन... पढ़िए रफ्तार और विकास की पूरी कहानी जापान में बुलेट ट्रेन

भारत में 14 सितबंर को बुलेट ट्रेन की आधारशिला रखी गई है, जो योजना के मुताबिक 2022 तक मुंबई और अहमदाबाद के बीच शुरु हो जाएगी। जबकि जापान में पहली बुलेट ट्रेन 1964 में रफ्तार पकड़ चुकी थी।

देश के कई शहरों में मेट्रो चल रही हैं, लेकिन पूरे भारत में मेट्रो की लंबाई करीब 300 किलोमीटर होगी, जबकि सिर्फ टोक्यो शहर में अंडरग्राउण्ड मेट्रो की ही लंबाई 310 किलोमीटर है। जापान की सबसे तेज व्यावसायिक बुलेट ट्रेन फिलहाल 320 किलोमीटर प्रतिघंटा की अधिकतम स्पीड से चलती है। भारत की सबसे तेज गतिमान एक्सप्रेस 180 किलोमीटर प्रतिघंटा की अधिकतम स्पीड से चलती है।

भारत के पांच बड़े शहरों में मेट्रो रेल सड़कों का बोझ कम कर रही है। कई और शहरों में भी मेट्रो का काम जोरों पर है, बुलेट ट्रेन की आधारशिला रख दी गई है, पर देश के परिवहन पर खर्च होने वाले समय और ऊर्जा को सही दिशा देने में अभी और कितना वक्त लगेगा यह तय कर पाना अभी आसन नहीं पर भारत से छह हजार किलोमीटर दूर एक ऐसा देश है जिसने जन परिवहन के क्षेत्र में रामराज्य की नींव 1927 में ही रख दी थी। यह देश है जापान, जिसकी राजधानी टोक्यो संसार का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला सबसे अमीर शहर अपने बेहतरीन परिवहन तंत्र के कारण ही बन पाया है। टोक्यो दुनिया का सबसे बड़ा शहर है। ग्रेटर टोक्यो यानि टोक्यो और उसके आसपास के इलाके को मिला दिया जाए। उसकी आबादी होती है तीन करोड़ अस्सी लाख। जबकि दिल्ली नेशनल कैपिटल रीजन की आबादी 2 करोड़ 50 लाख है। मतलब टोक्यो और उसके आसपास दिल्ली 1 करोड़ 30 लाख ज्यादा लोग रहते हैं।

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अब खास बात यह है कि होन्डा, सुजुकी, टोयोटा, निसान और यामाहा जैसी कार बनाने वाली बड़ी कम्पनियां जिस देश को दुनिया के सबसे बड़े कार निर्माता देशों में से एक बनाती हैं उसकी राजधानी की इतनी बड़ी आबादी एक जगह से दूसरी जगह आने-जाने के लिए जन परिवहन का इस्तेमाल करती है। ये शहर है लोकल ट्रेन का, ये शहर है शिनकानसेन यानी बुलेट ट्रेन का। इस शहर कि यह खास बात इसे दुनिया के सनसे समृद्ध शहरों में से एक बनती है।

लेट होने का औसत एक मिनट से भी कम

शिनकानसेन है न सिर्फ जापान की बल्कि दुनिया की पहली बुलेट ट्रेन है, यह 320 किमी प्रति घंटा की रफ़्तार से चलती है। वर्ष 1964 से शुरू हुई शिनकानसेन पिछले 51 साल से जापान में गोली की गति से चल रही है लेकिन कभी भी दुर्घटना की शिकार नहीं हुई और यह इतनी भरोसेमंद है कि पिछले 51 साल में इन रेलगाड़ियों के लेट होने का औसत एक मिनट से भी कम रहा है जबकि जापन में भूकंप ,सुनामी,तूफान लगातार आते रहते है । रोज ऐसी 800 से ज्यादा ट्रेन चलती हैं।

12 मिनट के लिए रुकती है बुलेट ट्रेन

2020 में टोक्यो में ओलम्पिक होना है। इसकी तैयारियों के चलते टोक्यो मेट्रोपोलिटन गवर्नमेंट न विदेशों से छह पत्रकारों से कहा गया कि व जापान की ऐसी बात बताए जो जापान के लिए तो बहुत ही आम हो लेकिन बाहर के लोगों को अचंभित करें। उन्ही पत्रकारों में चार्ली जेम्स नाम की पत्रकार भी थीं, जिन्होंने सात मिनट में मिरेकल नाम की स्टोरी बनाई और उसे यू ट्यूब पर डाल दिया। उस वीडियो को अब तक लगभग 40 लाख लोग देख चुके हैं। यह वीडियो एक शिनकानसेन के बारे में है जो अपनी यात्रा के अंत में एक स्टेशन पर 12 मिनट के लिए रुकती है, जिसमें से पहले और बाद के ढाई मिनट यात्रियों के उतरने और चढ़ने के लिए हैं । बचे हुए सात मिनट में रेल सफाई कर्मियों का ट्रेन की हर बोगी और हर सीट को पूरी कुशलता के साथ साफ़ करते देखना, किसी करिश्मे से कम नहीं लगता, जापान में ऐसा हर शिनकानसेन की यात्रा के बाद होता है।

ABP न्यूज की सीरीज रामराज्य की विशेष सीरीज में बुलेट ट्रेन पर रिपोर्ट नीचे देखिए

7 मिनट में साफ हो जाते हैं 17 डिब्बे

शिनकानसेन से जुड़ी ये सात मिनट की कहानी जापान के रामराज्य के बहुत अहम पहलू की तरफ इशारा करती है, वो है समय का पाबंद होना । समय पर रहना, समय पर पहुंचना जापान की फितरत का हिस्सा है। बुलेट ट्रेन या शिनकानसेन जापान की इसी संस्कृति को आगे बढ़ा रही हैं। यहाँ यात्रियों के एक-एक सेकेण्ड को अहमियत दी जाती हैं। तभी पूरे 17 डिब्बे वाली ट्रेन को सात मिनट में साफ़ कर दिया जाता है। इतना ही नहीं यात्रियों का समय और रेल कंपनी के पैसे बचें इसके लिए ट्रेनों को बड़े हिसाब से जोड़कर चलाते हैं ।

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एक-एक मिनट बचा कर जापान का विकास के रस्ते में आगे बढ़ता देखना दिलचस्प है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद यह देश पूरी तरह बर्बाद हो गया था। कहा जाता है कि उस महायुद्ध के बाद टोक्यो में एक भी इमारत सही हालत में नहीं खड़ी नहीं थी और उसके सिर्फ 20 साल के भीतर जापान पहला देश ऐसा देश बन गया जिसने बुलेट ट्रेन चला दी। जापान में पहली बुलेट ट्रेन की शुरुआत हुई टोक्यो और ओसाका के बीच हुई थी। दिन था एक अक्टूबर 1964 और अधिकतम स्पीड दो सौ के ऊपर थी ।

बुलेट ट्रेन के लिए 2200 किमी लंबी लाइन

जापान के इन दो शहरों टोक्यो और ओसाका के बीच की दूरी है 515 किलोमीटर। शिनकासेन के चलने से पहले इस दूरी को तय करने में 6 घंटे 30 मिनट का समय लगता था। टोक्यो और ओसाका के बीच बुलेट ट्रेन के चलने के बाद सीधे ढाई घंटे की बचत होने लगी और अब तो इसी रूट पर लोगों को महज दो घंटा 25 मिनट ही लगता है। वहीँ भारत में मुंबई और अहमदाबाद के बीच की रेल से दूरी है तकरीबन 534 किमी और इस रास्ते चलने वाली जो सबसे तेज ट्रेन है उससे भी अगर आप सफर करें तो उसमें कम से कम 6 घंटे 25 मिनट लग जाते हैं ।

हैरान कर देने वाली बात यह है कि टोक्यो और ओसाका के बीच पर जब 1964 में बुलेट ट्रेन की शुरुआत हुई तब रोज 60 ट्रेनें चला करती थीं। आज उसी रूट पर रोज 333 ट्रेनें चलती हैं। यानी ट्रेन की फ्रीक्वेंसी इतनी है कि आप जब चाहें टिकट लेकर जा सकते हैं । जापान ने बुलेट ट्रेन के लिए 2 हजार 200 किमी लंबी लाइनें बिछाई हैं। इन लाइनों पर रोज़ 841 ट्रेनें चलती हैं । वर्ष 1964 से अब तक पूरी दुनिया की आबादी से ज्यादा लोग इस ट्रेन का प्रयोग कर चुके है ।

रफ्तार ही नहीं सुरक्षा भी

उपलब्ध आंकड़े के मुताबिक, जब वर्ष 2005 में दुनिया की आबादी छह सौ पचास करोड़ थी तब आठ सौ बीस करोड़ लोगों ने इस ट्रेनों का इस्तेमाल कर लिया था। जापान में हर साल इन गाड़ियों का इस्तेमाल 33 करोड़ लोग करते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस ट्रेन व्यवस्था में सिर्फ रफ्तार ही नहीं सुरक्षा भी है। जापान में बुलेट ट्रेन में दुर्घटना की वजह से आज तक एक की भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई है ।

ख़ास होती हैं पटरियां

बुलेट ट्रेन के लिए खास तरह की पटरियां बिछाई जाती हैं। इन पटरियों पर आम रेलगाडियां नहीं चलती । इन पटरियों पर न तो किसी व्यक्ति को आने -जाने की अनुमति होती है न ही कोई रेलवे क्रासिंग । ये ट्रेन ऑटोमेटिक ट्रेन कंट्रोल सिस्टम से चलती है। इसका मतलब है कि यदि ड्राइवर कोई गलती कर रहा हो तो कंट्रोल रूम में बैठे अधिकारी ट्रेन की कमान अपने हाथों में ले सकते हैं। दरअसल इन ट्रेनों में दो तरह का नियंत्रण होता है। पहला नियंत्रण कंट्रोल रूम के पास होता है और दूसरा ड्राइवर के हाथों में जिसे लंबी ट्रेनिंग के बाद ट्रेन चलाने का मौका दिया जाता है। इस ट्रेन का ड्राइवर एक दिन में 7 घंटे 10 मिनट ही ट्रेन चला सकता है वह भी एक बार में तीन घंटे बीस मिनट से ज्यादा नहीं।

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तेज़ हो गई रेल यात्रा

जापान ने बुलेट ट्रेन को अपने देश के अलग- अलग इलाकों को जोड़ने का जरिया बनाया। इससे रेल यात्रा तेज हो गई। लोगों के समय का सही इस्तेमाल होने लगा। 2009 के एक आकड़ें के मुताबिक शिनकानसेन में यात्रा करने वाले लोगों के बचने वाले कुल समय को अगर जोड़ दिया जाए तो साल में 4000 लाख घंटे की बचत होती है। इसका सीधा अर्थ है कि अब काम और परिवार के लिए लोगों के पास ज्यादा वक्त है, मतलब ज्यादा उत्पादन। टोक्यो में ट्रेन लेट नहीं होती पर यदि ऐसा होता है तो रेक कंपनी यात्री को एक कार्डीस्लीप देती है जिसे वह अपने स्कूल कॉलेज या फिर दफ्तर में कर लेट होने के नुकसान और जिम्मेदारी से मुक्त हो सकता है। भारत में जहां ट्रेन लेट होने के लिए जानी जाती है, उस देश को जापान की यह व्यवस्था बहुत कुछ सिखा सकती है।

पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर भरोसा

अप्रैल 25, 2005 को टोक्यो में हुए ट्रेन हादसे में एक लोकल मेट्रो अपनी पटरी से उतर गई । इस हादसे में 107 लोगों की मौत हो गई और 500 से ज्यादा लोग घायल हुए। यह हादसा इसलिए था क्योंकि उसकी ड्राइवर तनाव में था और वो तनाव में इसलिए था क्योंकि उसकी ट्रेन 90 सेकेण्ड या डेढ़ मिनट लेट चल रही थी। समय का इतना पाबंद होना अच्छा है या बुरा इस पर बहस कि जा सकती है पर यह सच है कि समय की पाबंदी की वजह से टोक्यो की पब्लिक ट्रांसपोर्ट व्यवस्था ने बहुत कुछ अर्जित किया है। उन्हीं में सबसे अहम है भरोसा और इसी भरोसे की वजह से लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं। दूसरी बात यह भी है कि टोक्यो में मेट्रो और लोकल ट्रेन का बहुत ही व्यापक जाल बिछा हुआ है ।

आम-ओ-ख़ास, सब करते हैं रेल का इस्तेमाल

टोक्यो आम हो या खास सभी रेल नेटवर्क का इस्तेमाल करते हैं , इसके पीछे की बड़ी वजह है शहर के लगभग डेढ़ से दो किलोमीटर स्वेयर एरिया में एक रेलवे स्टेशन मौजूद होना। ग्रेटर टोक्यो में ही कुल मिलकर 158 लाइन है किस पर 48 अलग- अलग रेक कम्पनियां ट्रेन चलाती हैं। इससे टोक्यो और उसके आस-पास के इलाके को बहुत फायदा हुआ है। मसलन ट्रैफिक जाम कम हो गया है क्योंकि रेल 60 हजार से भी अधिक लोगों को प्रति घंटा प्रति किमी ले जा सकती है जबकि बस 5000 से भी कम यात्रियों को। शहरी रेलवे की स्पीड औसतन 33 किमी प्रतिघंटा होती है जबकि बस की 11 और कार की 23 किमी। टोक्यो में प्रदूषण कम होने की वजह भी रेल है जो एक यात्री को एक किमी ले जाने में महज 21 ग्राम कार्बन डाईऑक्साइड छोड़ती है जबकि इसी दूरी के लिए बस 51 और कार 170 ग्राम, कार्बन डाईऑक्साइड हवा में छोड़ती है।

1997 में हुई थी अंडरग्राउंड मेट्रो की शुरुआत

टोक्यो में सवारी यातायात के लिए 1997 से ही अंडरग्राउंड मेट्रो रेल की शुरुआत हो गई थी। टोक्यो के उनियो स्टेशन पर उसका प्रतीक आज भी रखा गया है। उस समय मेट्रो लाइन इतनी लोकप्रिय थी कि इसकी सवारी के लिए लोगों की कतार दो किमी लंबी हो जाती थी। यह दर्शाता है कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर जापान की सरकार का हमेशा ध्यान रहा। दूसरी बात यह कि बदलती जरूरतों के हिसाब से इस व्यवस्था को विस्तार दिया गया। तीसरी बात पब्लिक ट्रांसपोर्ट को भरोसेमंद बनाए रखने के लिए इसे समय का पाबंद बनाया गया । और चौथी ,सबसे अहम बात है कि ट्रेन, बस या यातायात के दुसरे साधनों को एक-दुसरे से जोस दिया गया ।

एक ही टिकट पर होती है यात्रा पूरी

भारत में यदि किसी को पब्लिक ट्रांसपोर्ट से गाजियाबाद से जयपुर जाना हो तो सबसे पहले वह ऑटो रिक्शा लेगा, बस स्टाप जाएगा। बस उसे नज़दीक मेट्रो स्टेशन तक जाएगा। जहां से वह अपना सामन उठा कर मेट्रो स्टेशन तक जाएगा मेट्रो उसे राजीव चौक छोड़ेगी, जहां से नई दिल्ली के लिए दूसरी मेट्रो लेनी होगी जो नई दिल्ली मेट्रो स्टेशन ले जाएगी। उस मेट्रो स्टेशन से वह बाहर निकलेगा और रेलवे प्लेटफार्म तक पहुंचेगा। इस दौरान ऑटो, बस लोकल मेट्रो और दिल्ली जयपुर ट्रेन सबके लिए अलग -अलग किराया देना होगा पर जापान में ऐसा नहीं है ।

टोक्यो में यात्री चाहे बुलेट ट्रेन से यात्रा कर रहा हो या लोकल मेट्रो से स्टेशन के ठीक बाहर उसे शहर के अन्दर या शहर से बाहर जाने के लिए बस मिल जाती है । और वह एक ही टिकट पर लोकल, मेट्रो,बुलेट या बस में अपनी यात्रा पूरी कर सकता है। जापान में सड़क और रेल यातायात प्राइवेट हाथों में है लेकिन दोनों के लिए नियम और निति बनाने के लिए एक ही मंत्रालय है। भारत में भी मेट्रो रेल शुरुआत हुई है लेकिन पुरे भारत में फिलहाल 277 किमी है जबकि सिर्फ टोक्यो शहर में अंडरग्राउंड मेट्रो की ही लंबाई 310 किमी है।

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जापान की सबसे तेज व्यावसायिक बुलेट ट्रेन फिलहाल 320किमी प्रतिघंटा की अधिकतम स्पीड से चलती है । भारत की सबसे तेज भोपाल शताब्दी 150 किमी प्रति घंटा की अधिकतम स्पीड से चलती है। भारत में बुलेट ट्रेन पर अभी बहस चल रही हैं जबकि 1964 से ही जापान में बुलेट ट्रेन चल रही है। इन बातों का असर यह है कि जापान आज दुनिया के सबसे बड़ी आर्थिक शक्तियों में से एक है। उसकी यातायात व्यवस्था ने उनके विकास की गति को कम नहीं होने दिया । इस विकास के बैगर रामराज्य एक सपना ही हो सकता है।

(ये रिपोर्ट एबीपी न्यूज़ के कार्यक्रम रामराज्य है, जो वर्ष 2015 में चैनल ने विशेष सीरीज के अंतर्गत चलाई थी।)

          

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