#ShaheedDiwas : आज ही के दिन शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी

Mohit AsthanaMohit Asthana   23 March 2017 9:46 AM GMT

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#ShaheedDiwas : आज ही के दिन शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी23मार्च 1931 का दिन शहीद दिवस के नाम से इतिहास में अपना नाम दर्ज करा चुका था।

लखनऊ। 23 मार्च 1931 का दिन शहीद दिवस के नाम से इतिहास में अपना नाम दर्ज करा चुका था। नाम दर्ज करने की वजह भी थी। जी हाँ यही वो दिन था जब ब्रिटिश शासन ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु तीनों को लाहौर जिल में एक साथ फांसी दी थी।ब्रिटिश ने तीनों क्रांतिकारियों को फांसी देने के बाद उनकी अस्थियों को शतलज नदी में बहा दिया था।

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भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर 1907 को पंजाब प्रान्त के लायलपुर जिला जो अब पाकिस्तान में हैं के बंगा गाँव में हुआ था। यह बात चौकाने वाली है लेकिन ये सत्य हैं कि महज 12 साल की उम्र में बगैर किसी को बताए भगत सिंह जलियांवाला बाग चले गए थे और वहां की मिट्टी लेकर घर लौटे थे। 16 साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता को लिखे पत्र में साफ कह दिया था कि उनका जीवन देश सेवा को समर्पित है।

भगत सिंह के पिता किशन सिंह चाचा अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे।उनके पिता और चाचा करतार सिंह सराभा और हरदयाल की गदर पार्टी के मेंबर थे। खुद भगत सिंह भी करतार सिंह सराभा को अपना आदर्श मानते थे। जानकारों के मुताबिक भगत सिंह के जीवन में पहला निर्णायक मोड़ 1919 में आया जब उनकी उम्र करीब 12 साल थी।

13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में इकट्ठी हुए भारतवासियों पर रेगीनाल्ड डायर ने बगैर चेतावनी गोलियां चलवा दी थीं। डायर ने बाग से निकलने से सभी रास्ते बंद करवा दिए थे। इस गोलीबारी में सैकड़ों लोग मरे गए थे। उस हत्या कांड ने भगत सिंह पर गहरा असर डाला और उसी दिन से वो भारत की आज़ादी के सपने देखने लगे थे। जिस समय ये कांड हुआ था उस समय भगत सिंह स्कूली छात्र हुआ करते थे।

1923 में भगत सिंह ने नेशनल कॉलेज लाहौर में बीए में प्रवेश लिया। यहीं उनकी सुखदेव इत्यादि क्रांतिकारियों से दोस्ती हुई थी। कॉलेज में भगत सिंह भारत के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी बहसों और चर्चाओं में भाग लेने लगे। आपको शायद न पता हो लेकिन ये सत्य हैं कि उन दिनों भगत सिंह की शादी करवाने के लिए उनकी दादी ने बहुत प्रयास किया लेकिन भगत सिंह शादी करने के लिए राजी नहीं हुए और नाराज़ होकर घर छोड़कर चले गए। जाते वक्त उन्होंने पिता जी के नाम एक चिठ्ठी लिखी ...

पूज्य पिता जी,

नमस्ते

मेरी ज़िन्दगी मक़सदे-आला यानी आज़ादी-ए-हिन्द के असूल के लिए वक्फ़ हो चुकी है। इसलिए मेरी ज़िन्दगी में आराम और दुनियावी ख़ाहशात बायसे कशिश नहीं हैं।

आपको याद होगा कि जब मैं छोटा था, तो बापू जी ने मेरे यज्ञोपवीत के वक़्त एलान किया था कि मुझे खि़दमते-वतन के लिए वक्फ़ दिया गया है। लिहाज़ा मैं उस वक़्त की प्रतिज्ञा पूरी कर रहा हूँ।

उम्मीद है आप मुझे माफ़ फ़रमायेंगे।

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