आज ही के दिन खत्म हुआ था प्रथम विश्व युद्ध, उल्टी पड़ गई थीं ‘ भारत ’ की नीतियां

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आज ही के दिन खत्म हुआ था प्रथम विश्व युद्ध,  उल्टी पड़ गई थीं ‘ भारत ’ की नीतियांप्रथम विश्व युद्ध की तस्वीर। 

मंगलम् भारत

लखनऊ । प्रथम विश्व युद्ध, जिसने पूरे विश्व को युद्ध की चपेट में लाकर पूरी दुनिया में दहशत का नया उदाहरण पेश किया, आज के ही दिन 28 जून 1919 को वर्साय की सन्धि के साथ ही खत्म हुआ था। आज के ही दिन पराजित देश जर्मनी ने वर्साय की सन्धि पर असहमति जताते हुए उस पर दस्तख़त किये, जो द्वितीय विश्व युद्ध के होने का कारण बना। इसके साथ साथ आज के ही दिन 28 जून 1914 को इस प्रथम विश्व युद्ध के होने का पहला कारण ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकारी आर्चड्यूक फर्डिनेंड और उनकी पत्नी की हत्या से पैदा हुआ।

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कैसे शुरू हुआ प्रथम विश्व युद्ध

औद्योगिक क्रांति के कारण हर देश व्यापार बढ़ाने के लिये कच्चा माल चाहता था। इसके लिये वह दूसरे देशों पर आधिपत्य कर अपना अधिकार करना चाहता था। इसके कारण देशों के बीच भरोसा घटता गया और लड़ाई का भाव पैदा होने लगा। जर्मनी, ऑस्ट्रिया, हंगरी, ओटोमन और बुल्गारिया ने मिलकर एक गुट बना लिया जिसे सहभागी केन्द्रीय शक्ति का नाम दिया गया। इसके साथ ही रूस, फ्रांसब्रिटेन ने मिलकर एक गुट बना लिया जिसे मित्र देश कहा गया। ये दोनों ही गुट बनाकर दूसरे गुट को खत्म करने के लिये मौके की तलाश में थे।

इसका पहला मौका तब बना जब 28 जून 1914 को ऑस्ट्रिया के होने वाले राजा आर्चड्यूक फर्डिनेंड और उनकी पत्नी की हत्या सेराजेवो में कर दी गई। इसका प्रतिशोध लेने के लिये ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के ऊपर 28 जुलाई को युद्ध की घोषणा कर दी। बाद में यह घोषणा प्रथम विश्व युद्ध की वीभत्स आग की चिंगारी बनी।

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कौन कौन देश हुए शामिल

रूस 1917 तक मित्र राष्ट्र तक साथ रहा। इटली ने मित्र राष्ट्रों का साथ 1915 में थामा, वहीं संयुक्त राज्य अमेरिका मित्र राष्ट्रों से 1917 में जुड़ा। अमेरिका के साथ ब्राज़ील, ग्रीस और सियाम भी जुड़े। वहीं 1915 में बुल्गारिया ने केन्द्रीय शक्ति का साथ दिया। इस युद्ध का अन्त केन्द्रीय शक्ति की हार के साथ खत्म हुआ। इसके बाद वर्साय की सन्धि हुई, जिससे असहमत होते हुए भी जर्मनी ने दस्तख़त किये, जो आने वाले दूसरे विश्व युद्ध का कारण बना।

सर्बिया, मोंटेनीग्रो, रूस, बेल्जियम, फ्रांस, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, भारत, दक्षिण अफ्रीका, न्यूज़ीलैण्ड, न्यूफाउण्डलैण्ड, जापान, इटली, रोमानिया, पुर्तगाल, ग्रीस, अमेरिका, सियाम, ब्राज़ील, अर्मेनिया मित्र देशों के गुट में थे।

वहीं केन्द्रीय शक्ति में ऑस्ट्रिया, हंगरी, जर्मन साम्राज्य, ओटोमन तथा बुल्गारिया शामिल थे।

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भारत का योगदान

भारत इस वक्त औपनिवेशक शासन के अधीन था। भारत पर ब्रिटेन का अधिकार था। जर्मनी चाहता था कि वह भारतीयों को ब्रिटेन के खिलाफ़ आन्दोलन शुरू कर दे, जिससे जर्मनी की सेना को फायदा हो। एक गुट यह चाहता था कि जिस वक्त ब्रिटेन प्रथम विश्व युद्ध की योजना बना रहा हो, उस वक्त भारत मिलकर अंग्रेज़ों को उखाड़ फेंके और स्वतन्त्र हो जाएं।

इसके विपरीत भारत के नेताओं ने इस मुश्किल घड़ी में ब्रिटेन का साथ देने का मन बनाया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं का मत था कि इस मुश्किल घड़ी में भारत अगर ब्रिटेन का साथ देता है, तो इससे खुश होकर ब्रिटेन फलस्वरूप भारत को पूरी स्वतन्त्रता या फिर स्वशासन का अधिकार देगा। बल्कि इसके उलट ब्रिटेन ने भारत का शोषण वैसे ही जारी रखा। इसके बाद भारत में जलियाँ वाला बाग काण्ड ने भारत की इस सोच पर कड़ा प्रहार किया।

जब प्रथम विश्व युद्ध आरम्भ हुआ, तो भारत के नेताओं ने अंग्रेज़ों का पूरा साथ दिया और भारतीयों ने विदेश जाकर ब्रिटेन के लिये युद्ध किया। इस विश्व युद्ध में भारत के 8 लाख सैनिकों ने हिस्सा लिया। भारत के सिपाहियों ने फ्रांस, बेल्जियम, अरब, एडीन, पूर्वी अफ्रीका, मेसोपोटामिया समेत पूरे विश्व में युद्ध किया। इसके लिये गढ़वाल रेजीमेन्ट के दो सैनिकों को संयुक्त राज्य का सबसे बड़ा सैनिक पुरस्कार विक्टोरिया क्रॉस मिला।

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क्या रहे आधिकारिक परिणाम

प्रथम विश्व युद्ध इतिहास की सबसे बड़ी वीभत्स घटनाओं का प्रमाण है, जिसने बहुत बड़े स्तर पर इतिहास को ख़ून से लिखा। इस विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों की जीत हुई।

इस विश्व युद्ध में 99 लाख सैनिकों की मौत हुई जिसमें मित्र राष्ट्रों के लगभग 55 लाख तथा केन्द्रीय शक्ति के लगभग 44 लाख सैनिक थे। इसमें करीब 2 करोड़ सैनिक घायल हुए जिसमें मित्र राष्ट्रों के लगभग 1 करोड़ 28 लाख और केन्द्रीय शक्ति के 84 लाख सैनिक थे।

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