‘नोटबंदी के बाद सहकारी बैंकों में घोटालों का RBI के पास आंकड़ा नहीं’

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‘नोटबंदी के बाद सहकारी बैंकों में घोटालों का RBI के पास आंकड़ा नहीं’भारतीय रिजर्व बैंक

मुंबई (आईएएनएस)। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने माना है कि 500 और 1000 रुपये के अमान्य नोटों को बदलने के क्रम में सहकारी बैंकों द्वारा बरती गई कथित अनियमितताओं या घोटालों की उसके पास कोई विस्तृत जानकारी नहीं है। सूचना के अधिकार (RTI) के तहत सोमवार को मिले एक जवाब से यह खुलासा हुआ है।

एक प्रमुख RTI कार्यकर्ता अनिल गलगली ने सूचना के अधिकार के तहत गत साल 8 नवम्बर से 10 दिसम्बर तक सहकारी बैंकों द्वारा बरती गई कथित अनियमितताओं और अधिकारियों के कथित भ्रष्टाचार के बारे में जानकारी मांगी थी।

गलगली ने RBI के साथ हुए संक्षिप्त पत्रव्यवहार को दिखाते हुए कहा, ''RTI के तहत मिले जवाब के अनुसार, ऐसा नहीं लगता है कि पुराने नोटों को बदलने के क्रम में देश भर में राज्य और जिला सहकारी बैंकों द्वारा बड़े पैमाने पर की गई धांधली के बारे में इसके द्वारा निकाले गए निष्कर्ष के संबंध में आरबीआई के पास कोई आंकड़ा है।'' नोटबंदी के छह दिनों के बाद केंद्र सरकार ने धन शोधन के आरोप के आधार पर राज्य और जिला सहकारी बैंकों को अमान्य नोट बदलने और नए नोट के वितरण की अनुमति देने के अपने फैसले को अचानक पलट दिया था।

केंद्र सरकार के इस फैसले से औपचारिक बैंकिंग सेवाओं के लिए सहकारी बैंकों पर निर्भर लाखों किसान, ग्रामीण और अर्ध ग्रामीण लोग सीधे तौर पर प्रभावित हुए थे। इससे राजनीतिक हंगामा भी हुआ था। गलगली ने कहा, ''मैंने भारतीय जनता पार्टी के नेताओं द्वारा सहकारी बैंकों पर लगाए गए इन आरोपों की जमीनी हकीकत के बारे में तथ्यों की जानकारी मांगी थी, जिससे गैर शहरी लोग बुरी तरह प्रभावित हुए थे।''

सूचना के अधिकार के तहत कथित अनियमितताओं, घोटालों, इन सहकारी बैंकों में उजागर हुए भ्रष्टाचार के आंकड़ों की मांग राज्यों, बैंकों के नामों के साथ की थी और साथ ही दोषियों के खिलाफ की गई कार्रवाई की जानकारी पाने की इच्छा जाहिर की गई थी। भारतीय रिजर्व बैंक के लोक सूचना अधिकारी एजी राय ने कहा कि उनके पास शीर्ष राज्य सहकारी और जिला सहकारी बैंकों के आंकड़े नहीं हैं, जबकि शहरी सहकारी बैंकों के बारे में आंकड़े कहीं और से उपलब्ध हो सकते हैं।

गलगली के अनुसार, ऐसा प्रतीत होता है कि सबसे जटिल नेटवर्क वाले वित्तीय संस्थान सहकारी बैंकिंग के बारे में फैसला महज अफवाहों के आधार पर किया गया था, जबकि सहकारी बैंक भारत की बड़ी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।

     

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