मोदी का इजराइल दौरा : इजराइल के सेफ सिटी कॉन्सेप्ट से सीखने की ज़रूरत 

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मोदी का इजराइल दौरा : इजराइल के  सेफ सिटी कॉन्सेप्ट  से सीखने की ज़रूरत पीएम मोदी इजराइली प्रधानमंत्री के साथ।

नई दिल्ली। पिछले दिनों हुए सर्जिकल स्ट्राइक की घटना ने पाकिस्तान से बदला लेने में एक अहम भूमिका निभायी। ये हालिया वाक्या था जब भारतीय सेना ने किसी देश की सीमा में घुस कर दुश्मनों को मार गिराया था। इससे ना सिर्फ सेना का मनोबल बढ़ा है, बल्कि देश के लोगों को भी गर्व का अनुभव हुआ। लेकिन एक देश है, जो ये काम हर महीने करता है वो आज से नहीं पिछले कई सालों से। दिल्ली से नौ हजार किलोमीटर दूर इस देश का नाम है 'इज़राइल'। यह अपने देश के लोगों को सुरक्षा देने और दुश्मनों के मार गिराने के लिए जाना जाता है।

वैसे तो इज़राइल का नाम इधर बीच फिलीस्तीन के साथ होने वाले युद्ध को लेकर ज्यादा सुनने को मिला है। कहा जाता है यहां जिंदगी और मौत के बीच का फासला अक्सर सिर्फ 15 सेकेण्ड का होता है। अगर 15 सेकेण्ड के अंदर आप सुरक्षित जगह तक नहीं पहुंचे तो मुमकिन है कि कोई रॉकेट, गोली, या बम आपकी जान ले लेगा। इसीलिए जब भी कोई हमला होता है तो एक सायरन बजता है, जिसके 15 सेकेंड बाद इन्हें सुरक्षित बंकर में पहुंचना होता है।

घर में बंकर, दफ्तर में बंकर, बाजार में बंकर, यहां तक की खेल के मैदान में भी बंकर, लेकिन फिर भी कभी-कभी कुछ लोगों की जान जाती है। इस देश का फलसफा कुछ अलग सा है। जैसे अगर आप को बचना हो, तो छुपना है। बच कर लडऩा है और दुश्मन को खत्म करना है। अगर आप उसे मारेंगे नहीं तो, वो आपको मार डालेगा, क्योंकि वो एक आतंकवादी है। इज़राइल हमेशा अपने विवादित कार्यों के लिए जाना जाता है, लेकिन जिस शिद्दत से वो अपने नागरिकों की सुरक्षा करता है उसे सीखना बेहद जरूरी है।

प्रत्येक पड़ोसी से सीधी लड़ाई लड़ चुका है इजराइल

इज़राइल 14 मई 1948 को अस्तित्व में आया, और अपने जन्म से ही अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। क्योंकि वहां की बहुसंख्यक यहूदी आबादी जिसे अपना देश मानता है उसे अरब मूल के फिलिस्तीनी अपनी मातृभूमि मानते हैं। इज़राइल के जितने भी पड़ोसी देश हैं उनसे पिछले 6 दशक में कभी न कभी इज़राइल की सीधी लड़ाई हो चुकी है। इज़राइल के मुताबिक उसके सभी पड़ोसी देशों ने हमेशा उन लोगों का समर्थन किया है, जिसे वो आतंकवादी मानता है। और वो आतंकवाद को खत्म करने के लिए हर तरह के कदम उठाने के लिए तैयार है।

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दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक येरूसलम में यहूदी धर्म को मानने वाले लोगों का पवित्र स्थल टेपल माउंट है, वेस्टर्न वाल। यहीं मुसलमानों के लिए बेहद पवित्र अल अक्सा मस्जिद भी मौजूद है। इसे कबिला-ए-अव्वल यानी पहला काबा कहा जाता है। और यहीं चर्च आफ होली सेपलर्च भी है, जहां माना जाता है कि जीसस क्राइस्ट को सूली पर चढ़ाया गया था। जेरुसलम को इजरायल अपनी राजधानी मानता है। इसकी घोषणा इजराइल ने 1948 में ही कर दी थी, लेकिन तब जेरुसलम दो हिस्सों में बंटा था। पश्चिमी जेरुसलम इजराइल के कब्जे में था और पूर्वी जेरुसलम, जार्डन का हिस्सा था। 1967 में इजराइल ने पूर्वी जेरुसलम पर भी कब्जा कर लिया। फिलस्तिन भी जेरुसलम को अपनी राजधानी मानता है।

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इजराइल ने अस्तित्व में आने के साथ ही एक बड़ा फैसला किया। एलान कर दिया गया कि कोई भी यहूदियों का खून आसानी से नहीं बहा सकेगा। भारत में आतंकवादियों के जिस फिदाइन हमले की बात हम 1990 के दशक से सुनते आ रहे हैं, उसे इजराइल 1950 से झेल रहा है। 1953 तक आते-आते हमलों की संख्या बढ़ गई थी। अक्टूबर के महीना था। इजराइल में फिदाइन हमला हुआ एक महिला और उसके 2 बच्चे मारे गये। इजराइल को पता चला कि हमलावर जार्डन प्रशासित गांव क़िबिया से आये थे। इस हमले का बदला लेने के लिए इजराइल ने पूरे गांव को बर्बाद करने का फैसला किया और 14 अक्टूबर 1953 को इजराइल के कंमाडो ने किबिया गांव पर हमला कर दिया।

इसमें 50 से 70 लोगों के मारे जाने की रिपोर्ट आई। इसकी वजह से बहुत निंदा हुयी। लेकिन इजराइल पहले प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरियन इस ऑपरेशन के कमांडर, एरियल शेरॉन से मुखातिब हुए और उन्होंने जो कहा वो गौर करने लायक है। उनके शब्द कुछ इस तरह थे, हमारे लिए एक ही बात अहम है। और वो ये है कि हम हर हाल में अपने पूर्वजों की धरती पर रह सकें। और जब तक कि हम अरब के लोगों को ये न बता दें कि यहूदियों की हत्या उनके लिए बहुत महंगी पड़ेगी, हम यहां नहीं रह सकेंगे।उसने साफ कर दिया मेरे देश के लोगों का खून बहाओगे, तो बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। ये एक बड़ा फर्क लगता है इजराइल और भारत जैसे देश के बीच।

पूरा शहर कैमरे की जद में

इजराइल को पास से समझने के लिए यहां की औद्योगिक राजधानी तेल अवीव सबसे उपयुक्त शहर है। मेडिटेरेनियन सी, भूमध्य सागर के किनारे बसा एक खूबसूरत शहर है। यहां कई हमले भी होते रहे हैं। ठीक वैसे ही जैसे दिल्ली या मुंबई में आंतकवादी हमले होते रहे हैं। हालांकि इसको रोकने के लिए भारत की तरह हर तरफ पुलिस नहीं दिखती। तेल अवीव में सड़कों पर न तो पुलिस दिखाई देती है, न कोई बैरिकेड। अब यहां कोई खास तनाव भी नहीं होता। हालांकि, ये सब संभव हुआ है तकनीकी के बेहतर इंतजाम के चलते। ये पूरा शहर हाईटेक कैमरों की जद में है। एक-एक कंट्रोल रूम से 15-20 किलोमीटर दूर तक शहर की हर गतिविधि पर ये कैमरे नजर रखते हैं। जैसे अगर शहर के किसी कोने में आग लगी हो तो कैमरे सेकेण्ड भर में उसकी तस्वीर इस कंट्रोल रुम में फ्लैश कर देंगे। और कंट्रोल रुम में बैठे अधिकारी, फायर ब्रिगेड, एम्बुलेंस, पुलिस टीम को सूचित करेंगे।

इजराइल ने इसे सेफ सिटी कॉन्सेप्ट नाम दिया है। सुरक्षा एजेंसी के चीफ टेक्निकल ऑफिसर जाविका असानी बताते हैं, 'इतने सारे कैमरे पर नजर रखना मानवीय रूप से संभव नहीं है, इसलिए हमने वीडियो एनालिसिस सिस्टम को कंट्रोल एंड कमांड सेंटर से जोड़ा है। वीडियो कंटेट एनालिसिस से हर उस घटना की तस्वीर खुद ब खुद स्क्रीन पर आ जाती है, जिसके लिए पहले से निर्देश दिये गये होते हैं। मसलन अगर कम्पूटर को निर्देश है कि तेज रफ्तार गाड़ी की तस्वीर को स्क्रीन पर फ्लैश किया जाये तो खुद ब खुद वैसी तस्वीर स्क्रीन पर आ जायेगी।

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इजराइल के शहरों पर दरअसल आंतकवादी हमलों के साथ-साथ बड़े हमलों की भी आंशका रहती है इसलिए तेल अवीव में कमांड एंड कंट्रोल की जो व्यवस्था 15वें माले पर है वैसा ही सिस्टम जमीन से तकरीबन 50 मीटर नीचे उस रूम में भी मौजूद हैं, जहां इमरजेंसी होने पर सेना, पुलिस और प्रशासन के तमाम अधिकारी एक साथ बैठ कर फैसले ले सकते हैं।

इजराइल की भौगोलिक स्थिति अलग है। बाड़ के दूसरी तरफ फिलिस्तिनी प्रशासित इलाके हैं। इन इलाकों से फिलिस्तिनी नागरिक इजराइल में काम करने आ सकते हैं। बॉर्डर पर चेक प्वाइंट है, जहां आधुनिक तकनीकी से सुरक्षा की जांच होती है, वो तकनीकि जो इजाराइल ने जख्म सहते हुए सीखी है। इनकी आर्मी के पास वो डिवाइस भी है कि दीवार के पास क्या हो रहा है ये पता लगा लेते हैं। अगर इस तरह की डिवाइस 26/11 को मुंबई हमलों के दौरान भारत में होती हो इतनी जनहानि नहीं होती।

घर में घुसकर सिखाता है सबक

इजराइल में विमान का अपहरण मुश्किल हो गया तब उग्रवादी संगठनों ने यात्रियों को ले जाने वाले दूसरे विमानों का अपहरण करना शुरु कर दिया। इन सब हमलों का जवाब इजरायल ने 1976 में दिया। इजरायल से उडऩे वाली एयर फ्रांस की फ्लाइट को एथेंस में हाइजैक किया गया और उसे ले जाया गया यूगांडा के एनटेबी एयरपोर्ट पर। तब यूगांडा में आतंकवादियों के समर्थक इदी आमिन तानाशाह हुआ करते थे। नागरिकों को छुड़ाने के लिए अपनी पूरी तैयारी के साथ 4 जुलाई 1976 की रात 11 बजे इजराइली कमांडो एनटेबे एयरपोर्ट पर उतरे और सीधा उसी हॉल में जा घुसे, जहां खुफिया जानकारी के मुताबिक बंधकों को रखा गया था।

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अपहरणकर्ताओं से सीधी मुठभेड़ के बाद 102 बंधकों को छुड़ा लिया गया था। इजराइल ने युगांडा की मर्जी के बगैर उसकी सीमा में घुसकर इस ऑपरेशन को अंजाम दिया। इस बात के लिए कई इस्लामिक देशों और संयुक्त राष्ट्र ने इजराइल की निंदा की। इजराइल के इस तरीके की वजह से ही अरब मूल के 22 में से 18 देश इजराइल को मान्यता नहीं देते हैं। लेकिन इजराइल का तर्क है कि वो ये नागरिकों की सुरक्षा के लिए कर रहा है।

अपने दुश्मनों को दुनिया के किसी कोने में मारने की क्षमता रखता है

इजराइल की खुफिया एजेंसियां 'टारग्रेटेड कीलिंग' के लिए भी जानी जाती हैं। यानी अपने दुश्मनों को दुनिया के किसी कोने में मारने की क्षमता रखते हैं। इस काम में मदद के लिए भारत उसके लिए एक महत्वपूर्ण बाजार भी है और साथी भी। इजराइल के विरोधी कहते हैं कि अगर इजराइल के तौर तरीके इतने ही सही थे, तो इजराइल अपने खिलाफ हो रहे हमलों को 6 दशक बाद भी क्यों नहीं रोक पाया। हालांकि, समर्थक कहते हैं कि अगर इजराइल ने बाड़ लगाने से लेकर, चुनचुन कर मारने का फैसला न करता तो उनका देश बचता ही नहीं।

और कई बार तो ये भी कहा जाता कि इजराइल का इतिहास ही हमे ये बताता है कि कौन सी एसी चीज है, जिसका इस्तेमाल आतंकवाद से निपटने के लिए कभी नहीं किया जाना चाहिए। बहरहाल, अगर सीखना चाहे तों इजराइल के अनुभवों को बहुत गंभीरता से देखना, समझना और उसका अध्ययन करना होगा। आतंकवाद से निपटने व शांति का रामराज्य लाने के लिए जरुरी है।

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